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{ "paragraphs": [ { "context": "खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अन्ततः सफल हुए और वह सन्‌ १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन्‌ १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। इसके साथ ही अनेक समस्याएं भी सिर उठाये खड़ी थीं। १५६३ में शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश, १५६४-६५ के बीच उज़बेक विद्रोह और १५६६-६७ में मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह भी था, किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामन्तों की संख्या बढ़ाई। इसी बीच १५६६ में महाम अंका नामक उसकी धाय के बनवाये मदरसे (वर्तमान पुराने किले परिसर में) से शहर लौटते हुए अकबर पर तीर से एक जानलेवा हमला हुआ, जिसे अकबर ने अपनी फुर्ती से बचा लिया, हालांकि उसकी बांह में गहरा घाव हुआ। इस घटना के बाद अकबर की प्रशसन शैली में कुछ बदलाव आया जिसके तहत उसने शासन की पूर्ण बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके फौरन बाद ही हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा। दिल्ली की सत्ता-बदलदिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबर के लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 43, "text": " अकबर" } ], "category": "SHORT", "id": 579, "question": "हुमायूँ के पुत्र का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 580, "question": "अकबर की अनुपस्थिति में हेमू विक्रमादित्य ने कहां हमला किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 244, "text": "१४ वर्ष" } ], "category": "SHORT", "id": 581, "question": "कितने वर्ष की उम्र में अकबर को राजा बनाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 299, "text": "बैराम खान" } ], "category": "SHORT", "id": 582, "question": "अकबर के पहले संरक्षक का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 224, "text": "कलनौर" } ], "category": "SHORT", "id": 583, "question": "अकबर का राज्याभिषेक किस प्रदेश में हुआ था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 161, "text": " १५५६" } ], "category": "SHORT", "id": 584, "question": "हुमायूँ की मृत्यु किस वर्ष हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 585, "question": "हेमू ने स्वयं को भारत का महाराजा कब घोषित किया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "गाँधी जी पर हवाई बहस करने एवं मनमाना निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा यह युगीन आवश्यकता ही नहीं वरन् समझदारी का तकाजा भी है कि गाँधीजी की मान्यताओं के आधार की प्रामाणिकता को ध्यान में रखा जाए। सामान्य से विशिष्ट तक -- सभी संदर्भों में दस्तावेजी रूप प्राप्त गाँधी जी का लिखा-बोला प्रायः प्रत्येक शब्द अध्ययन के लिए उपलब्ध है। इसलिए स्वभावतः यह आवश्यक है कि इनके मद्देनजर ही किसी बात को यथोचित मुकाम की ओर ले जाया जाए। लिखने की प्रवृत्ति गाँधीजी में आरम्भ से ही थी। अपने संपूर्ण जीवन में उन्होंने वाचिक की अपेक्षा कहीं अधिक लिखा है। चाहे वह टिप्पणियों के रूप में हो या पत्रों के रूप में। कई पुस्तकें लिखने के अतिरिक्त उन्होंने कई पत्रिकाएँ भी निकालीं और उनमें प्रभूत लेखन किया। उनके महत्त्वपूर्ण लेखन कार्य को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है:गाँधी जी एक सफल लेखक थे। कई दशकों तक वे अनेक पत्रों का संपादन कर चुके थे जिसमे हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया आदि सम्मिलित हैं। जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने 'नवजीवन' नामक मासिक पत्रिका निकाली। बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिन्दी में भी हुआ। इसके अलावा उन्होंने लगभग हर रोज व्यक्तियों और समाचार पत्रों को पत्र लिखागाँधी जी द्वारा मौलिक रूप से लिखित पुस्तकें चार हैं-- हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका। गाँधी जी आमतौर पर गुजराती में लिखते थे, परन्तु अपनी किताबों का हिन्दी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते या करवाते थे। हिंद स्वराज (मूलतः हिंद स्वराज्य) नामक अल्पकाय ग्रंथरत्न गाँधीजी ने इंग्लैंड से लौटते समय किल्डोनन कैसिल नामक जहाज पर गुजराती में लिखा था और उनके दक्षिण अफ्रीका पहुँचने पर इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुआ था। आरम्भ के बारह अध्याय 11 दिसंबर 1909 के अंक में और शेष 18 दिसंबर 1909 के अंक में। पुस्तक रूप में इसका प्रकाशन पहली बार जनवरी 1910 में हुआ था और भारत में बम्बई सरकार द्वारा 24 मार्च 1910 को इसके प्रचार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बम्बई सरकार की इस कार्रवाई का जवाब गाँधीजी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करके दिया। इस पुस्तक के परिशिष्ट-1 में पुस्तक में प्रतिपादित विषय के अधिक अध्ययन के लिए 20 पुस्तकों की सूची भी दी गयी है जिससे गाँधीजी के तत्कालीन अध्ययन के विस्तार की एक झलक भी मिलती है। 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' मूलतः गुजराती में 'दक्षिण आफ्रिकाना सत्याग्रहनो इतिहास' नाम से 26 नवंबर 1923 को, जब वे यरवदा जेल में थे, लिखना शुरू किया। 5 फरवरी 1924 को रिहा होने के समय तक उन्होंने प्रथम 30 अध्याय लिख डाले थे। यह इतिहास लेखमाला के रूप में 13 अप्रैल 1924 से 22 नवंबर 1925 तक 'नवजीवन' में प्रकाशित हुआ। पुस्तक के रूप में इसके दो खंड क्रमशः 1924 और 1925 में छपे। वालजी देसाई द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद का प्रथम संस्करण अपेक्षित संशोधनों के साथ एस० गणेशन मद्रास ने 1928 में और द्वितीय और तृतीय संस्करण नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद ने 1950 और 1961 में प्रकाशित किया था। आत्मकथा के मूल गुजराती अध्याय धारावाहिक रूप से 'नवजीवन' के अंकों में प्रकाशित हुए थे। 29 नवंबर 1925 के अंक में 'प्रस्तावना' के प्रकाशन से उसका आरम्भ हुआ और 3 फरवरी 1929 के अंक में 'पूर्णाहुति' शीर्षक अंतिम अध्याय से उसकी समाप्ति। गुजराती अध्यायों के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी नवजीवन में उनका हिन्दी अनुवाद और यंग इंडिया में उनका अंग्रेजी अनुवाद भी दिया जाता रहा।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 586, "question": "प्रस्तावना का अनुवाद कब प्रकाशित हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 587, "question": "नवजीवन ट्रस्ट ने अपना हिंदी अनुवाद कब प्रकाशित किया?" }, { "answers": [ { "answer_start": 822, "text": "इंडियन ओपिनियन" } ], "category": "SHORT", "id": 588, "question": " गांधीजी द्वारा लिखी गई पुस्तक \"हिंद स्वराज\" कहाँ प्रकाशित हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1668, "text": "जनवरी 1910" } ], "category": "SHORT", "id": 589, "question": "हिन्द स्वराज को पुस्तक के रूप में कब प्रकाशित किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "गाँधी जी " } ], "category": "SHORT", "id": 590, "question": "नवजीवन नामक मासिक पत्रिका किसने निकाली थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1248, "text": "गुजराती " } ], "category": "SHORT", "id": 591, "question": "गांधीजी आमतौर पर किस भाषा में लिखते थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2201, "text": "5 फरवरी 1924" } ], "category": "SHORT", "id": 592, "question": "गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास कब लिखा था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "गांधी इस समय पूना की येरवडा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होते ही गांधी ने पहले तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे बदलवाने की मांग की। लेकिन जब उनको लगा कि उनकी मांग पर कोई अमल नहीं किया जा रहा है तो उन्होंने मरण व्रत रखने की घोषणा कर दी। तभी आम्बेडकर ने कहा कि \"यदि गांधी देश की स्वतंत्रता के लिए यह व्रत रखता तो अच्छा होता, लेकिन उन्होंने दलित लोगों के विरोध में यह व्रत रखा है, जो बेहद अफसोसजनक है। जबकि भारतीय ईसाइयो, मुसलमानों और सिखों को मिले इसी (पृथक निर्वाचन के) अधिकार को लेकर गांधी की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई। \" उन्होंने यह भी कहा कि गांधी कोई अमर व्यक्ति नहीं हैं। भारत में न जाने कितने ऐसे लोगों ने जन्म लिया और चले गए। आम्बेडकर ने कहा कि गांधी की जान बचाने के लिए वह दलितों के हितों का त्याग नहीं कर सकते। अब मरण व्रत के कारण गांधी की तबियत लगातार बिगड रही थी। गांधी के प्राणों पर भारी संकट आन पड़ा। और पूरा हिंदू समाज आम्बेडकर का विरोधी बन गया। देश में बढ़ते दबाव को देख आम्बेडकर 24 सितम्बर 1932 को शाम पांच बजे येरवडा जेल पहुँचे। यहां गांधी और आम्बेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से जाना गया। इस समझौते मे आम्बेडकर ने दलितों को कम्यूनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ने की घोषणा की। लेकिन इसके साथ हीं कम्युनल अवार्ड से मिली 78 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली। इसके साथ ही अछूत लोगो के लिए प्रत्येक प्रांत मे शिक्षा अनुदान मे पर्याप्त राशि नियत करवाईं और सरकारी नौकरियों से बिना किसी भेदभाव के दलित वर्ग के लोगों की भर्ती को सुनिश्चित किया और इस तरह से आम्बेडकर ने महात्मा गांधी की जान बचाई।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 993, "text": "पूना पैक्ट" } ], "category": "SHORT", "id": 593, "question": "गाँधी जी और भीम राव आंबेडकर के बीच हुए समझौते को किस नाम से जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 594, "question": "प्रारंभिक में सांप्रदायिक अधिनियम में दलित समुदाय के लिए कुल कितनी आरक्षित सीटे थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 890, "text": "24 सितम्बर 1932" } ], "category": "SHORT", "id": 595, "question": "पूना पैक्ट समझौता कब हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1241, "text": " 148 " } ], "category": "SHORT", "id": 596, "question": "अम्बेडकर ने पूना पैक्ट समझोते के तहत दलितों के लिए आरक्षित सीटों को 78 से बढाकर कितना कर दिया था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने आम्बेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान निर्माण के कार्य में आम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया। आम्बेडकर एक बुद्धिमान संविधान विशेषज्ञ थे, उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। आम्बेडकर को \"भारत के संविधान का पिता\" के रूप में मान्यता प्राप्त है। संविधान सभा में, मसौदा समिति के सदस्य टी॰ टी॰ कृष्णामाचारी ने कहा:ग्रैनविले ऑस्टिन ने 'पहला और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज' के रूप में आम्बेडकर द्वारा तैयार भारतीय संविधान का वर्णन किया। 'भारत के अधिकांश संवैधानिक प्रावधान या तो सामाजिक क्रांति के उद्देश्य को आगे बढ़ाने या इसकी उपलब्धि के लिए जरूरी स्थितियों की स्थापना करके इस क्रांति को बढ़ावा देने के प्रयास में सीधे पहुँचे हैं। 'आम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है। आम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया, और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों के आरक्षण की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता, जो कि सकारात्मक कार्रवाई थी। भारत के सांसदों ने इन उपायों के माध्यम से भारत की निराशाजनक कक्षाओं के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और अवसरों की कमी को खत्म करने की उम्मीद की। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था। अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, आम्बेडकर ने कहा:मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 41, "text": "आम्बेडकर" } ], "category": "SHORT", "id": 597, "question": "भारत के संविधान का पिता किसे कहा जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 118, "text": "15 अगस्त 1947 " } ], "category": "SHORT", "id": 598, "question": "भारत को आजादी कब मिली थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 347, "text": "29 अगस्त 1947" } ], "category": "SHORT", "id": 599, "question": "अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रारूपण समिति के अध्यक्ष के रूप में कब नियुक्त किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 600, "question": "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 द्वारा किस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 601, "question": "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किसने किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 648, "text": "60 " } ], "category": "SHORT", "id": 602, "question": "अम्बेडकर ने कुल कितने देशों के संविधान का अध्ययन किया था ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 40, "text": " आम्बेडकर " } ], "category": "SHORT", "id": 603, "question": "भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री कौन थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "गांधी १९१५ में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों पर अपने विचार व्य‍क्त किए, लेकिन उनके विचार भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर ही आधारित थे जो एक सम्मानित नेता थे। गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि १९१८ में चम्पारन सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील (indigo) नकद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे। जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज) की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया गया जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांवों को बुरी तरह गंदा और अस्वास्थ्यकर (unhygienic); और शराब, अस्पृश्यता और पर्दा से बांध दिया गया। अब एक विनाशकारी अकाल के कारण शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। यह स्थिति निराशजनक थी। खेड़ा (Kheda), गुजरात में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम (ashram) बनाया जहाँ उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। ग्रामीणों में विश्‍वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया। लेकिन इसके प्रमुख प्रभाव उस समय देखने को मिले जब उन्हें अशांति फैलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें प्रांत छोड़ने के लिए आदेश दिया गया। हजारों की तादाद में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए ओर जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गांधी जी को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस संघर्ष के दौरान ही, गांधी जी को जनता ने बापू पिता और महात्मा (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया। खेड़ा में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई। गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में उपयोग किया। पंजाब में अंग्रेजी फोजों द्वारा भारतीयों पर जलियावांला नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है ने देश को भारी आघात पहुँचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी। गांधीजी ने ब्रिटिश राज तथा भारतीयों द्वारा ‍प्रतिकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों तथा दंगों के शिकार लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की तथा पार्टी के आरम्भिक विरोध के बाद दंगों की भंर्त्सना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अपने सिद्धांत की वकालत की कि सभी हिंसा और बुराई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। किंतु ऐसा इस नरसंहार और उसके बाद हुई हिंसा से गांधी जी ने अपना मन संपूर्ण सरकार आर भारतीय सरकार के कब्जे वाली संस्थाओं पर संपूर्ण नियंत्रण लाने पर केंद्रित था जो जल्‍दी ही स्वराज अथवा संपूर्ण व्यक्तिगत, आध्‍यात्मिक एवं राजनैतिक आजादी में बदलने वाला था। दिसम्बर १९२१ में गांधी जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस.का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में कांग्रेस को स्वराज.के नाम वाले एक नए उद्देश्‍य के साथ संगठित किया गया। पार्दी में सदस्यता सांकेतिक शुल्क का भुगताने पर सभी के लिए खुली थी। पार्टी को किसी एक कुलीन संगठन की न बनाकर इसे राष्ट्रीय जनता की पार्टी बनाने के लिए इसके अंदर अनुशासन में सुधार लाने के लिए एक पदसोपान समिति गठित की गई। गांधी जी ने अपने अहिंसात्मक मंच को स्वदेशी नीति — में शामिल करने के लिए विस्तार किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इससे जुड़ने वाली उनकी वकालत का कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन को सहयोग देने के लिएपुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन खादी के लिए सूत कातने में समय बिताने के लिए कहा। यह अनुशासन और समर्पण लाने की ऐसी नीति थी जिससे अनिच्छा और महत्वाकाक्षा को दूर किया जा सके और इनके स्थान पर उस समय महिलाओं को शामिल किया जाए जब ऐसे बहुत से विचार आने लगे कि इस प्रकार की गतिविधियां महिलाओं के लिए सम्मानजनक नहीं हैं। इसके अलावा गांधी जी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं तथा अदालतों का बहिष्कार और सरकारी नौकरियों को छोड़ने का तथा सरकार से प्राप्त तमगों और सम्मान (honours) को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया। असहयोग को दूर-दूर से अपील और सफलता मिली जिससे समाज के सभी वर्गों की जनता में जोश और भागीदारी बढ गई। फिर जैसे ही यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुँचा वैसे फरवरी १९२२ में इसका अंत चौरी-चोरा, उत्तरप्रदेश में भयानक द्वेष के रूप में अंत हुआ। आंदोलन द्वारा हिंसा का रूख अपनाने के डर को ध्‍यान में रखते हुए और इस पर विचार करते हुए कि इससे उसके सभी कार्यों पर पानी फिर जाएगा, गांधी जी ने व्यापक असहयोग के इस आंदोलन को वापस ले लिया। गांधी पर गिरफ्तार किया गया १० मार्च, १९२२, को राजद्रोह के लिए गांधी जी पर मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाकर जैल भेद दिया गया। १८ मार्च, १९२२ से लेकर उन्होंने केवल २ साल ही जैल में बिताए थे कि उन्हें फरवरी १९२४ में आंतों के ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया। गांधी जी के एकता वाले व्यक्तित्व के बिना इंडियन नेशनल कांग्रेस उसके जेल में दो साल रहने के दौरान ही दो दलों में बंटने लगी जिसके एक दल का नेतृत्व सदन में पार्टी की भागीदारी के पक्ष वाले चित्त रंजन दास तथा मोतीलाल नेहरू ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। इसके अलावा, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अहिंसा आंदोलन की चरम सीमा पर पहुँचकर सहयोग टूट रहा था। गांधी जी ने इस खाई को बहुत से साधनों से भरने का प्रयास किया जिसमें उन्होंने १९२४ की बसंत में सीमित सफलता दिलाने वाले तीन सप्ताह का उपवास करना भी शामिल था। गांधी जी सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे और १९२० की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते भी रहे। उन्होंने पहले १९२८ में लौटे .एक साल पहले अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया जिसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। इसका परिणाम भारतीय राजनैतिक दलों द्वारा बहिष्कार निकला। दिसम्बर १९२८ में गांधी जी ने कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के एक अधिवेशन में एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा गया था अथवा ऐसा न करने के बदले अपने उद्देश्य के रूप में संपूर्ण देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहें। गांधी जी ने न केवल युवा वर्ग सुभाष चंद्र बोस तथा जवाहरलाल नेहरू जैसे पुरूषों द्वारा तत्काल आजादी की मांग के विचारों को फलीभूत किया बल्कि अपनी स्वयं की मांग को दो साल की बजाए एक साल के लिए रोक दिया। अंग्रेजों ने कोई जवाब नहीं दिया। .नहीं ३१ दिसम्बर १९२९, भारत का झंडा फहराया गया था लाहौर में है। २६ जनवरी १९३० का दिन लाहौर में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने मनाया। यह दिन लगभग प्रत्येक भारतीय संगठनों द्वारा भी मनाया गया। इसके बाद गांधी जी ने मार्च १९३० में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया जिसे १२ मार्च से ६ अप्रेल तक नमक आंदोलन के याद में ४०० किलोमीटर (२४८ मील) तक का सफर अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके। समुद्र की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने ८०,००० से अधिक लोगों को जेल भेजा। लार्ड एडवर्ड इरविन द्वारा प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श करने का निर्णय लिया। यह इरविन गांधी की सन्धि मार्च १९३१ में हस्ताक्षर किए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी रजामन्दी दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया गया। यह सम्मेलन गांधी जी और राष्ट्रीयवादी लोगों के लिए घोर निराशाजनक रहा, इसका कारण सत्ता का हस्तांतरण करने की बजाय भारतीय कीमतों एवं भारतीय अल्पसंख्‍यकों पर केन्द्रित होना था। इसके अलावा, लार्ड इरविन के उत्तराधिकारी लार्ड विलिंगटन, ने राष्‍ट्रवादियों के आंदोलन को नियंत्रित एवं कुचलने का एक नया अभियान आरम्भ करदिया। गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने उनके अनुयाईयों को उनसे पूर्णतया दूर रखते हुए गांधी जी द्वारा प्रभावित होने से रोकने की कोशिश की। लेकिन, यह युक्ति सफल नहीं थी। १९३२ में, दलित नेता और प्रकांड विद्वान डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर के चुनाव प्रचार के माध्यम से, सरकार ने अछूतों को एक नए संविधान के अंतर्गत अलग निर्वाचन मंजूर कर दिया। इसके विरोध में दलित हतों के विरोधी गांधी जी ने सितंबर १९३२ में छ: दिन का अनशन ले लिया जिसने सरकार को सफलतापूर्वक दलित से राजनैतिक नेता बने पलवंकर बालू द्वारा की गई मध्‍यस्ता वाली एक समान व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की शुरूआत थी। गांधी जी ने इन अछूतों को हरिजन का नाम दिया जिन्हें वे भगवान की संतान मानते थे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 604, "question": "गांधी ने हरिजन आंदोलन के समर्थन के लिए कितने दिनों का उपवास रखा था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 4982, "text": "छह साल" } ], "category": "SHORT", "id": 605, "question": "राजद्रोह के लिए गांधीजी को कितने साल की जेल की सजा सुनाई गई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 606, "question": "हरिजन शब्द के प्रयोग की निंदा किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 6, "text": "१९१५" } ], "category": "SHORT", "id": 607, "question": "गांधी भारत में रहने के लिए दक्षिण अफ्रीका से कब लौटे थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 317, "text": "१९१८" } ], "category": "SHORT", "id": 608, "question": "गांधीजी को पहली बड़ी उपलब्धि कब मिली थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "गोविंद तृतीय की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी अमोघवर्ष प्रथम के राज्यकाल में विजयादित्य ने भीम सलुक्की को परास्त कर दिया, आंध्र पर पुन: अधिकार कर लिया ओर दक्षिण को जीतता हुआ, विजयकाल में कैंबे (खंभात) तक पहुँच गया जो ध्वस्त कर दिया गया था। तत्पश्चात् उसके प्रतिहार राज्य पर आक्रमण किया किंतु प्रतिहार वाग्भट्ट द्वितीय द्वारा पराजित हुआ। घटनावशात् शत्रुओं में तंग आकर उसे अपने देश की शरण लेनी पड़ी। विजयादित्य द्वितीय के पौत्र विजयादित्य तृतीय (844-888ई.) ने उत्तरी अर्काट के पल्लवों को पराजित किया, तंजोर के कोलाओं को उनके देश के पंड्याओं पर पुनर्विजय में सहायता दी, राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय और उसके सबंधी दहाल के कलचुरी संकरगण और कालिंग के गंगों को परास्त किया और किरणपुआ तथा चक्रकूट नगरों को जलवा दिया। 10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुहयुद्ध हुआ और बदप ने, जो चालुक्य साम्रज्य का पार्श्ववर्ती भाग था, राष्ट्रकूट कृष्ण तृतीय को सहायता देकर तत्कलीन चालुक्य शासक दानार्णव को परास्त कर दिया। फिर वेंगो के सिंहासन पर अवैध अधिकार कर लिया, जहाँ पर उसने और उसे उत्तराधिकारियों ने 999 ई. तक राज्य किया। अंत में दानार्णव के पुत्र शक्तिवर्मन् ने सभी शत्रुओं को परास्त करने और अपने देश में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। शक्तिवर्मन् का उत्तराधिकार उसके छोटे भाई विमलादित्य ने सँभाला। उसके पश्चात् उसका पुत्र राजराज (1018-60) उत्तराधिकारी हुआ। राजराज ने तंजोर के राजेंद्रचोल प्रथम की कन्या से विवाह किया और उससे उसको कुलोत्तुंग नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में चोल राजधानी में अपनी नानी तथा राजेंद्रचोल की रानी के पास रहा। सन् 1060 में राजराज अपने सौतेले भाई विक्रमादित्य सप्तम द्वारा अदस्थ किया गया जो वेंगी के सिंहासन पर 1076 तक रहा। सन् 1070 में राजराज के पुत्र कुलोत्तुंग ने चोल देश पर सार्वभौमिक शासन किया और सन् 1076 में अपने चाचा विजादित्य सप्तम को पराजित कर आंध्र को अपने राज्य में मिला लिया। कुलोत्तुंग और उसके उत्तराधिकारी, जो \"चोल\" कहलाना पसंद करते थे, सन् 1271 तक चोल देश पर शासन करते रहे। ऊपर इसका उल्लेख किया जा चुका है कि बादामी का चालुक्य कीर्तिवर्मन् द्वितीय 8वीं शती के मध्यभाग में राष्ट्रकूटों द्वारा पदच्युत कर दिया गया, जिन्होंने बाद में दक्षिण में दो सौ वर्षों से अधिक काल तक राज्य किया। इस काल में कीर्तिवर्मन् द्वितीय का भाई भीम और उसके उत्तराधिकारी राष्ट्रकूटों के सामंतों की हैसियत से बीजापुर जिले में राज्य करते रहे। इन सांमतों में अंतिम तैल द्वितीय ने दक्षिण में राष्ट्रकूटों के शासन को समाप्त कर दिया और 973 ई. में देश में सार्वभौम सत्ता स्थापित कर ली। वह बड़ी सफलता के साथ चोलों और गंगों से लड़ा और तैल की प्रारंभिक राजधानी मान्यखेट थी। सन् 993 के कुछ दिनों पश्चात् राजधानी का स्थानांतरण कल्याणी में हो गया जो अब बिहार में है। तैल का पौत्र जयसिंह (सन् 1015-1042) परमार भोज और राजेंद्र चोल से सफलतापूर्वक लड़ा। जयसिंह का बेटा सोमेश्वर (1042-1068) भी चोलों से बड़ी सफलतापूर्वक लड़ा और लाल, मालवा तथा गुर्जर को रौंद डाला। उसका उत्तराधिकार उसके पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने 1069 में सँभाला जिसे उसके छोटे भाई विक्रमादित्य षष्ठ ने 1076 ई. में अपदस्थ कर दिया। विक्रमादित्य कुलोत्तुंग प्रथम से आंध्र देश पर अधिकार करने के निमित्त लड़ा। युद्ध के विभिन्न परिणाम हुए और कुलोत्तंग प्रथम की मृत्यु के पश्चात् (1018 ई.) कुछ काल तक के लिये विक्रमादित्य ने उस प्रदेश कर अपना प्रभुत्व स्थापित रखा। उसने द्वारसमुद्र के \"होयसलों\" और देवगिरि के यादवों के विद्रोहों का दमन किया और लाल तथा गुर्जर को लूट लिया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1023, "text": "शक्तिवर्मन्" } ], "category": "SHORT", "id": 609, "question": "विमलादित्य के बड़े भाई का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 461, "text": "उत्तरी अर्काट के पल्लवों" } ], "category": "SHORT", "id": 610, "question": "विजयादित्य तृतीय ने किस शासक को युद्ध में हराया था ? " }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 611, "question": "कलचुरी बिज्जला ने चालुक्य सम्राट की मृत्यु के बाद किस वर्ष खुद सम्राट बनने की घोषणा की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 612, "question": "विक्रमांकदेवचरित किसने लिखा था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 97, "text": "भीम सलुक्की" } ], "category": "SHORT", "id": 613, "question": "अमोघवर्ष प्रथम के शासनकाल के दौरान विजयादित्य ने किसको हराया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1322, "text": "कुलोत्तुंग" } ], "category": "SHORT", "id": 614, "question": "राजराजा के पुत्र का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 615, "question": "तैला तृतीय के बेटे का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1610, "text": "चोल देश" } ], "category": "SHORT", "id": 616, "question": "वर्ष 1070 में राजराजा के पुत्र कुलोत्तुंग ने किस देश पर शासन किया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "ग्वालियर किले में चतुर्भुज मंदिर एक लिखित संख्या के रूप में शून्य की दुनिया की पहली घटना का दावा करता है। हालाँकि पाकिस्तान में भकशाली शिलालेख की खोज होने के बाद यह दूसरे स्थान पर आ गया। ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिरकुल की देन है, जो छठी सदी में यहाँ राज किया करते थे। इस प्रशस्ति में उन्होंने अपने पिता तोरमाण (493-515) की प्रशंसा की है। 1231 में इल्तुतमिश ने 11 महीने के लंबे प्रयास के बाद ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और तब से 13 वीं शताब्दी तक यह मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 1375 में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमरवंश की स्थापना की। उन वर्षों के दौरान, ग्वालियर ने अपना स्वर्णिम काल देखा। इसी तोमर वंश के शासन के दौरान ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई थीं। राजा मान सिंह तोमर ने अपने सपनों का महल, मैन मंदिर पैलेस बनाया जो अब ग्वालियर किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। बाबर ने इसे \" भारत के किलों के हार में मोती\" और \"हवा भी इसके मस्तक को नहीं छू सकती\" के रूप में वर्णित किया था। बाद में 1730 के दशक में, सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया| फिर सन 1740 मे गोहद के जाट राजा भीम सिंह राणा ग्वालियर को जीत लिया और कई बर्षों तक यहां शासन किया| फिर दुबारा सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश शासन के दौरान यह एक रियासत बना रहा। 5 वीं शताब्दी तक, शहर में एक प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने भाग लिया था। ग्वालियर पर मुगलों ने सबसे लंबे समय तक शासन किया और फिर मराठों ने। क़िले पर आयोजित दैनिक लाइट एंड साउंड शो ग्वालियर किले और मैन मंदिर पैलेस के इतिहास के बारे में बताता है। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था। बल्कि यहाँ के सिंधिया शासक ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था। झाँसी के अंग्रेज़ों के हाथ में पड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर भागकर आ पहुँचीं और वहाँ के शासक से उन्होंने पनाह माँगी। अंग्रेज़ों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इंकार कर दिया, किंतु उनके सैनिकों ने बग़ावत कर दी और क़िले को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 495, "text": "राजा वीर सिंह" } ], "category": "SHORT", "id": 617, "question": "तोमर वंश की स्थापना किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 939, "text": "1730" } ], "category": "SHORT", "id": 618, "question": "सिंधियों ने ग्वालियर पर किस वर्ष शासन किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 619, "question": "रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से आखिरी लड़ाई कहाँ लड़ी थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 352, "text": "1231" } ], "category": "SHORT", "id": 620, "question": "इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर कब कब्ज़ा किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 217, "text": "हूण शासक मिहिरकुल" } ], "category": "SHORT", "id": 621, "question": "ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख किस शासक ने बनवाया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 622, "question": "रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब हुई थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासनव्यवस्था का ज्ञान प्रधान रूप से मेगस्थनीज़ के वर्णन के अवशिष्ट अंशों और कौटिल्य के अर्थशास्त्र से होता है। अर्थशास्त्र में यद्यपि कुछ परिवर्तनों के तीसरी शताब्दी के अन्त तक होने की सम्भावना प्रतीत होती है, यही मूल रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य के मन्त्री की कृति थी। राजा शासन के विभिन्न अंगों का प्रधान था। शासन के कार्यों में वह अथक रूप से व्यस्त रहता था। अर्थशास्त्र में राजा की दैनिक चर्या का आदर्श कालविभाजन दिया गया है। मेगेस्थनीज के अनुसार राजा दिन में नहीं सोता वरन्‌ दिनभर न्याय और शासन के अन्य कार्यों के लिये दरबार में ही रहता है, मालिश कराते समय भी इन कार्यों में व्यवधान नहीं होता, केशप्रसाधन के समय वह दूतों से मिलता है। स्मृतियों की परम्परा के विरुद्ध अर्थशास्त्र में राजाज्ञा को धर्म, व्यवहार और चरित्र से अधिक महत्व दिया गया है। मेगेस्थनीज और कौटिल्य दोनों से ही ज्ञात होता है कि राजा के प्राणों की रक्षा के लिये समुचित व्यवस्था थी। राजा के शरीर की रक्षा अस्त्रधारी स्त्रियाँ करती थीं। मेगेस्थनीज का कथन है कि राजा को निरन्तर प्राणभ्य लगा रहता है जिससे हर रात वह अपना शयनकक्ष बदलता है। राजा केवल युद्धयात्रा, यज्ञानुष्ठान, न्याय और आखेट के लिये ही अपने प्रासाद से बाहर आता था। आखेट के समय राजा का मार्ग रस्सियों से घिरा होता था जिनकों लाँघने पर प्राणदण्ड मिलता था। अर्थशास्त्र में राजा की सहायता के लिये मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था है। कौटिल्य के अनुसार राजा को बहुमत मानना चाहिए और आवश्यक प्रश्नों पर अनुपस्थित मन्त्रियों का विचार जानने का उपाय करना चाहिए। मन्त्रिपरिषद् की मन्त्रणा को गुप्त रखते का विशेष ध्यान रखा जाता था। मेगेस्थनीज ने दो प्रकार के अधिकारियों का उल्लेख किया है - मन्त्री और सचिव। इनकी सख्या अधिक नहीं थी किन्तु ये बड़े महत्वपूर्ण थे और राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त होते थे। अर्थशास्त्र में शासन के अधिकारियों के रूप में 18 तीर्थों का उल्लेख है। शासन के विभिन्न कार्यों के लिये पृथक्‌ विभाग थे, जैसे कोष, आकर, लक्षण, लवण, सुवर्ण, कोष्ठागार, पण्य, कुप्य, आयुधागार, पौतव, मान, शुल्क, सूत्र, सीता, सुरा, सून, मुद्रा, विवीत, द्यूत, वन्धनागार, गौ, नौ, पत्तन, गणिका, सेना, संस्था, देवता आदि, जो अपने अपने अध्यक्षों के अधीन थे। मेगस्थनीज के अनुसार राजा की सेवा में गुप्तचरों की एक बड़ी सेना होती थी। ये अन्य कर्मचारियों पर कड़ी दृष्टि रखते थे और राजा को प्रत्येक बात की सूचना देते थे। अर्थशास्त्र में भी चरों की नियुक्ति और उनके कार्यों को विशेष महत्व दिया गया है। मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के नगरशासन का वर्णन किया है जो संभवत: किसी न किसी रूप में अन्य नगरों में भी प्रचलित रही होगी। (देखिए 'पाटलिपुत्र') अर्थशास्त्र में नगर का शसक नागरिक कहलाता है औरउसके अधीन स्थानिक और गोप होते थे। शासन की इकाई ग्राम थे जिनका शासन ग्रामिक ग्रामवृद्धों की सहायता से करता था।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 623, "question": "धर्मस्थ किसे कहा जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2218, "text": "पाटलिपुत्र" } ], "category": "SHORT", "id": 624, "question": "मेगस्थनीज में किस शहर के शासन प्रणाली का वर्णन किया गया है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 625, "question": "अर्थशास्त्र में कितने प्रकार के न्यायशास्त्र का उल्लेख है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 480, "text": "दिन में" } ], "category": "SHORT", "id": 626, "question": "मेगस्थनीज के अनुसार राजा किस समय नही सोता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 110, "text": "कौटिल्य के अर्थशास्त्र" } ], "category": "SHORT", "id": 627, "question": "चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के शासन का ज्ञान मुख्य रूप से कहाँ से प्राप्त होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1673, "text": "18 तीर्थों" } ], "category": "SHORT", "id": 628, "question": "अर्थशास्त्र में शासन के अधिकारियों के लिए कितने तीर्थो का उल्लेख किया गया है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चालुक्य राजवंश कई शाखाओं में विभक्त था। यह मान्यता है कि वे चालुक्य वंश के ही समरूप थे, क्योंकि वे भी इस रूढ़ि में विश्वास करते थे कि परिवार का अधिष्ठाता ब्रह्मा की हथेली से उत्पन्न हुआ था। यह भी किबदंती है कि चालुक्यों का मूल वासस्थान अयोध्या था, जहाँ से चलकर उस परिवार का राजकुमार विजयादित्य दक्षिण पहुँचा और वहाँ अपना राज्य स्थापित करने के प्रयत्न में पल्लवों से युद्ध करता हुआ मारा गया। उसके पुत्र विष्णुवर्धन् ने कदंबो और गंगों को परास्त किया और वहाँ अपने राज्य की स्थापना की। वंश की राजधानी बीजापुर जिले में बसाई थी। प्रो हार्नले वह भगवान जी लाल इंद्र ने वातापी के चालुक्यों को हूणों का उत्तराधिकारी बताया है पुलकेशिन प्रथम का एक उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मन् प्रथम था, जो छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। उसने कदंबों, गंगां और मौर्यों को पराजित करके अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित प्रदेश में कुछ और भाग मिला लिए। पुलकेशिन् द्वितीय, कुब्ज विष्णुवर्धन और जयसिंह उसके तीन पुत्र थे और छठी शताब्दी के अंत में उसका उत्तराधिकार उसके छोटे भाई मंगलेश को प्राप्त हुआ। मंगलेश ने 602 ई. के पूर्व मलवा के कलचुरीय बुद्धराज को परास्त किया और दक्षिण में कलचुरि राज्य के विस्तार को रोका। उसने अपने पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का प्रयत्न किया, किंतु उसके भतीजे पुलकेशिन् द्वितीय ने इसका विरोध किया। फलस्वरूप गृहयुद्ध में मंगलेश के जीवन का अंत हुआ। पुलकेशिन् द्वितीय ने जो 609 में सिंहासन पर बैठा, एक बड़ा युद्ध अभियान जारी किया और मैसूर के कंदब, कोंकण के मौर्य, कन्नौज के हर्षवर्धन और कांची के पल्लवों को परास्त किया तथा लाट, मालवा और कलिंग पर विजय प्राप्त की। उसके छोटे भाई विष्णुवर्धन् ने अपने लिये आंध्र प्रदेश जीता तो बादामी राज्य में मिला लिया गया। उसने सन् 615-616 में इस राजकुमार को आंध्र का मुख्य शासक नियुक्त किया और तब उसका शासन राजकुमार और उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में रहा, जो पूर्वी चालुक्यों के रूप में प्रसिद्ध थे। संभवत: पुलकेशिन् द्वितीय ने पल्लव नरसिंह वर्मन् से सन् 642 में वुद्ध करते हुए प्राण दिए। उसके राज्यकाल में सन् 641 में एक चीनी यात्री युवानच्वां ने उसके राज्य का भ्रमण किया, जिसके संस्मरणों से उस काल में दक्षिण की आंतरिक स्थिति की झलक प्राप्त हो सकती है। पुलकेशिन् द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् 13 वर्ष तक दक्षिण का प्रांत पल्लवों के अधिकार में रहा। 655 ई. में उसके बेटे विक्रमादित्य प्रथम ने पल्लवों के अधिकार से अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया। उसने अपनी सेनाएँ लेकर पल्लवों पर आक्रमण कर दिया और प्रदेश के एक भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, यद्यपि वह प्रभुत्व बहुत अल्प समय तक ही रहा। उसके प्रपौत्र विक्रमादित्य द्वितीय ने पल्लवों से पुन: बैर ठान लिया और उसकी राजधानी कांची को लूट लिया। विक्रमादित्य द्वितीय के राज्यकालांतर्गत (733-745 ई.) चालुक्य राज्य के उत्तरी भाग पर सिंध के अरबों ने आधिपत्य जमा लिया, किंतु अवनिजनाश्रय पुलकेशी नाम के उसके सामंत ने, जो चालुक्य वंश की पार्श्ववर्ती शाखा का सदस्य था तथा जिसक मुख्य स्थान नौसारी में था, आधिपत्यकारियों को खदेड़कर बाहर कर दिया। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मन् द्वितीय आठवीं शताब्दी के मध्य राष्ट्रकूट दानीदुर्ग द्वारा पदच्युत किया गया। जैसा इससे पूर्व कहा जा चुका है, कुब्ज विष्णुवर्धन्, पुलकेशिन् द्वितीय का छोटा भाई, जो चालुक्य साम्राज्य के पूर्वी भाग का अधिष्ठाता था, 615-16 ई. में आंध्र की राजधानी बेंगी के सिंहासन पर बैठा। पूर्वी चालुक्यवंशियों को राष्ट्रकूटों से दीर्घकालीन युद्ध करना पड़ा। अंत में राष्ट्रकूटों ने चालुक्यों की बादामी शासक शाखा को अपदस्थ कर दिया और दक्षिण पर अधिकार कर लिया। राष्ट्रकूट राजकुमार गोविंद द्वितीय ने आंध्र पर अधिकार कर लिया और तत्कालीन शासक कुब्ज विष्णुवर्धन् के दूरस्थ उत्तराधिकारी, विष्णुवर्धन चतुर्थ को आत्मसमर्पण के लिये बाध्य किया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1747, "text": "नरसिंह वर्मन् " } ], "category": "SHORT", "id": 629, "question": "पुलकेशिन द्वितीय को किसने मारा था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 932, "text": "मंगलेश" } ], "category": "SHORT", "id": 630, "question": "पुलकेशिन द्वितीय के छोटे भाई का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 631, "question": "गोविंदा III के खिलाफ किसने लड़ाई लड़ी थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 399, "text": "विष्णुवर्धन्" } ], "category": "SHORT", "id": 632, "question": "कदम्बो और गंगा को किसने हराया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 272, "text": "राजकुमार विजयादित्य" } ], "category": "SHORT", "id": 633, "question": "विष्णुवर्धन के पिता का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2005, "text": "13 वर्ष " } ], "category": "SHORT", "id": 634, "question": "पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु बाद दक्षिणी प्रांत कितने वर्षों तक पल्लवों के नियंत्रण में रहा था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 635, "question": "विष्णुवर्धन ने किसके पक्ष में राष्ट्रकूट ध्रुव III के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चीनी दूत ह्वेन त्सांग ने अपनी किताबों में भी हर्ष को महाया बौद्ध धर्म के प्रचारक तरह बताया है। शिक्षा को महत्व। सम्राट हर्षवर्धन ने शिक्षा को देश भर में फैलाया। हर्षवर्धन के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय एक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ। हर्ष एक बहुत अच्छे लेखक ही नहीं, बल्कि एक कुशल कवि और नाटककार भी थे। हर्ष की ही देख-रेख में ‘बाणभट्ट’ और ‘मयूरभट्ट’ जैसे मशहूर कवियों का जन्म हुआ था। यही नहीं, हर्ष खुद भी एक बहुत ही मंजे हुए नाटककार के रूप में सामने आए। ‘नागनन्दा’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’ उनके द्वारा लिखे गए कुछ नामचीन नाटक हैं। प्रयाग का मशहूर ‘कुम्भ मेला’ भी हर्ष ने ही शुरु करवाया था। प्रयाग (इलाहबाद) में हर साल होने वाला ‘कुम्भ मेला’, जो सदियों से चला आ रहा है और हिन्दू धर्म के प्रचारकों के बीच काफी प्रसिद्ध है; माना जाता है कि वो भी राजा हर्ष ने ही शुरु करवाया था। भारत की अर्थव्यवस्था ने हर्ष के शासनकाल में बहुत तरक्की की थी। भारत, जो मुख्य तौर पर एक कृषि-प्रधान देश माना जाता है; हर्ष के कुशल शासन में तरक्की की उचाईयों को छू रहा था। हर्ष के शासनकाल में भारत ने आर्थिक रूप से बहुत प्रगति की थी। हर्ष के बाद उनके राज्य को संभालने के लिए उनका कोई भी वारिस नहीं था। हर्षवर्धन के अपनी पत्नी दुर्गावती से 2 पुत्र थे- वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन। पर उनके दोनों बेटों की अरुणाश्वा नामक मंत्री ने हत्या कर दी। इस वजह से हर्ष का कोई वारिस नहीं बचा। हर्ष के मरने के बाद उनका साम्राज्य भी पूरी तरह से समाप्त हो गया था। 647 A.D. में हर्ष के मरने के बाद, उनका साम्राज्य भी धीरे-धीरे बिखरता चला गया और फिर समाप्त हो गया। उनके बाद जिस राजा ने कन्नौज की बागडोर संभाली थी, वह बंगाल के राजा के विरुद्ध जंग में हार गया। वारिस न होने की वजह से, सम्राट हर्षवर्धन का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। सम्राट हर्षवर्धन एक बड़ा गंभीर, कूटनीतिज्ञ,बुद्धिमान एवं अखण्ड भारत की एकता को साकार करने के स्वप्न को संजोने वाला राजनीतिज्ञ था।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1197, "text": "अरुणाश्वा नामक मंत्री" } ], "category": "SHORT", "id": 636, "question": "हर्षवर्धन के दोनो बेटों की हत्या किसने की था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 637, "question": "ध्रुव भट्ट किस प्रदेश के राजा थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 352, "text": "‘बाणभट्ट’ और ‘मयूरभट्ट" } ], "category": "SHORT", "id": 638, "question": "हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रसिद्ध कवि कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 117, "text": "हर्षवर्धन " } ], "category": "SHORT", "id": 639, "question": "नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका नाटक किसके द्वारा लिखे गए हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1123, "text": "दुर्गावती" } ], "category": "SHORT", "id": 640, "question": "हर्षवर्धन की पत्नी का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 641, "question": "शिलादित्य सम्राट हर्षवर्धन और उनके युग नामक पुस्तक के लेखक कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 618, "text": "प्रयाग (इलाहबाद)" } ], "category": "SHORT", "id": 642, "question": "कुंभ मेला कहां आयोजित किया जाता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चेन्नई दक्षिण भारत के प्रवेशद्वार की भांति प्रतीत होता है, जिसमें अन्ना अन्तर्राष्ट्रीय टर्मिनल एवं कामराज अन्तर्देशीय टार्मिनल सहित चेन्नई अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भारत का तीसरा व्यस्ततम विमानक्षेत्र है। चेन्नई शहर दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप एवं उत्तरी अमरीका के प्रधान बिन्दुओं पर ३० से अधिक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं से जुड़ा हुआ है। यह विमानक्षेत्र देश का दूसरा व्यस्ततम कार्गो टर्मिनस है। वर्तमान विमानक्षेत्र में अधिक आधुनिकीकरण और विस्तार कार्य प्रगति पर हैं। इसके अलावा श्रीपेरंबुदूर में नया ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट लगभग २००० करोड़ रु. की लागत से बनना तय हुआ है। शहर में दो प्रधान सागरपत्तन (बंदरगाह) हैं, चेन्नई पोर्ट जो सबसे बड़े कृत्रिम बंदरगाहों में एक है, तथा एन्नोर पोर्ट। चेन्नई पोर्ट बंगाल की खाड़ी में सबसे बड़ा बंदरगाह और भारत का दूसरा सबसे बड़ा सागरीय-व्यापार केन्द्र है, जहां ऑटोमोबाइल, मोटरसाइकिल, सामान्य औद्योगिक माल और अन्य थोक खनिज की आवाजाही होती है। मुम्बई के बाद भारत का यही सबसे बड़ा पत्तन है। इस कृत्रिम बन्दरगाह में जलयानों के लंगर डालने के लिए कंक्रीट की मोटी दीवारें सागर में खड़ी करके एक साथ दर्जनों जलयानों के ठहराने योग्य पोताश्रय बना लिया गया है। दक्षिणी भारत का सारा दक्षिण-पूर्वी भाग (तमिलनाडु, दक्षिणी आन्ध्रप्रदेश तथा कर्नाटक राज्य) इसकी पृष्ठभूमि है। यहाँ मुख्य निर्यात मूँगफली और इसका तेल, तम्बाकू, प्याज, कहवा, अबरख, मैंगनीज, चाय, मसाला, तेलहन, चमड़ा, नारियल इत्यादि हैं तथा आयात में कोयला, पेट्रोलियम, धातु, मशीनरी, लकड़ी, कागज, मोटर-साइकिल, रसायन, चावल और खाद्यान्न, लम्बे रेशे वाली कपास, रासायनिक पदार्थ, प्रमुख हैं। एक छोटा बंदरगाह रोयापुरम में भी है, जो स्थानीय मछुआरों और जलपोतों द्वारा प्रयोग होता है। पूर्वी तट पर चेन्नई की महत्त्वपूर्ण स्थिति ने प्राकृतिक सुविधा के अभाव में भी कृत्रिम व्यवस्था द्वारा एक पत्तन का विकास पाया है। एक बन्दरगाह होने के कारण कोलकाता, विशाखापट्टनम, कोलम्बों, रंगून, पोर्ट ब्लेयर आदि स्थानों से समुद्री मार्ग द्वारा सम्बद्ध है। आज रेलमार्गों और सड़कों का मुख्य जंक्शन होने के कारण यह नगर देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। यह वायु मार्ग द्वारा बंगलोर, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद आदि देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। चेन्नई देश के अन्य भागों से रेल द्वारा भी भली-भांति जुड़ा हुआ है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 133, "text": "चेन्नई अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा" } ], "category": "SHORT", "id": 643, "question": "भारत का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा कौन सा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 578, "text": "२००० करोड़ रु" } ], "category": "SHORT", "id": 644, "question": "ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा का निर्माण कितने रूपए की लागत से किया गया है ? " }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 645, "question": "एशिया का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन कहां है?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": 662, "text": "चेन्नई पोर्ट" } ], "category": "SHORT", "id": 646, "question": "भारत के सबसे बड़े बंदरगाह का क्या नाम है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 531, "text": "श्रीपेरंबुदूर" } ], "category": "SHORT", "id": 647, "question": "नया ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा कहां है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 648, "question": "एशिया का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन का क्या नाम है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चोल साम्राज्य की शक्ति बढ़ने के साथ ही सम्राट् के गौरव ओर ऐश्वर्य के भव्य प्रदर्शन के कार्य बढ़ गए थे। राजभवन, उसमें सेवकों का प्रबंध ओर दरबार में उत्सवों और अनुष्ठानों में यह प्रवृत्ति परिलक्षित होती है। सम्राट् अपने जीवनकाल ही में युवराज को शासनप्रबन्ध में अपने साथ संबंधित कर लेता था। सम्राट के पास उसकी मौखिक आज्ञा के लिए भी विषय एक सुनिश्चित प्रणाली के द्वारा आता था, एक सुनिश्चित विधि में ही वह कार्य रूप में परिणत होता था। राजा को परामर्श देने के लिए विभिन्न प्रमुख विभागों के कर्मचारियों का एक दल, जिसे 'उडनकूट्टम्' कहते थे। सम्राट् के निरंतर संपर्क में रहता था। सम्राट् के निकट संपर्क में अधिकारियों का एक संगठित विभाग था जिसे ओलै कहते थे1 चोल साम्राज्य में नौकरशाही सुसंगठित और विकसित थी जिसमें अधिकारियों के उच्च (पेरुंदनम्) और निम्न (शिरुदनम्) दो वर्ग थे। केंद्रीय विभाग की ओर से स्थानीय अधिकारियों का निरीक्षण और नियंत्रण करने के लिए कणकाणि नाम के अधिकारी होते थेे। शासन के लिए राज्य वलनाडु अथवा मंडलम्, नाडु और कूर्रम् में विभाजित था। संपूर्ण भूमि नापी हुई थी और करदायी तथा करमुक्त भूमि में बँटी थी। करदायी भूमि के भी स्वाभाविक उत्पादनशक्ति और फसल के अनुसार, कई स्तर थे। कर के लिए संपूर्ण ग्राम उत्तरदायी था। कभी-कभी कर एकत्रित करने में कठोरता की जाती थी। भूमिकर के अतिरिक्त चुंगी, व्यवसायों और मकानों तथा विशेष अवसरों और उत्सवों पर भी कर थे। सेना अनेक सैन्य दलों में बँटी थी जिनमें से कई के विशिष्ट नामों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। सेना राज्य के विभिन्न भागों में शिविर (कडगम) के रूप में फैली थी। दक्षिण-पूर्वी एशिया में चोलों की विजय उनके जहाजी बेड़े के संगठन और शक्ति का स्पष्ट प्रमाण है। न्याय के लिए गाँव और जाति की सभाओं के अतिरिक्त राज्य द्वारा स्थापित न्यायालय भी थे। निर्णय सामाजिक व्यवस्थाओं, लेखपत्र और साक्षी के प्रमाण के आधार पर होते थे। मानवीय साक्ष्यों के अभाव में दिव्यों का भी सहारा लिया जाता था। चोल शासन की प्रमुख विशेषता सुसंगठित नौकरशाही के साथ उच्च कोटि की कुशलतावली स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं का सुंदर और सफल सामंजस्य है। स्थानीय जीवन के विभिन्न अंगों के लिए विविध सामूहिक संस्थाएँ थीं जो परस्पर सहयोग से कार्य करती थीं। नगरम् उन स्थानों की सभाएँ थीं जहाँ व्यापारी वर्ग प्रमुख था। ऊर गँव के उन सभी व्यक्तियों की सभा थी जिनके पास भूमि थी। 'सभा ब्रह्मदेय' गाँवों के ब्राह्मणों की सामूहिक संस्था का विशिष्ट नाम था। राज्य की ओर से साधारण नियंत्रण और समय पर आयव्यय के निरीक्षण के अतिरिक्त इन सभाओं को पूर्ण स्वतंत्रता थी। इनके कार्यों के संचालन के लिए अत्यंत कुशल और संविधान के नियमों की दृष्टि से संगठित और विकसित समितियों की व्यवस्था थी जिन्हें वारियम् कहते थे। उत्तरमेरूर की सभा ने परांतक प्रथम के शासनकाल में अल्प समय के अंतर पर ही दो बार अपने संविधान में परिवर्तन किए जो इस बात का प्रमाण है कि ये सभाएँ अनुभव के अनुसार अधिक कुशल व्यवस्था को अपनाने के लिये तत्पर रहती थीं। इन सभाओं के कर्तव्यों का क्षेत्र व्यापक और विस्तृत था। चोल नरेशों ने सिंचाई की सुविधा के लिए कुएँ और तालाब खुदवाए और नदियों के प्रवाह को रोककर पत्थर के बाँध से घिरे जलाशय (डैम) बनवाए। करिकाल चोल ने कावेरी नदी पर बाँध बनवाया था। राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंड-चोलपुरम् के समीप एक झील खुदवाई जिसका बाँध 16 मील लंबा था। इसको दो नदियों के जल से भरने की व्यवस्था की गई और सिंचाई के लिए इसका उपयोग करने के लिए पत्थर की प्रणालियाँ और नहरें बनाई गईं। आवागमन की सुविधा के लिए प्रशस्त राजपथ और नदियों पर घाट भी निर्मित हुए। सामाजिक जीवन में यद्यपि ब्राह्मणों को अधिक अधिकार प्राप्त थे और अन्य वर्गों से अपना पार्थक्य दिखलाने के लिए उन्होंने अपनी अलग बस्तियाँ बसानी शुरू कर दी थीं, फिर भी विभिन्न वर्गों के परस्पर संबंध कटु नहीं थे। सामाजिक व्यवस्था को धर्मशास्त्रों के आदेशों और आदर्शों के अनुकूल रखने का प्रयन्त होता था। कुलोत्तुंग प्रथम के शासनकाल में एक गाँव के भट्टों ने शास्त्रों का अध्ययन कर रथकार नाम की अनुलोम जाति के लिए सम्मत जीविकाओं का निर्देश किया। उद्योग और व्यवसाय में लगे सामाजिक वर्ग दो भागों में विभक्त थे- वलंगै और इडंगै। स्त्रियाँ पर सामाजिक जीवन में किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था। वे संपत्ति की स्वामिनी होती थीं। उच्च वर्ग के पुरुष बहुविवाह करते थे। सती का प्रचार था। मंदिरों में गुणशीला देवदासियाँ रहा करती थीं। समाज में दासप्रथा प्रचलित थी। दासों की कई कोटियाँ होती थीं। आर्थिक जीवन का आधार कृषि थी। भूमिका स्वामित्व समाज में सम्मान की बात थी। कृषि के साथ ही पशुपालन का व्यवसाय भी समुन्नत था।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 508, "text": "उडनकूट्टम्" } ], "category": "SHORT", "id": 649, "question": "चोल सम्राज्य में राजा को परामर्श देने वाले विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के दल को क्या कहा जाता था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 650, "question": "कितने अज़ूर व्यापारी वर्मा और सुमात्रा तक व्यापार करते थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2768, "text": "करिकाल चोल " } ], "category": "SHORT", "id": 651, "question": "कावेरी नदी पर बांध किस शासक ने बनाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 3475, "text": "अनुलोम जाति" } ], "category": "SHORT", "id": 652, "question": "कुलोत्तुंग प्रथम के शासनकाल में किस जाति के लोगो को रथकर कहा जाता था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "चौथे मास में उसमें अधिक स्थिरता आ जाती है तथा गर्भ के लक्षण माता में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगते हैं। इस प्रकार यह माता की कुक्षि में उत्तरोत्तर विकसित होता हुआ जब संपूर्ण अंग, प्रत्यंग और अवयवों से युक्त हो जाता है, तब प्राय: नवें मास में कुक्षि से बाहर आकर नवीन प्राणी के रूप में जन्म ग्रहण करता है। शरीर में प्रत्येक अंग या किसी भी अवयव का निर्माण उद्देश्यविशेष से ही होता है, अर्थात्‌ प्रत्येक अवयव के द्वारा विशिष्ट कार्यों की सिद्धि होती है, जैसे हाथ से पकड़ना, पैर से चलना, मुख से खाना, दांत से चबाना आदि। कुछ अवयव ऐसे भी हैं जिनसे कई कार्य होते हैं और कुछ ऐसे हैं जिनसे एक विशेष कार्य ही होता है। जिनसे कार्यविशेष ही होता है उनमें उस कार्य के लिए शक्तिसंपन्न एक विशिष्ट सूक्ष्म रचना होती है। इसी को इंद्रिय कहते हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन बाह्य विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए क्रमानुसार कान, त्वचा, नेत्र, जिह्वा और नासिका ये अवयव इंद्रियाश्रय अवयव (विशेष इंद्रियों के अंग) कहलाते हैं और इनमें स्थित विशिष्ट शक्तिसंपन्न सूक्ष्म वस्तु को इंद्रिय कहते हैं। ये क्रमश: पाँच हैं-श्रोत्र, त्वक्‌, चक्षु, रसना और घ्राण। इन सूक्ष्म अवयवों में पंचमहाभूतों में से उस महाभूत की विशेषता रहती है जिसके शब्द (ध्वनि) आदि विशिष्ट गुण हैं; जैसे शब्द के लिए श्रोत्र इंद्रिय में आकाश, स्पर्श के लिए त्वक्‌ इंद्रिय में वायु, रूप के लिए चक्षु इंद्रिय में तेज, रस के लिए रसनेंद्रिय में जल और गंध के लिए घ्राणेंद्रिय में पृथ्वी तत्व। इन पांचों इंद्रियों को ज्ञानेंद्रिय कहते हैं। इनके अतिरिक्त विशिष्ट कार्यसंपादन के लिए पांच कमेंद्रियां भी होती हैं, जैसे गमन के लिए पैर, ग्रहण के लिए हाथ, बोलने के लिए जिह्वा (गोजिह्वा), मलत्याग के लिए गुदा और मूत्रत्याग तथा संतानोत्पादन के लिए शिश्न (स्त्रियों में भग)। आयुर्वेद दार्शनिकों की भाँति इंद्रियों को आहंकारिक नहीं, अपितु भौतिक मानता है। इन इंद्रियों की अपने कार्यों मन की प्रेरणा से ही प्रवृत्ति होती है। मन से संपर्क न होने पर ये निष्क्रिय रहती है। प्रत्येक प्राणी के शरीर में अत्यन्त सूक्ष्म अणु रूप का और केवल एक ही मन होता है (अणुत्वं च एकत्वं दौ गुणौ मनसः स्मृतः)। यह अत्यन्त द्रुतगति वाला और प्रत्येक इंद्रिय का नियंत्रक होता है। किन्तु यह स्वयं भी आत्मा के संपर्क के बिना अचेतन होने से निष्क्रिय रहता है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में सत्व, रज और तम, ये तीनों प्राकृतिक गुण होते हुए भी इनमें से किसी एक की सामान्यत: प्रबलता रहती है और उसी के अनुसार व्यक्ति सात्विक, राजस या तामस होता है, किंतु समय-समय पर आहार, आचार एवं परिस्थितियों के प्रभाव से दसरे गुणों का भी प्राबल्य हो जाता है। इसका ज्ञान प्रवृत्तियों के लक्षणों द्वारा होता है, यथा राग-द्वेष-शून्य यथार्थद्रष्टा मन सात्विक, रागयुक्त, सचेष्ट और चंचल मन राजस और आलस्य, दीर्घसूत्रता एवं निष्क्रियता आदि युक्त मन तामस होता है। इसीलिए सात्विक मन को शुद्ध, सत्व या प्राकृतिक माना जाता है और रज तथा तम उसके दोष कहे गए हैं। आत्मा से चेतनता प्राप्त कर प्राकृतिक या सदोष मन अपने गुणों के अनुसार इंद्रियों को अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त करता है और उसी के अनुरूप शारीरिक कार्य होते हैं। आत्मा मन के द्वारा ही इंद्रियों और शरीरावयवों को प्रवृत्त करता है, क्योंकि मन ही उसका करण (इंस्ट्रुमेंट) है। इसीलिए मन का संपर्क जिस इंद्रिय के साथ होता है उसी के द्वारा ज्ञान होता है, दूसरे के द्वारा नहीं। क्योंकि मन एक ओर सूक्ष्म होता है, अत: एक साथ उसका अनेक इंद्रियों के साथ संपर्क सभव नहीं है। फिर भी उसकी गति इतनी तीव्र है कि वह एक के बाद दूसरी इंद्रिय के संपर्क में शीघ्रता से परिवर्तित होता है, जिससे हमें यही ज्ञात होता है कि सभी के साथ उसका संपर्क है और सब कार्य एक साथ हो रहे हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता। आत्मा पंचमहाभूत और मन से भिन्न, चेतनावान्‌, निर्विकार और नित्य है तथा साक्षी स्वरूप है, क्योंकि स्वयं निर्विकार तथा निष्क्रिय है। इसके संपर्क से सक्रिय किंतु अचेतन मन, इंद्रियों और शरीर में चेतना का संचार होता है और वे सचेष्ट होते हैं। आत्मा में रूप, रंग, आकृति आदि कोई चिह्न नहीं है, किंतु उसके बिना शरीर अचेतन होने के कारण निश्चेष्ट पड़ा रहता है और मृत कहलता है तथा उसके संपर्क से ही उसमें चेतना आती है तब उसे जीवित कहा जाता है और उसमें अनेक स्वाभाविक क्रियाएं होने लगती हैं; जैसे श्वासोच्छ्‌वास, छोटे से बड़ा होना और कटे हुए घाव भरना आदि, पलकों का खुलना और बंद होना, जीवन के लक्षण, मन की गति, एक इंद्रिय से हुए ज्ञान का दूसरी इंद्रिय पर प्रभाव होना (जैसे आँख से किसी सुंदर, मधुर फल को देखकर मुँह में पानी आना), विभिन्न इंद्रियों और अवयवों को विभन्न कार्यों में प्रवृत्त करना, विषयों का ग्रहण और धारण करना, स्वप्न में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना, एक आँख से देखी वस्तु का दूसरी आँख से भी अनुभव करना। इच्छा, द्वेष, सुख, दु:ख, प्रयत्न, धैर्य, बुद्धि, स्मरण शक्ति, अहंकार आदि शरीर में आत्मा के होने पर ही होते हैं; आत्मारहित मृत शरीर में नहीं होते। अत: ये आत्मा के लक्षण कहे जाते हैं, अर्थात्‌ आत्मा का पूर्वोक्त लक्षणों से अनुमान मात्र किया जा सकता है। मानसिक कल्पना के अतिरिक्त किसी दूसरी इंद्रिय से उसका प्रत्यक्ष करना संभव नहीं है। यह आत्मा नित्य, निर्विकार और व्यापक होते हुए भी पूर्वकृत शुभ या अशुभ कर्म के परिणामस्वरूप जैसी योनि में या शरीर में, जिस प्रकार के मन और इंद्रियों तथा विषयों के संपर्क में आती है वैसे ही कार्य होते हैं। उत्तरोत्तर अशुभ कार्यों के करने से उत्तरोत्तर अधोगति होती है तथा शुभ कर्मों के द्वारा उत्तरोत्तर उन्नति होने से, मन के राग-द्वेष-हीन होने पर, मोक्ष की प्राप्ति होती है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 653, "question": "जन्म-मृत्यु और रुग्णता से छुटकारा पाने में मदद करने वाले भाव को आयुर्वेद में क्या कहा गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 654, "question": "आत्मा कैसी होती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 984, "text": "पाँच" } ], "category": "SHORT", "id": 655, "question": "मानव शरीर में कितनी इन्द्रिय होती हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "चौथे मास" } ], "category": "SHORT", "id": 656, "question": "माँ में गर्भावस्था के लक्षण किस महीने में स्पष्ट हो जाते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 657, "question": "आत्मा, इन्द्रियां और शरीर के अंगों को शरीर के किस भाग द्वारा संचालित करती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1351, "text": "ज्ञानेंद्रिय" } ], "category": "SHORT", "id": 658, "question": "मानव शरीर की पांचों इंद्रियों को क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1990, "text": "आत्मा " } ], "category": "SHORT", "id": 659, "question": " शरीर किसके बिना अचेतन और मृत होता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "जयपुर इसके भव्य किलों, महलों और सुंदर झीलों के लिए प्रसिद्ध है, जो विश्वभर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) महाराजा जयसिंह (द्वितीय) द्वारा बनवाया गया था और मुगल औऱ राजस्थानी स्थापत्य का एक संयोजन है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने हवामहल 1799 ई. में बनवाया जिसके वास्तुकार लालचन्द उस्ता थे। आमेर दुर्ग में महलों, विशाल कक्षों, स्तंभदार दर्शक-दीर्घाओं, बगीचों और मंदिरों सहित कई भवन-समूह हैं। आमेर महल मुगल औऱ हिन्दू स्थापत्य शैलियों के मिश्रण का उत्कृष्ट उदाहरण है। एल्बर्ट हॉल नामक म्यूजियम 1876 में, प्रिंस ऑफ वेल्स के जयपुर आगमन पर सवाई रामसिंह द्वारा बनवाया गया था और 1886 में जनता के लिए खोला गया। गवर्नमेण्ट सेन्ट्रल म्यूजियम में हाथीदांत कृतियों, वस्त्रों, आभूषणों, नक्काशीदार काष्ठ कृतियों, लघुचित्रों, संगमरमर प्रतिमाओं, शस्त्रों औऱ हथियारों का समृद्ध संग्रह है। सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने अपनी सिसोदिया रानी के निवास के लिए 'सिसोदिया रानी का बाग' भी बनवाया। जलमहल, शाही बत्तख-शिकार के लिए बनाया गया मानसागर झील के बीच स्थित एक महल है। 'कनक वृंदावन' अपने प्राचीन गोविन्देव विग्रह के लिए प्रसिद्ध जयपुर में एक लोकप्रिय मंदिर-समूह है। जयपुर के बाजार जीवंत हैं और दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी है, जिसमें हथकरघा-उत्पाद, बहुमूल्य रत्नाभूषण, वस्त्र, मीनाकारी-सामान, राजस्थानी चित्र आदि शामिल हैं। जयपुर संगमरमर की प्रतिमाओं, ब्लू पॉटरी औऱ राजस्थानी जूतियों के लिए भी प्रसिद्ध है। जयपुर के प्रमुख बाजार, जहां से आप कुछ उपयोगी सामान खरीद सकते हैं, जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ हैं। राजस्थान राज्य परिवहन निगम (RSRTC) की उत्तर भारत के सभी प्रसुख गंतव्यों के लिए बस सेवाएं हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 660, "question": "हवा महल कहाँ स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 257, "text": " 1799 ई. " } ], "category": "SHORT", "id": 661, "question": "हवा महल का निर्माण कब किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 662, "question": "वजरंग मंदिर कहाँ स्थित हैं ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": 131, "text": "महाराजा जयसिंह (द्वितीय)" } ], "category": "SHORT", "id": 663, "question": "जयपुर में स्थित चंद्र महल किसके द्वारा बनाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 223, "text": "महाराजा सवाई प्रताप सिंह" } ], "category": "SHORT", "id": 664, "question": "हवा महल का निर्माण किसने करवाया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 665, "question": "भारत के सबसे पुराने पक्षी अभयारण्य का नाम क्या हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 921, "text": "मानसागर झील " } ], "category": "SHORT", "id": 666, "question": "जयपुर का जल महल किस झील के बीच में स्थित है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को ब्रिटिश भारत में इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता, मोतीलाल नेहरू (1861–1931), एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पण्डित थे। मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे, स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उनकी माता स्वरूपरानी थुस्सू (1868–1938), जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थी, मोतीलाल की दूसरी पत्नी थी व पहली पत्नी की प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी। जवाहरलाल तीन बच्चों में से सबसे बड़े थे, जिनमें बाकी दो लड़कियां थी। बड़ी बहन, विजया लक्ष्मी, बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी। सबसे छोटी बहन, कृष्णा हठीसिंग, एक उल्लेखनीय लेखिका बनी और उन्होंने अपने परिवार-जनों से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं। जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज (लंदन) से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। इंग्लैंड में उन्होंने सात साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया। जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रुल लीग‎ में शामिल हो गए। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 534, "text": "विजया लक्ष्मी" } ], "category": "SHORT", "id": 667, "question": "संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष कौन थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 23, "text": "14 नवम्बर 1889" } ], "category": "SHORT", "id": 668, "question": "जवाहरलाल नेहरू का जन्म कब हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 669, "question": "जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपड़े को छोड़कर कौन से कपडे को अपनाया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 949, "text": "कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय " } ], "category": "SHORT", "id": 670, "question": "जवाहरलाल नेहरू ने कानून की डिग्री कहां से हासिल की थी?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "जिसके कारण भारत पर कई तरह के प्रतिबन्ध भी लगाये गए। भारत के पास अब तरह-तरह के परमाणु हथियारें है। भारत अभी रूस के साथ मिलकर पाँचवीं पीढ़ के विमान बना रहे है। हाल ही में, भारत का संयुक्त राष्ट्रे अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक, सामरिक और सैन्य सहयोग बढ़ गया है। 2008 में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौते हस्ताक्षर किए गए थे। हालाँकि उस समय भारत के पास परमाणु हथियार था और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के पक्ष में नहीं था यह अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) से छूट प्राप्त है, भारत की परमाणु प्रौद्योगिकी और वाणिज्य पर पहले प्रतिबंध समाप्त. भारत विश्व का छठा वास्तविक परमाणु हथियार राष्ट्रत बन गया है। एनएसजी छूट के बाद भारत भी रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा सहित देशों के साथ असैनिक परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने में सक्षम है। वित्त वर्ष 2014-15 के केन्द्रीय अंतरिम बजट में रक्षा आवंटन में 10 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी करते हुए 224,000 करोड़ रूपए आवंटित किए गए। 2013-14 के बजट में यह राशि 203,672 करोड़ रूपए थी। 2012–13 में रक्षा सेवाओं के लिए 1,93,407 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जबकि 2011–2012 में यह राशि 1,64,415 करोइ़ थी। साल 2011 में भारतीय रक्षा बजट 36.03 अरब अमरिकी डॉलर रहा (या सकल घरेलू उत्पाद का 1,83%)। 2008 के एक SIRPI रिपोर्ट के अनुसार, भारत क्रय शक्ति के मामले में भारतीय सेना के सैन्य खर्च 72.7 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। साल 2011 में भारतीय रक्षा मंत्रालय के वार्षिक रक्षा बजट में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, हालाँकि यह पैसा सरकार की अन्य शाखाओं के माध्यम से सैन्य की ओर जाते हुए पैसों में शमिल नहीं होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़े हथियार आयातक है। २०१४ में नरेन्द्र मोदी नीत भाजपा सरकार ने मेक इन इण्डिया के नाम से भारत में निर्माण अभियान की शुरुआत की और भारत को हथियार आयातक से निर्यातक बनाने के लक्ष्य की घोषणा की। रक्षा निर्माण के द्वार निजी कंपनियों के लिए भी खोल दिए गए और भारत के कई उद्योग घरानों ने बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में पूंजी निवेश की योजनाएँ घोषित की।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 671, "question": "राफेल जेट बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 263, "text": "2008" } ], "category": "SHORT", "id": 672, "question": " भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने किस वर्ष असैनिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 673, "question": "भारत ने कामोव हेलिकॉप्टरों के निर्माण के लिए किस देश के साथ साझेदारी की है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1569, "text": "भाजपा सरकार" } ], "category": "SHORT", "id": 674, "question": " मेक इन इंडिया अभियान किस सरकार द्वारा शुरू किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 105, "text": "रूस " } ], "category": "SHORT", "id": 675, "question": "भारत वर्तमान में किस देश के साथ पांचवीं पीढ़ी के विमान विकसित कर रहा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1288, "text": "72.7 अरब अमेरिकी डॉलर" } ], "category": "SHORT", "id": 676, "question": "वर्ष 2008 की एस आई आर पी आई रिपोर्ट के अनुसार क्रय शक्ति के मामले में भारतीय सेना का सैन्य खर्च कितना था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 875, "text": "10 प्रतिशत" } ], "category": "SHORT", "id": 677, "question": "भारत ने वित्तीय वर्ष 2014-15 के केंद्रीय अंतरिम बजट में रक्षा के लिए आवंटन कितना प्रतिशत बढ़ा दिया था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "जिसको कोई नहीं जीत पायाभरतपुर संग्रहालय राजस्थान के विगत शाही वैभव के साथ शौर्यपूर्ण अतीत के साक्षात्कार का एक प्रमुख स्रोत है। एक सुंदर बगीचा, नेहरू पार्क, जो भरतपुर संग्रहालय के पास है। डीग जलमहल एक आकर्षक राजमहल है, जो भरतपुर के जाट शासकों ने बनवाया था। राठौड़ों के रूप में प्रसिद्ध एक वंश के प्रमुख, राव जोधा ने जिस जोधपुर की सन 1459 में स्थापना की थी, राजस्थान के पश्चिमी भाग में केन्द्र में स्थित राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और दर्शनीय महलों, दुर्गों औऱ मंदिरों के कारण एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है। शहर की अर्थव्यस्था में हथकरघा, वस्त्र उद्योग और धातु आधारित उद्योगों का योगदान है। मेहरानगढ़ दुर्ग, 125 मीटर ऊंचा औऱ 5 किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ, भारत के बड़े दुर्गों में से एक है जिसमें कई सुसज्जित महल जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल स्थित हैं। अन्दर संग्रहालय में भी लघुचित्रों, संगीत वाद्य यंत्रों, पोशाकों, शस्त्रागार आदि का एक समृद्ध संग्रह है। जोधपुर रियासत, मारवाड़ क्षेत्र में १२५० से १९४९ तक चली रियासत थी। इसकी राजधानी वर्ष १९५० से जोधपुर नगर में रही। पैलेस रोड जोधपुर में स्थित उम्मैद भवन पैलेस से मेहरानगढ़ दुर्ग से ६.५ किमी और जसवंत थड़ा की समाधि से ६ किमी दूर है। यहाँ से अन्य पर्यटन स्थल भी काफी नजदीक हैं। सवाई माधोपुर शहर की स्थापना जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने 1765 ईस्वी में की थी और इन्हीं के नाम पर 15 मई, 1949 ई. को सवाई माधोपुर जिला बनाया गया। मीणा बाहुल्य इस जिले का ऐतिहासिकता के तौर पर काफी महत्त्व है। राजस्थान राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान इसी जिले में स्थित है, जिसे रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 678, "question": "राजस्थान में सवाई माधोपुर को किस नाम से जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 143, "text": "नेहरू पार्क" } ], "category": "SHORT", "id": 679, "question": "भरतपुर संग्रहालय के पास कौन सा उद्यान स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 680, "question": "रणथंभौर किला किस प्रसिद्ध शासक के नाम से प्रसिद्ध है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1418, "text": "रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान" } ], "category": "SHORT", "id": 681, "question": "राजस्थान राज्य के पहले राष्ट्रीय उद्यान का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1201, "text": "1765 ईस्वी" } ], "category": "SHORT", "id": 682, "question": "सवाई माधोपुर की स्थापना कब की गई थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "जो कुछ भी विकास या परिवर्तन होते हैं उनका प्रभाव इसी पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। शेष तीन (वायु, तेज और जल) सब प्रकार के परिवर्तन या विकार उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं। अत: तीनों की प्रचुरता के आधार पर, विभिन्न धातुओं एवं उनके संघटकों को वात, पित्त और कफ की संज्ञा दी गई है। सामान्य रूप से ये तीनों धातुएं शरीर की पोषक होने के कारण विकृत होने पर अन्य धातुओं को भी दूषित करती हैं। अत: दोष तथा मल रूप होने से मल कहलाती हैं। रोग में किसी भी कारण से इन्हीं तीनों की न्यूनता या अधिकता होती है, जिसे दोषप्रकोप कहते हैं। (२) धातुदूषण- कुछ पदार्थ या कारण ऐसे होते हैं जो किसी विशिष्ट धातु या अवयव में ही विकार करते हैं। इनका प्रभाव सारे शरीर पर नहीं होता। इन्हें धातुप्रदूषक कहते हैं। (३) उभयहेतु- वे पदार्थ जो सारे शरीर में वात आदि दोषों को कुपित करते हुए भी किसी धातु या अंग विशेष में ही विशेष विकार उत्पन्न करते हैं, उभयहेतु कहलाते हैं। किंतु इन तीनों में जो परिवर्तन होते हैं वे वात, पित्त या कफ इन तीनों में से किसी एक, दो या तीनों में ही विकार उत्पन्न करते हैं। अत: ये ही तीनों दोष प्रधान शरीरगत कारण होते हैं, क्योंकि इनके स्वाभाविक अनुपात में परिवर्तन होने से शरीर की धातुओं आदि में भी विकृति होती है। रचना में विकार होने से क्रिया में भी विकार होना स्वाभाविक है। इस अस्वाभाविक रचना और क्रिया के परिणामस्वरूप अतिसार, कास आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं और इन लक्षणों के समूह को ही रोग कहते हैं। इस प्रकार जिन पदार्थों के प्रभाव से वात आदि दोषों में विकृतियां होती हैं तथा वे वातादि दोष, जो शारीरिक धातुओं को विकृत करते हैं, दोनों ही हेतु (कारण) या निदान (आदिकारण) कहलाते हैं। अंतत: इनके दो अन्य महत्वपूर्ण भेदों का विचार अपेक्षित है :(१) निज (इडियोपैथिक)- जब पूर्वोक्त कारणों से क्रमश: शरीरगत वातादि दोष में और उनके द्वारा धातुओं में, विकार उत्पन्न होते हैं तो उनको निज हेतु या निज रोग कहते हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 683, "question": "शारीरिक आंत दोष में विकार पैदा होना क्या कहलाता हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 418, "text": "रोग" } ], "category": "SHORT", "id": 684, "question": "लक्षणों के समूह या बीमारी के समूह को क्या कहते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 685, "question": "धातु और उसके घटकों को किसके रूप में वर्णित किया गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 673, "text": "उभयहेतु" } ], "category": "SHORT", "id": 686, "question": " किसी धातु या अंग में विशेष विकार पैदा करने वाले पदार्थ क्या कहलाते है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "डॉ़ सेठना के मार्गदर्शन में ही 1967 में जादूगुड़ा (झारखंड) से यूरेनियम हासिल करने का संयंत्र लगा। डॉ़ सेठना ने तारापुर के परमाणु रिऐक्टरों के लिए यूरेनियम ईंधन के विकल्प के रूप में मिश्र-ऑक्साइड ईंधन का भी विकास किया। पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद अमेरिका ने यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगा दी थी, हालांकि ये रिऐक्टर अमेरिका निर्मित ही थे। वह तो भला हो फ्रांस का कि उसने आड़े समय पर यूरेनियम देकर हमारी मदद कर दी अन्यथा डॉ़ सेठना तो मिश्र-ऑक्साइड से तारापुर के परमाणु रिऐक्टर को चलाने की तैयारी कर चुके थे। डॉ़ सेठना स्वावलंबन में विश्वास रखते थे और किसी भी काम को पूरा करने के लिए किसी के अहसान की जरूरत महसूस नहीं करते थे। वैज्ञानिक काम में उन्हें राजनैतिक दखल कतई पसंद नहीं थी। वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के प्रबल पक्षधर थे। वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर 1958 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जेनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उप-सचिव रहे। वे संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य थे और 1966 से 1981 तक अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे। डॉ सेठना अनेक संस्थानों के अध्यक्ष और निदेशक भी रहे। वे 1966 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक नियुक्त हुए और 1972 से 1983 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे। इस पद पर होमी भाभा के बाद वे ही सबसे अधिक समय तक रहे। इस दौरान उन्हाने भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को नई गति प्रदान की। उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे तमाम बड़े अलंकरणों से नवाजा गया। आज अगर भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में दुनिया भर में मान्यता मिली है, तो इसमें डॉ॰ भाभा के बाद सबसे ज्यादा योगदान डॉ॰ सेठना का ही है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 687, "question": "भारत ने ट्रॉम्बे में एशिया के पहले परमाणु रिएक्टर की स्थापना कब की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 688, "question": "भारत में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना किसके नेतृत्व में की गई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 773, "text": "1958" } ], "category": "SHORT", "id": 689, "question": "डॉ. सेठना जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उप सचिव किस वर्ष बने थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 921, "text": "1966" } ], "category": "SHORT", "id": 690, "question": "डॉ. सेठना को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र का निदेशक कब नियुक्त किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 31, "text": "1967 " } ], "category": "SHORT", "id": 691, "question": "झारखण्ड में पहला यूरेनियम निष्कर्षण संयंत्र किस वर्ष स्थापित किया गया था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "तत्कालीन समाज में वेश्यावृति को सम्राट का संरक्षण प्रदान था। उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे बहुत सी स्त्रियाँ थीं। इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक अपहृत करवा कर वहां रखा हुआ था। उस समय में सती प्रथा भी जोरों पर थी। तब कहा जाता है कि अकबर के कुछ लोग जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे सम्राट की आज्ञा बताते तथा उस स्त्री को हरम में डाल दिया जाता था। हालांकि इस प्रकरण को दरबारी इतिहासकारों ने कुछ इस ढंग से कहा है कि इस प्रकार बादशाह सलामत ने सती प्रथा का विरोध किया व उन अबला स्त्रियों को संरक्षण दिया। अपनी जीवनी में अकबर ने स्वयं लिखा है– यदि मुझे पहले ही यह बुधिमत्ता जागृत हो जाती तो मैं अपनी सल्तनत की किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता। इस बात से यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि वह सुन्दरियों का अपहरण करवाता था। इसके अलावा अपहरण न करवाने वाली बात की निरर्थकता भी इस तथ्य से ज्ञात होती है कि न तो अकबर के समय में और न ही उसके उतराधिकारियो के समय में हरम बंद हुई थी। आईने अकबरी के अनुसार अब्दुल कादिर बदायूंनी कहते हैं कि बेगमें, कुलीन, दरबारियो की पत्नियां अथवा अन्य स्त्रियां जब कभी बादशाह की सेवा में पेश होने की इच्छा करती हैं तो उन्हें पहले अपने इच्छा की सूचना देकर उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है; जिन्हें यदि योग्य समझा जाता है तो हरम में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था। । गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 692, "question": "अकबर ने अपने परिवार के किस सदस्य को हरम में डाला था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 233, "text": "अकबर" } ], "category": "SHORT", "id": 693, "question": "पराजित शत्रु को हरम में डालने की प्रथा की शुरुआत किस शासक ने की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1490, "text": "दुर्गावती" } ], "category": "SHORT", "id": 694, "question": "गोंडवाना की रानी कौन थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 471, "text": "बादशाह सलामत " } ], "category": "SHORT", "id": 695, "question": "मुग़ल काल में किस शासक द्वारा सती प्रथा का विरोध किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 696, "question": "अकबर के घर की नग्न महिलाओं को किस नाम से जाना जाता था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने वाले पांचालों में राजा प्रवहण जैबलि ने भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था। इसी काल में जनकपुर, मिथिला में विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य का राजा अजातशत्रु हुआ। ये आत्मा और परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह काल भी उपनिषद-काल कहलाता है। युग बदलने के साथ ही वैशाली और मिथिला के लिच्छवियों में साधु वर्धमान महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्यों में गौतम बुद्ध हुए। उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये राह्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी। कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती, कभी मगध के और कभी कोसल के। पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले, कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज में मिला लिया। उसी कुल के राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल देवी का मगध के राजा बिम्बसार से विवाह कर दहेज के रूप में काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई। राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी की आमदनी अजातशत्रु को देना बन्द कर दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के, कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र चली गई और फिर कभी काशी पर उसका आक्रमण नहीं हो पाया। वाराणसी १८वीं शताब्दी में स्वतंत्र काशी राज्य बन गया था और बाद के ब्रिटिश शासन के अधीन, ये प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केन्द्र रहा। १९१० में ब्रिटिश प्रशासन ने वाराणसी को एक नया भारतीय राज्य बनाया और रामनगर को इसका मुख्यालय बनाया, किंतु इसका अधिकार क्षेत्र कुछ नहीं था। काशी नरेश अभी भी रामनगर किले में रहते हैं। ये किला वाराणसी नगर के पूर्व में गंगा के तट पर बना हुआ है। रामनगर किले का निर्माण काशी नरेश राजा बलवंत सिंह ने उत्तम चुनार बलुआ पत्थर ने १८वीं शताब्दी में करवाया था। किला मुगल स्थापत्य शैली में नक्काशीदार छज्जों, खुले प्रांगण और सुरम्य गुम्बददार मंडपों से सुसज्जित बना है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 697, "question": "गंगा और यमुना के दोआब पर शासन करने वाले राजा का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1687, "text": "१८वीं शताब्दी" } ], "category": "SHORT", "id": 698, "question": "वाराणसी एक स्वतंत्र काशी राज्य किस शताब्दी में बना था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 675, "text": "पार्श्वनाथ" } ], "category": "SHORT", "id": 699, "question": "जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 830, "text": "मगध" } ], "category": "SHORT", "id": 700, "question": "बिंबिसार किस प्रदेश के राजा थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1084, "text": "राजा बिम्बसार" } ], "category": "SHORT", "id": 701, "question": "राजा महाकोशल ने अपनी बेटी कोसल देवी का विवाह किस राजा से किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 702, "question": "चैत सिंह पैलेस किसने बनवाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1679, "text": "वाराणसी" } ], "category": "SHORT", "id": 703, "question": "रामनगर किला कहां स्थित है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "ताज महल का केन्द्र बिंदु है, एक वर्गाकार नींव आधार पर बना श्वेत संगमर्मर का मक़बरा। यह एक सममितीय इमारत है, जिसमें एक ईवान यानि अतीव विशाल वक्राकार (मेहराब रूपी) द्वार है। इस इमारत के ऊपर एक वृहत गुम्बद सुशोभित है। अधिकतर मुग़ल मक़बरों जैसे, इसके मूल अवयव फ़ारसी उद्गम से हैं। इसका मूल-आधार एक विशाल बहु-कक्षीय संरचना है। यह प्रधान कक्ष घनाकार है, जिसका प्रत्येक किनारा 55 मीटर है (देखें: तल मानचित्र, दांये)। लम्बे किनारों पर एक भारी-भरकम पिश्ताक, या मेहराबाकार छत वाले कक्ष द्वार हैं। यह ऊपर बने मेहराब वाले छज्जे से सम्मिलित है। मुख्य मेहराब के दोनों ओर,एक के ऊपर दूसरा शैलीमें, दोनों ओर दो-दो अतिरिक्त पिश्ताक़ बने हैं। इसी शैली में, कक्ष के चारों किनारों पर दो-दो पिश्ताक (एक के ऊपर दूसरा) बने हैं। यह रचना इमारत के प्रत्येक ओर पूर्णतया सममितीय है, जो कि इस इमारत को वर्ग के बजाय अष्टकोण बनाती है, परंतु कोने के चारों भुजाएं बाकी चार किनारों से काफी छोटी होने के कारण, इसे वर्गाकार कहना ही उचित होगा। मकबरे के चारों ओर चार मीनारें मूल आधार चौकी के चारों कोनों में, इमारत के दृश्य को एक चौखटे में बांधती प्रतीत होती हैं। मुख्य कक्ष में मुमताज महल एवं शाहजहाँ की नकली कब्रें हैं। ये खूब अलंकृत हैं, एवं इनकी असल निचले तल पर स्थित है। मकबरे पर सर्वोच्च शोभायमान संगमर्मर का गुम्बद (देखें बांये), इसका सर्वाधिक शानदार भाग है। इसकी ऊँचाई लगभग इमारत के आधार के बराबर, 35 मीटर है और यह एक 7 मीटर ऊँचे बेलनाकार आधार पर स्थित है। यह अपने आकारानुसार प्रायः प्याज-आकार (अमरूद आकार भी कहा जाता है) का गुम्बद भी कहलाता है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है। गुम्बद के आकार को इसके चार किनारों पर स्थित चार छोटी गुम्बदाकारी छतरियों (देखें दायें) से और बल मिलता है। छतरियों के गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल नाप का फर्क है। इनके स्तम्भाकार आधार, छत पर आंतरिक प्रकाश की व्यवस्था हेतु खुले हैं। संगमर्मर के ऊँचे सुसज्जित गुलदस्ते, गुम्बद की ऊँचाई को और बल देते हैं। मुख्य गुम्बद के साथ-साथ ही छतरियों एवं गुलदस्तों पर भी कमलाकार शिखर शोभा देता है। गुम्बद एवं छतरियों के शिखर पर परंपरागत फारसी एवं हिंदू वास्तु कला का प्रसिद्ध घटक एक धात्विक कलश किरीटरूप में शोभायमान है। मुख्य गुम्बद के किरीट पर कलश है (देखें दायें)। यह शिखर कलश आरंभिक 1800ई० तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। यह किरीट-कलश फारसी एवं हिंन्दू वास्तु कला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है, जिसकी नोक स्वर्ग की ओर इशारा करती हैं। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती हैं, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है। मुख्य आधार के चारो कोनों पर चार विशाल मीनारें (देखें बायें) स्थित हैं। यह प्रत्येक 40 मीटर ऊँची है। यह मीनारें ताजमहल की बनावट की सममितीय प्रवृत्ति दर्शित करतीं हैं। यह मीनारें मस्जिद में अजा़न देने हेतु बनाई जाने वाली मीनारों के समान ही बनाईं गईं हैं। प्रत्येक मीनार दो-दो छज्जों द्वारा तीन समान भागों में बंटी है। मीनार के ऊपर अंतिम छज्जा है, जिस पर मुख्य इमारत के समान ही छतरी बनी हैं। इन पर वही कमलाकार आकृति एवं किरीट कलश भी हैं। इन मीनारों में एक खास बात है, यह चारों बाहर की ओर हलकी सी झुकी हुईं हैं, जिससे कि कभी गिरने की स्थिति में, यह बाहर की ओर ही गिरें, एवं मुख्य इमारत को कोई क्षति न पहुँच सके। ताजमहल का बाहरी अलंकरण, मुगल वास्तुकला का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। जैसे ही सतह का क्षेत्रफल बदलता है, बडे़ पिश्ताक का क्षेत्र छोटे से अधिक होता है और उसका अलंकरण भी इसी अनुपात में बदलता है। अलंकरण घटक रोगन या गचकारी से अथवा नक्काशी एवं रत्न जड़ कर निर्मित हैं। इस्लाम के मानवतारोपी आकृति के प्रतिबन्ध का पूर्ण पालन किया है। अलंकरण को केवल सुलेखन, निराकार, ज्यामितीय या पादप रूपांकन से ही किया गया है। ताजमहल में पाई जाने वाले सुलेखन फ्लोरिड थुलुठ लिपि के हैं। ये फारसी लिपिक अमानत खां द्वारा सृजित हैं। यह सुलेख जैस्प‍र को श्वेत संगमर्मर के फलकों में जड़ कर किया गया है। संगमर्मर के सेनोटैफ पर किया गया कार्य अतीव नाजु़क, कोमल एवं महीन है। ऊँचाई का ध्यान रखा गया है। ऊँचे फलकों पर उसी अनुपात में बडा़ लेखन किया गया है, जिससे कि नीचे से देखने पर टेढा़पन ना प्रतीत हो। पूरे क्षेत्र में कु़रान की आयतें, अलंकरण हेतु प्रयोग हुईं हैं। हाल ही में हुए शोधों से ज्ञात हुआ है, कि अमानत खाँ ने ही उन आयतों का चुनाव भी किया था। यहाँ का पाठ्य क़ुरआन में वर्णित, अंतिम निर्णय के विषय में है, एवं इसमें निम्न सूरा की आयतें सम्मिलित हैं :जैसे ही कोई ताजमहल के द्वार से प्रविष्ट होता है, सुलेख है अमूर्त प्रारूप प्रयुक्त किए गए हैं, खासकर आधार, मीनारों, द्वार, मस्जिद, जवाब में; और कुछ-कुछ मकबरे की सतह पर भी। बलुआ-पत्थर की इमारत के गुम्बदों एवं तहखानों में, पत्थर की नक्काशी से उत्कीर्ण चित्रकारी द्वारा विस्तृत ज्यामितीय नमूने बना अमूर्त प्रारूप उकेरे गए हैं। यहां हैरिंगबोन शैली में पत्थर जड़ कर संयुक्त हुए घटकों के बीच का स्थान भरा गया है। लाल बलुआ-पत्थर इमारत में श्वेत, एवं श्वेत संगमर्मर में काले या गहरे, जडा़ऊ कार्य किए हुए हैं। संगमर्मर इमारत के गारे-चूने से बने भागों को रंगीन या गहरा रंग किया गया है। इसमें अत्यधिक जटिल ज्यामितीय प्रतिरूप बनाए गए हैं। फर्श एवं गलियारे में विरोधी रंग की टाइलों या गुटकों को टैसेलेशन नमूने में प्रयोग किया गया है। पादप रूपांकन मिलते हैं मकबरे की निचली दीवारों पर। यह श्वेत संगमर्मर के नमूने हैं, जिनमें सजीव बास रिलीफ शैली में पुष्पों एवं बेल-बूटों का सजीव अलंकरण किया गया है। संगमर्मर को खूब चिकना कर और चमका कर महीनतम ब्यौरे को भी निखारा गया है। डैडो साँचे एवं मेहराबों के स्पैन्ड्रल भी पीट्रा ड्यूरा के उच्चस्तरीय रूपांकित हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 58, "text": "श्वेत संगमर्मर का मक़बरा" } ], "category": "SHORT", "id": 704, "question": "ताजमहल का केंद्र बिंदु क्या है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 705, "question": "ताजमहल का कौन सा कमरा पारंपरिक सजावटी तत्वों से सजाया नही गया है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मंदिर, एक महान रथ रूप में बना है, जिसके बारह जोड़ी सुसज्जित पहिए हैं, एवं सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। यह मंदिर भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में से एक है। यहां के स्थापत्य अनुपात दोषों से रहित एवं आयाम आश्चर्यचकित करने वाले हैं। यहां की स्थापत्यकला वैभव एवं मानवीय निष्ठा का सौहार्दपूर्ण संगम है। मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्त गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है। यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमण्डप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। इस आकृतियों का विषय स्पष्ट किंतु अत्यंत कोमलता एवं लय में संजो कर दिखाया गया है। जीवन का यही दृष्टिकोण, कोणार्क के अन्य सभी शिल्प निर्माणों में भी दिखाई देता है। हजारों मानव, पशु एवं दिव्य लोग इस जीवन रूपी मेले में कार्यरत हुए दिखाई देते हैं, जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम किया हुआ है। यह उड़ीसा की सर्वोत्तम कृति है। इसकी उत्कृष्ट शिल्प-कला, नक्काशी, एवं पशुओं तथा मानव आकृतियों का सटीक प्रदर्शन, इसे अन्य मंदिरों से कहीं बेहतर सिद्ध करता है। यह सूर्य मन्दिर भारतीय मन्दिरों की कलिंग शैली का है, जिसमें कोणीय अट्टालिका (मीनार रूपी) के ऊपर मण्डप की तरह छतरी ढकी होती है। आकृति में, यह मंदिर उड़ीसा के अन्य शिखर मंदिरों से खास भिन्न नहीं लगता है। २२९ फीट ऊंचा मुख्य गर्भगृह १२८ फीट ऊंची नाट्यशाला के साथ ही बना है। इसमें बाहर को निकली हुई अनेक आकृतियां हैं। मुख्य गर्भ में प्रधान देवता का वास था, किंतु वह अब ध्वस्त हो चुका है। नाट्यशाला अभी पूरी बची है। नट मंदिर एवं भोग मण्डप के कुछ ही भाग ध्वस्त हुए हैं। मंदिर का मुख्य प्रांगण ८५७ फीट X ५४० फीट का है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 42, "text": "रथ रूप में " } ], "category": "SHORT", "id": 706, "question": "तेरहवीं शताब्दी का मुख्य सूर्य मंदिर किस तरह बनाया गया है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 101, "text": "सात घोड़ों" } ], "category": "SHORT", "id": 707, "question": "सूर्य भगवान के रथ में कितने घोड़ों होते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 708, "question": "कोणार्क के सूर्य मंदिर की मुख की दिशा किस तरफ है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 67, "text": "बारह जोड़ी" } ], "category": "SHORT", "id": 709, "question": "सूर्य भगवान के रथ में कितने पहिये सजे हुए होते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1908, "text": "८५७ फीट X ५४० फीट " } ], "category": "SHORT", "id": 710, "question": "कोणार्क के सुर्य मंदिर का मुख्य प्रांगण कितने फीट का है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दक्खन का पठार एक भौगोलिक रूप से भिन्न क्षेत्र है जो गंगा के मैदानों के दक्षिण में स्थित है - जो अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है और इसमें सतपुड़ा रेंज के उत्तर में एक पर्याप्त क्षेत्र शामिल है, जिसे लोकप्रिय रूप से विभाजित माना जाता है उत्तरी भारत और दक्कन। पठार पूर्व और पश्चिम में घाटों से घिरा हुआ है, जबकि इसकी उत्तरी छोर विंध्य रेंज है। डेक्कन की औसत ऊंचाई लगभग 2,000 फीट (600 मीटर) है, जो आमतौर पर पूर्व की ओर झुकी हुई है; इसकी प्रमुख नदियाँ, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी, पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में बहती हैं। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला बहुत विशाल है और दक्षिण-पश्चिम मानसून से नमी को दक्कन के पठार तक पहुंचने से रोकती है, इसलिए इस क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती है। [१०] [११] पूर्वी दक्कन का पठार भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर कम ऊंचाई पर है। इसके जंगल भी अपेक्षाकृत शुष्क होते हैं, लेकिन बारिश को बरकरार रखने के लिए नदियों को बनाए रखने की सेवा करते हैं, जो नदियों में बहती हैं और फिर बंगाल की खाड़ी में बहती हैं। [२] [१२]अधिकांश डेक्कन पठार नदियाँ दक्षिण की ओर बहती हैं। पठार के अधिकांश उत्तरी भाग को गोदावरी नदी और उसकी सहायक नदियों से निकाला जाता है, जिसमें इंद्रावती नदी भी शामिल है, जो पश्चिमी घाट से शुरू होकर पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में बहती है। अधिकांश केंद्रीय पठार तुंगभद्रा नदी, कृष्णा नदी और उसकी सहायक नदियों से बहती है, जिसमें भीमा नदी भी शामिल है, जो पूर्व में भी बहती है। पठार का सबसे दक्षिणी भाग कावेरी नदी द्वारा निकाला जाता है, जो कर्नाटक के पश्चिमी घाट में उगता है और दक्षिण में झुकता है, जो शिवसैनमुद्र के द्वीप शहर में नीलगिरि पहाड़ियों के माध्यम से टूटता है और फिर स्टेनली में बहने से पहले तमिलनाडु में होजानकल जलप्रपात पर गिरता है। जलाशय और जलाशय का निर्माण करने वाले जलाशय और अंत में बंगाल की खाड़ी में खाली हो गए। [१३]पठार के पश्चिमी किनारे पर सह्याद्री, नीलगिरि, अनामीलाई और एलामलाई हिल्स स्थित हैं, जिन्हें आमतौर पर पश्चिमी घाट के रूप में जाना जाता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 711, "question": "अनिमुडी पीक कहां स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 712, "question": "पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई किसके समान है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 375, "text": "2,000 फीट" } ], "category": "SHORT", "id": 713, "question": "दक्कन की औसत ऊंचाई कितनी है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 412, "text": "पूर्व की ओर" } ], "category": "SHORT", "id": 714, "question": "दक्कन की ऊंचाई किस दिशा की ओर झुकी हुई है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 272, "text": "पूर्व" } ], "category": "SHORT", "id": 715, "question": "भीमा नदी किस दिशा की ओर बहती है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दक्षिण भारत के नरेश मुगल सल्तनत के दक्षिण प्रवाह को रोकने में बहुत सीमा तक सफल रहे। मुग़ल उस भूभाग में अधिक काल तक अपनी विजयपताका फहराने में असमर्थ रहे। यही कारण है कि दक्षिणपथ के इतिहास में विजयनगर राज्य को विशेष स्थान दिया गया है। दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा को इस बात का गर्व है कि विजयनगर उसकी गोद में पला। और विजयनगर को साम्राज्य में बदलने में योगदान है भारत के देशभक्त रक्षक कृष्ण देव राय का। उन्होंने नदी के किनारे प्रधान नगरी हंपी पर महज 300 सैनिकों के साथ हमला किया और बेहतरीन रणनीति के साथ सफल हुए । विजयनगर के पूर्वी दिशा के पड़ोसी राज्य के होयसल नरेशों का प्रधान स्थान था हंपी । इस हमले के बाद वह किसी भी हाल में विजयनगर का उदय नहीं देखना चाह रहे थे। क्योंकि विजयनगर के पूर्वगामी पड़ोसी राज्य होयसल नरेशों का प्रधान स्थान यहीं था। लेकिन होयसल यह सोचकर निश्चिंत थे की विजयनगर से होयसल राज्यों का मार्ग दुर्गम है इसलिए उत्तर के महान सम्राट् धनानंद भी दक्षिण में विजय करने का संकल्प पूरा न कर सके। द्वारसमुद्र के शासक वीर वल्लाल तृतीय ने दिल्ली सुल्तान द्वारा नियुक्त कम्पिलि के शासक मलिक मुहम्म्द के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। ऐसी परिस्थिति में दिल्ली के सुल्तान ने मलिक मुहम्मद की सहायता के लिए दो (हिन्दू) कर्मचारियों को नियुक्त किया जिनके नाम हरिहर तथा बुक्क थे उस समय कृष्णदेव राया ने वीर वल्लाल को समझाने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए। बाद में वे दिल्ली सुल्तान से मिल कर अपने दोनों भाइयों को शामिल करते हुए कृष्ण देव राय के स्वतंत्र विजयनगर राज्य पर हमला किया मगर तीनों सेनाओं को पराजय का मुख देखना पड़ा । सन् 1336 ई. में कृष्ण देव राय के आचार्य हरिहर ने वैदिक रीति से शंकर प्रथम का राज्याभिषेक संपन्न किया और तुंगभद्रा नदी के किनारे विजयनगर नामक नगर का निर्माण किया। विजयनगर राज्य में विभिन्न तरह के मन्त्रालय बनाए गये जिसमें शासन मन्त्रालय भी था जिसका इस्तेमाल तब होता था जब राजा सही फैसला न ले पाए। विजयनगर में प्रतापी एवं शक्तिशाली नरेशों की कमी न थी। युद्धप्रिय होने के अतिरिक्त, सभी हिन्दू संस्कृति के रक्षक थे। स्वयं कवि तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। कृष्ण देव राय संगम नामक चरवाहे के पुत्र थे उनको उनके राज्य से निकाल दिया गया था । अतएव उन्होने संगम सम्राट् के नाम से शासन किया। विजयनगर राज्य के संस्थापक शंकर प्रथभ ने थोड़े समय के पश्चात् अपने वरिष्ठ तथा योग्य बन्धु महादेव राय को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। संगम वंश के तीसरे प्रतापी नरेश संगम महावीर द्वितीय ने विजयनगर राज्य को दक्षिण का एक विस्तृत, शक्तिशाली तथा सुदृढ़ साम्राज्य बना दिया। हरिहर द्वितीय के समय में सायण तथा माधव ने वेद तथा धर्मशास्त्र पर निबन्धरचना की। उनके वंशजों में द्वितीय देवराय का नाम उल्लेखनीय है जिसने अपने राज्याभिषेक के पश्चात् संगम राज्य को उन्नति का चरम सीमा पर पहुँचा दिया। मुग़ल रियासतों से युद्ध करते हुए, देबराय प्रजापालन में संलग्न रहा। राज्य की सुरक्षा के निमित्त तुर्की घुड़सवार नियुक्त कर सेना की वृद्धि की। उसके समय में अनेक नवीन मन्दिर तथा भवन बने। दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक सालुब नरसिंह ने 1485 से 1490 ई. तक शासन किया। उसने शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरस नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया। वही तुलुव वंश का प्रथम शासक माना गया है। उसने 1490 से 1503 ई. तक शासन किया और दक्षिण में कावेरी के सुदूर भाग पर भी विजयदुन्दुभी बजाई। तुलुब वंश में हंगामा तब हुआ जब कृष्णदेव राय का नाम राजा बनने में सबसे आगे था। उन्होंने 1509 से 1539 ई. तक शासन किया और विजयनगर को भारत का उस समय का सबसे बड़ा साम्राज्य बना दिया बस दिल्ली एकमात्र स्वतन्त्र राज्य था। कृष्ण देव राय के शासन में आने के बाद उन्होंने अपनी सेना को इस स्तर तक पहुँचाया। 1.50 लाख घुड़सवार सैनिक 88,000 पैदल सैनिक 20,000 रथ 64,000 हाथी और 1.50 लाख घोड़े 15,000 तोप इत्यादि। वे महान प्रतापी, शक्तिशाली, शान्तिस्थापक, सर्वप्रिय, सहिष्णु और व्यवहारकुशल शासक थे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 957, "text": "दिल्ली सुल्तान " } ], "category": "SHORT", "id": 716, "question": "कम्पिली के शासक किसके द्वारा नियुक्त किए गए थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1003, "text": "मलिक मुहम्म्द " } ], "category": "SHORT", "id": 717, "question": "कम्पिली के शासक कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2736, "text": "1485 से 1490 ई." } ], "category": "SHORT", "id": 718, "question": "सालूब नरसिंह ने विजयनगर पर कब तक शासन किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 719, "question": "यूरोप में रहने वाले पुर्तगाली किस शताब्दी में पश्चिमी तट पर बस गए थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 917, "text": "द्वारसमुद्र" } ], "category": "SHORT", "id": 720, "question": "वीर वल्लल तृतीय किस प्रदेश के शासक थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1161, "text": "हरिहर " } ], "category": "SHORT", "id": 721, "question": "कृष्ण देव राय के आचार्य कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 722, "question": "भारत से पुर्तगालियों सहित कितने विदेशी शक्तियों को बाहर कर दिया गया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दादरा और नगर हवेली का गहरा इतिहास हमलावर राजपूत राजाओं द्वारा क्षेत्र के कोली सरदारों की हार के साथ शुरू होता है। मराठों ने राजपूतों को हरा कर 18वीं सदी के मध्य में अपना शासन स्थापित किया। मराठों और पुर्तगालियों के बीच लंबे संघर्ष के बाद 17 दिसंबर (दिसम्बर) 1779 को मराठा पेशवा माधव राव II ने मित्रता सुनिशचित करने के खातिर इस प्रदेश के 79 गावों को 12,000 रुपए का राजस्व क्षतिपूर्ति के तौर पर पुर्तगालियों को सौंप दिया। जनता द्वारा 2 अगस्त,1954 को मुक्त कराने तक पुर्तगालियों ने इस प्रदेश पर शासन किया। 1954 से 1961 तक यह प्रदेश लगभग स्वतंत्र रूप से काम करता रहा जिसे ‘स्वतंत्र दादरा एंव नगर हवेली प्रशासन’ ने चलाया। लेकिन 11 अगस्त 1961 को यह प्रदेश भारतीय संघ में शामिल हो गया और तब से भारत सरकार एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसका प्रशासन कर रही है। पुर्तगाल के चंगुल से इस क्षेत्र की मुक्ति के बाद से ‘वरिष्ठ पंचायत’ प्रशासन की परामर्शदात्री संस्था के रूप में कार्य कर रही थी परंतु इसे 1989 में भंग कर दिया गया और अखिल भारतीय स्तर पर संविधान संशोधन के अनुरूप दादरा और नगर हवेली जिला पंचायत और 11 ग्राम पंचायतों की एक प्रदेश परिषद गठित कर दी गई। भारत की 1947 में आज़ादी के बाद, पुर्तगाली प्रांतों में सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी तथा दूसरे स्थानों के बसे भारतीयों ने गोवा, दमन, दिउ, दादरा एवं नगर हवेली के मुक्ति का विचार पाला। भारत के स्वतंत्र होने से पहले से ही महात्मा गाँधी की भी यही विचारधारा थी और उन्होने ये पुष्टि भी की - \"गोवा (व अन्य अस्वतंत्र इलाके) को मौजूद मुक्त राज्य (भारत) के कानूनों के विरोध में एक अलग इकाई के रूप में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जब भारत ने 26 जनवरी 1950 को गणतंत्रता हासिल की तब फ़्रांसिसी सरकार ने भारत के पूर्वी तट पर अपनी क्षेत्रीय संपत्ति खाली करने का निर्णय लिया परंतु (परन्तु) पुर्तगाली सरकार ने तब भी भारत में अपने जड़ गड़ाए रखे। फलस्वरूप गोवा, दादरा, नगर हवेली तथा अन्य क्षेत्रों में स्वतंत्रता आंदोलन (आन्दोलन) और गहरा हो गया। फिर लिस्बन में एक भारतीय दूतावास खोला गया ताकि गोवा के हस्तांतरण पर चर्चा की जा सके। लेकिन पुर्तगाली सरकार ने ना ही सिर्फ गोवा की मुक्ति के बारे में बात करने से मना कर दिया बल्कि उन्होंने पहले से ही लागु दमनकारी उपायों को परिक्षेत्रों में तेज कर दिया। 1953 मे पुर्तगाली सरकार से समझौते के लिए एक और प्रयास किया गया - इस बार उन्हें ये भी आश्वासन दिलाया गया कि परिक्षेत्रों की सांस्कृतिक पहचान उनके स्थानांतरण के बाद भी संरक्षित रहेगी और कानूनों व रीति रिवाजों को भी अपरिवर्तित रखा जायेगा। फिर भी वे पहले की तरह अपने हठ पर कायम बने रहे और यहाँ तक कि भारत द्वारा की गई पहल का जवाब देने से भी इनकार कर गए। फलस्वरूप लिस्बन में स्तिथ भारतीय दूतावास को जून 1953 में बंद कर दिया गया। गोवा सरकार के एक बैंक कर्मचारी - अप्पासाहेब कर्मलकर ने नेशनल लिबरेशन मूवमेंट संगठन (NLMO) की बागडोर संभाली ताकि वोह पुर्तगाली-सशैत प्रदेशों को मुक्ति दिला सकें। साथ ही साथ आजाद गोमान्तक दल(विश्वनाथ लावंडे, दत्तात्रेय देशपांडे, प्रभाकर सीनरी और श्री. गोले के नेतृत्व में), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रजा वाकणकर और नाना कजरेकर के नेतृत्व में) के स्वयंसेवक दादरा और नगर हवेली को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र हमले की तय्यारी कर रहे थे। वाकणकर और काजरेकर ने स्थलाकृति अध्ययन और स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं, जो पुर्तगाली क्षेत्र की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे थे, से परिचय के लिए 1953 में दादरा और नगर हवेली का कई बार दौरा किया। अप्रैल, 1954 में तीनो संगठनो ने मिलकर एक संयुक्त मोर्चा (युनाइटेड फ्रंट) निकाला और एिंल्फसटन बगीचे कि एक बैठक में, एक सशस्त्र हमले की योजना बनाई। स्वतंत्र रूप से, एक और संगठन, युनाइटेड फ्रंट ऑफ गोअन्स ने भी इसी तरह की एक योजना बनाइ। फ्रांसिस मैस्करेनहास और विमान देसी के नेतृत्व में युनाइटेड फ्रंट ऑफ गोअन्स के करीब 15 सदस्यों ने 22 जुलाई 1954 की रात को दादरा पुलिस स्टेशन में हमला बोला। उन्होंने उप-निरीक्षक अनिसेतो रोसारियो की हत्या कर दी। अगले ही दिन पुलिस चौकी पर भारतीय तिरंगा फहराया गया और दादरा को मुक्त प्रान्त घोषित कर दिया गया। जयंतीभाई देसी को दादरा के प्रशाशन हेतु पंचायत का मुखिया बना दिया गया। 28 जुलाई 1954 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आज़ाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवक ने नारोली के पुलिस चौकी पर हमला बोला और पुर्तगाली अफसरों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और नारोली को आजाद किया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 723, "question": "फिदाल्गो के नेतृत्व में पुर्तगाली सेना कहां तैनात थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 724, "question": "स्वतंत्र नरोली की ग्राम पंचायत की स्थापना कब हुई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2866, "text": "वाकणकर और काजरेकर" } ], "category": "SHORT", "id": 725, "question": "वर्ष 1953 में स्थलाकृति का अध्ययन करने के लिए कौन दादरा और नगर हवेली गए थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 113, "text": "मराठों" } ], "category": "SHORT", "id": 726, "question": "18वीं सदी में राजपूतों को युद्ध में किसने हराया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 618, "text": "11 अगस्त 1961" } ], "category": "SHORT", "id": 727, "question": "भारतीय संघ में दादरा और नगर हवेली को शामिल कब किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 258, "text": "79" } ], "category": "SHORT", "id": 728, "question": "माधव राव द्वितीय ने पुर्तगालियों को कितने गांव सौंप दिए थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1053, "text": "1947 " } ], "category": "SHORT", "id": 729, "question": "भारत को स्वतंत्रता किस वर्ष मिली थी?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दिल्ली के सार्वजनिक यातायात के साधन मुख्यतः बस, ऑटोरिक्शा और मेट्रो रेल सेवा हैं। दिल्ली की मुख्य यातायात आवश्यकता का ६०% बसें पूरा करती हैं। दिल्ली परिवहन निगम द्वारा संचालित सरकारी बस सेवा दिल्ली की प्रधान बस सेवा है। दिल्ली परिवहन निगम विश्व की सबसे बड़ी पर्यावरण सहयोगी बस-सेवा प्रदान करता है। हाल ही में बी आर टी कॉरिडोर की सेवा अंबेडकर नगर और दिल्ली गेट के बीच आरम्भ हुई है। जिसे तकनीकी खामियों के कारण तोड़ दिया है और अब सड़क को पुराने स्वरूप में बदल दिया गया है। ऑटो रिक्शा दिल्ली में यातायात का एक प्रभावी माध्यम है। ये ईंधन के रूप में सी एन जी का प्रयोग करते हैं, व इनका रंग हरा होता है। दिल्ली में वातानुकूलित टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है जिनका किराया ७.५० से १५ रु/कि॰मी॰ तक है। दिल्ली की कुल वाहन संख्या का ३०% निजी वाहन हैं। दिल्ली में १९२२.३२ कि॰मी॰ की लंबाई प्रति १०० कि॰मी॰², के साथ भारत का सर्वाधिक सड़क घनत्व मिलता है। दिल्ली भारत के पांच प्रमुख महानगरों से राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा जुड़ा है। ये राजमार्ग हैं: राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या: १, २, ८, १० और २४। अभी कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने राष्ट्रीय राजमार्ग 24 जो निज़ामुद्दीन से मेरठ के लिए दिल्ली-मेरठ एक्स्प्रेस वे का उद्घाटन किया था वह 8 लेन का है जिसकी अधिकतम 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से चल सकते हैं वो भी है। दिल्ली की सड़कों का अनुरक्षण दिल्ली नगर निगम (एम सी डी), दिल्ली छावनी बोर्ड, पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट (PWD) और दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। दिल्ली के उच्च जनसंख्या दर और उच्च अर्थ विकास दर ने दिल्ली पर यातायात की वृहत मांग का दबाव यहाँ की अवसंरचना पर बनाए रखा है। २००८ के अनुसार दिल्ली में ५५ लाख वाहन नगर निगम की सीमाओं के अंदर हैं। इस कारण दिल्ली विश्व का सबसे अधिक वाहनों वाला शहर है। साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ११२ लाख वाहन हैं। सन १९८५ में दिल्ली में प्रत्येक १००० व्यक्ति पर ८५ कारें थीं। दिल्ली के यातायात की मांगों को पूरा करने हेतु दिल्ली और केन्द्र सरकार ने एक मास रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम का आरम्भ किया, जिसे दिल्ली मेट्रो कहते हैं। सन १९९८ में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के सभी सार्वजनिक वाहनों को डीज़ल के स्थान पर कंप्रेस्ड नैचुरल गैस का प्रयोग अनिवार्य रूप से करने का आदेश दिया था। तब से यहाँ सभी सार्वजनिक वाहन सी एन जी पर ही चालित हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 305, "text": "बी आर टी कॉरिडोर " } ], "category": "SHORT", "id": 730, "question": "अंबेडकर नगर और दिल्ली गेट के बीच किस परिवहन सेवा की शुरुआत की गई है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1622, "text": " ११२ लाख" } ], "category": "SHORT", "id": 731, "question": "राजधानी दिल्ली में वाहनों की कुल कितनी संख्या है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 732, "question": "दिल्ली मेट्रो की अधिकतम स्पीड कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 992, "text": "नरेंद मोदी" } ], "category": "SHORT", "id": 733, "question": "राष्ट्रीय राजमार्ग 24 का उद्घाटन किसके द्वारा किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 140, "text": "दिल्ली परिवहन निगम" } ], "category": "SHORT", "id": 734, "question": "दिल्ली राज्य के परिवहन निगम का क्या नाम है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 735, "question": "दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन का कब उद्घाटन किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 651, "text": "७.५० से १५ रु" } ], "category": "SHORT", "id": 736, "question": "दिल्ली में वातानुकूलित टैक्सी सेवा का किराया प्रति किलोमीटर कितना है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दिल्ली शहर में बने स्मारकों से विदित होता है कि यहां की संस्कृति प्राच्य ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि से प्रभावित है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली शहर में लगभग १२०० धरोहर स्थल घोषित किए हैं, जो कि विश्व में किसी भी शहर से कहीं अधिक है। और इनमें से १७५ स्थल राष्ट्रीय धरोहर स्थल घोषित किए हैं। पुराना शहर वह स्थान है, जहां मुगलों और तुर्क शासकों ने स्थापत्य के कई नमूने खड़े किए, जैसे जामा मस्जिद (भारत की सबसे बड़ी मस्जिद) और लाल किला। दिल्ली में फिल्हाल तीन विश्व धरोहर स्थल हैं – लाल किला, कुतुब मीनार और हुमायुं का मकबरा। अन्य स्मारकों में इंडिया गेट, जंतर मंतर (१८वीं सदी की खगोलशास्त्रीय वेधशाला), पुराना किला (१६वीं सदी का किला). बिरला मंदिर, अक्षरधाम मंदिर और कमल मंदिर आधुनिक स्थापत्यकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। राज घाट में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी तथा निकट ही अन्य बड़े व्यक्तियों की समाधियां हैं। नई दिल्ली में बहुत से सरकारी कार्यालय, सरकारी आवास, तथा ब्रिटिश काल के अवशेष और इमारतें हैं। कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण इमारतों में राष्ट्रपति भवन, केन्द्रीय सचिवालय, राजपथ, संसद भवन और विजय चौक आते हैं। सफदरजंग का मकबरा और हुमायुं का मकबरा मुगल बागों के चार बाग शैली का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दिल्ली के राजधानी नई दिल्ली से जुड़ाव और भूगोलीय निकटता ने यहाँ की राष्ट्रीय घटनाओं और अवसरों के महत्त्व को कई गुणा बढ़ा दिया है। यहाँ कई राष्ट्रीय त्यौहार जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयंती खूब हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। भारत के स्वतंत्रता दिवस पर यहाँ के प्रधान मंत्री लाल किले से यहाँ की जनता को संबोधित करते हैं। बहुत से दिल्लीवासी इस दिन को पतंगें उड़ाकर मनाते हैं। इस दिन पतंगों को स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 458, "text": "तीन " } ], "category": "SHORT", "id": 737, "question": "दिल्ली में वर्तमान में कितने विश्व धरोहर स्थल हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 165, "text": " १२०० " } ], "category": "SHORT", "id": 738, "question": "भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दिल्ली में लगभग कितने विरासत स्थल घोषित किए है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 252, "text": " १७५ " } ], "category": "SHORT", "id": 739, "question": "दिल्ली में कितने विरासत स्थलों को राष्ट्रीय विरासत स्थलों के रूप में घोषित किया गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 740, "question": "संगीतकारों और नर्तकियों का अखिल भारतीय सम्मेलन किस महोत्सव में होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 388, "text": "जामा मस्जिद" } ], "category": "SHORT", "id": 741, "question": "भारत की सबसे बड़ी मस्जिद का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 721, "text": "राज घाट " } ], "category": "SHORT", "id": 742, "question": "गांधीजी की समाधि कहाँ पर स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 743, "question": "भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक झांकी को प्रदर्शित करने वाली परेड का क्या नाम है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन और सिख समुदाय के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है। ये, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन शामिल संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमेरिका। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीवाली मानाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इन देशों में अधिकांशतः दीवाली को कुछ मामूली बदलाव के साथ इस लेख में वर्णित रूप में उसी तर्ज पर मनाया जाता है पर कुछ महत्वपूर्ण विविधताएँ उल्लेख के लायक हैं। दीपावली को \"तिहार\" या \"स्वन्ति\" के रूप में जाना जाता है। यह भारत में दीपावली के साथ ही पांच दिन की अवधि तक मनाया जाता है। परन्तु परम्पराओं में भारत से भिन्नता पायी जाती है। पहले दिन 'काग तिहार' पर, कौए को परमात्मा का दूत होने की मान्यता के कारण प्रसाद दिया जाता है। दूसरे दिन 'कुकुर तिहार' पर, कुत्तों को अपनी ईमानदारी के लिए भोजन दिया जाता है। काग और कुकुर तिहार के बाद 'गाय तिहार' और 'गोरु तिहार' में, गाय और बैल को सजाया जाता है। तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस नेपाल संवत् अनुसार यह साल का आखिरी दिन है, इस दिन व्यापारी अपने सारे खातों को साफ कर उन्हें समाप्त कर देते हैं। लक्ष्मी पूजा से पहले, मकान साफ ​​किया और सजाया जाता है; लक्ष्मी पूजा के दिन, तेल के दीयों को दरवाजे और खिड़कियों के पास जलाया जाता है। चौथे दिन को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। सांस्कृतिक जुलूस और अन्य समारोहों को भी इसी दिन मनाया जाता है। पांचवे और अंतिम दिन को \"भाई टीका\" (भाई दूज देखें) कहा जाता, भाई बहनों से मिलते हैं, एक दूसरे को माला पहनाते व भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। माथे पर टीका लगाया जाता है। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और बहने उन्हें भोजन करवाती हैं। दीपावली मलेशिया में एक संघीय सार्वजनिक अवकाश है। यहां भी यह काफी हद तक भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराओं के साथ ही मनाया जाता है। 'ओपन हाउसेस' मलेशियाई हिन्दू (तमिल,तेलुगू और मलयाली)द्वारा आयोजित किये जाते हैं जिसमें भोजन के लिए अपने घर में अलग अलग जातियों और धर्मों के साथी मलेशियाई लोगों का स्वागत किया जाता है। मलेशिया में दीवाली का त्यौहार धार्मिक सद्भावना और मलेशिया के धार्मिक और जातीय समूहों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए एक अवसर बन गया है। दीपावली एक राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय (तमिल) द्वारा इसे मुख्य रूप से मनाया जाता है, यह आम तौर पर छोटे भारतीय जिलों में, भारतीय समुदाय द्वारा लाइट-अप द्वारा चिह्नित किया जाता है। इसके अलावा बाजारों, प्रदर्शनियों, परेड और संगीत के रूप में अन्य गतिविधियों को भी लिटिल इंडिया के इलाके में इस दौरान शामिल किया जाता है। सिंगापुर की सरकार के साथ-साथ सिंगापुर के हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड इस उत्सव के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन करता है। यह त्यौहार इस द्वीप देश में एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन पर लोग द्वारा सामान्यतः सुबह के समय तेल से स्नान करा जाता है , नए कपड़े पहने जाते हैं, उपहार दिए जाते है, पुसै (पूजा) के लिए कोइल (हिंदू मंदिर) जाते हैं। त्योहार की शाम को पटाखे जलना एक आम बात है। हिंदुओं द्वारा आशीर्वाद के लिए व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दिए जलाकर आमंत्रित किया जाता है। श्रीलंका में जश्न के अलावा खेल, आतिशबाजी, गायन और नृत्य, व भोज आदि का अयोजन किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में, दीपावली को भारतीय मूल के लोगों और स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली को विक्टोरियन आबादी और मुख्यधारा द्वारा गर्मजोशी से अपनाया गया है। सेलिब्रेट इंडिया इंकॉर्पोरेशन ने 2006 में मेलबोर्न में प्रतिष्ठित फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली समारोह शुरू किया था। अब यह समारोह मेलबॉर्न के कला कैलेंडर का हिस्सा बन गया है और शहर में इस समारोह को एक सप्ताह से अधिक तक मनाया जाता है। पिछले वर्ष 56,000 से अधिक लोगों ने समारोह के अंतिम दिन पर फेडरेशन स्क्वायर का दौरा किया था और मनोरंजक लाइव संगीत, पारंपरिक कला, शिल्प और नृत्य और यारा नदी (en:yarra river) पर शानदार आतिशबाज़ीे के साथ ही भारतीय व्यंजनों की विविधता का आनंद लिया। विक्टोरियन संसद, मेलबोर्न संग्रहालय, फेडरेशन स्क्वायर, मेलबोर्न हवाई अड्डे और भारतीय वाणिज्य दूतावास सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को इस सप्ताह अधिक सजाया जाता है। इसके साथ ही, कई बाहरी नृत्य का प्रदर्शन होता हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1510, "text": "नए वर्ष" } ], "category": "SHORT", "id": 744, "question": "दिवाली के चौथे दिन को किस रूप में मनाया जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 23, "text": " हिंदू, जैन और सिख" } ], "category": "SHORT", "id": 745, "question": "दिवाली पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा किस धर्म के लोग मनाते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 746, "question": "देवी लक्ष्मी किसका प्रतीक हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "दीपावली" } ], "category": "SHORT", "id": 747, "question": "फेडरेशन स्क्वायर पर किस त्योहार को ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़े त्योहार के रूप में जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1629, "text": "भाई टीका\" (भाई दूज" } ], "category": "SHORT", "id": 748, "question": "दिवाली के पांचवें और अंतिम दिन को किस रूप में मनाया जाता हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1226, "text": "लक्ष्मी" } ], "category": "SHORT", "id": 749, "question": "दिवाली के तीसरे दिन किस देवी की पूजा की जाती है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "दीपावली नेपाल और भारत में सबसे सुखद छुट्टियों में से एक है। लोग अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहने आदि महंगी वस्तुएँ तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरण, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं। लोगों अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरुप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाएँ खरीदारी के लिए जाती हैं और फर्श, दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं। क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बदलाव पाया जाता है। धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है। दीवाली की रात को, आतिशबाजी आसमान को रोशन कर देती है। बाद में, परिवार के सदस्य और आमंत्रित मित्रगण भोजन और मिठायों के साथ रात को दीपावली मनाते हैं। दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं। हिन्दुओं के योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध, अनन्त, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है। दीपावली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है। प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 954, "text": "लक्ष्मी" } ], "category": "SHORT", "id": 750, "question": "दिवाली के दिन किस देवी की पूजा की जाती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2926, "text": "भगवान कृष्ण" } ], "category": "SHORT", "id": 751, "question": "मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्र में दिवाली का त्योहार किस भगवान के साथ जुड़ा हुआ है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 752, "question": "गोवर्धन पूजा पर्व में कृष्ण के लिए कितने व्यंजन बनाए जाते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 753, "question": "भारत के पश्चिमी और उत्तरी भागों में दिवाली का त्योहार किसका प्रतीक है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "दीपावली" } ], "category": "SHORT", "id": 754, "question": "भारत और नेपाल में सबसे अधिक मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक त्योहार कौन सा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 930, "text": "धन और समृद्धि की देवी" } ], "category": "SHORT", "id": 755, "question": "देवी लक्ष्मी किसका प्रतीक हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2829, "text": "काली" } ], "category": "SHORT", "id": 756, "question": "दिवाली के दिन उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिंदू लक्ष्मी के बजाय किस देवी की पूजा करते हैं?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "देश आजाद हुआ तो होमी जहांगीर भाभा ने दुनिया भर में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों से अपील की कि वे भारत लौट आएं। उनकी अपील का असर हुआ और कुछ वैज्ञानिक भारत लौटे भी। इन्हीं में एक थे मैनचेस्टर की इंपीरियल कैमिकल कंपनी में काम करने वाले होमी नौशेरवांजी सेठना। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले सेठना में भाभा को काफी संभावनाएं दिखाई दीं। ये दोनों वैज्ञानिक भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने के अपने कार्यक्रम में जुट गए। यह कार्यक्रम मूल रूप से डॉ॰ भाभा की ही देन था, लेकिन यह सेठना ही थे, जिनकी वजह से डॉ॰ भाभा के निधन के बावजूद न तो यह कार्यक्रम रुका और न ही इसमें कोई बाधा आई। उनकी इसी लगन का नतीजा था कि 1974 में सेठना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया कि उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट की तैयारियां पूरी कर ली है। यह भी पूछा कि क्या वे इस सिस्टम को शुरू कर सकते हैं? इसके साथ ही उन्होंने यह भी बता दिया कि एक बार सिस्टम शुरू होने के बाद इसे रोकना संभव नहीं होगा, ऐसे में अगर वे मना कर देंगी तो उसे नहीं सुना जा सकेगा क्योंकि तब विस्फोट होकर ही रहेगा। इंदिरा गांधी की हरी झंडी मिलते ही तैयारियां शुरू हो गई। अगले ही दिन, 18 मई को सेठना ने कोड वर्ड में इंदिरा गांधी को संदेश भेजा- बुद्ध मुस्कराए। भारत का यह परमाणु विस्फोट इतना गोपनीय था। डॉ़ होमी भाभा ने डॉ़ सेठना को भारत लौटने के बाद बहुत सोच-समझ कर केरल के अलवाए स्थित इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड का प्रमुख बनाया था, जहां उन्हाने मोनोज़ाइट रेत से दुर्लभ नाभिकीय पदार्थो के अंश निकाले। उस दौरान वे कनाडा-भारत रिएक्टर (सायरस) के प्रॉजेक्ट मैनेजर भी रहे। इसके बाद डॉ़ सेठना ने 1959 में ट्रांबे स्थित परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी पद का कार्यभार संभाला।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1253, "text": "इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड " } ], "category": "SHORT", "id": 757, "question": "नौशेरवानजी सेठना के भारत लौटने के बाद डॉ होमी भाभा ने उन्हें किस कंपनी का प्रमुख बनाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 758, "question": " भारत का पहला प्लूटोनियम आइसोलेशन प्लांट कहाँ बनाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1455, "text": "1959 " } ], "category": "SHORT", "id": 759, "question": "सेठना परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी किस वर्ष बने थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 264, "text": " मिशिगन यूनिवर्सिटी" } ], "category": "SHORT", "id": 760, "question": "नौशेरवानजी सेठना ने अपनी स्नातकोत्तर की पढाई किस कॉलेज से की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1113, "text": "बुद्ध मुस्कराए" } ], "category": "SHORT", "id": 761, "question": "नौशेरवानजी सेठना ने इंदिरा गाँधी को परमाणु परिक्षण के लिए किस नाम के कोडवर्ड से संदेश भेजा था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नर अपने पंखों को उठाकर प्रेमालाप के लिए उन्हें आमंत्रित करते हैं। पंख आधे खुले होते हैं और अधोमुख अवस्था में ही जोर से हिलाकर समय समय पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। नर मादा के चेहरे के सामने अकड़ता और कूदता है एवं कभी कभी चारों ओर घूमता है उसके बाद अपने पंखों का प्रदर्शन करता है। नर भोजन दिखाकर भी मादा को प्रेमालाप के लिए आमंत्रित करते हैं। नर मादा के न होने पर भी यह प्रदर्शन कर सकते हैं। जब एक नर प्रदर्शन करता है, मादा कोई आकर्षण प्रकट नहीं करती और दाना चुगने का काम जारी रखती हैं। दक्षिण भारत में अप्रैल-मई में, श्रीलंका में जनवरी-मार्च में और उत्तरी भारत में जून चरम मौसम है। घोंसले का आकार उथला और उसके निचले भाग में परिमार्जित पत्तियां, डालियां और अन्य मलबे होते हैं। घोंसले कभी कभी इमारतों पर भी होते हैं और यह भी दर्ज किया गया है कि किसी त्यागे हुए प्लेटफार्मों और भारतीय सफेद गिद्ध द्वारा छोड़े गए घोंसलों का प्रयोग करते हैं घोंसलों में 4-8 हलके पीले रंग के अंडे होते हैं जिसकी देखभाल केवल मादा करती हैं। 28 दिनों के बाद अंडे से बच्चे बाहर आते हैं। चूजे अंडे सेने के बाद बाहर आते ही माँ के पीछे पीछे घूमने लगते हैं। उनके युवा कभी कभी माताओं की पीठ पर चढ़ाई करते हैं और मादा उन्हें पेड़ पर सुरक्षित पहुंचा देती है। कभी-कभी असामान्य सूचना भी दी गई है कि नर भी अंडे की देखभाल कर रहें हैं। मोर मांसभक्षी होते है और बीज, कीड़े, फल, छोटे स्तनपायी और सरीसृप खाते हैं। वे छोटे सांपों को खाते हैं लेकिन बड़े सांपों से दूर रहते हैं। गुजरात के गिर वन में, उनके भोजन का बड़ा प्रतिशत पेड़ों पर से गिरा हुआ फल ज़िज़िफस होता है। खेती के क्षेत्रों के आसपास, धान, मूंगफली, टमाटर मिर्च और केले जैसे फसलों का मोर व्यापक रूप से खाते हैं। मानव बस्तियों के आसपास, यह फेकें गए भोजन और यहां तक कि मानव मलमूत्र पर निर्भर करते हैं। वयस्क मोर आमतौर पर शिकारियों से बचने के लिए उड़ कर पेड़ पर बैठ जाते हैं। तेंदुए उनपर घात लगाए रहते हैं और गिर के जंगल में मोर आसानी से उनके शिकार बन जाते हैं। समूहों में चुगने के कारण यह अधिक सुरक्षित होते हैं क्योंकि शिकारियों पर कई आँखें टिकी होती हैं। कभी कभी वे बड़े पक्षियों जैसे ईगल हॉक अस्थायी और रॉक ईगल द्वारा शिकार कर लिए जाते हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 762, "question": "जंगल में पक्षी कितने वर्षों के लिए जीवित रह सकतें हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 277, "text": "भोजन" } ], "category": "SHORT", "id": 763, "question": "मोर नर मादा को क्या दिखाकर प्रेमालाप के लिए आमंत्रित करते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 981, "text": "माँ" } ], "category": "SHORT", "id": 764, "question": "अंडो से बाहर आते ही मोर के चूजे किसका पीछा करना शुरू कर देते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 904, "text": "28" } ], "category": "SHORT", "id": 765, "question": "मोर के अंडे से बच्चे कितने दिनों के बाद निकलते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 766, "question": "किस क्षेत्र के लोगो ने कहा है की \"मोर का तेल एक लोक उपचार है\" ? " } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नरेन्द्र मोदी का 26 मई 2014 से भारत के 15वें प्रधानमन्त्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित शपथ ग्रहण के पश्चात प्रारम्भ हुआ। मोदी के साथ 45 अन्य मन्त्रियों ने भी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित कुल 46 में से 36 मन्त्रियों ने हिन्दी में जबकि 10 ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की। समारोह में विभिन्न राज्यों और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों सहित दक्षेस देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमन्त्रित किया गया। इस घटना को भारतीय राजनीति की राजनयिक कूटनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्रा को अपने प्रधान सचिव और अजीत डोभाल को कार्यालय में अपने पहले सप्ताह में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने आईएएस अधिकारी ए.के. शर्मा और भारतीय वन सेवा अधिकारी भारत लाल प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ) में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं। दोनों अधिकारी मुख्यमन्त्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान गुजरात में मोदी की सरकार का हिस्सा थे। 31 मई 2014 को, प्रधानमन्त्री मोदी ने सभी मौजूदा मन्त्रियों के समूह (GoMs) और मन्त्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoMs) को समाप्त कर दिया। पीएमओ के एक बयान में बताया गया है, \"यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाएगा और प्रणाली में अधिक जवाबदेही की शुरूआत करेगा। मन्त्रालय और विभाग अब ईजीओएम और गोम्स के समक्ष लम्बित मुद्दों पर कार्रवाई करेंगे और मन्त्रालयों के स्तर पर उचित निर्णय लेंगे। विभागों को ही \"। UPA-II सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान 68 GoM और 14 EGoM की स्थापना की थी, जिनमें से 9 EGoM और 21 GoM को नई सरकार द्वारा विरासत में मिली थी। भारतीय मीडिया द्वारा इस कदम को \"न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन\" की मोदी की नीति के साथ संरेखण में बताया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि GoMs और EGoMs \"पिछली यूपीए सरकार के दौरान एक प्रतीक और नीतिगत पक्षाघात का एक साधन\" बन गए थे। टाइम्स ऑफ़ इण्डिया ने नई सरकार के फैसले को \"निर्णय लेने में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल के अधिकार को बहाल करने और मन्त्रिस्तरीय योग्यता सुनिश्चित करने के लिए एक कदम\" के रूप में वर्णित किया। ग्रामीण विकास, पंचायती राज के प्रभारी और पेयजल और स्वच्छता विभागों के नए नियुक्त कैबिनेट मन्त्री गोपीनाथ मुंडे की 3 जून 2014 को दिल्ली में एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। कैबिनेट मन्त्री नितिन गडकरी, जो सड़क परिवहन के प्रभारी हैं। 4 जून को मुण्डे के पोर्टफोलियो की देखभाल के लिए राजमार्गों और शिपिंग को सौंपा गया था। 10 जून 2014 को, सरकार को नीचा दिखाने के लिए एक अन्य कदम में, मोदी ने मन्त्रिमण्डल की चार स्थायी समितियों को समाप्त कर दिया। उन्होंने पाँच महत्वपूर्ण कैबिनेट समितियों के पुनर्गठन का भी निर्णय लिया। इनमें कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) शामिल है जो सभी उच्च-स्तरीय रक्षा और सुरक्षा मामलों को संभालती है, कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) जो राष्ट्रपति को सभी वरिष्ठ नौकरशाही नियुक्तियों और पोस्टिंग की सिफारिश करती है, कैबिनेट कमिटी ऑन पोलिस अफेयर्स (CCPA) जो एक प्रकार की छोटी कैबिनेट और संसदीय मामलों की मन्त्रिमण्डलीय समिति है। प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद, 24 मई 2019 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को अपना इस्तीफा सौंप दिया। राष्ट्रपति ने इस्तीफे स्वीकार कर लिए और मन्त्रिपरिषद से अनुरोध किया कि वे नई सरकार के पद सम्भालने तक जारी रहें।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 590, "text": "अजीत डोभाल" } ], "category": "SHORT", "id": 767, "question": "प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसे नियुक्त किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 768, "question": "डिजिटल इंडिया का शुभारंभ किस राजनेता द्वारा किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2826, "text": "राम नाथ कोविंद" } ], "category": "SHORT", "id": 769, "question": "वर्ष 2019 में भारत के राष्ट्रपति कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 17, "text": "26 मई 2014 " } ], "category": "SHORT", "id": 770, "question": "भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ कब ली थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 771, "question": "प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डिजिटल इंडिया का शुभारंभ कब किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1999, "text": "3 जून 2014 " } ], "category": "SHORT", "id": 772, "question": "कैबिनेट मंत्री गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "नरेन्द्र मोदी " } ], "category": "SHORT", "id": 773, "question": "भारत के 15वें प्रधान मंत्री का क्या नाम है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नहरनहरों के वितरण एवं विस्तार की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का अग्रणीय स्थान है। यहाँ की कुल सिंचित भूमि का लगभग 30 प्रतिशत भाग नहरों के द्वारा सिंचित होता है। यहाँ की नहरें भारत की प्राचीनतम नहरों में से एक हैं। अपवाहयह राज्य उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वतमाला से उदगमित नदियों के द्वारा भली-भाँति अपवाहित है। गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, यमुना नदी, रामगंगा नदी, गोमती नदी, घाघरा नदी और गंडक नदी को हिमालय के हिम से लगातार पानी मिलता रहता है। विंध्य श्रेणी से निकलने वाली चंबल नदी, बेतवा नदी और केन नदी यमुना नदी में मिलने से पहले राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में बहती है। विंध्य श्रेणी से ही निकलने वाली सोन नदी राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती है और राज्य की सीमा से बाहर बिहार में गंगा नदी से मिलती है। मृदाउत्तर प्रदेश के क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई भाग गंगा तंत्र की धीमी गति से बहने वाली नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी की गहरी परत से ढंका है। अत्यधिक उपजाऊ यह जलोढ़ मिट्टी कहीं रेतीली है, तो कहीं चिकनी दोमट। राज्य के दक्षिणी भाग की मिट्टी सामान्यतया मिश्रित लाल और काली या लाल से लेकर पीली है। राज्य के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में मृदा कंकरीली से लेकर उर्वर दोमट तक है, जो महीन रेत और ह्यूमस मिश्रित है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में घने जंगल हैं। जलवायुउत्तर प्रदेश की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है। राज्य में औसत तापमान जनवरी में 12.50 से 17.50 से. रहता है, जबकि मई-जून में यह 27.50 से 32.50 से. के बीच रहता है। पूर्व से (1,000 मिमी से 2,000 मिमी) पश्चिम (610 मिमी से 1,000 मिमी) की ओर वर्षा कम होती जाती है। राज्य में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है, जो जून से सितम्बर तक होती है। वर्षा के इन चार महीनों में होने के कारण बाढ़ एक आवर्ती समस्या है, जिससे ख़ासकर राज्य के पूर्वी हिस्से में फ़सल, जनजीवन व सम्पत्ति को भारी नुक़सान पहुँचता है। मानसून की लगातार विफलता के परिणामस्वरूप सूखा पड़ता है व फ़सल का नुक़सान होता है। वनस्पति एवं प्राणी जीवनराज्य में वन मुख्यत: दक्षिणी उच्चभूमि पर केन्द्रित हैं, जो ज़्यादातर झाड़ीदार हैं। विविध स्थलाकृति एवं जलवायु के कारण इस क्षेत्र का प्राणी जीवन समृद्ध है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 447, "text": "विंध्य श्रेणी " } ], "category": "SHORT", "id": 774, "question": "सोन नदी किस पर्वत शृंखला से निकलती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 107, "text": " 30 प्रतिशत" } ], "category": "SHORT", "id": 775, "question": "उत्तर प्रदेश के कुल सिंचित भूमि का कितना प्रतिशत हिस्सा नहरों द्वारा सिंचित होता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1431, "text": "90 प्रतिशत " } ], "category": "SHORT", "id": 776, "question": "उत्तर प्रदेश के कुल वर्षा का कितना प्रतिशत भाग दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर करता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 777, "question": " तराई क्षेत्र के गैंडे कहाँ से विलुप्त हो गए है? " }, { "answers": [ { "answer_start": 1184, "text": "उष्णकटिबंधीय मानसूनी" } ], "category": "SHORT", "id": 778, "question": "उत्तर प्रदेश की जलवायु कैसी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 358, "text": "गंगा नदी" } ], "category": "SHORT", "id": 779, "question": "सोन नदी बिहार में किस नदी से मिलती है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के अधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया। १९४७ में एक लोकप्रिय मत द्वारा सिक्किम का भारत में विलय को अस्वीकार कर दिया गया और तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिक्किम को संरक्षित राज्य का दर्जा प्रदान किया। इसके तहत भारत सिक्किम का संरक्षक हुआ। सिक्किम के विदेशी, राजनयिक अथवा सम्पर्क संबन्धी विषयों की ज़िम्मेदारी भारत ने संभाल ली। सन १९५५ में एक राज्य परिषद् स्थापित की गई जिसके अधीन चोग्याल को एक संवैधानिक सरकार बनाने की अनुमति दी गई। इस दौरान सिक्किम नेशनल काँग्रेस द्वारा पुनः मतदान और नेपालियों को अधिक प्रतिनिधित्व की मांग के चलते राज्य में गडबडी की स्थिति पैदा हो गई। १९७३ में राजभवन के सामने हुए दंगो के कारण भारत सरकार से सिक्किम को संरक्षण प्रदान करने का औपचारिक अनुरोध किया गया। चोग्याल राजवंश सिक्किम में अत्यधिक अलोकप्रिय साबित हो रहा था। सिक्किम पूर्ण रूप से बाहरी दुनिया के लिये बंद था और बाह्य विश्व को सिक्किम के बारे मैं बहुत कम जानकारी थी। यद्यपि अमरीकन आरोहक गंगटोक के कुछ चित्र तथा अन्य कानूनी प्रलेख की तस्करी करने में सफल हुआ। इस प्रकार भारत की कार्यवाही विश्व के दृष्टि में आई। यद्यपि इतिहास लिखा जा चुका था और वास्तविक स्थिति विश्व के तब पता चला जब काजी (प्रधान मंत्री) नें १९७५ में भारतीय संसद को यह अनुरोध किया कि सिक्किम को भारत का एक राज्य स्वीकार कर उसे भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए। अप्रैल १९७५ में भारतीय सेना सिक्किम में प्रविष्ट हुई और राजमहल के पहरेदारों को निःशस्त्र करने के पश्चात गंगटोक को अपने कब्जे में ले लिया। दो दिनों के भीतर सम्पूर्ण सिक्किम राज्य भारत सरकार के नियंत्रण में था। सिक्किम को भारतीय गणराज्य में सम्मिलित्त करने का प्रश्न पर सिक्किम की ९७.५ प्रतिशत जनता ने समर्थन किया। कुछ ही सप्ताह के उपरांत १६ मई १९७५ में सिक्किम औपचारिक रूप से भारतीय गणराज्य का २२ वां प्रदेश बना और सिक्किम में राजशाही का अंत हुआ। सिक्किम सन 1642 में वजूद में आया, जब फुन्त्सोंग नाम्ग्याल को सिक्किम का पहला चोग्याल(राजा) घोषित किया गया. नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षुओं ने राजा घोषित किया था।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1845, "text": "फुन्त्सोंग नाम्ग्याल " } ], "category": "SHORT", "id": 780, "question": "सिक्किम के पहले चोग्याल राजा कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 781, "question": "नामग्याल वंश ने सिक्किम पर कितने सालों तक शासन किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 172, "text": "१९४७" } ], "category": "SHORT", "id": 782, "question": "भारत के साथ सिक्किम के विलय को कब खारिज कर दिया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1366, "text": "अप्रैल १९७५" } ], "category": "SHORT", "id": 783, "question": "भारतीय सेना ने सिक्किम में कब प्रवेश किया ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1236, "text": "१९७५" } ], "category": "SHORT", "id": 784, "question": "सिक्किम आधिकारिक तौर पर भारत का गणराज्य कब बना था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नियोजित तरीके से बसाये गये इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे, ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाये गये। गलियों का और सडकों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया,नगर को सुरक्षित रखने के लिये, इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया। पश्चिमी पहाडी पर नाहरगढ का किला बनवाया गया। पुराने दुर्ग जयगढ में हथियार बनाने का कारखाना बनवाया गया, जिसे देख कर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं, इस कारखाने और अपने शहर जयपुर के निर्माता सवाई जयसिंह की स्मॄतियों को संजोये विशालकाय जयबाण तोप आज भी सीना ताने इस नगर की सुरक्षा करती महसूस होती है। महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों में बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमे सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल,रानिवास,जंतर मंतर,गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं, शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये। प्रजा को अपना परिवार समझने वाले सवाई जयसिंह ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने आदि के साथ वर्षाजल का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवाया.सवाई जयसिंह ने लम्बे समय तक जयपुर में राज किया, इस शहर में हस्तकला,गीत संगीत,शिक्षा और रोजगार आदि को उन्होने खूब प्रोत्साहित किया। अलग २ समय में वास्तु के अनुरुप ईसरलाट,हवामहल,रामनिवास बागऔर विभिन्न कलात्मक मंदिर, शिक्षण संस्थानों आदि का निर्माण करवाया गया। बाजार- जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पल भर में इसका सौन्दर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है। लम्बी चौडी और ऊंची प्राचीर तीन ओर फ़ैली पर्वतमाला सीधे सपाट राजमार्ग गलियां चौराहे चौपड भव्य राजप्रसाद, मंदिर और हवेली, बाग बगीचे,जलाशय और गुलाबी आभा से सजा यह शहर इन्द्रपुरी का आभास देने लगता है,जलाशय तो अब नहीं रहे, किन्तु कल्पना की जा सकती है, कि अब से कुछ दशक पहले ही जयपुर परकोटे में ही सिमटा हुआ था, तब इसका भव्य एवं कलात्मक रूप हर किसी को मन्त्र-मुग्ध कर देता होगा। आज भी जयपुर यहां आने वाले सैलानियों को बरसों बरस सहेज कर रखने वाले रोमांचकारी अनुभव देता है। जयपुर की रंगत अब बदल रही है। हाल ही में जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। [कृपया उद्धरण जोड़ें] महानगर बनने की ओर अग्रसर जयपुर में स्वतन्त्रता के बाद कई महत्वाकांक्षी निर्माण हुए। एशिया की सबसे बडी आवासीय बस्ती मानसरोवर, राज्य का सबसे बड़ा सवाई मानसिंह चिकित्सालय, विधानसभा भवन, अमर जवान ज्योति, एम.आई.रोड, सेन्ट्रल पार्क और विश्व के प्रसिद्ध बैंक इसी कड़ी में शामिल हैं। पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कॄति के दर्शन होने लगे हैं। चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 30, "text": "जयपुर " } ], "category": "SHORT", "id": 785, "question": "दुनियां के 10 सबसे खुबसूरत शहरों में भारत के किस शहर को जगह मिली है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 620, "text": "नौ आवासीय खण्डों" } ], "category": "SHORT", "id": 786, "question": "महाराजा सवाई जय सिंह ने कितने आवासीय ब्लॉकों में जयपुर का निर्माण किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 310, "text": "नाहरगढ का किला " } ], "category": "SHORT", "id": 787, "question": "पश्चिमी पहाड़ी पर कौन सा किला बनाया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 788, "question": "दाल बाटी चूरमा किस शहर का प्रसिद्ध व्यंजन है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 481, "text": "सवाई जयसिंह" } ], "category": "SHORT", "id": 789, "question": "जयपुर शहर का निर्माण किसने किया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "निवेश को सही दिशा में प्रयोग करने के लिए ढांचागत सुविधा में सुधार को प्राथमिकता दी गई है। सूचना प्रौद्योगिकी में ढांचागत विकास करने के लिए भुवनेश्वर में एक निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क स्थापित किया गया है। राज्य में लघु और मध्यम उद्योगों को बढाने के लिए 2005 - 2006 में 2,255 लघु उद्योग स्थापित किए गये, इन योजनाओं में 123.23 करोड़ रुपये का निवेश किया गया और लगभग 10,308 व्यक्तियों को काम मिला। श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं दी गई हैं। उद्योगों में लगे बाल मजदूरों को मुक्त किया गया और औपचारिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना के अंतर्गत प्रवेश दिया गया। राज्य भर में 18 ज़िलों में 18 बालश्रमिक परियोजनाएं क्रियान्वित हैं। लगभग 33,843 बाल श्रमिकों को राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना द्वारा संचालित स्कूलों में प्रवेश दिलाया गया है और 64,885 बाल श्रमिकों को स्कूली शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में जोडने का प्रयास किया गया। श्रमिकों को दिया जाने वाला न्यूनतम वेतन बढाया गया। ओडिशा के औद्योगिक संसाधन उल्लेखनीय हैं। क्रोमाइट, मैंगनीज़ अयस्क और डोलोमाइट के उत्पादन में ओडिशा भारत के सभी राज्यों से आगे है। यह उच्च गुणवत्ता के लौह- अयस्क के उत्पादन में भी अग्रणी है। ढेंकानाल के भीतरी ज़िले में स्थित महत्त्वपूर्ण तालचर की खानों से प्राप्त कोयला राज्य के प्रगलन व उर्वरक उत्पादन के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराता है। स्टील, अलौह प्रगलन और उर्वरक उद्योग राज्य के भीतर भागों में केंद्रित हैं, जबकि अधिकांश ढलाईघर, रेल कार्यशालाएँ, काँच निर्माण और काग़ज़ की मिलें कटक के आसपास महानदी के डेल्टा के निकट स्थित है। जिसका उपयोग उपमहाद्वीप की सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी बहुउद्देशीय परियोजना, हीराकुड बाँध व माछकुड जलविद्युत परियोजना द्वारा किया जा रहा है। ये दोनों बहुत सी अन्य छोटी इकाइयों के साथ समूचे निचले बेसिन को बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली उपलब्ध कराते है। बड़े उद्योग मुख्यत: खनिज आधारित हैं, जिनमें राउरकेला स्थित इस्पात व उर्वरक संयंत्र, जोडो व रायगड़ा में लौह मैंगनीज़ संयत्र, राज गांगपुर व बेलपहाड़ में अपवर्तक उत्पादन कर रहे कारख़ाने, चौद्वार (नया नाम टांगी चौद्वार) में रेफ्रिजरेटर निर्माण संयंत्र और राजगांगपुर में एक सीमेंट कारख़ाना शामिल हैं। रायगड़ा व चौद्वार में चीनी व काग़ज़ की तथा ब्रजराजनगर में काग़ज़ की बड़ी मिलें हैं; अन्य उद्योगों में वस्त्र, कांच ऐलुमिनियम धातुपिंड व केबल और भारी मशीन उपकरण शामिल हैं। सूचना प्रौद्योगिक में राज्य में संतोष जनक प्रगति हो रही है। भुवनेश्वर की इन्फोसिटी में विकास केंद्र खोलने का प्रयास चल रहा है। ओडिशा सरकार और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस तथा नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर ने संयुक्त रूप एक पारदर्शी और कुशल प्रणाली शुरू की है। राज्य मुख्यालय को ज़िला मुख्यालयों, सब डिवीजन मुख्यालयों, ब्लाक मुख्यालयों से जोडने के लिए ई-गवर्नेंस पर आधारित क्षेत्र नेटवर्क से जोडा जा रहा है। उड़िया भाषा को कंप्यूटर में लाने के लिए ‘भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास’ कार्यक्रम के अंतर्गत उडिया भाषा का पैकेज तैयार किया जा रहा है। राज्य की कृषि नीति में आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी का प्रयोग करते हुए, दूध, मछली और मांस उत्पादन के विकास को विशेष रूप से विकसित करने का प्रयास करके कुल दुग्ध उत्पादन 36 लाख लीटर प्रतिदिन अर्थात 3 लाख लीटर से अधिक तक पहुँचा दिया गया है। डेयरी उत्पादन के विकास के लिए ओडिशा दुग्ध फेडरेशनमें राज्य के सभी 30 ज़िलों को सम्मिलित गया है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 790, "question": "एसटीएपी कार्यक्रम के तहत महिला डेयरी कामगारों की संख्या कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 664, "text": "18 बालश्रमिक परियोजनाएं" } ], "category": "SHORT", "id": 791, "question": "ओड़िसा राज्य में 18 जिलों में कितनी बाल श्रम परियोजनाएं चल रही है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 155, "text": "निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क" } ], "category": "SHORT", "id": 792, "question": "सूचना प्रौद्योगिकी में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भुवनेश्वर में किसकी स्थापना की गई है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 793, "question": "एसटीएपी कार्यक्रम के तहत फेडरेशन द्वारा कितने जिलों में महिला डेयरी परियोजना चलाई जा रही है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 580, "text": "राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना" } ], "category": "SHORT", "id": 794, "question": "ओड़िसा में औपचारिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए किस परियोजना को लाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 366, "text": "10,308" } ], "category": "SHORT", "id": 795, "question": "वर्ष 2005-2006 में भुवनेश्वर में बने लघु उद्योग में कितने व्यक्तियों को रोजगार मिला था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 272, "text": "2,255" } ], "category": "SHORT", "id": 796, "question": "ओड़िसा में छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 2005-2006 में कितने लघु उद्योग की स्थापना किए गए थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। १८८० में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती की आँख गिरी थी। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है। माँ नैना देवी की असीम कृपा हमेशा अपने भक्‍तों पर रहती है। हर वर्ष माँ नैना देवी का मेला नैनीताल में आयोजित किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपना और अपने पति का निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्यवं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ। ' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सति हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सति के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सति के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे, वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तब से निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। यह भी एक विशिष्ट उदाहरण है कि समस्त गढ़वाल-कुमाऊँ की एकमात्र इष्ट देवी 'नन्दा' ही है। इस पर्वतीय अंचल में नंदा की पूजा और अर्चना जिस प्रकार की जाती है वह अन्यत्र देखने में नहीं आती। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह आँख की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है। कुमाऊँ के चन्द राजाओं की इष्ट देवी भी नंदा ही थी, जिनकी वे निरन्तर यहाँ आकर पूजा करते रहते थे। एक जनश्रुति ऐसी भी कही जाती है कि चन्द्रवंशीय राजकुमारी नंदा थी जिसको एक देवी के रूप में पूजी जाने लगी। परन्तु इस कथा में कोई दम नहीं है, क्योंकि समस्त पर्वतीय अंचल में नंदा को ही इष्ट देवी के रूप में स्वीकारा गया है। गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं की भी नंदा देवी इष्ट रही है। गढ़वाल और कुमाऊँ की जनता के द्वारा प्रतिवर्ष नंदा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की विशेष पूजा होती है। नंदा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल-कुमाऊँ की जनता निरन्तर करती रही है। अतः नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रूप में इस स्थान का महत्व युगों-युगों से आंका गया है। यहाँ के लोग इसी रूप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं। नैनीताल का मुख्‍य आकर्षण यहाँ की झील है। स्‍कंद पुराण में इसे त्रिऋषि सरोवर कहा गया है। कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्‍त्‍य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्‍होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा। इस झील के बारे में कहा जाता है यहां डुबकी लगाने से उतना ही पुण्‍य मिलता है जितना मानसरोवर नदी से मिलता है। यह झील 64 शक्ति पीठों में से एक है। इस खूबसूरत झील में नौकायन का आनंद लेने के लिए लाखों देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं। झील के पानी में आसपास के पहाड़ों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। रात के समय जब चारों ओर बल्‍बों की रोशनी होती है तब तो इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल करते हैं। यहां एक पुल है जहां गांधीजी की प्रतिमा और पोस्‍ट ऑफिस है। यह विश्‍व का एकमात्र पुल है जहां पोस्‍ट ऑफिस है। इसी पुल पर बस स्‍टेशन, टैक्‍सी स्‍टैंड और रेलवे रिज़र्वेशन काउंटर भी है। झील के दोनों किनारों पर बहुत सी दुकानें और खरीदारी केंद्र हैं जहां बहुत भीड़भाड़ रहती है। नदी के उत्‍तरी छोर पर नैना देवी मंदिर है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 3680, "text": "64 " } ], "category": "SHORT", "id": 797, "question": "भारत में कितने शक्तिपीठ हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 622, "text": "दक्ष प्रजापति" } ], "category": "SHORT", "id": 798, "question": "देवी सती के पिता का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 799, "question": "नैनीताल में ताल के ऊपरी हिस्से को क्या कहते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 135, "text": "सती" } ], "category": "SHORT", "id": 800, "question": "नैना देवी मंदिर में किस देवी की पुजा की जाती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 801, "question": "नैनीताल में ताल के निचले हिस्से को क्या कहते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "नैनी झील" } ], "category": "SHORT", "id": 802, "question": "नैना देवी मंदिर कहां स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 803, "question": "नैनीताल को स्कंद पुराण में क्या नाम दिया गया है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "परमाणु उर्जा विभाग के अंतर्गत इन्कोस्पार कार्यक्रम से 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन किया गया, जो कि प्रारम्भ में अंतरिक्ष मिशन के अंतर्गत कार्यरत था और परिणामस्वरूप जून, 1972 में, अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की गई। 2003 के दशक में डॉ॰ साराभाई ने टेलीविजन के सीधे प्रसारण के जैसे बहुल अनुप्रयोगों के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले कृत्रिम उपग्रहों की सम्भव्यता के सन्दर्भ में नासा के साथ प्रारंभिक अध्ययन में हिस्सा लिया और अध्ययन से यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि, प्रसारण के लिए यही सबसे सस्ता और सरल साधन है। शुरुआत से ही, उपग्रहों को भारत में लाने के फायदों को ध्यान में रखकर, साराभाई और इसरो ने मिलकर एक स्वतंत्र प्रक्षेपण वाहन का निर्माण किया, जो कि कृत्रिम उपग्रहों को कक्ष में स्थापित करने, एवं भविष्य में वृहत प्रक्षेपण वाहनों में निर्माण के लिए आवश्यक अभ्यास उपलब्ध कराने में सक्षम था। रोहिणी श्रेणी के साथ ठोस मोटर बनाने में भारत की क्षमता को परखते हुए, अन्य देशो ने भी समांतर कार्यक्रमों के लिए ठोस रॉकेट का उपयोग बेहतर समझा और इसरो ने कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (एस.एल.वी.) की आधारभूत संरचना एवं तकनीक का निर्माण प्रारम्भ कर दिया। अमेरिका के स्काउट रॉकेट से प्रभावित होकर, वाहन को चतुर्स्तरीय ठोस वाहन का रूप दिया गया। इस दौरान, भारत ने भविष्य में संचार की आवश्यकता एवं दूरसंचार का पूर्वानुमान लगते हुए, उपग्रह के लिए तकनीक का विकास प्रारम्भ कर दिया। भारत की अंतरिक्ष में प्रथम यात्रा 1975 में रूस के सहयोग से इसके कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से शुरू हुयी। 1979 तक, नव-स्थापित द्वितीय प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से एस.एल.वी. प्रक्षेपण के लिए तैयार हो चुका था। द्वितीय स्तरीय असफलता की वजह से इसका 1979 में प्रथम प्रक्षेपण सफल नहीं हो पाया था। 1980 तक इस समस्या का निवारण कर लिया गया। भारत का देश में प्रथम निर्मित कृत्रिम उपग्रह रोहिणी-प्रथम प्रक्षेपित किया गया। सोवियत संघ के साथ भारत के बूस्टर तकनीक के क्षेत्र में सहयोग का अमरीका द्वारा परमाणु अप्रसार नीति की आड़ में काफी प्रतिरोध किया गया। 1992 में भारतीय संस्था इसरो और सोवियत संस्था ग्लावकास्मोस पर प्रतिबंध की धमकी दी गयी। इन धमकियों की वजह से सोवियत संघ ने इस सहयोग से अपना हाथ पीछे खींच लिया।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 804, "question": "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने पहली भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान का परिक्षण किस विमान में किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1453, "text": "एस.एल.वी. " } ], "category": "SHORT", "id": 805, "question": "भारत का पहला स्वदेशी निर्मित उपग्रह का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 806, "question": "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया कब किया ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 54, "text": "1969 " } ], "category": "SHORT", "id": 807, "question": "इसरो का गठन किस वर्ष हुआ था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 182, "text": "जून, 1972" } ], "category": "SHORT", "id": 808, "question": "भारतीय अंतरिक्ष विभाग की स्थापना कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1346, "text": "आर्यभट्ट" } ], "category": "SHORT", "id": 809, "question": "भारत के पहले कृतिम उपग्रह का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1301, "text": "1975 " } ], "category": "SHORT", "id": 810, "question": "भारत की पहली अंतरिक्ष यात्रा किस वर्ष शुरू हुई थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "परमेश्वरवर्मन् अपनी प्रारभिक असफलताओं से हतोत्साह नहीं हुआ। विपक्षियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसने एक सेना चालुक्य साम्राज्य में भेजी जिसने विक्रमादित्य के पुत्र विनयादित्य और पौत्र विजयादित्य का पराजित किया। उसने स्वयं पेरुवलनल्लूर के युद्ध में आक्रमणकारियों को पराजित किया और उन्हें पल्लव साम्राज्य छोड़कर जान पर विवश किया। महाबलिपुरम् की कुछ कलाकृतियाँ उसी ने बनवाई थीं। वह शिव का उपासक था। उसने कांची के समीप कूरम् में एक शिवमंदिर का निर्माण कराया। परमेश्वरवर्मन् के पुत्र नरसिंह द्वितीय राजसिंह (695-722) का शांत और समृद्ध राज्यकाल कला और साहित्य की प्रगति की दृष्टि से उल्लेखनीय है। उसके मंदिर अपने आकार और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। कांची का कैलासनाथ मंदिर और मामल्लपुरम् का मंदिर इनके उदाहरण हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार प्रसिद्ध काव्यशास्त्रज्ञ और गद्यलेखक दंडिन् इसी के दरबार में था और यहीं भास के नाटकों का रंगमंच पर प्रदर्शनार्थ परिवर्तन किया गया था। इस काल की समृद्धि का कारण विदेशो से व्यापार था। संभवत: व्यापारिक हित के लिए ही उसने एक राजदूतमंडल चीन भेजा था। उसे विरुदों स विशेष प्रेम था। उसने 250 के लगभग उपाधियाँ ग्रहण की थीं जिनमें राजसिंह, शंकरभक्त और आगमप्रिय प्रमुख है। नरसिंहवर्मन् के पुत्र परमेश्वरवर्मन् द्वितीय (722-730) के राज्यकाल के अंतिम वर्षों में चालुक्य युवराज विक्रमादित्य ने गंगों की सहायता से कांची पर आक्रमण किया। परमेश्वरवर्मन् ने भेंट आदि देकर आक्रमणकारियों को लौटाया। प्रतिकार की भावना से प्रेरित होकर उसने गंग राज्य पर आक्रमण किया किंतु युद्ध में मारा गया। तिरुवडि का शिवमंदिर संभवत: उसी ने बनवाया था। परमेश्वरवर्मन् की मृत्यु पर उसके वंशजों के अभाव में राज्य के अधिकारियों ने विद्वान् ब्राह्मणों की घटिका के परामर्श से बारहवर्षीय नंदिवर्मन् द्वितीय पल्लवमल्ल (730-800) की सिंहासन पर बैठाया यह सिंहविष्णु के भाई भीमवर्मन् के वंशज हिरण्यवर्मन् का पुत्र था। पांड्य नरेश मारवर्मन राजसिंह ने पल्लवों के विरुद्ध कई राज्यों का एक गुट संगठित किया और चित्रमाय नाम के व्यक्ति की सहायता के लिए, जो अपने को परमेश्वरवर्मन् का पुत्र कहता था, नंदिवर्मन् पर आक्रमण किया और उसे नंदिग्राम में घेर लिया। किंतु पल्लवों के सेनापति उदयचंद्र ने नंदिग्राम का घेरा तोड़ा, चित्रमाय को मारकर और दूसरे विरोधियों को पराजित किया। किंतु पल्लवों के सेनापति उदयचंद्र ने नंदिग्राम का घेरा तोड़ा, चित्रमाय को मारकर और दूसरे विरोधियों को पराजित किया। किंतु नंदिवर्मन् की सबसे भयंकर विपत्ति चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वित्तीय का आक्रमण था। गंगों की सहायता से उसने 740 ई. के लगभग पल्लवों को पराजित कर कांची पर अधिकार कर लिया। किंतु नगर का विध्वंस न करके उसने उलटे जनता को दान और उपहार दिए और इस प्रकार पल्लवों के अधिकार को कुंठित किए बिना उनसे बदला लिया। उसके शासन के अंतिम वर्षों में उसके पुत्र कीर्तिवर्मन् ने फिर आक्रमण किया था। राष्ट्रकूट साम्राज्य के संस्थापक दंतिदुर्ग ने भी कांची पर आक्रमण किया था किंतु अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर उसने नंदिवर्मन् से संधिकर उसके साथ अपनी कन्या रेवा का विवाह कर दिया था। नंदिवर्मन् ने गंग नरेश श्रीपुरुष को पराजित किया और गंग राज्य की भूमि अपने बाण सामंत जयनदिवर्मन् को दी थी। नदिवर्मन् पांड्य नरेश वरगुण महाराज प्रथम के हाथों पराजित हुआ। उसने पांड्यों के विरुद्ध कोंगु, केरल और तगडूर के शासकों का संघ बनाया किंतु पांड्य नरेश अपने विपक्षियों को पराजित करके पल्लव राज्य में पेन्नर नदी के तट पर अरशूर पहुँचा था। पुराने मंदिरों के उद्धार के साथ ही नंदिवर्मन् ने मुक्तेश्वर, वैकुंठ पेरुमाल और दूसरे मंदिरों का निर्माण कराया। वह वैष्णव था। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमर्ग आल्वर उसी के राज्यकाल में हुए थे। नंदिवर्मन् स्वयं विद्वान् था। दंतिवर्मन् (796-847) नंदिवर्मन और रेवा का पुत्र था। राष्ट्रकूटों से संबंधित होने पर भी उसे राष्ट्रकूट सिंहासन के लिए उत्तराधिकार के संघर्ष में भाग लेने के कारण ध्रुव और गोविंद तृतीय के हाथों पराजित होना पड़ा था। पांड्य नरेश वरगुण प्रथम ने कावेरी प्रदेश की विजय कर ली थी किंतु बाण फिर भी पल्लवों के सामंत बने रहे। दंतिवर्मन् के पुत्र नंदिवर्मन् तृतीय (847-872) ने पल्लवों की लुप्तप्राय प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित सा कर दिया। उसका विवाह राष्ट्रकूट नरेश अमोधवर्ष प्रथम की पुत्री शंखा से हुआ था। उसने पांड्यों के विरुद्ध कई शक्तियों का एक संघ बनाया था। पांड्य नरेश श्रीमार श्रीवल्लभ को तेल्लारु के युद्ध में बुरी तरह पराजित कर वहवैगै के तट तक पहुँच गया था। अपनी विजय के उपलक्ष्य में उसने तेल्लारेंरिद की उपाधि ग्रहण की थी। किंतु बाद में श्रीमार ने नंदिवर्मन् और उसके सहायकों को कुंभकोनम् के समीप पराजित किया। स्याम में तकुआ-पा स्थान से प्राप्त एक तमिल अभिलेख में उसकी उपाधि के आधार पर अवनिनारणन् नाम के जलाशय और विष्णु मंदिर का उल्लेख है। इससे पल्लवों की नौशक्ति और विदेशों के साथ उनके संबध का आभास होता है। उसे अन्य विरुद थे वरतुंगन् और उग्रकोपन्। वह शैव था। उसने तमिल साहित्यकार पेरुदेवनार को प्रश्रय दिया था। नंदिवर्मन् की राष्ट्रकूट रानी से उत्पन्न नृपतुंगवर्मन् (872-913) ने सिंहासन पर बैठने के कुछ समय बाद ही कुंभकोनम् के समीप श्रीपुरंवियम् के युद्ध में पांड्य नरेश वरगुण द्वितीय को पराजित कर अपन पिता की पराजय का प्रतिकार किया। उसने पल्लव \"साम्राज्य की सीमाओं को अक्षुण्ण रखा। उसने अभिलेखों से ज्ञात होता है कि शिक्षा और शासनप्रबंध के क्षेत्र में पल्लवों ने ही चोलों के लिए भूमिका बनाई थी। नृपतुंगवर्मन् का पुत्र अपराजित इस वंश का अंतिम सम्राट् था। पल्लवों के सामंत आदित्य प्रथम ने अपनी शक्ति बढ़ाई और 893 के लगभग अपराजित को पराजित कर पल्लव साम्राज्य को चोल राज्य में मिला लिया। 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{ "paragraphs": [ { "context": "पर्यटन उद्योग को हिमाचल प्रदेश में उच्‍च प्राथमिकता दी गई है और हिमाचल सरकार ने इसके विकास के लिए समुचित ढांचा विकसित किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र हवाई अड्डे यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं शामिल है। राज्‍य पर्यटन विकास निगम राज्‍य की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। राज्‍य में तीर्थो और नृवैज्ञानिक महत्‍व के स्‍थलों का समृद्ध भंडार है। राज्‍य को व्‍यास, पाराशर, वसिष्‍ठ, मार्कण्‍डेय और लोमश आदि ऋषियों के निवास स्‍थल होने का गौरव प्राप्‍त है। गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक और मानव निर्मित झीलें, उन्‍मुक्‍त विचरते चरवाहे पर्यटकों के लिए असीम सुख और आनंद का स्रोत हैं। चंबा घाटीचंबा घाटी (915 मीटर) की ऊँचाई पर रावी नदी के दाएं किनारे पर है। पुराने समय में राजशाही का राज्‍य होने के नाते यह लगभग एक शताब्‍दी पुराना राज्‍य है और 6वीं शताब्‍दी से इसका इतिहास मिलता है। यह अपनी भव्‍य वास्‍तुकला और अनेक रोमांचक यात्राओं के लिए एक आधार के तौर पर विख्‍यात है। डलहौज़ीपश्चिमी हिमाचल प्रदेश में डलहौज़ी नामक यह पर्वतीय स्‍थान पुरानी दुनिया की चीजों से भरा पड़ा है और यहां राजशाही युग की भाव्‍यता बिखरी पड़ी है। यह लगभग 14 वर्ग किलो मीटर फैला है और यहां काठ लोग, पात्रे, तेहरा, बकरोटा और बलूम नामक 5 पहाडियां है। इसे 19वीं शताब्‍दी में ब्रिटिश गवर्नर जनरल, लॉड डलहौज़ी के नाम पर बनाया गया था। इस कस्‍बे की ऊँचाई लगभग 525 मीटर से 2378 मीटर तक है और इसके आस पास विविध प्रकार की वनस्‍पति-पाइन, देवदार, ओक और फूलों से भरे हुए रोडो डेंड्रॉन पाए जाते हैं डलहौज़ी में मनमोहक उप निवेश यु‍गीन वास्‍तुकला है जिसमें कुछ सुंदर गिरजाघर शामिल है। यह मैदानों के मनोरम दृश्‍यों को प्रस्‍तुत करने के साथ एक लंबी रजत रेखा के समान दिखाई देने वाले रावी नदी के साथ एक अद्भुत दृश्‍य प्रदर्शित करता है जो घूम कर डलहौज़ी के नीचे जाती है। बर्फ से ढका हुआ धोलाधार पर्वत भी इस कस्‍बे से साफ दिखाई देता है। धर्मशालाधर्मशाला की ऊँचाई 1,250 मीटर (4,400 फीट) और 2,000 मीटर (6,460 फीट) के बीच है। कुफरीअनंत दूरी तक चलता आकाश, बर्फ से ढकी चोटियां, गहरी घाटियां और मीठे पानी के झरने, कुफरी में यह सब है। मनालीकुल्‍लू से उत्तर दिशा में केवल 40 किलो मीटर की दूरी पर लेह की ओर जाने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर घाटी के सिरे के पास मनाली स्थित है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 818, "question": "दलाई लामा ने अपना अस्थायी मुख्यालय कब स्थापित किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 819, "question": "दलाई लामा का मुख्यालय कहाँ पर है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1946, "text": " 40 किलो मीटर" } ], "category": "SHORT", "id": 820, "question": "कुल्लू से मनाली कितने किलोमीटर दूर है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1204, "text": "लॉड डलहौज़ी" } ], "category": "SHORT", "id": 821, "question": "डलहौजी स्टेशन किस ब्रिटिश गवर्नर-जनरल के नाम पर रखा गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 919, "text": "पश्चिमी" } ], "category": "SHORT", "id": 822, "question": "डलहौजी स्टेशन हिमाचल प्रदेश में किस दिशा में स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 16, "text": " हिमाचल प्रदेश" } ], "category": "SHORT", "id": 823, "question": "भारत का कौन सा राज्य व्यास, पाराशर, वशिष्ठ, जैसे ऋषियों का निवास स्थान है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 649, "text": "915 मीटर" } ], "category": "SHORT", "id": 824, "question": "चंबा घाटी कितने मीटर की ऊंचाई पर स्थित है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पल्लवों का प्रारंभिक इतिहास क्रमबद्ध रूप से नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। सुविधा के लिए भाषा के आधार पर उन्हें प्राकृत ताम्रपट्टों से ज्ञात और संस्कृत ताम्रपट्टों से ज्ञात पल्लवों में विभाजित किया जाता है। इनमें से सर्वप्रथम नाम सिंहवर्मन् का है जिसका गुंटुर अभिलेख तीसरी शताब्दी के अंतिम चरण का है। शिवस्कंदवर्मन्, जिसके अभिलेख मयिडवोलु और हीरहडगल्लि से प्राप्त हुए हैं, चौथी शताब्दी के आरंभ में हुआ था और प्रारंभिक पल्लवों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस समय पल्लवों का अधिकार कृष्णा नदी से दक्षिणी पेन्नेर और बेल्लारी तक फैला हुआ था। शिवस्कंदवर्मन ने अश्वमेघ यज्ञ किया था। उसके बाद स्कंदवर्मन् का राज्य हुआ। स्कंदवर्मन् के गुंटुर से प्राप्त ताम्रपट्ट में, जो ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है युवराज बुद्धवर्मन् और उसके पुत्र बुद्ध्यंकुर का उल्लेख है। किन्तु इसके बाद का इतिहास तिमिराच्छन्न है। समुद्रगुप्त के द्वारा पराजित कांची के नरेश का नाम विष्णुगोप था। इसके बाद संस्कृत ताम्रपट्ट के पल्लवों का राज्यकाल आता है। इन अभिलेखों से हमें कई पल्लव राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं किंतु उन सभी का परस्पर संबंध और क्रम निश्चित करना कठिन है। कांची के राजवंश की छिन्न-भिन्न शक्ति का लाभ उठाकर पल्लव साम्राज्य के उत्तरी भाग में नेल्लोर-गुंटुर क्षेत्र में एक सामंत पल्लव वंश ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। ताम्रपट्टों से ज्ञात इस वंश के शासकों को 375 से 575 ई. के बीच रखा जा सकता है। कांची के मुख्य घराने के लिए सर्वप्रथम हम चेंडलूर ताम्रपट्ट से ज्ञात स्कंदवर्मन्, उसके पुत्र कुमारविष्णु प्रथम, पौत्र बुद्धवर्मन और प्रपौत्र कुमारविष्णु द्वितीय को रख सकते हैं। स्कंदवर्मन् संभवत: ब्रिटिश म्यूज़ियम के ताम्रपट्ट का स्कंदवर्मन् हो। इसके बाद उदयेदिरम् ताम्रपट्ट से स्कंदवर्मन् (द्वितीय), उसके पुत्र सिंहवर्मन्, पौत्र स्कंदवर्मन् तृतीय और प्रपौत्र नंदिवर्मन् (प्रथम) का ज्ञान होता है। पहले उल्लिखित पल्लवों के साथ इनका संबंध ज्ञात नहीं है। किंतु सिंहवर्मन् का राज्यकाल 436 से 458 ई. तक अवश्य रहा। सिंहवर्मन् और उसके पुत्र स्कंदवर्मन् (तृतीय) का उल्लेख उनके सामंत गंग लोगों के अभिलेखों में भी आता है। छठी शताब्दी के प्रारंभ में शांतिवर्मन् का नाम ज्ञात होता है। संभवत: यही चंडदंड के नाम से भी प्रसिद्ध था और कदंब रविवर्मन् के द्वारा मारा गया था। सिंहवर्मन् द्वितीय से पल्लवों का राज्यक्रम सुनिश्चित हो जाता है। पल्लव राजवंश के गौरव का श्रीगणेश उसके पुत्र सिंहविष्णु (575-600 ई.) के द्वारा हुआ। सिंहविष्णु ने कलभ्रों द्वारा तमिल प्रदेश में उत्पन्न राजनीतिक अव्यवस्था का अंत किया और चोल मंडलम् पर पल्लवों का अधिकार स्थापित किया। यह विष्णु का उपासक था। अवनिसिंह उसका विरोधी था। उसने संस्कृत के प्रसिद्ध कवि भारवि को प्रश्रय दिया था। महाबलिपुरम की वराह गुहा में उसकी और उसकी दो रानियों की मूर्तियाँ प्रस्तर पर उभारी गई है। सिंहविष्णु के पुत्र महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.) की गणना इस राजवंश के सर्वोच्च सम्राटों में होती है। इस महान शासक की बहुमुखी प्रतिभा युद्ध और शांति दोनों ही क्षेत्रों में विकसित हुई। इसी समय पल्लवों और चालुक्यों के संघर्ष का प्रारंभ हुआ। चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय की सेना विजय करती हुई पल्लव राजधानी के बिल्कुल समीप पहुँच गई थी। पुल्ललूर के युद्ध में महेंद्रवर्मन् ने चालुक्यों को पराजित किया और साम्राज्य के कुछ उत्तरी भागों का छोड़कर शेष सभी की पुनर्विजय कर ली। महेंद्रवर्मन् ने कई विरुद धारण किए जो उसके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के अनेक गुणों की ओर संकेत करते हैं, यथा मत्तविलास, विचित्रचित्त, चेत्थकारि और चित्रकारपुलि। चट्टानों को काटकर बनवाए गए इसके मदिरों में से कुछ त्रिचिनापली, महेंद्रवाडि और डलवानूर में उदाहरण रूप में अवशिष्ट हैं। उसने महेंद्रवाडि में महेंद्र-तटाक नाम के जलाशय का निर्माण किया। उसे चित्रकला में भी रुचि थी एवं वह कुशल संगीतज्ञ के रूप में भी प्रसिद्ध था। उसने मत्तविलास प्रहसन की रचना की थी। प्रारंभ में वह जैन मतावलंबी था किंतु अप्पर के प्रभाव से उसने शैव धर्म स्वीकार कर लिया। फिर भी उसने विष्णु की पूजा को प्रोत्साहन दिया किंतु जैनियों के प्रति वह असहिष्णु बना रहा। महेंद्रवर्मन् का पुत्र नरसिंहवर्मन् प्रथम (630-668) इस राजवंश का सर्वश्रेष्ठ सम्राट् था। इसके समय में पल्लव दक्षिणी भारत की प्रमुख शक्ति बन गए। उसने चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय के तीन आक्रमणों का विफल कर दिया। इन विजयों से उत्साहित हाकर उसने अपनी सेना चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण के लिए भेजी जिसने 642 ई. में चालुक्यों की राजधानी वातापी पर अधिकार कर 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{ "paragraphs": [ { "context": "पश्चिमी हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुँचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई प्रयागराज में गंगा नदी में मिल जाती है। यमुना नदी की औसत गहराई 10 फीट (3 मीटर) और अधिकतम गहराई 35 फीट (11 मीटर) तक है। दिल्ली के निकट नदी में, यह अधिकतम गहराई 68 फीट (50 मीटर) है। आगरा में, यह गहराई 3 फुट (1 मीटर) तक हैं। मैदान में जहाँ इस समय यमुना का प्रवाह है, वहाँ वह सदा से प्रवाहित नहीं होती रही है। पौराणिक अनुश्रुतियों और ऐतिहासिक उल्लेखों से यह ज्ञात होता है, यद्यपि यमुना पिछले हजारों वर्षों से विधमान है, तथापि इसका प्रवाह समय-समय पर परिवर्तित होता रहा है। अपने सुदीर्घ जीवन काल में यमुना ने जितने स्थान बदले हैं, उनमें से बहुत कम की ही जानकारी प्राप्त हो सकी है। प्रागऐतिहासिक काल में यमुना मधुबन के समीप बहती थी, जहाँ उसके तट पर शत्रुध्न जी ने सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी। वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका विवरण प्राप्त होता है। 1 कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट था। सत्रहवीं शताबदी में भारत आने वाले यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने कटरा के समीप की भूमि को देख कर यह अनुमान लगा लिया था कि वहाँ किसी समय यमुना की धारा थी। इस संदर्भ में ग्राउज़ का मत है कि ऐतिहासिक काल में कटरा के समीप यमुना के प्रवाहित होने की संभावना कम है, किन्तु अत्यन्त प्राचीन काल में वहाँ यमुना अवश्य थी। 2 इससे भी यह सिद्ध होता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा के समीप ही था। कनिधंम का अनुमान है, यूनानी लेखकों के समय में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा कटरा केशव देव की पूर्वी दीवार के नीचे बहती होगी। 3 जब मथुरा में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार हो गया और यहाँ यमुना के दोनों ओर अनेक संधारम बनाये गये, तब यमुना की मुख्य धारा कटरा से हटकर प्रायः उसी स्थान पर बहती होगी, जहाँ वह अब है, किन्तु उसकी कोई शाखा अथवा सहायक नहीं कटरा के निकट भी विधमान थी। ऐसा अनुमान है, यमुना की वह शाखा बौद्ध काल के बहुत बाद तक संभवतः सोलहवीं शताब्दी तक केशव देव मन्दिर के नीचे बहती रही थी। पहले दो बरसाती नदियाँ 'सरस्वती' और 'कृष्ण गंगा' मथुरा के पश्चिमी भाग में प्रवाहित होकर यमुना में गिरती थीं, जिनकी स्मृति में यमुना के सरस्वती संगम और कृष्ण गंगा नामक घाट हैं। संभव है यमुना की उन सहायक नादियों में से ही कोई कटरा के पास बहती रही हो। पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकि वर्तमान में वह गोवर्धन से लगभग 4 मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकटवर्ती दो छोटे ग्राम 'जमुनावती' और परसौली है। वहाँ किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने उल्लेख मिलते हैं। वल्लभ सम्प्रदाय के वार्ता साहित्य से ज्ञात होता है कि सारस्वत कल्प में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगाँव, वरसाना, संकेत के निकट बहती हुई गोवर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा पीरघाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दानों धाराएँ एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी। परासौली में यमुना को धारा प्रवाहित होने का प्रमाण स. 1717 तक मिलता है। यद्यपि इस पर विश्वास होना कठिन है। श्री गंगाप्रसाद कमठान ने ब्रजभाषा के एक मुसलमान भक्त कवि कारबेग उपमान कारे का वृतांत प्रकाशित किया है। काबेग के कथनानुसार वह जमुना के तटवर्ती परासौली गाँव का निवासी था और उसने अपनी रचना सं 1717 में सृजित की थी। वर्तमान समय में सहारनपुर जिले के फैजाबाद गाँव के निकट मैदान में आने पर यह आगे 65 मील तक बढ़ती हुई हरियाणा के अंबाला और करनाल जिलों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जिलों से अलग करती है। इस भू-भाग में इसमें मस्कर्रा, कठ, हिण्डन और सबी नामक नदियाँ मिलती हैं, जिनके कारण इसका आकार बहुत बढ़ जाता है। मैदान में आते ही इससे पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी नहर निकाली जाती हैं। ये दोनों नहरें यमुना से पानी लेकर इस भू-भाग की सैकड़ों मील धरती को हरा-भरा और उपज सम्पन्न बना देती हैं। इस भू-भाग में यमुना की धारा के दोनों ओर पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई छोटे बड़े नगरों की सीमाएँ हैं, किन्तु इसके ठीक तट पर बसा हुआ सबसे प्राचीन और पहला नगर दिल्ली है, जो लम्बे समय से भारत की राजधानी है। दिल्ली के लाखों की आबादी की आवश्यकता की पूर्ति करते हुए और वहाँ की ढेरों गंदगी को बहाती हुई यह ओखला नामक स्थान पर पहुँचती है। यहाँ पर इस पर एक बड़ा बांध बांधा गया है जिससे नदी की धारा पूरी तरह नियंत्रित कर ली गयी है। इसी बांध से आगरा नहर 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"text": "95 मील" } ], "category": "SHORT", "id": 833, "question": "यमुना नदी पश्चिमी हिमालय से उत्तर सहारनपुर के मैदानी क्षेत्र तक पहुंचने के लिए कितनी लंबी यात्रा करती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 834, "question": "यमुना नदी और गंगा का संगम का कहाँ होता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 794, "text": "शत्रुध्न जी" } ], "category": "SHORT", "id": 835, "question": "मथुरा शहर किसके द्वारा स्थापित किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 221, "text": "10 फीट " } ], "category": "SHORT", "id": 836, "question": "यमुना नदी की औसत गहराई कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 837, "question": "करबेग उपमन कारे किस भाषा के कवि थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 838, "question": "शेरगढ़ से पूर्व की ओर कौन सी नदी बहती है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पहला, मध्य प्रदेश के बालोद के पास नर्मदा के किनारे मौजूद अहल्येश्वर मंदिर; दूसरा बिहार के दरभंगा ज़िले में स्थित मंदिर। अहिल्या अस्थान नामक मंदिर और अहल्या-ग्राम भी इसी ज़िले में स्थित हैं जो अहल्या को समर्पित हैं। मत्स्य पुराण और कूर्म पुराण में, कामदेव के सामान रूपवान बनने और नारियों को आकर्षित करने की कामना रखने वाले पुरुषों को अहल्या तीर्थ में जाकर अहल्या की उपासना करने का मार्ग सुझाया गया है। यह उपासना कामदेव के माह, चैत्र, में करने को कहा गया है और ग्रंथों के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति अप्सराओं का सुख भोगता है। भट्टाचार्य के अनुसार, अहल्या नारी के उस शास्वत रूप का प्रतिनिधित्व करती है जो आपने अन्दर की अभीप्सा को भी अनसुना नहीं कर पाती और न ही पवित्रता की उच्च भावनाओं को ही जो उसकी शारीरिक कामनाओं की पूर्ति न कर पाने वाले उसके साधु पति में निहित हैं और उसकी निजी इच्छाओं के साथ विरोधाभास रखती हैं। लेखक अहल्या को एक स्वतन्त्र नारी के रूप में देखता है जो अपना ख़ुद का निर्णय लेती है, उत्सुकता के वशीभूत होकर जोख़िम उठाती है, और अंत में अपने कृत्य का दंड भी उस शाप के रूप में स्वीकार करती है जो पुरुषप्रधान समाज के प्रतिनिधि उसके पति द्वारा लगाया जाता है। शाप की अविचलित होकर स्वीकृत ही वह कार्य है जो रामायण को इस पात्र की प्रशंसा करने को विवश कर देता है और उसे प्रशसनीय एवम् अनुकरणीय चरित्र के रूप में स्थापित कर देता है। भट्टाचार्य की तरह ही, सबॉर्डिनेशन ऑफ़ वुमन: अ न्यू पर्सपेक्टिव पुस्तक की लेखिका मीना केलकर यह महसूस करती हैं कि अहल्या को इसलिए श्रद्धेय बना दिया गया क्योंकि वह पुरुष प्रधान समाज के लिंगभेद के आदर्शों को स्वीकार कर लेती है; वह शाप को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लेती है और मानती है कि उसे दण्डित किया जाना चाहिए था। इसके अलावा केलकर यह भी जोड़ती हैं कि ग्रन्थों में अहल्या को महान घोषित किये जाने का एक अन्य कारण उसको मिले शाप द्वारा स्त्रियों को चेतावनी देना और उन्हें निरुद्ध किये जाने के लिए भी हो सकता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 839, "question": "अल्कमिनी के पति का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 90, "text": "दरभंगा" } ], "category": "SHORT", "id": 840, "question": "दरभंगा मंदिर जो की देवी अहिल्या को समर्पित है, कहाँ पर स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1328, "text": "मीना केलकर" } ], "category": "SHORT", "id": 841, "question": "\"सबऑर्डिनेशन ऑफ वूमेन\" पुस्तक की लेखिका कौन है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 842, "question": "राजा ज़ीउस किस देवता के समान थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 21, "text": "बालोद " } ], "category": "SHORT", "id": 843, "question": "पहला अहिल्येश्वर मंदिर कहाँ पर स्थित है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पाल शासकों द्वारा बनवाये गये प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय का अवशेष, वैद्यनाथधाम मंदिर, सुलतानगंज, मुंगेर में बनवाया मीरकासिम का किला, मंदार पर्वत बौंसी बाँका एक प्रमुख धार्मिक स्थल जो तीन धर्मो का संगम स्थल है। विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन यही संपन्न हुआ था और यही पर्वत जिसका प्राचीन नाम मंद्राचल पर्वत( मंदार वर्तमान में) जो की मथनी के रूप में प्रयुक्त हुआ था। चंपारणसम्राट अशोक द्वारा लौरिया में स्थापित स्तंभ, लौरिया का नंदन गढ़, नरकटियागंज का चानकीगढ़, वाल्मीकिनगर जंगल, बापू द्वारा स्थापित भीतीहरवा आश्रम, तारकेश्वर नाथ तिवारी का बनवाया रामगढ़वा हाई स्कूल, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी एवं अन्य सेनानियों की कर्मभूमि तथा अरेराज में भगवान शिव का मन्दिर, केसरिया में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध स्तूप जो पूर्वी चंपारण में एक आदर्श पर्यटन स्थल है .सीतामढी तथा आसपासपुनौरा में देवी सीता की जन्मस्थली, जानकी मंदिर एवं जानकी कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथपाकड़, यहाँ से सटे नेपाल के जनकपुर जाकर भगवान राम का स्वयंवर स्थल भी देखा जा सकता है। सासारामअफगान शैली में बनाया गया अष्टकोणीय शेरशाह का मक़बरा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। देव - देव सूर्य मंदिरदेव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं। परंपरागत रूप से इसे हिंदू मिथकों में वर्णित, कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अतिरिक्त, यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 958, "text": "अफगान शैली " } ], "category": "SHORT", "id": 844, "question": "अष्टकोणीय शेरशाह का सासाराम मकबरा किस शैली में बनाया गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 36, "text": " विक्रमशिला विश्वविद्यालय" } ], "category": "SHORT", "id": 845, "question": "पाल शासकों द्वारा किस विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 296, "text": " मंद्राचल पर्वत" } ], "category": "SHORT", "id": 846, "question": "विष्णु पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय मथानी के रूप में किस पर्वत का प्रयोग किया जाता था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 847, "question": "छट का पर्व प्रमुख रूप से भारत के किस प्रांत में मनाया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 188, "text": "तीन धर्मो" } ], "category": "SHORT", "id": 848, "question": " मंदार पर्वत बंसी बांका को कितने धर्मों का संगम माना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 678, "text": "केसरिया" } ], "category": "SHORT", "id": 849, "question": "दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप कहाँ स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 850, "question": "लोलार्क का सूर्य मंदिर कहाँ स्थित है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पुनर्विवाहित विधवाओं के पुत्रों को १८६५ के एक्ट द्वारा वैध घोषित करवाया। अपने पुत्र का विवाह विधवा से ही किया। संस्कृत कालेज में अब तक केवल ब्राह्मण और वैद्य ही विद्योपार्जन कर सकते थे, अपने प्रयत्नों से उन्होंने समस्त हिन्दुओं के लिए विद्याध्ययन के द्वार खुलवाए। साहित्य के क्षेत्र में बँगला गद्य के प्रथम प्रवर्त्तकों में थे। उन्होंने ५२ पुस्तकों की रचना की, जिनमें १७ संस्कृत में थी, पाँच अँग्रेजी भाषा में, शेष बँगला में। जिन पुस्तकों से उन्होंने विशेष साहित्यकीर्ति अर्जित की वे हैं, 'वैतालपंचविंशति', 'शकुंतला' तथा 'सीतावनवास'। इस प्रकार मेधावी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, मानवीय, अध्यवसायी, दृढ़प्रतिज्ञ, दानवीर, विद्यासागर, त्यागमूर्ति ईश्वरचंद्र ने अपने व्यक्तित्व और कार्यक्षमता से शिक्षा, साहित्य तथा समाज के क्षेत्रों में अमिट पदचिह्न छोड़े। वे अपना जीवन एक साधारण व्यक्ति के रूप में जीते थे लेकिन लेकिन दान पुण्य के अपने काम को एक राजा की तरह करते थे। वे घर में बुने हुए साधारण सूती वस्त्र धारण करते थे जो उनकी माता जी बुनती थीं। वे झाडियों के वन में एक विशाल वट वृक्ष के सामान थे। क्षुद्र व स्वार्थी व्यवहार से तंग आकर उन्होंने अपने परिवार के साथ संबंध विच्छेद कर दिया और अपने जीवन के अंतिम १८ से २० वर्ष बिहार (अब झारखण्ड) के जामताड़ा जिले के करमाटांड़ में सन्ताल आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके निवास का नाम 'नन्दन कानन' (नन्दन वन) था। उनके सम्मान में अब करमाटांड़ स्टेशन का नाम 'विद्यासागर रेलवे स्टेशन' कर दिया गया है। वे जुलाई १८९१ में दिवंगत हुए। उनकी मृत्यु के बाद रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा, “लोग आश्चर्य करते हैं कि ईश्वर ने चालीस लाख बंगालियों में कैसे एक मनुष्य को पैदा किया! ” उनकी मृत्यु के बाद, उनके निवास “नन्दन कानन” को उनके बेटे ने कोलकाता के मलिक परिवार बेच दिया। इससे पहले कि “नन्दन कानन” को ध्वस्त कर दिया जाता, बिहार के बंगाली संघ ने घर-घर से एक एक रूपया अनुदान एकत्रित कर 29 मार्च 1974 को उसे खरीद लिया। बालिका विद्यालय पुनः प्रारम्भ किया गया, जिसका नामकरण विद्यासागर के नाम पर किया गया है। निःशुल्क होम्योपैथिक क्लिनिक स्थानीय जनता की सेवा कर रहा है। विद्यासागर के निवास स्थान के मूल रूप को आज भी व्यवस्थित रखा गया है। सबसे मूल्यवान सम्पत्ति लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी ‘पालकी’ है जिसे स्वयं विद्यासागर प्रयोग करते थे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 363, "text": " १७ " } ], "category": "SHORT", "id": 851, "question": "ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा लिखी पुस्तकों में संस्कृत भाषा की कितनी पुस्तकें थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 852, "question": "राजा राममोहन राय ने कितनी विधवाओं का पुनर्विवाह करवाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 853, "question": "विधवा पुनर्विवाह के लिए अभियान किसने चलाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 333, "text": "५२" } ], "category": "SHORT", "id": 854, "question": "ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने कितनी पुस्तकें लिखी थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 35, "text": "१८६५ के एक्ट" } ], "category": "SHORT", "id": 855, "question": "पुनर्विवाहित विधवाओं के पुत्रों को किस अधिनियम द्वारा वैध घोषित किया गया था ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 1341, "text": "जुलाई १८९१" } ], "category": "SHORT", "id": 856, "question": "ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मृत्यु कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1228, "text": "नन्दन कानन" } ], "category": "SHORT", "id": 857, "question": "ईश्वर चंद्र विद्यासागर के निवास का क्या नाम है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित महापद्म के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किंतु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नहीं। पुराणों में उन सबका राज्यकाल 100 वर्षों तक बताया गया है - 88 वर्षों तक महापद्मनंद का और 12 वर्षों तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षों तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षों तक ही राज्य करें, यह बुद्धिग्राह्य नहीं प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदों का राज्यकाल 40 वर्षों का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते हैं। तदनुसार नवनंदों ने लगभग 364 ई. पू. से 324 ई. पू. तक शासन किया। इतना निश्चित है कि उनमें अंतिम राजा अग्रमस् (औग्रसैन्य (? ) अर्थात् उग्रसेन का पुत्र) सिकंदर के आक्रमण के समय मगधा (प्रसाई-प्राची) का सम्राट् था, जिसकी विशाल और शक्तिशाली सेनाओं के भय से यूनानी सिपाहियों ने पोरस से हुए युद्ध के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। \"महावंशटीका\" से ज्ञात होता है कि अंतिम नंद कठोर शासक तथा लोभी और कृपण स्वभाव का व्यक्ति था। संभवत: इस लोभी प्रकृति के कारण ही उसे धननंद कहा गया। उसने चाणक्य का अपमान भी किया था। इसकी पुष्टि मुद्राराक्षस नाटक से होती है, जिससे ज्ञात होता है कि चाणक्य अपने पद से हटा दिया गया था। अपमानित होकर उसने नंद साम्राज्य के उन्मूलन की शपथ ली और कुशवंशी चंद्रगुप्त मौर्य के सहयोग से उसे उस कार्य में सफलता मिली। उन दोनों ने उस कार्य के लिए पंजाब के क्षेत्रों से एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें संभवत: कुछ विदेशी तत्व और लुटेरे व्यक्ति भी शामिल थे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 858, "question": "मोर्य वंश की स्थापना कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1218, "text": "चंद्रगुप्त मौर्य" } ], "category": "SHORT", "id": 859, "question": "नंद शासन को किस शासक ने समाप्त किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 507, "text": "40 वर्षों" } ], "category": "SHORT", "id": 860, "question": "नवानंद का शासन कितने समय तक था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1009, "text": "धननंद " } ], "category": "SHORT", "id": 861, "question": "अंतिम नंद को किस नाम से जाना जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 862, "question": "उग्रसेन के पुत्र का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 863, "question": "धनानंद के तख्तापलट के बाद किस शासक ने पोरस के साथ संधि की थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन काल में वृन्दावन में यमुना की कई धाराएँ थीं, जिनके कारण वह लगभग प्रायद्वीप सा बन गया था। उसमें अनेक सुन्दर वनखंड और घास के मैदान थे, जहाँ भगवान श्री कृष्ण अपने साथी गोप बालकों के साथ गायें चराया करते थे। वर्तमान काल में यमुना की एक ही धारा है और उसी के तट पर वृन्दावन बसा हुआ है। वहाँ मध्य काल में अनेक धर्माचार्यों और भक्त कवियों ने निवास कर कृष्णोपासना और कृष्ण भक्ति का प्रचार किया था। वृन्दावन में यमुना के किनारों पर बड़े सुन्दर घाट बने हुए हैं और उन पर अनेक मंदिर-देवालय, छतरियां और धर्मशालाएँ है। इनसे यमुना के तट की शोभा अधिक बढ़ जाती है। वृन्दावन से आगे दक्षिण की ओर बहती हुई यह नदी मथुरा नगर में प्रवेश करती है। मथुरा यमुना के तट पर बसा हुआ एक ऐसा ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान है, जिसकी दीर्घकालीन गौरव गाथा प्रसिद्ध है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने अवतार धारण किया था, जिससे इसके महत्व की वृद्धि हुई है। यहाँ भी यमुना के तट पर बड़े सुन्दर घाट बने हुए हैं। यमुना में नाव से अथवा पुल से देखने पर मथुरा नगर और उसके घाटों का मनोरम द्रष्य दिखाई देता है। मथुरा में यमुना पर दो पक्के पुल बने हैं जिनमें से एक पर रेलगाड़ी चलती है तथा दूसरे पर सड़क परिवहन चलते हैं। मथुरा नगर की दक्षिणी सीमा पर अब गोकुल बैराज भी निर्मित कराया गया है जिसका उद्देश्य ब्रज के भूमिगत जल के स्तर को पुनः वापिस लाना और ब्रज की उपजाऊ भूमि को अधिकाधिक सिंचित करना है। विगत काल में यमुना मथुरा-वृन्दावन में एक विशाल नदी के रूप में प्रवाहित होती थी, किन्तु जबसे इससे नहरें निकाली गयी हैं, तब से इसका जलीय आकार छोटा हो गया है। केवल वर्षा ॠतु में ही यह अपना पूर्ववर्ती रूप धारण करती है। उस समय मीलों तक इसका पानी फैल जाता है। मथुरा से आगे यमुना के तट पर बायीं ओर गोकुल और महावन जैसे धार्मिक स्थल हैं तथा दायें तट पर पहले औरंगाबाद और उसके बाद फरह जैसे ग्राम हैं। यहाँ तक यमुना के किनारे रेतीले हैं, किन्तु आगे पथरीले और चट्टानी हो जाते हैं, जिससे जल धारा बलखाती हुई मनोरम रूप में प्रवाहित होती है। सादाबाद तहसील के ग्राम अकोस के पास यमुना मथुरा जिले की सीमा से बाहर निकलती है और फिर कुछ दूर तक मथुरा और आगरा जिलों की सीमा निर्मित करती है। सादाबाद तहसील के मंदौर ग्राम के पास यह आगरा जिले में प्रवेश करती है। वहाँ इसमें करबन और गंभीर नामक नदियां आकर मिलती हैं। आगरा जिले में प्रवेश करने पर नगला अकोस के पास इसके पानी से निर्मित कीठम झील है, जो सैलानियों के लिये बड़ी आकर्षक है। कीठम से रुनकता तक यमुना के किनारे एक संरक्षित वनखंड का निर्माण किया गया है, जो 'सूरदास वन' कहलाता है। रुनकता के समीप ही यमुना तट पर 'गोघात' का वह प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहाँ महात्मा सूरदास ने 12 वर्षों तक निवास किया था और जहाँ उन्होंने महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी। यमुना के तटवर्ती स्थानों में दिल्ली के बाद सर्वाधिक बड़ा नगर आगरा ही है। यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक, व्यापारिक एंव पर्यटन स्थल है, जो मुगल सम्राटों की राजधानी भी रह चुका है। यह यमुना तट से काफी ऊँचाई पर बसा हुआ है - यमुना दिल्ली के पूर्वी भाग में बहती है, उत्तर से दक्षिण की तरफ़। यहाँ पर भी यमुना पर दो पुल निर्मित हैं। आगरा में यमुना तट पर जो इमारतें है, मुगल बादशाहों द्वारा निर्मित किला और ताज महल पर्यटकों के निमित्त अत्याधिक प्रसिद्ध हैं। आगरा नगर से आगे यमुना के एक ओर फिरोजाबाद और दूसरी ओर फतेहबाद जिला और तहसील स्थित है। उनके बाद बटेश्वर का सुप्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल आता है, जहाँ ब्रज की सांस्कृतिक सीमा समाप्त होती है। बटेश्वर का प्राचीन नाम 'सौरपुर' है, जो भगवान श्री कृष्ण के पितामह शूर की राजधानी थी। यहाँ पर यमुना ने बल खाते हुए बड़ा मोड़ लिया है, जिससे बटेश्वर एक द्वीप के समान ज्ञात होता है। इस स्थान पर कार्तिक पूर्णमा को यमुना स्नान का एक बड़ा मेला लगता है। बटेश्वर से आगे इटावा एक नगर के रूप में यमुना तट पर बसा हुआ है। यह भी आगरा और बटेश्वर की भाँति ऊँचाई पर बसा हुआ है। यमुना के तट पर जितने ऊँचे कगार आगरा और इटावा जिलों में हैं, उतने मैदान में अन्यत्र नहीं हैं। इटावा से आगे मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध नदी चम्बल यमुना में आकर मिलती है, जिससे इसका आकार विस्तीर्ण हो जाता है, अपने उद्गम से लेकर चम्बल के संगम तक यमुना नदी, गंगा (गङ्गा) नदी के समानान्तर बहती है। इसके आगे उन दोनों के बीच के अन्तर कम होता जाता है और अन्त में प्रयाग में जाकर वे दोनों संगम बनाकर मिश्रित हो जाती हैं। चम्बल के पश्चात यमुना नदी में मिलने वाली नदियों में सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। इटावा के पश्चात यमुना के तटवर्ती नगरों में काल्पी, हमीर पुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गङ्गा में मिल जाती है। प्रयाग में यमुना पर एक विशाल पुल निर्मित किया गया है, जो दो मंजिला है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 864, "question": "किन नदियों के संगम के कारण प्रयाग ने तीर्थराज का महत्व प्राप्त किया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2395, "text": "महाप्रभु बल्लभाचार्य " } ], "category": "SHORT", "id": 865, "question": "महात्मा सूरदास ने दीक्षा किससे प्राप्त की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 866, "question": "यमुना नदी की उत्पत्ति से लेकर प्रयाग के संगम तक की कुल लंबाई कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 620, "text": "मथुरा" } ], "category": "SHORT", "id": 867, "question": "भगवान कृष्ण ने कहां अवतार लिया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2350, "text": " 12 वर्षों " } ], "category": "SHORT", "id": 868, "question": "महात्मा सूरदास कितने वर्षों तक गोघाट स्थल पर रहे थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 55, "text": "यमुना" } ], "category": "SHORT", "id": 869, "question": "वृंदावन में कौन सी नदी बहती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 870, "question": "ताजमहल भारत के किस प्रांत पर स्थित है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है। विभिन्न विद्वानों ने इसका रचना काल ईसा के 3,000 से 50,000 वर्ष पूर्व तक का माना है। ऋग्वेद-संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है। अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व 3,000 से 50,000 वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथो के अनुसार यह देवताओं कि चिकित्सा पद्धति है जिसके ज्ञान को मानव कल्याण के लिए निवेदन किए जाने पर देवताओं द्वारा धरती के महान आचार्यों को दिया गया। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ना जैसी कई चमत्कारिक चिकित्साएं की थी। अश्विनीकुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर अलग अलग संप्रदायों के अनुसार उनके प्राचीन और पहले आचार्यों आत्रेय / सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आयुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जतुकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हारीत), सुश्रुत और चरक। ब्रह्मा ने आयुर्वेद को आठ भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम 'तन्त्र' रखा । ये आठ भाग निम्नलिखित हैं :इस अष्टाङ्ग (=आठ अंग वाले) आयुर्वेद के अन्तर्गत देहतत्त्व, शरीर विज्ञान, शस्त्रविद्या, भेषज और द्रव्य गुण तत्त्व, चिकित्सा तत्त्व और धात्री विद्या भी हैं। इसके अतिरिक्त उसमें सदृश चिकित्सा (होम्योपैथी), विरोधी चिकित्सा (एलोपैथी), जलचिकित्सा (हाइड्रोपैथी), प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), योग, सर्जरी, नाड़ी विज्ञान (पल्स डायग्नोसिस) आदि आजकल के अभिनव चिकित्सा प्रणालियों के मूल सिद्धान्तों के विधान भी 2500 वर्ष पूर्व ही सूत्र रूप में लिखे पाये जाते हैं । चरक मतानुसार (आत्रेय सम्प्रदाय)आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के सन्दर्भ में, चरक मत के अनुसार, आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से दोनों अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया। च्यवन ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 860, "text": "काशी " } ], "category": "SHORT", "id": 871, "question": "धन्वंतरि ने कहां अवतार लिया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 872, "question": "ऋषि च्यवन ने किस पद्धति के विकास में महत्वपर्ण भूमिका निभाई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 669, "text": "अश्विनीकुमार" } ], "category": "SHORT", "id": 873, "question": "आयुर्वेद के प्रथम आचार्य किसे माना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 841, "text": "धन्वंतरि" } ], "category": "SHORT", "id": 874, "question": "इंद्र ने आयुर्वेद का ज्ञान किसे सिखाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 275, "text": "अथर्ववेद" } ], "category": "SHORT", "id": 875, "question": "चरक, सुश्रुत, कश्यप आदि आयुर्वेद को कौन सा उप-वेद मानते हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 876, "question": "अग्निवेश, भेल, जट्टू,पाराशर, हरित और क्षरपानी को आयुर्वेद की शिक्षा किसने दी थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 54, "text": "ऋग्वेद" } ], "category": "SHORT", "id": 877, "question": "पुरातत्वविदों के अनुसार दुनियां की सबसे पुरानी किताब कौन सी है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पूर्वी दक्कन का पठार, जिसे तेलंगाना और रायलसीमा कहा जाता है, विशाल ग्रेनाइट चट्टान की विशाल चादर से बना है, जो बारिश के पानी को प्रभावी ढंग से फँसाता है। मिट्टी की पतली सतह परत के नीचे अभेद्य धूसर ग्रेनाइट की चादर होती है। कुछ महीनों के दौरान ही यहां बारिश होती है। दक्कन के पठार के पूर्वोत्तर भाग की तुलना में, तेलंगाना पठार का क्षेत्रफल लगभग 148,000 किमी 2, उत्तर-दक्षिण की लंबाई लगभग 770 किमी और पूर्व-पश्चिम की चौड़ाई लगभग 515 किमी है। पठार को गोदावरी नदी द्वारा दक्षिण-पूर्वी पाठ्यक्रम से निकाला जाता है; कृष्णा नदी द्वारा, जो दो क्षेत्रों में peneplain को विभाजित करता है; और नोरली दिशा में बहने वाली पेरु अरू नदी द्वारा। पठार के जंगल नम पर्णपाती, शुष्क पर्णपाती, और उष्णकटिबंधीय कांटे हैं। क्षेत्र की अधिकांश आबादी कृषि में लगी हुई है; अनाज, तिलहन, कपास और दालें (फलियां) प्रमुख फसलें हैं। बहुउद्देशीय सिंचाई और पनबिजली परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें पोचमपैड, भैरा वनीतिपा, और ऊपरी पोनियन आरू शामिल हैं। उद्योग (हैदराबाद, वारंगल, और कुरनूल में स्थित) सूती वस्त्र, चीनी, खाद्य पदार्थों, तम्बाकू, कागज, मशीन टूल्स और फार्मास्यूटिकल्स का उत्पादन करते हैं। कुटीर उद्योग वन-आधारित (लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, लकड़ी का कोयला, बांस के उत्पाद) और खनिज-आधारित (अभ्रक, कोयला, क्रोमाइट, लौह अयस्क, अभ्रक, और केनाइट) हैं। एक बार गोंडवानालैंड के प्राचीन महाद्वीप के एक खंड का गठन करने के बाद, यह भूमि भारत में सबसे पुरानी और सबसे स्थिर है। दक्कन के पठार में शुष्क उष्णकटिबंधीय वन होते हैं जो केवल मौसमी वर्षा का अनुभव करते हैं। जलवायुइस क्षेत्र की जलवायु उत्तर में अर्ध-शुष्क से लेकर भिन्न-भिन्न आर्द्र और शुष्क मौसम वाले अधिकांश क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय से भिन्न होती है। मानसून के मौसम में जून से अक्टूबर के दौरान बारिश होती है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1565, "text": "जून से अक्टूबर" } ], "category": "SHORT", "id": 878, "question": "दक्कन के पठार में बारिश किस महीने में होती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 879, "question": "दक्कन के पठार में मुख्यता कौन सा पत्थर पाया जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 880, "question": "सबसे शुष्क और गर्म महिने कौन से हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 881, "question": "मार्च से जून तक के महीनों का नियमित तापमान कितना होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 27, "text": "तेलंगाना और रायलसीमा" } ], "category": "SHORT", "id": 882, "question": "दक्कन के पठार को किस नाम से जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1331, "text": "शुष्क उष्णकटिबंधीय" } ], "category": "SHORT", "id": 883, "question": "दक्कन के पठार में किस प्रकार के वन पाए जाते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 341, "text": "148,000 किमी" } ], "category": "SHORT", "id": 884, "question": "तेलंगाना पठार का क्षेत्रफल कितना है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पूर्वोक्त कारणों से उत्पन्न विकारों की पहचान जिन साधनों द्वारा होती है उन्हें लिंग कहते हैं। इसके चार भेद हैं : पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय। पूर्वरूप- किसी रोग के व्यक्त होने के पूर्व शरीर के भीतर हुई अत्यल्प या आरंभिक विकृति के कारण जो लक्षण उत्पन्न होकर किसी रोगविशेष की उत्पत्ति की संभावना प्रकट करते हैं उन्हें पूर्वरूप (प्रोडामेटा) कहते हैं। रूप (साइंस एंड सिंप्टम्स) - जिन लक्षणों से रोग या विकृति का स्पष्ट परिचय मिलता है उन्हें रूप कहते हैं। संप्राप्ति (पैथोजेनेसिस) : किस कारण से कौन सा दोष स्वतंत्र रूप में या परतंत्र रूप में, अकेले या दूसरे के साथ, कितने अंश में और कितनी मात्रा में प्रकुपित होकर, किस धातु या किस अंग में, किस-किस स्वरूप का विकार उत्पन्न करता है, इसके निर्धारण को संप्राप्ति कहते हैं। चिकित्सा में इसी की महत्वपूर्ण उपयोगिता है। वस्तुत: इन परिवर्तनों से ही ज्वरादि रूप में रोग उत्पन्न होते हैं, अत: इन्हें ही वास्तव में रोग भी कहा जा सकता है और इन्हीं परिवर्तनों को ध्यान में रखकर की गई चिकित्सा भी सफल होती है। उपशय और अनुपशय (थेराप्यूटिक टेस्ट) - जब अल्पता या संकीर्णता आदि के कारण रोगों के वास्तविक कारणों या स्वरूपों का निर्णय करने में संदेह होता है, तब उस संदेह के निराकरण के लिए संभावित दोषों या विकारों में से किसी एक के विकार से उपयुक्त आहार-विहार और औषध का प्रयोग करने पर जिससे लाभ होता है उसे उपचय के विवेचन में आयुर्वेदाचार्यो ने छह प्रकार से आहार-विहार और औषध के प्रयोगों का सूत्र बतलाते हुए उपशय के १८ भेदों का वर्णन किया है। ये सूत्र इतने महत्व के हैं कि इनमें से एक-एक के आधार पर एक-एक चिकित्सापद्धति का उदय हो गया है; जैसे,(१) हेतु के विपरीत आहार विहार या औषध का प्रयोग करना। (२) व्याधि, वेदना या लक्षणों के विपरीत आहार विहार या औषध का प्रयोग करना। स्वयं एलोपैथी की स्थापना इसी पद्धति पर हुई थी (ऐलोज़ = विपरीत ; अपैथोज़ = वेदना)। (३) हेतु और व्याधि, दोनों के विपरीत आहार विहार और औषध का प्रयोग करना। (४) हेतुविपरीतार्थकारी, अर्थात्‌ रोग के कारण के समान होते हुए भी उस कारण के विपरीत कार्य करनेवाले आहार आदि का प्रयोग; जैसे, आग से जलने पर सेंकने या गरम वस्तुओं का लेप करने से उस स्थान पर रक्तसंचार बढ़कर दोषों का स्थानांतरण होता है तथा रक्त का जमना रुकने, पाक के रुकने पर शांति मिलती है। (५) व्याधिविपरीतार्थकारी, अर्थात्‌ रोग या वेदना को बढ़ानेवाला प्रतीत होते हुए भी व्याधि के विपरीत कार्य करनेवाले आहार आदि का प्रयोग (होमियोपैथी से तुलना करें : होमियो =समान, अपैथोज़ =वेदना )। (६) उभयविरीतार्थकारी, अर्थात्‌ कारण और वेदना दोनों के समान प्रतीत होते हुए भी दोनों के विपरीत कार्य करनेवाले आहार विहार और औषध का प्रयोग। उपशय और अनुपशय से भी रोग की पहचान में सहायता मिलती है। अत: इनको भी प्राचीनों ने \"लिंग' में ही गिना है। हेतु और लिंग के द्वारा रोग का ज्ञान प्राप्त करने पर ही उसकी उचित और सफल चिकित्सा (औषध) संभव है। हेतु और लिंगों से रोग की परीक्षा होती है, किंतु इनके समुचित ज्ञान के लिए रोगी की परीक्षा करनी चाहिए।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 78, "text": "लिंग " } ], "category": "SHORT", "id": 885, "question": "जिन साधनों से विकारों की पहचान की जाती है उसे क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 111, "text": "पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय" } ], "category": "SHORT", "id": 886, "question": "लिंग के चार प्रकारों का क्या नाम हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 887, "question": "अनुभवी, निष्पक्ष और सच्चे वक्ता अधिकारी के लेखों को क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2549, "text": "हेतु और लिंगों " } ], "category": "SHORT", "id": 888, "question": "रोगी परीक्षा के कितने साधन हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1338, "text": " १८ भेदों " } ], "category": "SHORT", "id": 889, "question": "आयुर्वेदिक चिकित्सा ने आहार और औषधि प्रयोग के तरीके को समझाते हुए कितने प्रकार के लिंग का वर्णन किया है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पृथ्वी की आकृति अण्डाकार है। घुमाव के कारण, पृथ्वी भौगोलिक अक्ष में चिपटा हुआ और भूमध्य रेखा के आसपास उभार लिया हुआ प्रतीत होता है। भूमध्य रेखा पर पृथ्वी का व्यास, अक्ष-से-अक्ष के व्यास से 43 किलोमीटर (27 मील) ज्यादा बड़ा है। इस प्रकार पृथ्वी के केन्द्र से सतह की सबसे लम्बी दूरी, इक्वाडोर के भूमध्यवर्ती चिम्बोराज़ो ज्वालामुखी का शिखर तक की है। इस प्रकार पृथ्वी का औसत व्यास 12,742 किलोमीटर (7, 918 मील) है। कई जगहों की स्थलाकृति इस आदर्श पैमाने से अलग नजर आती हैं हालाँकि वैश्विक पैमाने पर यह पृथ्वी के त्रिज्या की तुलना नजरअंदाज ही दिखाई देता है: सबसे अधिकतम विचलन 0.17% का मारियाना गर्त (समुद्रीस्तर से 10,911 मीटर (35,797 फुट) नीचे) में है, जबकि माउण्ट एवरेस्ट (समुद्र स्तर से 8,848 मीटर (29,029 फीट) ऊपर) 0.14% का विचलन दर्शाता है। यदि पृथ्वी, एक बिलियर्ड गेंद के आकार में सिकुड़ जाये तो, पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों जैसे बड़े पर्वत शृंखलाएँ और महासागरीय खाईयाँ, छोटे खाइयों की तरह महसूस होंगे, जबकि ग्रह का अधिकतर भू-भाग, जैसे विशाल हरे मैदान और सूखे पठार आदि, चिकने महसूस होंगे. धरती का घनत्व पूरे सौरमंडल मे सबसे ज्यादा है। बाकी चट्टानी ग्रह की संरचना कुछ अंतरो के साथ पृथ्वी के जैसी ही है। चन्द्रमा का केन्द्रक छोटा है, बुध का केन्द्र उसके कुल आकार की तुलना मे विशाल है, मंगल और चंद्रमा का मैंटल कुछ मोटा है, चन्द्रमा और बुध मे रासायनिक रूप से भिन्न भूपटल नही है, सिर्फ पृथ्वी का अंत: और बाह्य मैंटल परत अलग है। ध्यान दे कि ग्रहो (पृथ्वी भी) की आंतरिक संरचना के बारे मे हमारा ज्ञान सैद्धांतिक ही है। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना शल्कीय अर्थात परतों के रूप में है जैसे प्याज के छिलके परतों के रूप में होते हैं। इन परतों की मोटाई का सीमांकन रासायनिक विशेषताओं अथवा यान्त्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है। यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी, स्थलमण्डल, दुर्बलता मण्डल, मध्यवर्ती आवरण, बाह्य सत्व(कोर) और आन्तरिक सत्व(कोर) से बना हुआ हैं। रासायनिक संरचना के आधार पर इसे भूपर्पटी, ऊपरी आवरण, निचला आवरण, बाहरी सत्व(कोर) और आन्तरिक सत्व(कोर) में बाँटा गया है। पृथ्वी की ऊपरी परत भूपर्पटी एक ठोस परत है, मध्यवर्ती आवरण अत्यधिक गाढ़ी परत है और बाह्य सत्व(कोर) तरल तथा आन्तरिक सत्व(कोर) ठोस अवस्था में है। आन्तरिक सत्व(कोर) की त्रिज्या, पृथ्वी की त्रिज्या की लगभग पाँचवाँ हिस्सा है। पृथ्वी के अन्तरतम की यह परतदार संरचना भूकम्पीय तरंगों के संचलन और उनके परावर्तन तथा प्रत्यावर्तन पर आधारित है जिनका अध्ययन भूकम्पलेखी के आँकड़ों से किया जाता है। भूकम्प द्वारा उत्पन्न प्राथमिक एवं द्वितीयक तरंगें पृथ्वी के अन्दर स्नेल के नियम के अनुसार प्रत्यावर्तित होकर वक्राकार पथ पर चलती हैं। जब दो परतों के बीच घनत्व अथवा रासायनिक संरचना का अचानक परिवर्तन होता है तो तरंगों की कुछ ऊर्जा वहाँ से परावर्तित हो जाती है। परतों के बीच ऐसी जगहों को दरार कहते हैं। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी का स्रोतों को दो हिस्सों में विभक्त किया जा सकता है। प्रत्यक्ष स्रोत, जैसे ज्वालामुखी से निकले पदार्थो का अध्ययन, वेधन से प्राप्त आँकड़े इत्यादि, कम गहराई तक ही जानकारी उपलब्ध करा पते हैं। दूसरी ओर अप्रत्यक्ष स्रोत के रूप में भूकम्पीय तरंगों का अध्ययन अधिक गहराई की विशेषताओं के बारे में जानकारी देता है। पृथ्वी की आंतरिक गर्मी, अवशिष्ट गर्मी के संयोजन से आती है ग्रहों में अनुवृद्धि से (लगभग 20%) और रेडियोधर्मी क्षय के माध्यम से (80%) ऊष्मा उत्पन्न होती हैं। पृथ्वी के भीतर, प्रमुख ताप उत्पादक समस्थानिक (आइसोटोप) में पोटेशियम-40, यूरेनियम-238 और थोरियम-232 सम्मलित है। पृथ्वी के केन्द्र का तापमान 6,000 डिग्री सेल्सियस (10,830 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक हो सकता है, और दबाव 360 जीपीए तक पहुंच सकता है। क्योंकि सबसे अधिक गर्मी रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न होती है, वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि पृथ्वी के इतिहास की शुरुआत में, कम या आधा-जीवन के समस्थानिक के समाप्त होने से पहले, पृथ्वी का ऊष्मा उत्पादन बहुत अधिक था। धरती से औसतन ऊष्मा का क्षय 87 एमडब्ल्यू एम -2 है, वही वैश्विक ऊष्मा का क्षय 4.42×1013 डब्ल्यू हैं। कोर की थर्मल ऊर्जा का एक हिस्सा मेंटल प्लम्स द्वारा पृष्ठभागो की ओर ले जाया जाता है, इन प्लम्स से प्रबल ऊर्जबिन्दु तथा असिताश्म बाढ़ का निर्माण होता है। ऊष्माक्षय का अंतिम प्रमुख माध्यम लिथोस्फियर से प्रवाहकत्त्व के माध्यम से होता है, जिसमे से अधिकांश महासागरों के नीचे होता है क्योंकि यहाँ भु-पपर्टी, महाद्वीपों की तुलना में बहुत पतली होती है। पृथ्वी का कठोर भूपटल कुछ ठोस प्लेटो मे विभाजित है जो निचले द्रव मैंटल पर स्वतण्त्र रूप से बहते रहते है, जिन्हें विवर्तनिक प्लेटें कहते है। ये प्लेटें, एक कठोर खण्ड की तरह हैं जोकि परस्पर तीन प्रकार की सीमाओं से एक दूसरे की ओर बढ़ते हैं: अभिसरण सीमाएं, जिस पर दो प्लेटें एक साथ आती हैं, भिन्न सीमाएं, जिस पर दो प्लेटें अलग हो जाती हैं, और सीमाओं को बदलना, जिसमें दो प्लेटें एक दूसरे के ऊपर-नीचे स्लाइड करती हैं। इन प्लेट सीमाओं पर भूकंप, ज्वालामुखीय गतिविधि, पहाड़-निर्माण, और समुद्री खाई का निर्माण हो सकता है। जैसे ही विवर्तनिक प्लेटों स्थानान्तरित होती हैं, अभिसरण सीमाओं पर महासागर की परत किनारों के नीचे घटती जाती है। उसी समय, भिन्न सीमाएं से ऊपर आने का प्रयास करती मेन्टल पदार्थ, मध्य-समुद्र में उभार बना देती है। इन प्रक्रियाओं के संयोजन से समुद्र की परत फिर से मेन्टल में पुनर्नवीनीकरण हो जाती हैं। इन्हीं पुनर्नवीनीकरण के कारण, अधिकांश समुद्र की परत की उम्र 100 मेगा-साल से भी कम हैं। सबसे पुराना समुद्री परत पश्चिमी प्रशान्त सागर में स्थित है जिसकी अनुमानित आयु 200 मेगा-साल है। (वर्तमान में) आठ प्रमुख प्लेट:पृथ्वी की कुल सतह क्षेत्र लगभग 51 करोड़ किमी2 (19.7 करोड़ वर्ग मील) है। जिसमे से 70.8%, या 36.113 करोड़ किमी2 (13.943 करोड़ वर्ग मील) क्षेत्र समुद्र तल से नीचे है और जल से भरा हुआ है। महासागर की सतह के नीचे महाद्वीपीय शेल्फ का अधिक हिस्सा है, महासागर की सतह, महाद्वीपीय शेल्फ, पर्वत, ज्वालामुखी, समुद्री खन्दक, समुद्री-तल दर्रे, महासागरीय पठार, अथाह मैदानी इलाके, और मध्य महासागर रिड्ज प्रणाली से बहरी पड़ी हैं। शेष 29.2% (14.894 करोड़ किमी2, या 5.751 करोड़ वर्ग मील) जोकि पानी से ढँका हुआ नहीं है, जगह-जगह पर बहुत भिन्न है और पहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानी, पठारों और अन्य भू-प्राकृतिक रूप में बँटा हुआ हैं। भूगर्भीय समय पर धरती की सतह को लगातार नयी आकृति प्रदान करने वाली प्रक्रियाओं में विवर्तनिकी और क्षरण, ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़, अपक्षय, हिमाच्छेद, प्रवाल भित्तियों का विकास, और उल्कात्मक प्रभाव इत्यादि सम्मलित हैं। महाद्वीपीय परत, कम घनत्व वाली सामग्री जैसे कि अग्निमय चट्टानों ग्रेनाइट और एंडसाइट के बने होते हैं। वही बेसाल्ट प्रायः काम पाए जाने वाला, एक सघन ज्वालामुखीय चट्टान हैं जोकि समुद्र के तल का मुख्य घटक है। अवसादी शैल, तलछट के संचय बनती है जोकि एक साथ दफन और समेकित हो जाती है। महाद्वीपीय सतहों का लगभग 75% भाग अवसादी शैल से ढका हुआ हैं, हालांकि यह सम्पूर्ण भू-पपटल का लगभग 5% हिस्सा ही हैं। पृथ्वी पर पाए जाने वाले चट्टानों का तीसरा रूप कायांतरित शैल है, जोकि पूर्व-मौजूदा शैल के उच्च दबावों, उच्च तापमान या दोनों के कारण से परिवर्तित होकर बनता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 6177, "text": "कायांतरित शैल" } ], "category": "SHORT", "id": 890, "question": "पृथ्वी पर पाई जाने वाली चट्टानों का तीसरा रूप कौन सा चट्टान है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 3508, "text": "87 एमडब्ल्यू एम -2" } ], "category": "SHORT", "id": 891, "question": "पृथ्वी का औसत ऊष्मा क्षय कितना है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 892, "question": "सामान्य कार्बोनेट खनिजों में कैल्साइट कहां पाया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 372, "text": "12,742" } ], "category": "SHORT", "id": 893, "question": "पृथ्वी का औसत व्यास कितना है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 4832, "text": "पश्चिमी प्रशान्त सागर" } ], "category": "SHORT", "id": 894, "question": "सबसे पुराना समुद्र तल पृथ्वी के किस भाग में स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 689, "text": "29,029 फीट" } ], "category": "SHORT", "id": 895, "question": "माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 3166, "text": " 6,000 डिग्री" } ], "category": "SHORT", "id": 896, "question": "पृथ्वी के केंद्र का अधिकतम तापमान कितना होता है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "पेडोस्फीयर पृथ्वी की महाद्वीपीय सतह की सबसे बाहरी परत है और यह मिट्टी से बना हुआ है तथा मिट्टी के गठन की प्रक्रियाओं के अधीन है। कुल कृषि योग्य भूमि, भूमि की सतह का 10.9% हिस्सा है, जिसके 1.3% हिस्से पर स्थाईरूप से फसलें ली जाती हैं। धरती की 40% भूमि की सतह का उपयोग चारागाह और कृषि के लिए किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर पानी की बहुतायत एक अनोखी विशेषता है जो सौर मंडल के अन्य ग्रहों से इस \"नीले ग्रह\" को अलग करती है। पृथ्वी के जलमंडल में मुख्यतः महासागर हैं, लेकिन तकनीकी रूप से दुनिया में उपस्थित अन्य जल के स्रोत जैसे: अंतर्देशीय समुद्र, झीलों, नदियों और 2,000 मीटर की गहराई तक भूमिगत जल सहित इसमें शामिल हैं। पानी के नीचे की सबसे गहरी जगह 10,911.4 मीटर की गहराई के साथ, प्रशान्त महासागर में मारियाना ट्रेंच की चैलेंजर डीप है। महासागरों का द्रव्यमान लगभग 1.35×1018 मीट्रिक टन या पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का 1/4400 हिस्सा है। महासागर औसतन 3682 मीटर की गहराई के साथ, 3.618×108 किमी2 का क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसकी अनुमानित मात्रा 1.332 ×109 किमी3 हो सकती है। यदि सभी पृथ्वी की उबड़-खाबड़ सतह यदि एक समान चिकने क्षेत्र में के रूप में हो तो, महासागर की गहराई 2.7 से 2.8 किमी होगी। लगभग 97.5% पानी खारा है; शेष 2.5% ताजा पानी है, अधिकतर ताजा पानी, लगभग 68.7%, बर्फ के पहाड़ो और ग्लेशियरों के बर्फ के रूप में मौजूद है। पृथ्वी के महासागरों की औसत लवणता लगभग 35 ग्राम नमक प्रति किलोग्राम समुद्री जल (3.5% नमक) होती है। ये नमक अधिकांशत: ज्वालामुखीय गतिविधि से निकालकर या शांत अग्निमय चट्टानों से निकल कर सागर में मिलते हैं। महासागर विघटित वायुमण्डलीय गैसों के लिए एक भंडारण की तरह भी है, जो कई जलीय जीवन के अस्तित्व के लिए अति आवश्यक हैं। समुद्रीजल विश्व के जलवायु के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है, यह एक बड़े ऊष्मा संग्रह की तरह कार्य करता हैं। समुद्री तापमान वितरण में बदलाव, मौसम बदलाव में गड़बड़ी का कारण हो सकता हैं, जैसे; एल नीनो। पृथ्वी के वातावरण मे ७७% नाइट्रोजन, २१% आक्सीजन, और कुछ मात्रा मे आर्गन, कार्बन डाय आक्साईड और जल बाष्प है। पृथ्वी पर निर्माण के समय कार्बन डाय आक्साईड की मात्रा ज्यादा रही होगी जो चटटानो मे कार्बोनेट के रूप मे जम गयी, कुछ मात्रा मे सागर द्वारा अवशोषित कर ली गयी, शेष कुछ मात्रा जीवित प्राणियो द्वारा प्रयोग मे आ गयी होगी। प्लेट टेक्टानिक और जैविक गतिविधी कार्बन डाय आक्साईड का थोड़ी मात्रा का उत्त्सर्जन और अवशोषण करते रहते है। कार्बनडाय आक्साईड पृथ्वी के सतह का तापमान का ग्रीन हाउस प्रभाव द्वारा नियंत्रण करती है। ग्रीन हाउस प्रभाव द्वारा पृथ्वी सतह का तापमान 35 डिग्री सेल्सीयस होता है अन्यथा वह -21 डिग्री सेल्सीयस से 14 डिग्री सेल्सीयस रहता; इसके ना रहने पर समुद्र जम जाते और जीवन असम्भव हो जाता। जल बाष्प भी एक आवश्यक ग्रीन हाउस गैस है। रासायनिक दृष्टि से मुक्त आक्सीजन भी आवश्यक है। सामान्य परिस्थिती मे आक्सीजन विभिन्न तत्वो से क्रिया कर विभिन्न यौगिक बनाती है। पृथ्वी के वातावरण मे आक्सीजन का निर्माण और नियन्त्रण विभिन्न जैविक प्रक्रियाओ से होता है। जीवन के बिना मुक्त आक्सीजन सम्भव नही है। पृथ्वी के वायुमण्डल की कोई निश्चित सीमा नहीं है, यह आकाश की ओर धीरे-धीरे पतला होता जाता है और बाह्य अन्तरिक्ष में लुप्त हो जाता है। वायुमण्डल के द्रव्यमान का तीन-चौथाई हिस्सा, सतह से 11 किमी (6.8 मील) के भीतर ही निहित है। सबसे निचले परत को ट्रोफोस्फीयर कहा जाता है। सूर्य की ऊर्जा से यह परत ओर इसके नीचे तपती है, और जिसके कारण हवा का विस्तार होता हैं। फिर यह कम-घनत्व वाली वायु ऊपर की ओर जाती है और एक ठण्डे, उच्च घनत्व वायु में प्रतिस्थापित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ही वायुमण्डलीय परिसंचरण बनता है जो तापीय ऊर्जा के पुनर्वितरण के माध्यम से मौसम और जलवायु को चलाता है। प्राथमिक वायुमण्डलीय परिसंचरण पट्टी, 30° अक्षांश से नीचे के भूमध्य रेखा क्षेत्र में और 30° और 60° के बीच मध्य अक्षांशों में पच्छमी हवा की व्यापारिक पवन से मिलकर बने होते हैं। जलवायु के निर्धारण करने में महासागरीय धारायें भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं, विशेष रूप से थर्मोहेलिन परिसंचरण, जो भूमध्यवर्ती महासागरों से ध्रुवीय क्षेत्रों तक ऊष्मीय ऊर्जा वितरित करती है। सतही वाष्पीकरण से उत्पन्न जल वाष्प परिसंचरण तरीको द्वारा वातावरण में पहुँचाया जाता है। जब वायुमंडलीय स्थितियों के कारण गर्म, आर्द्र हवा ऊपर की ओर जाती है, तो यह वाष्प सघन हो वर्षा के रूप में पुनः सतह पर आ जाती हैं। तब अधिकांश पानी, नदी प्रणालियों द्वारा नीचे की ओर ले जाया जाता है और आम तौर पर महासागरों या झीलों में जमा हो जाती है। यह जल चक्र भूमि पर जीवन हेतु एक महत्वपूर्ण तंत्र है, और कालांतर में सतही क्षरण का एक प्राथमिक कारक है। वर्षा का वितरण व्यापक रूप से भिन्न हैं, कही पर कई मीटर पानी प्रति वर्ष तो कही पर एक मिलीमीटर से भी कम वर्षा होती हैं। वायुमण्डलीय परिसंचरण, स्थलाकृतिक विशेषताएँ और तापमान में अन्तर, प्रत्येक क्षेत्र में औसत वर्षा का निर्धारण करती है। बढ़ते अक्षांश के साथ पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा कम होते जाती है। उच्च अक्षांशों पर, सूरज की रोशनी निम्न कोण से सतह तक पहुँचती है, और इसे वातावरण के मोटे कतार के माध्यम से गुजरना होता हैं। परिणामस्वरूप, समुद्री स्तर पर औसत वार्षिक हवा का तापमान, भूमध्य रेखा की तुलना में अक्षांशो में लगभग 0.4 डिग्री सेल्सियस (0.7 डिग्री फारेनहाइट) प्रति डिग्री कम होता है। पृथ्वी की सतह को विशिष्ट अक्षांशु पट्टी में, लगभग समरूप जलवायु से विभाजित किया जा सकता है। भूमध्य रेखा से लेकर ध्रुवीय क्षेत्रों तक, ये उष्णकटिबंधीय (या भूमध्य रेखा), उपोष्णकटिबंधीय, शीतोष्ण और ध्रुवीय जलवायु में बँटा हुआ हैं। इस अक्षांश के नियम में कई विसंगतियाँ हैं:महासागरों की निकटता जलवायु को नियंत्रित करती है। उदाहरण के लिए, स्कैंडिनेवियाई प्रायद्वीप में उत्तरी कनाडा के समान उत्तरी अक्षांशों की तुलना में अधिक उदार जलवायु है। पृथ्वी का अपना चुम्बकीय क्षेत्र है जो कि बाह्य केन्द्रक के विद्युत प्रवाह से निर्मित होता है। सौर वायू, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र और उपरी वातावरण मीलकर औरोरा बनाते है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 897, "question": "मिलर-वैन एंडरसन विकिरण बेल्ट की बाहरी सीमा कितने किलोमीटर तक फैली है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 898, "question": "पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र किसके साथ मिलकर मिलर-वैन एंडरसन विकिरण बेल्ट बनाती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1080, "text": "97.5%" } ], "category": "SHORT", "id": 899, "question": "पृथ्वी का कितना प्रतिशत पानी खारा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1737, "text": "७७% नाइट्रोजन" } ], "category": "SHORT", "id": 900, "question": "पृथ्वी के वायुमंडल में कितनी प्रतिशत नाइट्रोजन है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1752, "text": "२१% आक्सीजन" } ], "category": "SHORT", "id": 901, "question": "पृथ्वी के वायुमंडल में कितनी प्रतिशत ऑक्सीजन है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 187, "text": "1.3%" } ], "category": "SHORT", "id": 902, "question": "पृथ्वी के सतह की कितनी प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "पेडोस्फीयर" } ], "category": "SHORT", "id": 903, "question": "पृथ्वी की महाद्वीपीय सतह की सबसे बाहरी परत का क्या नाम है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्रणव मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहाँ हुआ था। उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षो से अधिक जेल की सजा भी काटी थी। प्रणव मुखर्जी ने वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की। वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। वे बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। उनका संसदीय कैरियर करीब पाँच दशक पुराना है, जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था। वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गये। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। वे सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और और सन् 1982 में भारत के वित्त मंत्री बने। सन 1984 में, यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ऋण की 1.1 अरब अमरीकी डॉलर की आखिरी किस्त नहीं अदा कर पाने के लिए उल्लेखनीय रहा। वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ॰ मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र के शिकार हुए जिसने इन्हें मन्त्रिमणडल में शामिल नहीं होने दिया। कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 में राजीव गान्धी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। उनका राजनीतिक कैरियर उस समय पुनर्जीवित हो उठा, जब पी.वी. नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में एक केन्द्रीय कैबिनेट मन्त्री के तौर पर नियुक्त करने का फैसला किया। उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया। सन 1985 के बाद से वह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के भी अध्यक्ष हैं। सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री होने का गौरव भी हासिल है। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 904, "question": "प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बाईपास सर्जरी के समय कैबिनेट को किसने चलाया था ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 119, "text": "कामदा किंकर मुखर्जी" } ], "category": "SHORT", "id": 905, "question": "प्रणब मुखर्जी के पिता का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1408, "text": "सन् 1982" } ], "category": "SHORT", "id": 906, "question": "\nप्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री किस वर्ष बने थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 22, "text": "पश्चिम बंगाल " } ], "category": "SHORT", "id": 907, "question": "प्रणब मुखर्जी का जन्म कहां हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 509, "text": "सूरी विद्यासागर कॉलेज " } ], "category": "SHORT", "id": 908, "question": "प्रणब मुखर्जी ने अपनी शिक्षा कहां से प्राप्त की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 909, "question": "इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधान मंत्री किसे बनाया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 910, "question": " प्रणव मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस ने किस वर्ष अनुच्छेद 123 समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्रमुख शहरों के अलावा अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में भेड़ाघाट, भीमबेटका, भोजपुर, महेश्वर, मांडू, ओरछा, पचमढ़ी, कान्हा और उज्जैन शामिल हैं। राज्य की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 13880 मेगावॉट (31 मार्च 2015) है। सभी राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश बिजली उत्पादन में सबसे ज्यादा वार्षिक वृद्धि (46.18%) दर्ज की हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भारत के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र योजना बनाई गई हैं। संयंत्र की बिजली उत्पादन की क्षमता 750 मेगावाट होगी, तथा इसे लगाने हेतु 4,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के गूढ तहसील में 1,590 हेक्टेयर के क्षेत्र में एक रीवा अल्ट्रा मेगा सौर पार्क प्रस्तावित है। मध्य प्रदेश में बस और ट्रेन सेवाएं चारो तरफ फैली हुई हैं। प्रदेश की 99,043 किमी लंबी सड़क नेटवर्क में 20 राष्ट्रीय राजमार्ग भी शामिल है। प्रदेश में 4948 किलोमीटर लंबी रेल नेटवर्क का जाल फैला हुआ हैं, जबलपुर को भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य रेलवे का मुख्यालय बनाया गया है। मध्य रेलवे और पश्चिम रेलवे भी राज्य के कुछ हिस्सों को कवर करते हैं। पश्चिमी मध्य प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र पश्चिम रेलवे के रतलाम रेल मंडल के अंर्तगत आते है, जिनमे इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, खंडवा, नीमच, सीहोर और बैरागढ़ भोपाल आदि शहर शामिल हैं। राज्य में 20 प्रमुख रेलवे जंक्शन है। प्रमुख अंतर-राज्यीय बस टर्मिनल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर जबलपुर और रीवा में स्थित हैं। प्रतिदिन 2000 से भी अधिक बसों का संचालन इन पांच शहरो से होता हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 181, "text": "13880 मेगावॉट" } ], "category": "SHORT", "id": 911, "question": "मध्य प्रदेश राज्य की बिजली उत्पादन क्षमता वर्ष 2015 तक कितनी थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 239, "text": "मध्य प्रदेश " } ], "category": "SHORT", "id": 912, "question": "भारत के किस राज्य ने पहला सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 773, "text": "4948 किलोमीटर " } ], "category": "SHORT", "id": 913, "question": "मध्य प्रदेश राज्य में कितना लंबा रेलवे नेटवर्क है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 914, "question": "मध्य प्रदेश राज्य का अधिकांश समुद्री व्यापार किस क्षेत्र से होता है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्राचीन काल में कुमाऊँ कई छोटी-छोटी रियासतों में विभाजित था, और नैनीताल क्षेत्र एक खसिया परिवार की विभिन्न शाखाओं के अधीन था। कुमायूँ पर समेकित प्रभुत्व प्राप्त करने वाला पहला राजवंश चन्द वंश था। इस वंश के संस्थापक इलाहाबाद के पास स्थित झूसी से आये सोम चन्द थे, जिन्होंने लगभग सातवीं शताब्दी में, कत्यूरी राजा की बेटी से शादी की, फिर कुमाऊं के अंदरूनी हिस्सों में बढ़ गए। दहेज के रूप में उन्हें चम्पावत नगर और साथ ही भाबर और तराई की भूमि दी गयी थी। चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित कर सोम चन्द और उनके वंशजों ने धीरे धीरे आस पास के क्षेत्रों पर आक्रमण और फिर अधिकार करना शुरू किया। इस प्रकार चम्पावत ही वह नाभिक था, जहाँ से पूरे कुमायूं पर चन्द प्रभुत्व का विस्तार हुआ, लेकिन यह पूरा होने में कई शताब्दियाँ लग गयी थी, और नैनीताल तथा इसके आसपास का क्षेत्र अवशोषित होने वाले अंतिम क्षेत्रों में से एक था। भीमताल, जो नैनीताल से केवल तेरह मील की दूरी पर है, वहाँ तेरहवीं शताब्दी में त्रिलोकी चन्द ने अपनी सरहदों की रक्षा के लिए एक किला बनाया था। लेकिन उस समय, नैनीताल स्वयं चन्द शासन के अधीन नहीं था, और राज्य की पश्चिमी सीमा से सटा हुआ था। सन १४२० में राजा उद्यान चन्द के शासनकाल में, चन्द राज्य की पश्चिमी सीमा कोशी और सुयाल नदियों तक विस्तृत थी, लेकिम रामगढ़ और कोटा अभी भी पूर्व खसिया शासन के अधीन थे। किराट चन्द, जिन्होंने १४८८ से १५०३ तक शासन किया, और अपने क्षेत्र का विस्तार किया, आखिरकार नैनीताल और आस पास के क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर पाए, जो इतने लंबे समय तक स्वतंत्र रहा था। खसिया राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता का पुन: प्राप्त करने का एक प्रयास किया। १५६० में, रामगढ़ के एक खसिया के नेतृत्व में, उन्होंने सफलता के एक संक्षिप्त क्षण का आनंद लिया, लेकिन बालो कल्याण चंद द्वारा निर्ममतापूर्वक गंभीरता के साथ उन्हें वश में कर लिया गया। इस अवधि में पहाड़ी क्षेत्र के प्रशासन पर बहुत कम या कोई प्रयास नहीं किया गया था। आइन-ए-अकबरी में कुमाऊँ के जिन भी महलों का उल्लेख किया गया है, वे सभी मैदानी क्षेत्रों में स्थित हैं। देवी चंद के शासनकाल के दौरान, जो १७२० में राजा बने थे, कुमाऊं पर गढ़वाल के राजा द्वारा आक्रमण किया गया, लेकिन उन्होंने क्षेत्र पर कोई कब्ज़ा नहीं किया। इसके बीस वर्ष बाद कुमाऊं की पहाड़ियों पर फिर से आक्रमण हुआ, इस बार रुहेलों द्वारा, जिनके साथ वर्ष १७४३ में युद्ध छिड़ गया था। रुहेला लड़ते हुए भीमताल तक घुस गए, और इसे लूट लिया। हालाँकि, उन्हें अंततः गढ़वाल के राजा द्वारा खरीद लिया गया, जिन्होंने उस समय कुमाऊं के तत्कालीन राजा कल्याण चंद के साथ एक अस्थायी गठबंधन बना लिया था। एक और आक्रमण, दो साल बाद, कल्याण चंद के प्रधान मंत्री शिव देव जोशी द्वारा निरस्त कर दिया गया। १७४७ में कल्याण चंद की मृत्यु के साथ, कुमायूं के राजाओं की शक्ति क्षीण होने लगी।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 247, "text": "सोम चन्द " } ], "category": "SHORT", "id": 915, "question": "चंद राजवंश के संस्थापक कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 182, "text": "चन्द वंश " } ], "category": "SHORT", "id": 916, "question": "कुमाऊं पर समेकित नियंत्रण हासिल करने वाला पहला राजवंश कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 917, "question": "नैनीताल क्षेत्र पहले किसके अधीन था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 295, "text": "कत्यूरी राजा" } ], "category": "SHORT", "id": 918, "question": "सोम चंद ने किस शासक की बेटी से शादी की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 824, "text": "तेरह मील" } ], "category": "SHORT", "id": 919, "question": "भीमताल से नैनीताल की दूरी कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 920, "question": "भीमताल में भीमेश्वर मंदिर का निर्माण किसने किया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्राचीन काल में लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं बनाते थे। प्रमुख देवता थे : देवराज इन्द्र, अग्नि, सोम और वरुण। उनके लिये वैदिक मन्त्र पढ़े जाते थे और अग्नि में घी, दूध, दही, जौ, इत्यागि की आहुति दी जाती थी। भारत एक विशाल देश है, लेकिन उसकी विशालता और महानता को हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि उसे देखें नहीं। इस ओर वैसे अनेक महापुरूषों का ध्यान गया, लेकिन आज से बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरू शंकराचार्य ने इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ (मठ) स्थापित उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। तीर्थों के प्रति हमारे देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है। इसलिए शंकराचार्य ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलाते है। लोगों की मान्यता है कि जो इन चारों धाम की यात्रा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं। हिन्दुओं के उपासना स्थलों को मन्दिर कहते हैं। प्राचीन वैदिक काल में मन्दिर नहीं होते थे। तब उपासना अग्नि के स्थान पर होती थी जिसमें एक सोने की मूर्ति ईश्वर के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती थी। एक नज़रिये के मुताबिक बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा बुद्ध और महावीर की मूर्तियों और मन्दिरों द्वारा पूजा करने की वजह से हिन्दू भी उनसे प्रभावित होकर मन्दिर बनाने लगे। हर मन्दिर में एक या अधिक देवताओं की उपासना होती है। गर्भगृह में इष्टदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। मन्दिर प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। कई मन्दिरों में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। अधिकाँश हिन्दू चार शंकराचार्यों को (जो ज्योतिर्मठ, द्वारिका, शृंगेरी और पुरी के मठों के मठाधीश होते हैं) हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। नववर्ष - द्वादशमासै: संवत्सर:। ' ऐसा वेद वचन है, इसलिए यह जगत्मान्य हुआ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 921, "question": "पूरे वर्ष का सबसे अच्छा प्रारंभिक दिन कौन सा होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 449, "text": "आदिगुरू शंकराचार्य " } ], "category": "SHORT", "id": 922, "question": "चार पीठों की स्थापना किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 899, "text": "चार धाम" } ], "category": "SHORT", "id": 923, "question": "हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 924, "question": "आर्यों के मुख्य देवताओं के क्या नाम है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्राचीन बौद्धिक धर्म ने ध्यानापरणीय अवशोषण अवस्था को निगमित किया। बुद्ध के प्रारंभिक उपदेशों में योग विचारों का सबसे प्राचीन निरंतर अभिव्यक्ति पाया जाता है। बुद्ध के एक प्रमुख नवीन शिक्षण यह था की ध्यानापरणीय अवशोषण को परिपूर्ण अभ्यास से संयुक्त करे. बुद्ध के उपदेश और प्राचीन ब्रह्मनिक ग्रंथों में प्रस्तुत अंतर विचित्र है। बुद्ध के अनुसार, ध्यानापरणीय अवस्था एकमात्र अंत नहीं है, उच्चतम ध्यानापरणीय स्थिती में भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता। अपने विचार के पूर्ण विराम प्राप्त करने के बजाय, किसी प्रकार का मानसिक सक्रियता होना चाहिए:एक मुक्ति अनुभूति, ध्यान जागरूकता के अभ्यास पर आधारित होना चाहिए। बुद्ध ने मौत से मुक्ति पाने की प्राचीन ब्रह्मनिक अभिप्राय को ठुकराया. ब्रह्मिनिक योगिन को एक गैरद्विसंक्य द्रष्टृगत स्थिति जहाँ मृत्यु मे अनुभूति प्राप्त होता है, उस स्थिति को वे मुक्ति मानते है। बुद्ध ने योग के निपुण की मौत पर मुक्ति पाने की पुराने ब्रह्मिनिक अन्योक्त (\"उत्तेजनाहीन होना, क्षणस्थायी होना\") को एक नया अर्थ दिया; उन्हें, ऋषि जो जीवन में मुक्त है के नाम से उल्लेख किया गया था। इन्हें भी देखें: प्राणायामयोगकारा(संस्कृत:\"योग का अभ्यास\", शब्द विन्यास योगाचारा, दर्शन और मनोविज्ञान का एक संप्रदाय है, जो भारत में 4 वीं से 5 वीं शताब्दी मे विकसित किया गया था। योगकारा को यह नाम प्राप्त हुआ क्योंकि उसने एक योग प्रदान किया, एक रूपरेखा जिससे बोधिसत्त्व तक पहुँचने का एक मार्ग दिखाया है। ज्ञान तक पहुँचने के लिए यह योगकारा संप्रदाय योग सिखाता है। ज़ेन (जिसका नाम संस्कृत शब्द \"ध्याना से\" उत्पन्न किया गया चीनी \"छ'अन\" के माध्यम से)महायान बौद्ध धर्म का एक रूप है। बौद्ध धर्म की महायान संप्रदाय योग के साथ अपनी निकटता के कारण विख्यात किया जाता है। पश्चिम में, जेन को अक्सर योग के साथ व्यवस्थित किया जाता है;ध्यान प्रदर्शन के दो संप्रदायों स्पष्ट परिवारिक उपमान प्रदर्शन करते है। यह घटना को विशेष ध्यान योग्य है क्योंकि कुछ योग प्रथाओं पर ध्यान की ज़ेन बौद्धिक स्कूल आधारित है। [81]योग की कुछ आवश्यक तत्वों सामान्य रूप से बौद्ध धर्म और विशेष रूप से ज़ेन धर्म को महत्वपूर्ण हैं। योग तिब्बती बौद्ध धर्म का केंद्र है। न्यिन्गमा परंपरा में, ध्यान का अभ्यास का रास्ता नौ यानों, या वाहन मे विभाजित है, कहा जाता है यह परम व्यूत्पन्न भी है। अंतिम के छह को \"योग यानास\" के रूप मे वर्णित किया जाता है, यह है:क्रिया योग, उप योग (चर्या), योगा याना, महा योग, अनु योग और अंतिम अभ्यास अति योग. सरमा परंपराओं नेमहायोग और अतियोग की अनुत्तारा वर्ग से स्थानापन्न करते हुए क्रिया योग, उपा (चर्या) और योग को शामिल किया हैं। अन्य तंत्र योग प्रथाओं में 108 शारीरिक मुद्राओं के साथ सांस और दिल ताल का अभ्यास शामिल हैं। अन्य तंत्र योग प्रथाओं 108 शारीरिक मुद्राओं के साथ सांस और दिल ताल का अभ्यास को शामिल हैं। यह न्यिन्गमा परंपरा यंत्र योग का अभ्यास भी करते है। (तिब. तरुल खोर), यह एक अनुशासन है जिसमे सांस कार्य (या प्राणायाम), ध्यानापरणीय मनन और सटीक गतिशील चाल से अनुसरण करनेवाले का ध्यान को एकाग्रित करते है। लुखंग मे दलाई लामा के सम्मर मंदिर के दीवारों पर तिब्बती प्राचीन योगियों के शरीर मुद्राओं चित्रित किया जाया है। चांग (1993) द्वारा एक अर्द्ध तिब्बती योगा के लोकप्रिय खाते ने कन्दली (तिब.तुम्मो) अपने शरीर में गर्मी का उत्पादन का उल्लेख करते हुए कहते है कि \"यह संपूर्ण तिब्बती योगा की बुनियाद है\". चांग यह भी दावा करते है कि तिब्बती योगा प्राना और मन को सुलह करता है, और उसे तंत्रिस्म के सैद्धांतिक निहितार्थ से संबंधित करते है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1341, "text": "ज़ेन" } ], "category": "SHORT", "id": 925, "question": "महायान बौद्ध धर्म के दुसरे रूप का क्या नाम है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 926, "question": "मृत्यु से छुटकारा पाने के प्राचीन ब्राह्मणवादी विचार को किसने खारिज किया?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 927, "question": "तत्ववर्तसूत्र किस धर्म का ग्रंथ है ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": 1007, "text": "योगकारा" } ], "category": "SHORT", "id": 928, "question": " बोधिसत्व तक पहुंचने मार्ग किसके द्वारा दिखाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1995, "text": "परम व्यूत्पन्न " } ], "category": "SHORT", "id": 929, "question": "निंग्मा परंपरा का दूसरा नाम क्या है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1946, "text": " नौ यानों, या वाहन" } ], "category": "SHORT", "id": 930, "question": "निंग्मा परंपरा में ध्यान के अभ्यास के रास्ते को कितने भागो में विभाजित किया गया हैं ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्रारंभिक 1500 के आसपास तैमूरी राजवंश के राजकुमार बाबर के द्वारा उमैरिड्स साम्राज्य के नींव की स्थापना हुई, जब उन्होंने दोआब पर कब्जा किया और खोरासन के पूर्वी क्षेत्र द्वारा सिंध के उपजाऊ क्षेत्र और सिंधु नदी के निचले घाटी को नियंत्रित किया। [5][5] 1526 में, बाबर ने दिल्ली के सुल्तानों में आखिरी सुलतान, इब्राहिम शाह लोदी, को पानीपत के पहले युद्ध में हराया। अपने नए राज्य की स्थापना को सुरक्षित करने के लिए, बाबर को खानवा के युद्ध में राजपूत संधि का सामना करना पड़ा जो चित्तौड़ के राणा साँगा के नेतृत्व में था। विरोधियों से काफी ज़्यादा छोटी सेना द्वारा हासिल की गई, तुर्क की प्रारंभिक सैन्य सफलताओं को उनकी एकता, गतिशीलता, घुड़सवार धनुर्धारियों और तोपखाने के इस्तेमाल में विशेषता के लिए ठहराया गया है। 1530 में बाबर का बेटा हुमायूँ उत्तराधिकारी बना लेकिन पश्तून शेरशाह सूरी के हाथों प्रमुख उलट-फेर सहे और नए साम्राज्य के अधिकाँश भाग को क्षेत्रीय राज्य से आगे बढ़ने से पहले ही प्रभावी रूप से हार गए। 1540 से हुमायूं एक निर्वासित शासक बने, 1554 में साफाविद दरबार में पहुँचे जबकि अभी भी कुछ किले और छोटे क्षेत्र उनकी सेना द्वारा नियंत्रित थे। लेकिन शेर शाह सूरी के निधन के बाद जब पश्तून अव्यवस्था में गिर गया, तब हुमायूं एक मिश्रित सेना के साथ लौटे, अधिक सैनिकों को बटोरा और 1555 में दिल्ली को पुनः जीतने में कामयाब रहे। हुमायूं ने अपनी पत्नी के साथ मकरन के खुरदुरे इलाकों को पार किया, लेकिन यात्रा की निष्ठुरता से बचाने के लिए अपने शिशु बेटे जलालुद्दीन को पीछे छोड़ गए। जलालुद्दीन को बाद के वर्षों में अकबर के नाम से बेहतर जाना गया। वे सिंध के शहर, अमरकोट में पैदा हुए जहाँ उनके चाचा अस्करी ने उन्हें पाला।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 304, "text": "इब्राहिम शाह लोदी" } ], "category": "SHORT", "id": 931, "question": "दिल्ली के अंतिम सुल्तान का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 932, "question": "पानीपत की पहली लड़ाई किस वर्ष लड़ी गई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1475, "text": "अस्करी" } ], "category": "SHORT", "id": 933, "question": "बादशाह अकबर के चाचा का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 904, "text": "हुमायूं " } ], "category": "SHORT", "id": 934, "question": "अकबर के पिता कौन थे ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 935, "question": "दिल्ली के सिंहासन के लिए सिकंदर शाह सूरी और अकबर ने कब युद्ध किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 936, "question": "उमरीद साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1394, "text": "अकबर" } ], "category": "SHORT", "id": 937, "question": "जलालुद्दीन को किस नाम से जाना जाता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "प्रेमकुमार मणि बता रहे हैं नंद वंश के बारे में। उनके मुताबिक, वह महापद्मनंद ही थे, जिन्हें पुराणों ने सर्व-क्षत्रान्तक (सभी क्षत्रियों का अंत करने वाला) कहा है। संभव है, ब्राह्मण पौराणिकता ने इन्हें ही परशुराम के रूप में चित्रित किया होपहले बता चुका हूं कि महाजनपदीय राजतंत्रों में सत्ता पलट के लिए हिंसा और विश्वासघात धीरे-धीरे साधारण चीजें होती गयीं। सभी राजा हर समय हिंसा और विश्वासघात से डरे-सहमे रहते थे। यह डर उन्हें अपने भाई-बंधुओं, पुत्रों, अधिकारियों से लेकर बाहरी दुश्मनों तक से था। मगध के प्रथम वृहद्रथ राजवंश के तीसरे राजा रिपुंजय की हत्या उसके मंत्री पुलिक ने कर दी थी। बिम्बिसार का हर्यंक वंश तो पितृहन्ता वंश ही कहा जाता है, जिसमें लगातार दो राजकुमारों ने अपने पिता राजाओं को वध कर सत्ता झपट ली। इस राजवंश ने लम्बे समय तक शासन किया, लेकिन इसके एक राजा महानन्दिन को शिशुनाग नाम के एक व्यक्ति ने अंततः उखाड़ फेंका और मगध की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। यह घटना ईसापूर्व 412 में हुई थी। हर्यंक वंश ने कुल मिला कर 133 वर्षों तक राज किया। लेकिन 412 से 344 ईसापूर्व तक मगध पर शिशुनाग अथवा शैशुनाग वंश का राज रहा। शिशुनाग ने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र से वैशाली में स्थानांतरित किया और इसके बेटे कला-अशोक के शासनकाल में 383 ईस्वीपूर्व में बौद्धों की दूसरी महासंगीति अथवा महापरिषद वैशाली में आयोजित हुई। इसके पश्चात मगध की राजधानी को पुनः पाटलिपुत्र में ला दिया गया, क्योंकि व्यापार और प्रशासन के ख्याल से यह अधिक उपयुक्त था। कला-अशोक के बेटे नन्दिवर्धन के राजकाल (366-344 ईसापूर्व) में एकबार फिर खूनी-खेल हुआ। इस राजा के एक अधिकारी ने राजकाज और दरबार में खास रुतबा बना लिया और अंततः धोखे से राजा की हत्या कर दी। हत्या करने वाला अधिकारी महापद्मनंद था, जिसका कहीं-कहीं महापद्मपति, उग्रसेन, अग्रसेन और यूनानी ग्रंथों में अग्रेमिस के रूप में भी उल्लेख मिलता है। वह निश्चित रूप से चालाक, कुटिल और महत्वाकांक्षी था। लेकिन यह भी कहा जाना चाहिए कि इन सब के साथ वह स्वप्नदर्शी था और उसमें राज-प्रबंधन और शासन करने की अद्भुत क्षमता थी। उसने जल्दी ही शिशुनाग-राजतन्त्र को अपने काबू में कर लिया और स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। यह घटना 344 ईसापूर्व की है। इस महापद्मनंद के नाम से ही इस पूरे राजवंश को नन्द वंश कहा जाता है। इस वंश के अंतिम राजा धननंद को ही अपदस्थ कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य राजवंश की स्थापना की थी। धननंद 322 ईसापूर्व में अपदस्थ हुआ और इसके साथ ही मौर्य काल का आरम्भ हो गया ,क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य ने सत्ता संभाल ली। इस तरह बहुत लम्बे समय तक नन्द वंश का शासन नहीं चला। 344 से 322 ईसापूर्व तक, यानि कुल जमा बाईस वर्षों तक। जनश्रुतियों और इतिहास में नौ नंदों की चर्चा है। माना जाता है कि ये सभी राजा थे। इनके नाम जान लेना बुरा नहीं होगा। ये थे – उग्रसेन, पाण्डुक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, गोविश्नक, दाससिद्धक, कैवर्त तथा धननंद। लेकिन यह भी कहा जाता है कि नन्द बस दो पीढ़ियों तक राज कर सके। उग्रसेन – जिसे महापद्मनंद भी कहा जाता है के आठ पुत्र थे। इन आठों में धननंद ही राजा हुआ। शेष नन्द संभव है सत्ता में भागीदार हों, और इसलिए सब मिलकर नौ-नन्द कहा जाता होगा। महापद्मनंद इतना होशियार था कि अपने पुत्रों के बीच एकता बनाये रखने हेतु एक तरकीब के तहत नौ-नन्द की पहल की होगी, ताकि सब संतुष्ट रहें। हालांकि यह एक अनुमान ही है। हमारा काम तो इतने भर से है कि नन्द वंश का राज बाईस वर्षों तक रहा। इस वंश को इतिहासकारों ने अपेक्षित महत्व नहीं दिया है। इसके अनेक कारण हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों और स्रोतों के अनुसार यह पहला शासक था, जो समाज के निचले पायदान से आया था। महापद्मनंद नापित (नाई ) परिवार से आता था और जन्म तथा तत्कालीन रिवाजों के अनुसार उसकी जाति शूद्र थी, जिसका काम लोगों की सेवा करना निर्धारित था, राज करना नहीं। मगध के समाज में भी ऐसे लोग पर्याप्त संख्या में थे, जो इस तरह के एक व्यक्ति के राजसत्ता में आ जाने से चकित और चिढ़े हुए थे। इसलिए महापद्मनंद की जितनी भी भर्त्सना संभव थी, उतनी की गयी है। उसे गणिका (वेश्या) पुत्र से लेकर नीच कुलोत्पन्न, अनभिजात, नापितकुमार आदि कह कर अवहेलना की गई है। यह तो निश्चित है कि समाज के तथाकथित ‘बड़े लोगों’ के बीच उसकी मान्यता नहीं थी। चूकि यही ‘बड़े लोग’ पुराण और अभिलेखों के रचयिता होते थे, इसलिए इन लोगों ने अपनी राय महापद्मनंद और पूरे नन्द-काल के बारे में रखी है। लेकिन उनकी इन घृणित टिप्पणियों से ही नन्द राजाओं की प्रकृति और प्रवृत्ति का भी पता चलता है। वह यह कि महापद्मनंद और अन्य नन्द राजा तथाकथित बड़े लोगों अर्थात द्विजों के सामाजिक स्वार्थों के अनुकूल नहीं रहे होंगे। इस आधुनिक ज़माने में भी इसी मगध (बिहार) में कर्पूरी ठाकुर को राजनीति में अपमानित होते देखा गया है। संयोग से कर्पूरी ठाकुर भी उसी नाई समाज से थे, जिससे महापद्मनंद थे। महापद्मनंद या उसके पुत्र धननंद ने भी द्विज समाज से समझौते की कोई पहल नहीं की और तथाकथित बड़े लोगों के ठसक की अवहेलना ही की। ऐसा भी कोई संकेत-साक्ष्य नहीं मिलता कि नंदों ने इन प्रश्रय-प्राप्त लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई की हो, जैसा कि हम आगे विचार करेंगे कि किस प्रकार नंदों ने वृहद परिप्रेक्ष्य में राजनीति को देखा और ईर्ष्या-डाह जैसी प्रवृत्तियों को विकसित करने में उनकी कोई रूचि नहीं रही। बावजूद धननंद के शासनकाल में द्विजों का एक कुटिल-विद्रोह हुआ, इसकी सूचना मिलती है। संभवतः इस विद्रोह का नेता चाणक्य था, जिसकी आज भी द्विज समाज में काफी प्रतिष्ठा है। कथा और इतिहास यही है कि चाणक्य ने एक दूसरे शूद्र युवक चन्द्रगुप्त को आगे किया और धननंद को सत्ताच्युत कर दिया गया। ऐतिहासिक स्रोत बतलाते हैं कि शूद्र चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मण कौटिल्य का शिष्यत्व स्वीकार 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{ "paragraphs": [ { "context": "फायर क्ले, गृह-निर्माण-योग्य पत्थर आदि अन्य खनिज हैं। असम एक कृषिप्रधान राज्य है। 1970-71 में कुल (मिजोरमयुक्त) लगभग 25,50,000 हेक्टेयर भूमि (कुल क्षेत्रफल का लगभग 1/3) कृषिकार्य कुल भूमि का 90 प्रतिशत मैदानी भाग में है। धान (1971) कुल भूमि (कृषियोग्य) के 72 प्रतिशत क्षेत्र में पैदा किया जाता है (20,00,000 हेक्टेयर) तथा उत्पादन 20,16,000 टन होता है। अन्य फसलें (क्षेत्रपफल 1,000 हेक्टेयर में) इस प्रकार हैं- गेहूँ 21; दालें 79; सरसों तथा अन्य तिलहन 139। कुल कृषिभूमि का 77 प्रतिशत खाद्य फसलों के उत्पादन में लगा है। इतना होते हुए भी प्रति व्यक्ति कृषिभूमि का औसत 0.5 एकड़ (0.2 हेक्टेयर) ही है। विभिन्न साधनों द्वारा भूमि को सुधारने के उपरान्त कृषि क्षेत्र को पाँच प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। चाय, जूट तथा गन्ना यहाँ की प्रमुख औद्योगिक तथा धनद फसलें हैं। चाय की कृषि के अन्तर्गत लगभग 65 प्रतिशत कृषिगत भूमि सम्मिलित है। आसाम के आर्थिक तन्त्र में इसका विशेष हाथ है। भारत की छोटी बड़ी 7,100 चाय बागान में से लगभग 700 असम में ही स्थित हैं। 1970 ई॰ में कुल 2,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय के बाग थे जिनसे लगभग 21,5 करोड़ कि॰ग्रा॰ (1970) चाय तैयार की गई। इस उद्योग में प्रतिदिन 3,79,781 मजदूर लगे हैं, जिनमें अधिकांश उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के हैं। जूट लगभग छह प्रतिशत कृषियोग्य भूमि में उगाई जाती है। आर्थिक दृष्टिकोण से यह अधिक महत्वपूर्ण है। आसाम घाटी के पूर्वी भाग तथा दरंग जनपद इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। 1970 ई॰ में यहाँ की नदियों में से 26.5 हजार टन मछलियाँ भी पकड़ी गईं। वर्षा की अधिकता के कारण सिंचाई की व्यवस्था व्यापक रूप से लागू नहीं की जा सकी, केवल छोटी-छोटी योजनाएँ ही क्रियान्वित की गई हैं। कुल कृषिगत भूमि का मात्र 22 प्रतिशत ही सिंचित है। 1964 में प्रारम्भ की गई जमुना सिंचाई योजना (दीफू के निकट) इस राज्य की सबसे बड़ी योजना है जिससे लगभग 26,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाने का अनुमान है। नहरों की कुल लम्बाई 137.15 कि॰मी॰ रहेगी। राज्य के प्रमुख शक्ति-उत्पादक-केन्द्र (क्षमता तथा स्वरूप के साथ) ये हैं - गुवाहाटी (तापविद्युत्‌) 32,500 किलोवाट, नामरूप (तापविद्युत्) लखीमपुर में नहरकटिया से 20 कि॰मी॰, 23,000 किलोवाट का प्रथम चरण 1965 में पूर्ण। 30,000 किलोवाट का दूसरा चरण 1972-73 तक पूर्ण। जलविद्युत्‌ केन्द्रों में यूनिकेम प्रमुख है (पूरी क्षमता 72,000 किलोवाट)। आसाम के आर्थिक तन्त्र में उद्योग धन्धों में, विशेष रूप से कृषि पर आधारित, तथा खनिज तेल का महत्वपूर्ण योगदान है। गुवाहाटी तथा डिब्रूगढ़ दो स्थान इसके मुख्य केन्द्र हैं। कछार का सिलचर नगर तीसरा प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। चाय उद्योग के अतिरक्ति वस्त्रोद्योग (शीलघाट, जूट तथा जारीरोड सिल्क) भी यहाँ उन्नत है। हाल ही में एक कपड़ा मिल गौहाटी में स्थापित की गई है। एरी, मूगा तथा पाट आसाम के उत्कृष्ट वस्त्रों में हैं। तेलशोधक कारखाने दिगबोई (पाँच लाख टन प्रति वर्ष) तथा नूनमाटी (7.5 लाख टन प्रति वर्ष) में है। उर्वरक केन्द्र नामरूप में हैं जहाँ प्रतिवर्ष 2,75,000 टन यूरिया तथा 7,05,000 टन अमोनिया का उत्पादन किया जाता है। चीरा में सीमेण्ट का कारखाना है जहाँ प्रतिवर्ष 54,000 टन सीमेण्ट का उत्पादन होता है। इनके अतिरिक्त वनों पर आधारित अनेक उद्योग धन्धे प्राय: सभी नगरों में चल रहे हैं। धुबरी की हार्डबोर्ड फैक्टरी तथा गुवाहाटी का खैर तथा आगर तैल विशेष उल्लेखनीय हैं। आवागमन तथा यातायात के साधनों के सुव्यवस्थित विकास में इस प्रदेश के उच्चावचन तथा नदियों का विशेष महत्त्व है। आसाम घाटी उत्तरी दक्षिणी भाग को स्वतन्त्र भारत में एक दूसरे से जोड़ दिया गया है। गौहाटी के निकट यह सम्पूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी का एक मात्र सेतु है। 1966 में रेलमार्गों की कुल लम्बाई 5,827 कि॰मी॰ थी (3,334 कि॰मी॰ साइडिंग के साथ)। धुबरी, गौहाटी, लामडि, सिलचर आदि रेलमार्ग द्वारा मिले हुए हैं। राजमार्ग कुल 20,678 कि॰ मी॰ है जिसमें राष्ट्रीय मार्ग 2,934 कि॰मी॰ (1968) है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 944, "question": "असम में वर्ष 1970-71 में कितने हेक्टेयर क्षेत्र में चावल उगाया जाता था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 945, "question": "नौगम्य नदियों की लंबाई कितनी है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1548, "text": "1964 " } ], "category": "SHORT", "id": 946, "question": "जमुना सिंचाई योजना कब शुरु हुई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2726, "text": "54,000 टन" } ], "category": "SHORT", "id": 947, "question": "चीरा के सीमेंट कारखाने में प्रतिवर्ष कितने टन सीमेंट का उत्पादन होता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 997, "text": "21,5 करोड़ कि॰ग्रा" } ], "category": "SHORT", "id": 948, "question": "असम में वर्ष 1970 में कितने किलोग्राम चाय का उत्पादन होता था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2842, "text": "धुबरी " } ], "category": "SHORT", "id": 949, "question": "हार्डबोर्ड फैक्ट्री कहां स्थित है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "बंगाल की खाड़ी एक क्षारीय जल का सागर है। यह हिन्द महासागर का भाग है। पृथ्वी का स्थलमंडल कुछ भागों में टूटा हुआ है जिन्हें विवर्तनिक प्लेट्स कहते हैं। बंगाल की खाड़ी के नीचे जो प्लेट है उसे भारतीय प्लेट कहते हैं। यह प्लेट हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट का भाग है और मंथर गति से पूर्वोत्तर दिशा में बढ़ रही है। यह प्लेट बर्मा लघु-प्लेट से सुंडा गर्त पर मिलती है। निकोबार द्वीपसमूह एवं अंडमान द्वीपसमूह इस बर्मा लघु-प्लेट का ही भाग हैं। भारतीय प्लेट सुंडा गर्त में बर्मा प्लेट के नीचे की ओर घुसती जा रही है। यहां दोनों प्लेट्स के एक दूसरे पर दबाव के परिणामस्वरूप तापमान एवं दबाव में ब्ढ़ोत्तरी होती है। यह बढ़ोत्तरी कई ज्वालामुखी उत्पन्न करती है जैसे म्यांमार के ज्वालामुखी और एक अन्य ज्वालामुखी चाप, सुंडा चाप। २००४ के सुमात्र-अंडमान भूकम्प एवं एशियाई सूनामी इसी क्षेत्र में उत्पन्न दबाव के कारण बने एक पनडुब्बी भूकम्प के फ़लस्वरूप चली विराट सूनामी का परिणाम थे। सीलोन द्वीप से कोरोमंडल तटरेखा से लगी-लगी एक ५० मीटर चौड़ी पट्टी खाड़ी के शीर्ष से फ़िर दक्षिणावर्त्त अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को घेरती जाती है। ये १०० सागर-थाह रेखाओं से घिरी है, लगभग ५० मी. गहरे। इसके परे फ़िर ५००-सागर-थाह सीमा है। गंगा के मुहाने के सामने हालांकि इन थाहों के बीच बड़े अंतराल हैं। इसका कारण डेल्टा का प्रभाव है। एक 14 कि.मी चौड़ा नो-ग्राउण्ड स्वैच बंगाल की खाड़ी के नीचे स्थित समुद्री घाटी है। इस घाटी के अधिकतम गहरे अंकित बिन्दुओं की गहरायी १३४० मी. है। पनडुब्बी घाटी बंगाल फ़ैन का ही एक भाग है। यह फ़ैन विश्व का सबसे बड़ा पनडुब्बी फ़ैन है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 120, "text": "विवर्तनिक प्लेट्स" } ], "category": "SHORT", "id": 950, "question": "बंगाल की खाड़ी के नीचे की प्लेट को क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 307, "text": "बर्मा लघु-प्लेट" } ], "category": "SHORT", "id": 951, "question": "अंडमान द्वीप समूह और निकोबार द्वीप समूह किस प्लेट का हिस्सा हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 952, "question": "केरिलिया जेरडोनी कहाँ पाया जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1330, "text": "फ़ैन" } ], "category": "SHORT", "id": 953, "question": "सबमरीन घाटी किसका हिस्सा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 954, "question": "केरिलिया जेरडोनी क्या है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "बहुत सी निजी बस सेवाएं भी चेन्नई को अन्य शहरों से सुलभ कराती हैं। चेन्नई दक्षिण रेलवे का मुख्यालय है। शहर में दो मुख्य रेलवे टार्मिनल हैं। चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन, जहां से सभी बड़े शहरों जैसे मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद, कोच्चि, कोयंबतूर, तिरुवनंतपुरम, इत्यादि के लिए रेल-सुविधा उपलब्ध हैं। चेन्नई एगमोर रेलवे स्टेशन से प्रायः तमिलनाडु के शहरों की रेल सेवाएं ही उपलब्ध हैं। कुछ निकटवर्ती राज्य के शहरों की भी रेलगाड़ियां यहां से चलती हैं। शहर में लोक यातायात हेतु बस, रेल, ऑटोरिक्शा आदि सर्वसुलभ यातायात हैं। चेन्नई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क भारत में सबसे पुराना है। इसमें चार ब्रॉड गेज रेल क्षेत्र हैं जो शहर में दो स्थानों चेन्नई सेंट्रल और चेन्नई बीच रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं। इन टर्मिनल से शहर में निम्न सेक्टरों के लिए नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं:चेन्नई सेंट्रल/चेन्नई बीच - अरक्कोणम - तिरुट्टनी (चेन्नई उपनगरीय रेलवे – पश्चिम लाइन)चेन्नई सेंट्रल/ चेन्नई बीच – गुम्मिडीपूंडी - सुलुरपेट (चेन्नई उपनगरीय रेलवे)चेन्नई बीच – तांबरम - चेंगलपट्टू - तिरुमलैपुर (कांचीपुरम) (चेन्नई उपनगरीय रेलवे – दक्षिण लाइन)चौथा सेक्टर भूमि से उच्च स्तर पर है और चेन्नई बीच को वेलाचेरी से जोड़ता है और शेष जाल से भी जुड़ा हुआ है। चेन्नई मेट्रो चेन्नई मेट्रो चेन्नई के लिए अनुमोदित एक त्वरित यातायात सेवा है। इसके प्रथम चरण में दो लाइने प्रयोग में है एवम् अन्य लाइनों का कार्य निर्माणाधीन है यह पूरी परियोजना पहले चरण के दो गलियारों की लागत १४,६०० करोड़ रुपये है। जो ५०.१ कि॰मी॰ लंबे है २००७ के अनुंआन से ९५९६ करोड लागत आयी थी। [3].मेट्रोपॉलिटन ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन (MTC) शहर में बस यातायात संचालित करता है। निगम का २७७३ बसों का बेड़ा २८८ मार्गों पर ३२.५ लाख यात्रियों को दैनिक परिवहन उपलब्ध कराता है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 108, "text": "दो " } ], "category": "SHORT", "id": 955, "question": "चेन्नई में कितने मुख्य रेलवे टर्मिनल हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 579, "text": "चार " } ], "category": "SHORT", "id": 956, "question": "चेन्नई में कितने ब्रॉड गेज रेलवे जोन हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 957, "question": "चेन्नई में यातायात की भीड़ और प्रदूषण की समस्या को देखते हुए प्रशासन ने क्या निर्माण किया है ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 1500, "text": "२७७३ बसों" } ], "category": "SHORT", "id": 958, "question": "महानगर परिवहन निगम कितनी बसों का संचालन करती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 959, "question": "अन्ना सलाई, जेमिनी फ्लाईओवर का निर्माण कब हुआ था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 520, "text": "चेन्नई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क" } ], "category": "SHORT", "id": 960, "question": "भारत का सबसे पुराना रेलवे नेटवर्क कौन सा है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1465, "text": "बस यातायात" } ], "category": "SHORT", "id": 961, "question": "महानगर परिवहन निगम चेन्नई शहर में किस यातायात को संचालित करता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "बुर्ज़होम पुरातात्विक स्थल (श्रीनगर के उत्तरपश्चिम में 16 किलोमीटर (9.9 मील) स्थित) में पुरातात्विक उत्खनन ने 3,000 ईसा पूर्व और 1,000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्त्व के चार चरणों का खुलासा किया है। अवधि I और II नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं; अवधि ईएलआई मेगालिथिक युग (बड़े पैमाने पर पत्थर के मेन्शर और पहिया लाल मिट्टी के बर्तनों में बदल गया); और अवधि IV प्रारंभिक ऐतिहासिक अवधि (उत्तर-महापाषाण काल) से संबंधित है। प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। माना जाता है कि यहाँ पर भगवान शिव की पत्नी देवी सती रहा करती थीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से ढकी हुई थी। यहाँ एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर हरा दिया और ज़्यादातर पानी वितस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा दिया। इस तरह इस जगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तर्कसंगत प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर (अथवा कछुओं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम निकला। कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इतिहास कल्हण के ग्रन्थ राजतरंगिणी से (और बाद के अन्य लेखकों से) मिलता है। प्राचीन काल में यहाँ हिन्दू आर्य राजाओं का राज था। मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया। पूर्व-मध्ययुग में यहाँ के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने एक विशाल साम्राज्य क़ायम कर लिया था। कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा। कश्मीर शैवदर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहाँ के महान मनीषीयों में पतञ्जलि, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, कल्हण, क्षेमराज आदि हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योग वासिष्ठ यहीं लिखे गये। रणबीर सिंह के पोते महाराज हरि सिंह, जो 1925 में कश्मीर के सिंहासन पर चढ़े थे, 1947 में उपमहाद्वीप के ब्रिटिश शासन और ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के बाद के नए स्वतन्त्र डोमिनियन ऑफ़ इण्डिया और डोमिनियन के पाकिस्तान विभाजन के बाद राज करने वाले सम्राट थे। 1948 के अन्तिम दिनों में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में युद्ध विराम पर सहमति बनी।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 28, "text": "श्रीनगर" } ], "category": "SHORT", "id": 962, "question": "बुर्जहोम पुरातात्विक स्थल कहाँ स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 963, "question": "पाकिस्तान द्वारा कश्मीर और लदाख के कितने क्षेत्र को नियंत्रित किया जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1518, "text": "1925" } ], "category": "SHORT", "id": 964, "question": "राजा हरि सिंह ने कश्मीर की राजगद्दी कब संभाली ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 215, "text": "नवपाषाण युग" } ], "category": "SHORT", "id": 965, "question": "अवधि I और II किस काल ​​को प्रदर्शित करते हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 915, "text": "कल्हण" } ], "category": "SHORT", "id": 966, "question": "राजतरंगिणी के लेखक कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 967, "question": "कश्मीर के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध कब हुए थे ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 845, "text": "कछुओं की झील" } ], "category": "SHORT", "id": 968, "question": "कश्यपमार का क्या अर्थ होता है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "बेगम हज़रत महल का नाम मुहम्मदी ख़ानुम था, और उनका जन्म फ़ैज़ाबाद, अवध में हुआ था। वह पेशे से एक तवायफ़ थी और अपने माता-पिता द्वारा बेचे जाने के बाद ख़्वासीन के रूप में शाही हरम में ले लिया गया था। तब उन्हें शाही आधिकारियों के पास बेचा गया था, और बाद में वे 'परि' के तौर पर पदोन्नत हुईं, और उन्हें 'महक परि' के नाम से जाना जाता था। अवध के नवाब की शाही रखैल के तौर पर स्वीकार की जाने पर उन्हें \"बेगम\" का ख़िताब हासिल हुआ, और उनके बेटे बिरजिस क़द्र के जन्म के बाद उन्हें 'हज़रत महल' का ख़िताब दिया गया था। वे आख़िरी ताजदर-ए-अवध, वाजिद अली शाह की छोटी पत्नी थीं। 1856 में अंग्रेज़ों ने अवध पर क़ब्ज़ा कर लिया था और वाजिद अली शाह को कलकत्ते में निर्वासित कर दिया गया था। कलकत्ते में उनके पति निर्वासित होने के बाद, बेगम हज़रत महल ने अवध रियासत के राजकीय मामलों को संभाला। आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान, 1857 से 1858 तक, राजा जयलाल सिंह की अगुवाई में बेगम हज़रत महल के हामियों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ बग़ावत की; बाद में, उन्होंने लखनऊ पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया और उन्होंने अपने बेटे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) घोषित कर दिया। बेगम हज़रत महल की प्रमुख शिकायतों में से एक यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सड़कें बनाने के लिए मंदिरों और मस्जिदों को आकस्मिक रूप से ध्वस्त किया था। विद्रोह के अंतिम दिनों में जारी की गई एक घोषणा में, उन्होंने अंग्रेज़ सरकार द्वारा धार्मिक आज़ादी की अनुमति देने के दावे का मज़ाक उड़ाया: जब अंग्रेज़ों के आदेश के तहत सेना ने लखनऊ और ओध के अधिकांश इलाक़े को क़ब्ज़ा कर लिया, तो हज़रत महल को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 66, "text": "अवध" } ], "category": "SHORT", "id": 969, "question": "हजरत महल किस प्रदेश में काम करती थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 970, "question": "लखनऊ में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 22, "text": "मुहम्मदी ख़ानुम" } ], "category": "SHORT", "id": 971, "question": "बेगम हजरत महल का नाम क्या था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 554, "text": "1856" } ], "category": "SHORT", "id": 972, "question": "अवध पर अंग्रेजों ने कब्जा कब किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 623, "text": "कलकत्ते " } ], "category": "SHORT", "id": 973, "question": "वाजिद अली शाह को अंग्रेजो द्वारा कहाँ निर्वासित कर दिया गया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "बौद्ध भिक्षु गुरु रिन्पोचे (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में ख्ये बुम्सा, पूर्वी तिब्बत में खाम के मिन्यक महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ ईस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज फुन्त्सोंग नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा युक्सोम में सिक्किम का प्रथम चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ। फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, तेन्सुंग नामग्याल ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को युक्सोम से रबदेन्त्से स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में भूटान में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया। 1791 में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम किंग वंश का भाग बन गया। पड़ोसी देश भारत में ब्रतानी राज आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन नेपाल के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं तराई समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का गोरखा युद्ध रहा। सिक्किम और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई तितालिया संधि के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 974, "question": "मिन्याक पैलेस के राजकुमार कौन थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 569, "text": "युक्सोम" } ], "category": "SHORT", "id": 975, "question": "बौद्ध भिक्षुओं द्वारा सिक्किम का पहला राजा कहां घोषित किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 703, "text": "तेन्सुंग नामग्याल " } ], "category": "SHORT", "id": 976, "question": "फुंटसॉन्ग नामग्याल के बेटे का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1912, "text": "डाक्टर अर्चिबाल्ड" } ], "category": "SHORT", "id": 977, "question": "सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 423, "text": "राजतन्त्र" } ], "category": "SHORT", "id": 978, "question": "खे बुम्सा के वंशजों ने सिक्किम राज्य में किस प्रशासनिक तंत्र की स्थापना की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1716, "text": "१८१७" } ], "category": "SHORT", "id": 979, "question": " नेपाल द्वारा सिक्किम के कुछ भागो को किस वर्ष अधिकृत किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 980, "question": " अंग्रेज अधिकारी सर जोसेफ डाल्टन और डॉ. आर्चीबाल्ड कैंपबेल किस वर्ष बिना अनुमति के सिक्किम के पहाड़ों पर पहुंच गए थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मन्दिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मन्दिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालाँकि मन्दिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मन्दिर के अन्दरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयन्त्र भी यहाँ देखा जा सकता है। लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मन्दिर है। 12 खण्डों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मन्दिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं। ऋषिकेश से 22 किलोमीटर की दूरी पर 3,000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है। यह जगह पर्यटन के लिये बहुत मशहूर है। राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे विकतमसंवत 2007 में श्री जयदयाल गोयन्दकाजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। ऋषिकेश से नीलकण्ठ मार्ग के बीच यह स्थान आता है जिसका नाम है फूलचट्टी , मोहनचट्टी , यह स्थान बहुत ही शान्त वातावरण का है यहाँ चारो और सुन्दर वादियाँ है , नीलकण्ठ मार्ग पर मोहनचट्टी आकर्षण का केंद्र बनता है |यह हिन्दी-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अंग्रेजी- All India Institute of Medical Science का संक्षिप्त नाम है, भारत का दिल्ली के बाद यह देश का सबसे बड़ा चिकित्सालय है,अस्पताल परिसर 400 मीटर के दायरे में फैला है देखने योग्य भव्य ईमारत है,इसके कई भाग हैं-ट्रॉमा सेण्टर, Emergency आदि", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 981, "question": " मंदिरो में आमतौर पर किस प्रकार की गतिविधि होती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 465, "text": "12 " } ], "category": "SHORT", "id": 982, "question": "कैलाश निकेतन मंदिर कितने ब्लाक में बना हुआ है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1031, "text": "श्री जयदयाल गोयन्दकाजी " } ], "category": "SHORT", "id": 983, "question": "गीता भवन का निर्माण किसने करवाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 974, "text": "राम झूला " } ], "category": "SHORT", "id": 984, "question": "गीता भवन किस प्रसिद्ध पुल के समीप स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 985, "question": "ऋषिकेश से नीलकंठ मार्ग तक तीर्थयात्रियों को ठहरने के लिए किस प्रकार के कमरे मिलते है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत का अंतरिक्ष सम्बन्धी अनुभव बहुत पुराना है। भारत और चीन के बीच रेशम मार्ग से विचारों एवं वस्तुओं का आदान प्रदान हुआ करता था। जब टीपू सुल्तान द्वारा मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को खदेड़ने में रॉकेट के प्रयोग को देखकर विलियम कंग्रीव प्रभावित हुआ, तो उसने 1804 में कंग्रीव रॉकेट का आविष्कार किया, रॉकेट पड़ोसी देश चीन का आविष्कार था और आतिशबाजी के रूप में पहली बार प्रयोग में लाया गया। आज के आधुनिक तोपखानों कीमंगल भाटी ने ििसरओ की खोज 1945 में की थी। 1947 में अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग, एवं अनुसंधान एवं विकास की संभाव्यता की वजह से विख्यात हुए। भारत जनसांख्यिकीय दृष्टि से विशाल होने की वजह से, दूरसंचार के क्षेत्र में कृत्रिम उपग्रहों की प्रार्थमिक संभाव्यता को देखते हुए, भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना की गई। 1960-1970भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। वे वैज्ञानिक कल्पना एवं राष्ट्र-नायक के रूप में जाने गए। 1957 में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भांपा। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास को अहम् भाग माना, 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा। परमाणु उर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा, जो कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, 1962 में 'अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति' (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डॉ॰ साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त कियाजापान और यूरोप को छोड़कर, हर मुख्य अंतरिक्ष कार्यक्रम कि तरह, भारत ने अपने विदित सैनिक प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम को सक्षम कराने में लगाने के बजाय, कृत्रिम उपग्रहों को प्रक्षेपण में समर्थ बनाने के उद्धेश्य हेतु किया। 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना के साथ ही, इसने अनुसंधित रॉकेट का प्रक्षेपण शुरू कर दिया, जिसमें भूमध्य रेखा की समीपता वरदान साबित हुई। ये सभी नव-स्थापित थुंबा भू-मध्यीय रॉकेट अनुसंधान केन्द्र से प्रक्षेपित किए गए, जो कि दक्षिण केरल में तिरुवंतपुरम के समीप स्थित है। शुरुआत में, अमेरिका एवं फ्रांस के अनुसंधित रॉकेट क्रमश: नाइक अपाचे एवं केंटोर की तरह, उपरी दबाव का अध्ययन करने के लिए प्रक्षेपित किए गए, जब तक कि प्रशांत महासागर में पोत-आधारित अनुसंधित रॉकेट से अध्ययन शुरू न हुआ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 854, "text": "डॉ विक्रम साराभाई " } ], "category": "SHORT", "id": 986, "question": "भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक किसे कहा जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 987, "question": "ठोस इंधन से निर्मित भारत के अनुसंधान रॉकेट का क्या नाम है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 55, "text": "चीन" } ], "category": "SHORT", "id": 988, "question": "कांग्रेव रॉकेट का आविष्कार किस देश ने किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 997, "text": "1957" } ], "category": "SHORT", "id": 989, "question": "स्पुतनिक का प्रक्षेपण किस वर्ष हुआ था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 150, "text": "मैसूर युद्ध में" } ], "category": "SHORT", "id": 990, "question": "टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को खदेरने के लिए रॉकेट का इस्तेमाल किस युद्ध में किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 991, "question": "भारत और चीन के बीच सामानों का आदान-प्रदान किस मार्ग द्वारा होता था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत का संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित करता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली की संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। भारत का प्रशासन संघीय ढांचे के अन्तर्गत चलाया जाता है, जिसके अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार और राज्य स्तर पर राज्य सरकारें हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान में दी गई रूपरेखा के आधार पर होता है। वर्तमान में भारत में २८ राज्य और ८ केंद्र-शासित प्रदेश हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में, स्थानीय प्रशासन को राज्यों की तुलना में कम शक्तियां प्राप्त होती हैं। भारत का सरकारी ढाँचा, जिसमें केंद्र राज्यों की तुलना में ज़्यादा सशक्त है, उसे आमतौर पर अर्ध-संघीय (सेमि-फ़ेडेरल) कहा जाता रहा है, पर १९९० के दशक के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों के कारण इसकी रूपरेखा धीरे-धीरे और अधिक संघीय (फ़ेडेरल) होती जा रही है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं:- न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं, जिसके दो सदन हैं – उच्चसदन राज्यसभा, अथवा राज्यपरिषद् और निम्नसदन लोकसभा. राज्यसभा में २४५ सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में ५४५। राज्यसभा एक स्थाई सदन है और इसके सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से ६ वर्षों के लिये होता है। राज्यसभा के ज़्यादातर सदस्यों का चयन राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है, और हर दूसरे साल राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य पदमुक्त हो जाते हैं। लोकसभा के ५४३ सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, ५ वर्षों की अवधि के लिये आम चुनावों के माध्यम से किया जाता है जिनमें १८ वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर सकते हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 133, "text": "द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली" } ], "category": "SHORT", "id": 992, "question": "भारत में किस तरह की संसदीय प्रणाली चलती है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 993, "question": "किसी राष्ट्र का प्रमुख कौन होता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1038, "text": " २४५ " } ], "category": "SHORT", "id": 994, "question": "भारत में राज्य सभा में कितने सदस्य होते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 860, "text": "तीन" } ], "category": "SHORT", "id": 995, "question": "कार्यपालिका के प्रमुख रूप से कितने अंग होते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1149, "text": "६ वर्षों " } ], "category": "SHORT", "id": 996, "question": "राज्य सभा में राज्य सभा सदस्यों का कार्यकाल कितने वर्षो का होता है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत के उत्तर में बसा नेपाल रंगों से भरपूर एक सुन्दर देश है। यहाँ वह सब कुछ है जिसकी तमन्ना एक आम सैलानी को होती है। देवताओं का घर कहे जाने वाले नेपाल विविधाताओं से पूर्ण है। इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहाँ एक ओर यहाँ बर्फ से ढकीं पहाड़ियाँ हैं, वहीं दूसरी ओर तीर्थस्थान है। रोमांचक खेलों के शौकीन यहाँ रिवर राफ्टिंग, रॉक क्लाइमिंग, जंगल सफ़ारी और स्कीइंग का भी मजा ले सकते हैं। लुम्बिनी महात्मा बुद्ध की जन्म स्थली है। यह उत्तर प्रदेश की उत्तरी सीमा के निकट वर्तमान नेपाल में स्थित है। यूनेस्को तथा विश्व के सभी बौद्ध सम्प्रदाय (महायान, बज्रयान, थेरवाद आदि) के अनुसार यह स्थान नेपाल के कपिलवस्तु में है जहाँ पर युनेस्को का आधिकारिक स्मारक लगायत सभी बुद्ध धर्म के सम्प्रयायौं ने अपने संस्कृति अनुसार के मन्दिर, गुम्बा, बिहार आदि निर्माण किया है। इस स्थान पर सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में प्राकृत भाषा में बुद्ध का जन्म स्थान होने का वर्णन किया हुआ शिलापत्र अवस्थित है। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहाँ सीता माँ माता का जन्म हुवा था। ये नगर प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी माना जाता है। यहाँ पर प्रसिद्ध राजा जनक थे जो सीता माता जी के पिता थे। सीता माता का जन्म मिट्टी के घड़े से हुआ था। यह शहर भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की ससुराल के रूप में विख्यात है। मुक्तिनाथ वैष्‍णव सम्प्रदाय के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। भारत में बिहार के वाल्मीकि नगर शहर से कुछ दूरी पर जाने पर गण्डक नदी से होते हुए जाने का मार्ग है। दरअसल एक पवित्र पत्‍थर होता है जिसको हिन्दू धर्म में पूजनीय माना जाता है। यह मुख्‍य रूप से नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली काली गण्‍डकी नदी में पाया जाता है। जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित हैं उसको मुक्तिक्षेत्र' के नाम से जाना जाता हैं। हिन्दू धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार यह वह क्षेत्र है, जहाँ लोगों को मुक्ति या मोक्ष प्राप्‍त होता है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफ़ी मुश्किल है। फिर भी हिन्दू धर्मावलम्बी बड़ी संख्‍या में यहाँ तीर्थाटन के लिए आते हैं। यात्रा के दौरान हिमालय पर्वत के एक बड़े हिस्‍से को लाँघना होता है। यह हिन्दू धर्म के दूरस्‍थ तीर्थस्‍थानों में से एक है। काठमाण्डु नगर से 29 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में छुट्टियाँ बिताने की खूबसूरत जगह ककनी स्थित है। यहाँ से हिमालय का ख़ूबसूरत नजारा देखते ही बनता है। ककनी से गणोश हिमल, गौरीशंकर 7134 मी॰, चौबा भामर 6109 मी॰, मनस्लु 8163 मी॰, हिमालचुली 7893 मी॰, अन्नपूर्णा 8091 मी॰ समेत अनेक पर्वत चोटियों को करीब से देखा जा सकता है। समुद्र तल से 4360 मी॰ की ऊँचाई पर स्थित गोसाई कुण्ड झील नेपाल के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। काठमांडु से 132 किलोमीटर दूर धुंचे से गोसाई कुण्ड पहुँचना सबसे सही विकल्प है। उत्तर में पहाड़ और दक्षिण में विशाल झील इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं। यहाँ और भी नौ प्रसिद्ध झीलें हैं। जैसे सरस्वती भरव, सौर्य और गणोश कुण्ड आदि।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 907, "text": "जनकपुर नेपाल" } ], "category": "SHORT", "id": 997, "question": "माता सीता का जन्म कहाँ हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 998, "question": "पशुपतिनाथ मंदिर के समीप नदी का क्या नाम है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 999, "question": "महाभारत का युद्ध कब हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 391, "text": "लुम्बिनी " } ], "category": "SHORT", "id": 1000, "question": "नेपाल के किस क्षेत्र में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था? " }, { "answers": [ { "answer_start": 1055, "text": "राजा जनक" } ], "category": "SHORT", "id": 1001, "question": "माता सीता के पिता का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2302, "text": "4360 मी॰" } ], "category": "SHORT", "id": 1002, "question": "समुद्र तल से गोसाई कुंड झील की ऊंचाई कितनी है? " }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1003, "question": " कैलासनाथ आदियोगी महादेव जिस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे उस स्थान को किस नाम से जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 588, "text": "नेपाल के कपिलवस्तु " } ], "category": "SHORT", "id": 1004, "question": "यूनेस्को के अनुसार दुनियां के सभी बौद्ध संप्रदायों ने कहाँ अपने मंदिर, गुम्बा और निवास का निर्माण किया है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत में रेलवे के लिए पहली बार प्रस्ताव मद्रास में १८३२ में किए गए थे. भारत में पहली ट्रेन १८३७ में मद्रास में लाल पहाड़ियों से चिंताद्रीपेत पुल तक चली थी. इसे आर्थर कॉटन द्वारा सड़क-निर्माण के लिए ग्रेनाइट परिवहन के लिए बनाया गया था| इसम विलियम एवरी द्वारा निर्मित रोटरी स्टीम लोकोमोटिव प्रयोग किया गया था| १८४५ में, गोदावरी बांध निर्माण रेलवे को गोदावरी नदी पर बांध के निर्माण के लिए पत्थर की आपूर्ति करने के लिए राजामुंदरी के डोलेस्वरम में कॉटन द्वारा बनाया गया था। ८ मई १८४५ को, मद्रास रेलवे की स्थापना की गई, उसके बाद उसी वर्ष ईस्ट इंडिया रेलवे की स्थापना की गई। १ अगस्त १८४९ में ग्रेट इंडियन प्रायद्वीपीय रेलवे (GIPR) की स्थापना की गई संसद के एक अधिनियम द्वारा। १८५१ में रुड़की में सोलानी एक्वाडक्ट रेलवे बनाया गया था। इसका नाम थॉमसन स्टीम लोकोमोटिव द्वारा रखा गया था, जिसका नाम उस नाम के एक ब्रिटिश अधिकारी के नाम पर रखा गया था। रेलवे ने सोलानी नदी पर एक एक्वाडक्ट के लिए निर्माण सामग्री पहुंचाई। १८५२ में, मद्रास गारंटी रेलवे कंपनी की स्थापना की गई। सन् १८५० में ग्रेट इंडियन प्रायद्वीपीय रेलवे कम्पनी ने बम्बई से थाणे तक रेल लाइन बिछाने का कार्य प्रारम्भ किया गया था। इसी वर्ष हावड़ा से रानीगंज तक रेल लाइन बिछाने का काम शुरू हुआ। सन् १८५३ में बहुत ही मामूली शुरूआत से जब पहली प्रवासी ट्रेन ने मुंबई से थाणे तक (३४ कि॰मी॰ की दूरी) की दूरी तय की थी, अब भारतीय रेल विशाल नेटवर्क में विकसित हो चुका है। तीर्थयात्रा और पर्यटन के लिए समर्पित गाड़ियों को लॉन्च करने के लिए कदम उठाए जा राहा है| २०१९ तक, भारतीय रेल के सभी कोचों को जैव-शौचालयों के साथ फिट किया गया| यह कार्य पूरा हो गया है| मानव रहित रेलवे स्तरीय क्रॉसिंग को २०२० तक समाप्त किया गया| यह कार्य पूरा हो गया है|ऐसे नेटवर्क को आधुनिक बनाने, सुदृढ़ करने और इसका विस्‍तार करने के लिए भारत सरकार निजी पूंजी तथा रेल के विभिन्‍न वर्गों में, जैसे पत्‍तन में- पत्‍तन संपर्क के लिए परियोजनाएं, गेज परिवर्तन, दूरस्‍थ/पिछड़े क्षेत्रों को जोड़ने, नई लाइन बिछाने, सुंदरबन परिवहन आदि के लिए राज्‍य निधियन को आ‍कर्षित करना चाहती है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 91, "text": "१८३७" } ], "category": "SHORT", "id": 1005, "question": "भारत में पहली ट्रेन किस वर्ष चली थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 468, "text": "८ मई १८४५" } ], "category": "SHORT", "id": 1006, "question": "मद्रास रेलवे की स्थापना कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 40, "text": "मद्रास" } ], "category": "SHORT", "id": 1007, "question": "भारत में रेलवे के लिए पहला रेलवे प्रस्ताव किस राज्य में रखा गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1387, "text": "२०१९" } ], "category": "SHORT", "id": 1008, "question": " भारतीय रेलवे के सभी डिब्बों में बायो-टॉयलेट किस वर्ष तक लगाए जा चुके थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1009, "question": "भारत की पहली यात्री ट्रेन किन क्षेत्रों के बीच चली थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 674, "text": "रुड़की " } ], "category": "SHORT", "id": 1010, "question": "सोलानी एक्वीडक्ट रेलवे का निर्माण किस शहर में किया गया था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत में सिख पंथ का अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव सिख धर्म के प्रवर्तक हैं। उन्होंने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए । उन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की दृढ़ नीव पर सिख धर्म की स्थापना की। ताज़्जुब नहीं कि एक उदारवादी दृष्टिकोण से गुरुनानक देव ने सभी धर्मों की अच्छाइयों को समाहित किया। उनका मुख्य उपदेश था कि ईश्वर एक है, उसी ने सबको बनाया है। हिन्दू मुसलमान सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर के लिए सभी समान हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कार्य करने चाहिए ताकि परमात्मा के दरबार में उसे लज्जित न होना पड़े। गुरुनानक ने अपने एक सबद में कहा है कि पण्डित पोथी (शास्त्र) पढ़ते हैं, किन्तु विचार को नहीं बूझते। दूसरों को उपदेश देते हैं, इससे उनका माया का व्यापार चलता है। उनकी कथनी झूठी है, वे संसार में भटकते रहते हैं। इन्हें सबद के सार का कोई ज्ञान नहीं है। ये पण्डित तो वाद-विवाद में ही पड़े रहते हैं। पण्डित वाचहि पोथिआ न बूझहि बीचार। आन को मती दे चलहि माइआ का बामारू। कहनी झूठी जगु भवै रहणी सबहु सबदु सु सारू॥ ६॥(आदिग्रन्थ, पृ. 55)गुरु अर्जुन देव तो यहाँ तक कहते हैं कि परमात्मा व्यापक है जैसे सभी वनस्पतियों में आग समायी हुई है एवं दूध में घी समाया हुआ है। इसी तरह परमात्मा की ज्योति ऊँच-नीच सभी में व्याप्त है परमात्मा घट-घट में व्याप्त है-सगल वनस्पति महि बैसन्तरु सगल दूध महि घीआ। ऊँच-नीच महि जोति समाणी, घटि-घटि माथउ जीआ॥ (आदिग्रन्थ, पृ. 617)सिख धर्म को मजबूत और मर्यादासम्पन्न बनाने के लिए गुरु अर्जुन-देव ने आदि ग्रन्थ का संपादन करके एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक एवं शाश्वत कार्य किया। उन्होंने आदि ग्रन्थ में पाँच सिख गुरुओं के साथ 15 संतों एवं 14 रचनाकारों की रचनाओं को भी ससम्मान शामिल किया। इन पाँच गुरुओं के नाम हैं- गुरु नानक, गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास और गुरु अर्जुनदेव। शेख़ फरीद, जयदेव, त्रिलोचन, सधना, नामदेव, वेणी, रामानंद, कबीर साहेब, रविदास, पीपा, सैठा, धन्ना, भीखन, परमानन्द और सूरदास 15 संतों की वाणी को आदिग्रन्थ में संग्रहीत करके गुरुजी ने अपनी उदार मानवतावादी दृष्टि का परिचय दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने हरिबंस, बल्हा, मथुरा, गयन्द, नल्ह, भल्ल, सल्ह भिक्खा, कीरत, भाई मरदाना, सुन्दरदास, राइ बलवंड एवं सत्ता डूम, कलसहार, जालप जैसे 14 रचनाकारों की रचनाओं को आदिग्रन्थ में स्थान देकर उन्हें उच्च स्थान प्रदान किया। यह अद्भुत कार्य करते समय गुरु अर्जुन देव के सामने धर्म जाति, क्षेत्र और भाषा की किसी सीमा ने अवरोध पैदा नहीं किया। उन्हें मालूम था इन सभी गुरुओं, संतों एवं कवियों का सांस्कृतिक, वैचारिक एवं चिन्तनपरक आधार एक ही है। उल्लेखनीय है कि गुरु अर्जुनदेव ने जब आदिग्रन्थ का सम्पादन-कार्य 1604 ई. में पूर्ण किया था तब उसमें पहले पाँच गुरुओं की वाणियाँ थीं। इसके बाद गुरु गोविन्द सिंह ने अपने पिता गुरु तेग बहादुर की वाणी शामिल करके आदिग्रन्थ को अन्तिम रूप दिया। आदि-ग्रन्थ में 15 संतों के कुल 778 पद हैं। इनमें 541 कबीर साहेब के, 122 शेख फरीद के, 60 नामदेव के और 40 संत रविदास के हैं। अन्य संतों के एक से चार पदों का आदि ग्रन्थ में स्थान दिया गया है। गौरतलब है कि आदि ग्रंथ में संग्रहीत ये रचनाएँ गत 400 वर्षों से अधिक समय के बिना किसी परिवर्तन के पूरी तरह सुरक्षित हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1011, "question": "आदि ग्रंथ को किस रूप में स्वीकार किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2686, "text": "541" } ], "category": "SHORT", "id": 1012, "question": "आदि ग्रंथ में कबीर साहेब के कितने श्लोक है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 75, "text": "गुरुनानक देव " } ], "category": "SHORT", "id": 1013, "question": "सिखों के पहले गुरु कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1014, "question": "गुरु गोबिंद सिंह किस धर्म के थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1447, "text": "गुरु अर्जुन-देव " } ], "category": "SHORT", "id": 1015, "question": "आदि ग्रंथ का संपादन किसने किया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 9, "text": "सिख" } ], "category": "SHORT", "id": 1016, "question": "गुरु नानक देव किस धर्म के संस्थापक थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2467, "text": "1604 ई." } ], "category": "SHORT", "id": 1017, "question": "आदि ग्रंथ का सम्पादन कब पूरा हुआ था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। बहुदलीय प्रणाली वाले इस संसदीय गणराज्य में छ: मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां, और ४० से भी ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियां हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसकी नीतियों को केंद्रीय-दक्षिणपंथी या रूढिवादी माना जाता है, के नेतृत्व में केंद्र में सरकार है जिसके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं। अन्य पार्टियों में सबसे बडी भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस (कॉंग्रेस) है, जिसे भारतीय राजनीति में केंद्र-वामपंथी और उदार माना जाता है। २००४ से २०१४ तक केंद्र में मनमोहन सिंह की गठबन्धन सरकार का सबसे बड़ा हिस्सा कॉंग्रेस पार्टी का था। १९५० में गणराज्य के घोषित होने से १९८० के दशक के अन्त तक कॉंग्रेस का संसद में निरंतर बहुमत रहा। पर तब से राजनैतिक पटल पर भाजपा और कॉंग्रेस को अन्य पार्टियों के साथ सत्ता बांटनी पडी है। १९८९ के बाद से क्षेत्रीय पार्टियों के उदय ने केंद्र में गठबंधन सरकारों के नये दौर की शुरुआत की है। गणराज्य के पहले तीन चुनावों (१९५१–५२, १९५७, १९६२) में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कॉंग्रेस ने आसान जीत पाई। १९६४ में नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री कुछ समय के लिये प्रधानमंत्री बने, और १९६६ में उनकी खुद की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। १९६७ और १९७१ के चुनावों में जीतने के बाद १९७७ के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पडा।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 79, "text": "छ: " } ], "category": "SHORT", "id": 1018, "question": "भारतीय संसदीय गणतंत्र में कितने मान्यता प्राप्त क्षेत्रिय दल है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1019, "question": "जनता पार्टी ने पहली बार किसके नेतृत्व में सरकार बनाई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1020, "question": "जनता पार्टी ने कांग्रेस को पहली बार चुनाव में कब हराया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 947, "text": "१९६४ " } ], "category": "SHORT", "id": 1021, "question": "जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु किस वर्ष हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 535, "text": "कॉंग्रेस पार्टी" } ], "category": "SHORT", "id": 1022, "question": "वर्ष 2004-2014 में भारत की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी का क्या नाम था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भारतीय खगोलीय परंपरा में आर्यभट के कार्य का बड़ा प्रभाव था और अनुवाद के माध्यम से इन्होंने कई पड़ोसी संस्कृतियों को प्रभावित किया। इस्लामी स्वर्ण युग (ई. ८२०), के दौरान इसका अरबी अनुवाद विशेष प्रभावशाली था। उनके कुछ परिणामों को अल-ख्वारिज्मी द्वारा उद्धृत किया गया है और १० वीं सदी के अरबी विद्वान अल-बिरूनी द्वारा उन्हें सन्दर्भित किया गया गया है, जिन्होंने अपने वर्णन में लिखा है कि आर्यभट के अनुयायी मानते थे कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। साइन (ज्या), कोसाइन (कोज्या) के साथ ही, वरसाइन (उक्रमाज्या) की उनकी परिभाषा,और विलोम साइन (उत्क्रम ज्या), ने त्रिकोणमिति की उत्पत्ति को प्रभावित किया। वे पहले व्यक्ति भी थे जिन्होंने साइन और वरसाइन (१ - कोसएक्स) तालिकाओं को, ० डिग्री से ९० डिग्री तक ३.७५ ° अंतरालों में, 4 दशमलव स्थानों की सूक्ष्मता तक निर्मित किया। वास्तव में \"साइन \" और \"कोसाइन \" के आधुनिक नाम आर्यभट द्वारा प्रचलित ज्या और कोज्या शब्दों के गलत (अपभ्रंश) उच्चारण हैं। उन्हें अरबी में जिबा और कोजिबा के रूप में उच्चारित किया गया था। फिर एक अरबी ज्यामिति पाठ के लैटिन में अनुवाद के दौरान क्रेमोना के जेरार्ड द्वारा इनकी गलत व्याख्या की गयी; उन्होंने जिबा के लिए अरबी शब्द 'जेब' लिया जिसका अर्थ है \"पोशाक में एक तह\", एल साइनस (सी.११५०).आर्यभट की खगोलीय गणना की विधियां भी बहुत प्रभावशाली थी। त्रिकोणमितिक तालिकाओं के साथ, वे इस्लामी दुनिया में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती थी। और अनेक अरबी खगोलीय तालिकाओं (जिज) की गणना के लिए इस्तेमाल की जाती थी। विशेष रूप से, अरबी स्पेन वैज्ञानिक अल-झर्काली (११वीं सदी) के कार्यों में पाई जाने वाली खगोलीय तालिकाओं का लैटिन में तोलेडो की तालिकाओं (१२वीं सदी) के रूप में अनुवाद किया गया और ये यूरोप में सदियों तक सर्वाधिक सूक्ष्म पंचांग के रूप में इस्तेमाल में रही। आर्यभट और उनके अनुयायियों द्वारा की गयी तिथि गणना पंचांग अथवा हिंदू तिथिपत्र निर्धारण के व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए भारत में निरंतर इस्तेमाल में रही हैं, इन्हे इस्लामी दुनिया को भी प्रेषित किया गया, जहाँ इनसे जलाली तिथिपत्र का आधार तैयार किया गया जिसे १०७३ में उमर खय्याम सहित कुछ खगोलविदों ने प्रस्तुत किया, जिसके संस्करण (१९२५ में संशोधित) आज ईरान और अफगानिस्तान में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में प्रयोग में हैं। जलाली तिथिपत्र अपनी तिथियों का आंकलन वास्तविक सौर पारगमन के आधार पर करता है, जैसा आर्यभट (और प्रारंभिक सिद्धांत कैलेंडर में था).इस प्रकार के तिथि पत्र में तिथियों की गणना के लिए एक पंचांग की आवश्यकता होती है। यद्यपि तिथियों की गणना करना कठिन था, पर जलाली तिथिपत्र में ग्रेगोरी तिथिपत्र से कम मौसमी त्रुटियां थी। भारत के प्रथम उपग्रह आर्यभट, को उनका नाम दिया गया। चंद्र खड्ड आर्यभट का नाम उनके सम्मान स्वरुप रखा गया है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1023, "question": "आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज कहाँ पर स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1317, "text": "जिज" } ], "category": "SHORT", "id": 1024, "question": "अरबी तालिकाए जिनका उपयोग गणना के लिए किया जाता है, वह किस नाम से जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 25, "text": "आर्यभट" } ], "category": "SHORT", "id": 1025, "question": "किसके अनुयायी का मानना ​​​​था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 894, "text": "जिबा और कोजिबा" } ], "category": "SHORT", "id": 1026, "question": "\"साइन\" \"और\" \"कोसाइन\" को अरबी भाषा में किस नाम से उच्चारित किया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1027, "question": "किस बैक्टीरिया का नाम आर्यभट के नाम पर रखा गया है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भीष्म आदि गुरुजन शोक के योग्य नहीं हैं। मनुष्य का शरीर विनाशशील है, किंतु आत्मा का कभी नाश नहीं होता। यह आत्मा ही परब्रह्म है। 'मैं ब्रह्म हूँ'- इस प्रकार तुम उस आत्मा का अस्तित्व समझो। कार्य की सिद्धि और असिद्धि में समानभाव से रहकर कर्मयोग का आश्रय ले क्षात्रधर्म का पालन करो। इस प्रकार श्रीकृष्ण के ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं कर्मयोग के बारे में विस्तार से कहने पर अर्जुन ने फिर से रथारूढ़ हो युद्ध के लिये शंखध्वनि की। दुर्योधन की सेना में सबसे पहले पितामह भीष्म सेनापति हुए। पाण्डवों के सेनापति धृष्टद्युम्न थे। इन दोनों में भारी युद्ध छिड़ गया। भीष्मसहित कौरव पक्ष के योद्धा उस युद्ध में पाण्डव-पक्ष के सैनिकों पर प्रहार करने लगे और शिखण्डी आदि पाण्डव- पक्ष के वीर कौरव-सैनिकों को अपने बाणों का निशाना बनाने लगे। कौरव और पाण्डव-सेना का वह युद्ध, देवासुर-संग्राम के समान जान पड़ता था। आकाश में खड़े होकर देखने वाले देवताओं को वह युद्ध बड़ा आनन्ददायक प्रतीत हो रहा था। भीष्म ने दस दिनों तक युद्ध करके पाण्डवों की अधिकांश सेना को अपने बाणों से मार गिराया। भीष्म ने दस दिनों तक युद्ध करके पाण्डवों की अधिकांश सेना को अपने बाणों से मार गिराया। भीष्म की मृत्यु उनकी इच्छा के अधीन थी। श्रीकृष्ण के सुझाव पर पाण्डवों ने भीष्म से ही उनकी मृत्यु का उपाय पूछा। भीष्म ने कहा कि पांडव शिखंडी को सामने करके युद्ध लड़े। भीष्म उसे कन्या ही मानते थे और उसे सामने पाकर वो शस्त्र नहीं चलाने वाले थे। और शिखंडी को अपने पूर्व जन्म के अपमान का बदला भी लेना था उसके लिये शिवजी से वरदान भी लिया कि भीष्म कि मृत्यु का कारण बनेगी। १०वे दिन के युद्ध में अर्जुन ने शिखंडी को आगे अपने रथ पर बिठाया और शिखंडी को सामने देख कर भीष्म ने अपना धनुष त्याग दिया और अर्जुन ने अपनी बाणवृष्टि से उन्हें बाणों कि शय्या पर सुला दिया। तब आचार्य द्रोण ने सेनापतित्व का भार ग्रहण किया। फिर से दोनों पक्षो में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। मतस्यनरेश विराट और द्रुपद आदि राजा द्रोणरूपी समुद्र में डूब गये थे। लेकिन जब पाण्डवो ने छ्ल से द्रोण को यह विश्वास दिला दिया कि अश्वत्थामा मारा गया। तो आचार्य द्रोण ने निराश हों अस्त्र शस्त्र त्यागकर उसके बाद योग समाधि ले कर अपना शरीर त्याग दिया। ऐसे समय में धृष्टद्युम्न ने योग समाधि लिए द्रोण का मस्तक तलवार से काट कर भूमि पर गिरा दिया। द्रोण वध के पश्चात कर्ण कौरव सेना का कर्णधार हुआ। कर्ण और अर्जुन में भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों से युक्त महाभयानक युद्ध हुआ, जो देवासुर-संग्राम को भी मात करने वाला था। कर्ण और अर्जुन के संग्राम में कर्ण ने अपने बाणों से शत्रु-पक्ष के बहुत-से वीरों का संहार कर डाला। यद्यपि युद्ध गतिरोधपूर्ण हो रहा था लेकिन कर्ण तब उलझ गया जब उसके रथ का एक पहिया धरती में धँस गया। गुरु परशुराम के शाप के कारण वह अपने को दैवीय अस्त्रों के प्रयोग में भी असमर्थ पाकर रथ के पहिए को निकालने के लिए नीचे उतरता है। तब श्रीकृष्ण, अर्जुन को उसके द्वारा किये अभिमन्यु वध, कुरु सभा में द्रोपदी को वेश्या और उसकी कर्ण वध करने की प्रतिज्ञा याद दिलाकर उसे मारने को कहते है, तब अर्जुन ने अंजलिकास्त्र से कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। तदनन्तर राजा शल्य कौरव-सेना के सेनापति हुए, किंतु वे युद्ध में आधे दिन तक ही टिक सके। दोपहर होते-होते राजा युधिष्ठिर ने उन्हें मार दिया। दुर्योधन की सारी सेना के मारे जाने पर अन्त में उसका भीमसेन के साथ गदा युद्ध हुआ। भीम ने छ्ल से उसकी जांघ पर प्रहार करके उसे मार डाला। इसका प्रतिशोध लेने के लिये अश्वत्थामा ने रात्रि में पाण्डवों की एक अक्षौहिणी सेना, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों, उसके पांचालदेशीय बन्धुओं तथा धृष्टद्युम्न को सदा के लिये सुला दिया। तब अर्जुन ने अश्वत्थामा को परास्त करके उसके मस्तक की मणि निकाल ली। फिर अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उसका गर्भ उसके अस्त्र से प्राय दग्ध हो गया था, किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने उसको पुन: जीवन-दान दिया। उत्तरा का वही गर्भस्थ शिशु आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से विख्यात हुआ। इस युद्ध के अंत में कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा अश्वत्थामा तीन कौरवपक्षिय और पाँच पाण्डव, सात्यकि तथा श्रीकृष्ण ये सात पाण्डवपक्षिय वीर जीवित बचे। तत्पश्चात् युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन हुए। ब्राह्मणों और गांधारी के शाप के कारण यादवकुल का संहार हो गया। बलभद्रजी योग से अपना शरीर त्याग कर शेषनाग स्वरुप होकर समुद्र में चले गये। भगवान कृष्ण के सभी प्रपौत्र एक दिन महामुनियों की शक्ति देखने के लिये एक को स्त्री बनाकर मुनियों के पास गए और पूछा कि हे मुनिश्रेष्ठ! यह महिला गर्भ से है, हमें बताएं कि इसके गर्भ से किसका जन्म होगा? मुनियों को ज्ञात हुआ कि यह बालक उनसे क्रिडा करते हुए एक पुरुष को महिला बना उनके पास लाए हैं। मुनियों ने कृष्ण के प्रपौत्रों को श्रापा कि इस मानव के गर्भ से एक मूसल लिकलेगा जिससे तुम्हारे वंश का अन्त होगा। कृष्ण के प्रपौत्रों नें उस मूसल को पत्थर पर रगड़ कर चूरा बना नदी में बहा दिया तथा उसके नोक को फेंक दिया। उस चूर्ण से उत्पन्न वृक्ष की पत्तियों से सभी कृष्ण के प्रपौत्र मृत्यु को प्राप्त किये। यह देख श्रीकृष्ण भी एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बेठ गये। 'ज़रा' नाम के एक व्याध (शिकारी) ने अपने बाण की नोक पर मूसल का नोक लगा दिया तथा भगवान कृष्ण के चरणकमल को मृग समझकर उस बाण से प्रहार किया। उस बाण द्वारा कृष्ण के पैर का चुम्बन उनके परमधाम गमन का कारण बना। प्रभु अपने संपूर्ण शरीर के साथ गोलोक प्रस्थान किये। इसके बाद समुद्र ने द्वारकापुरी को अपने जल में डुबा दिया। तदनन्तर द्वारका से लौटे हुए अर्जुन के मुख से यादवों के संहार का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने संसार की अनित्यता का विचार करके परीक्षित को राजासन पर बिठाया और द्रौपदी तथा भाइयों को साथ ले हिमालय की तरफ महाप्रस्थान के पथ पर अग्रसर हुए।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 443, "text": "पितामह भीष्म" } ], "category": "SHORT", "id": 1028, "question": "दुर्योधन की सेना के पहले सेनापति कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1029, "question": "युधिष्ठिर इंद्र के रथ पर बैठकर कहां गए थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 865, "text": "दस दिनों" } ], "category": "SHORT", "id": 1030, "question": "भीष्म ने महाभारत की लड़ाई कितने दिनों तक लड़ी थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1031, "question": "राजा शल्य को किसने मारा था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1032, "question": "पांच पांडव भाइयों में से कौन महापथ पर नही गिरे थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 488, "text": "धृष्टद्युम्न" } ], "category": "SHORT", "id": 1033, "question": "पांडवों के सेनापति कौन थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "भू आकृति के अनुसार असम राज्य को तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है : 1. उत्तरी मैदान अथवा ब्रह्मपुत्र का मैदान जो कि सम्पूर्ण उत्तरी भाग में फैला हुआ है। इसकी ढाल बहुत ही कम है जिसके कारण प्राय: यह ब्रह्मपुत्र की बाढ़ से आक्रान्त रहता है। यह नदी इस समतल मैदान को दो असमान भागों में विभक्त करती है जिसमें उत्तरी भाग हिमालय से आनेवाली लगभग समानान्तर नदियों, सुवंसिरी आदि, से काफी कट फट गया है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत कम चौड़ा है। गौहाटी के समीप ब्रद्मपुत्र मेघालय चट्टानों का क्रम नदी के उत्तरी कगार पर भी दिखाई पड़ता है। बूढ़ी दिहिंग, धनसिरी तथा कपिली ने अपने निकासवर्ती अपरदन की प्रक्रिया द्वारा मिकिर तथा रेग्मा पहाड़ियों को मेघालय की पहाड़ियों से लगभग अलग कर दिया है। सम्पूर्ण घाटी पूर्व में 30 मी॰ से पश्चिम में 130 मी॰ की ऊँचाई तक स्थित है जिसकी औसत ढाल 12 से॰मी॰ प्रति कि॰ मी॰ है। नदियों का मार्ग प्राय: सर्पिल है। 2. मिकिर तथा उत्तरी कछार का पहाड़ी क्षेत्र भौम्याकृति की दृष्टि से एक जटिल तथा कटा फटा प्रदेश है और आसाम घाटी के दक्षिण में स्थित है। इसका उत्तरी छोर अपेक्षाकृत अधिक ढलवा है। 3. कछार का मैदान अथवा सूरमा घाटी जलोढ़ अवसाद द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ मैदान है जो राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। वास्तव में इसे बंगाल डेल्टा का पूर्वी छोर ही कहा जा सकता है। उत्तर में डौकी भ्रंश इसकी सीमा बनाता है। इस राज्य की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र (तिब्बत की सांगपी) है जो लगभग पूर्व पश्चिम में प्रवाहित होती हुई धुबरी के निकट बंगलादेश में प्रविष्ट हो जाती है। प्रवाहक्षेत्र के कम ढलवाँ होने के कारण नदी शाखाओं में विभक्त हो जाती है तथा नदीस्थित द्वीपों का निर्माण करती है जिनमें माजुली (129 वर्ग कि॰मी॰) विश्व का सबसे बड़ा नदी स्थित द्वीप है। वर्षाकाल में नदी का जलमार्ग कहीं कहीं 8 कि॰मी॰ चौड़ा हो जाता है तथा झील जैसा प्रतीत होता है। इस नदी की 35 प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। सुवंसिरी, भरेली, धनसिरी, पगलडिया, मानस तथा संकाश आदि दाहिनी ओर से तथा लोहित, नवदिहिंग, बूढ़ी दिहिंग, दिसांग, कपिली, दिगारू आदि बाई ओर से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ इतना जल तथा मलबा अपने साथ लाती है कि मुख्य नदी गोवालपारा के समीप 50 लाख क्यूसेक जल का निस्सारण करती 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सम्भावना अधिक रहती है। 1897 का भूकम्प, जिसकी नाभि गारो खासी की पहाड़ियों में थी, यहाँ का सबसे बड़ा भूकम्प माना जाता है। रेल लाइनों का उखड़ना, भूस्खलन, नदी मार्गावरोध तथा परिवर्तन आदि क्रियाएँ बड़े पैमाने पर हुई थीं और लगभग 10,550 व्यक्ति मर गए थे। अन्य प्रमुख भूकंपक्रमश: 1869, 1888, 1930, 1934 तथा 1950 में आए। काँप तथा लैटराट इस राज्य की प्रमुख मिट्टियाँ हैं जो क्रमश: मैदानी भागों तथा पहाड़ी क्षेत्रों के ढालों पर पाई जाती हैं। नई काँप मिट्टी नदियों के बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती है तथा धान, जूट, दाल एवं तिलहन के लिए उपयुक्त है। यह प्राय: उदासीन प्रकृति की होती है। बाढ़ेतर प्रदेश की वागर मिट्टी प्राय: अम्लीय होती है। यह गन्ना, फल, धान के लिए अधिक उपुयक्त है। पर्वतीय क्षेत्र की लैटराइट मिट्टी अपेक्षाकृत अनुपजाऊ होती है। चाय की कृषि के अतिरिक्त ये क्षेत्र प्राय: वनाच्छादित हैं। तृतीय युग का कोयला तथा खनिज तेल इस प्रदेश की मुख्य सम्पदाएँ हैं। खनिज तेल का अनुमानित भण्डार 450 लाख टन है जो पूरे भारत का लगभग 50 प्रतिशत है तथा प्रमुखतः बह्मपुत्र की ऊपरी घाटी में दिगबोई, नहरकटिया, मोशन, लक्वा, 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{ "paragraphs": [ { "context": "मंदिरों से अनोखी चीजों तक, यहां से मनोरम दृश्‍य और रोमांचकारी गतिविधियां मनाली को हर मौसम और सभी प्रकार के यात्रियों के बीच लोकप्रिय बनाती हैं। कुल्‍लूकुल्लू घाटी को पहले कुलंथपीठ कहा जाता था। कुलंथपीठ का शाब्दिक अर्थ है रहने योग्‍य दुनिया का अंत। कुल्‍लू घाटी भारत में देवताओं की घाटी रही है। यहां के मंदिर, सेब के बागान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्‍लू की ओर आकर्षित करते हैं। यहां के स्‍थानीय हस्‍तशिल्‍प कुल्‍लू की सबसे बड़ी विशेषता है। शिमलाहिमाचल प्रदेश की राजधानी और ब्रिटिश कालीन समय में ग्रीष्‍म कालीन राजधानी शिमला राज्‍य का सबसे महत्‍वपूर्ण पर्यटन केन्‍द्र है। यहां का नाम देवी श्‍यामला के नाम पर रखा गया है जो काली का अवतार है। शिमला लगभग 7267 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और यह अर्ध चक्र आकार में बसा हुआ है। यहां घाटी का सुंदर दृश्‍य दिखाई देता है और महान हिमालय पर्वती की चोटियां चारों ओर दिखाई देती है। शिमला एक पहाड़ी पर फैला हुआ है जो करीब 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इसके पड़ोस में घने जंगल और टेढ़े-मेढे़ रास्ते हैं, जहां पर हर मोड़ पर मनोहारी दृश्य देखने को मिलते हैं। यह एक आधुनिक व्यावसायिक केंद्र भी है। शिमला विश्व का एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। यहां प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग भ्रमण के लिए आते हैं। बर्फ से ढकी हुई यहां की पहाडि़यों में बड़े सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं जो पर्यटकों को बार-बार आने के लिए आकर्षित करते हैं। शिमला संग्रहालय हिमाचल प्रदेश की कला एवं संस्कृति का एक अनुपम नमूना है, जिसमें यहां की विभिन्न कलाकृतियां विशेषकर वास्तुकला, पहाड़ी कलम, सूक्ष्म कला, लकडि़यों पर की गई नक्काशियां, आभूषण एवं अन्य कृतियां संग्रहित हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 847, "text": "12 वर्ग किलोमीटर" } ], "category": "SHORT", "id": 1041, "question": "शिमला कितने किलोमीटर में फैला हुआ है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 170, "text": "कुलंथपीठ" } ], "category": "SHORT", "id": 1042, "question": "कुल्लू घाटी को पहले किस नाम से जाना जाता था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1043, "question": "ग्लेन नामक जगह कहां स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 585, "text": "श्‍यामला" } ], "category": "SHORT", "id": 1044, "question": "शिमला का नाम किस देवी के नाम पर रखा गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1045, "question": "काली शिमला मंदिर की ऊंचाई कितनी है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1046, "question": "शिमला में इंडियन सेंटर फॉर हायर स्टडीज किसके द्वारा निर्मित हुआ था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मई और नवम्बर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन की अध्यक्षता की। मुखर्जी को पार्टी के भीतर तो मिला ही, सामाजिक नीतियों के क्षेत्र में भी काफी सम्मान मिला है। अन्य प्रचार माध्यमोंमें उन्हें बेजोड़ स्मरणशक्ति वाला, आंकड़ाप्रेमी और अपना अस्तित्व बरकरार रखने की अचूक इच्छाशक्ति रखने वाले एक राजनेता के रूप में वर्णित किया जाता है। जब सोनिया गान्धी अनिच्छा के साथ राजनीति में शामिल होने के लिए राजी हुईं तब प्रणव उनके प्रमुख परामर्शदाताओं में से रहे, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में उन्हें उदाहरणों के जरिये बताया कि उनकी सास इंदिरा गांधी इस तरह के हालात से कैसे निपटती थीं। मुखर्जी की अमोघ निष्ठा और योग्यता ने ही उन्हें यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और प्रधान मन्त्री मनमोहन सिंह के करीब लाया और इसी वजह से जब 2004 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी तो उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर पहुँचने में मदद मिली। सन 1991 से 1996 तक वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 2005 के प्रारम्भ में पेटेण्ट संशोधन बिल पर समझौते के दौरान उनकी प्रतिभा के दर्शन हुए। कांग्रेस एक आईपी विधेयक पारित करने के लिए प्रतिबद्ध थी,लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल वाममोर्चे के कुछ घटक दल बौद्धिक सम्पदा के एकाधिकार के कुछ पहलुओं का परम्परागत रूप से विरोध कर रहे थे। रक्षा मन्त्री के रूप में प्रणव मामले में औपचारिक रूप से शामिल नहीं थे, लेकिन बातचीत के कौशल को देखकर उन्हें आमन्त्रित किया गया था। उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिष्ट नेता ज्योति बसु सहित कई पुराने गठबन्धनों को मनाकर मध्यस्थता के कुछ नये बिंदु तय किये, जिसमे उत्पाद पेटेण्ट के अलावा और कुछ और बातें भी शामिल थीं; तब उन्हें, वाणिज्य मन्त्री कमल नाथ सहित अपने सहयोगियों यह कहकर मनाना पड़ा कि: \"कोई कानून नहीं रहने से बेहतर है एक अपूर्णकानून बनना। \" अंत में 23 मार्च 2005 को बिल को मंजूरी दे दी गई। मुखर्जी की खुद की छवि पाक-साफ है, परन्तु सन् 1998 में रीडिफ.कॉम को दिये गये एक साक्षात्कार में उनसे जब कांग्रेस सरकार, जिसमें वह विदेश मंत्री थे, पर लगे भ्रष्टाचार के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा -\"भ्रष्टाचार एक मुद्दा है। घोषणा पत्र में हमने इससे निपटने की बात कही है। लेकिन मैं यह कहते हुए क्षमा चाहता हूँ कि ये घोटाले केवल कांग्रेस या कांग्रेस सरकार तक ही सीमित नहीं हैं। बहुत सारे घोटाले हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेता उनमें शामिल हैं। तो यह कहना काफी सरल है कि कांग्रेस सरकार भी इन घोटालों में शामिल थी। \"24 अक्टूबर 2006 को जब उन्हें भारत का विदेश मन्त्री नियुक्त किया गया, रक्षा मंत्रालय में उनकी जगह ए.के. एंटनी ने ली। प्रणव मुखर्जी के नाम पर एक बार भारतीय राष्ट्रपति जैसे सम्मान जनक पद के लिए भी विचार किया गया था। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमण्डल में व्यावहारिक रूप से उनके अपरिहार्य योगदान को देखते हुए उनका नाम हटा लिया गया। मुखर्जी की वर्तमान विरासत में अमेरिकी सरकार के साथ असैनिक परमाणु समझौते पर भारत-अमेरिका के सफलतापूर्वक हस्ताक्षर और परमाणु अप्रसार सन्धि पर दस्तखत नहीं होने के बावजूद असैन्य परमाणु व्यापार में भाग लेने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के साथ हुए हस्ताक्षर भी शामिल हैं। सन 2007 में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में मुखर्जी भारत के वित्त मन्त्री बने। इस पद पर वे पहले 1980 के दशक में भी काम कर चुके थे। 6 जुलाई 2009 को उन्होंने सरकार का वार्षिक बजट पेश किया। इस बजट में उन्होंने क्षुब्ध करने वाले फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और कमोडिटीज ट्रांसक्शन कर को हटाने सहित कई तरह के कर सुधारों की घोषणा की। उन्होंने ऐलान किया कि वित्त मन्त्रालय की हालत इतनी अच्छी नहीं है कि माल और सेवा कर लागू किये बगैर काम चला सके। उनके इस तर्क को कई महत्वपूर्ण कॉरपोरेट अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों ने सराहा।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 772, "text": "रक्षा मंत्री" } ], "category": "SHORT", "id": 1047, "question": "वर्ष 2004 में जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तब प्रणव मुखर्जी को किस पद पर रखा गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "मई और नवम्बर 1995 " } ], "category": "SHORT", "id": 1048, "question": "प्रणव मुखर्जी ने सार्क कैबिनेट सम्मेलन की अध्यक्षता कब की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1049, "question": "लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य के लिए किसने धन प्रदान किया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2177, "text": "24 अक्टूबर 2006" } ], "category": "SHORT", "id": 1050, "question": "प्रणव मुखर्जी को विदेश मंत्री पद के लिए किस वर्ष नियुक्त किया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 412, "text": "प्रणव" } ], "category": "SHORT", "id": 1051, "question": "सोनिया गांधी जब राजनीति में शामिल होने के लिए सहमत हुईं तब उनके प्रमुख सलाहकार कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2762, "text": "सन 2007" } ], "category": "SHORT", "id": 1052, "question": "प्रणव मुखर्जी को पद्म विभूषण से कब सम्मानित किया गया था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मजे की बात यह कि इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी में आज उसका कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ। 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आर०एन०चुघ और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। बाद में प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उसने भी अपनी मजबूरी जतायी। शास्त्रीजी की मौत में संभावित साजिश की पूरी पोल आउटलुक नाम की एक पत्रिका ने खोली। 2009 में, जब साउथ एशिया पर सीआईए की नज़र (अंग्रेजी: CIA's Eye on South Asia) नामक पुस्तक के लेखक अनुज धर ने सूचना के अधिकार के तहत माँगी गयी जानकारी पर प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर से यह कहना कि \"शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुँच सकती है। ये तमाम कारण हैं जिससे इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता। सबसे पहले सन् 1978 में प्रकाशित एक हिन्दी पुस्तक ललिता के आँसू में शास्त्रीजी की मृत्यु की करुण कथा को स्वाभाविक ढँग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया था। उस समय (सन् उन्निस सौ अठहत्तर में) ललिताजी जीवित थीं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 259, "text": "आर०एन०चुघ" } ], "category": "SHORT", "id": 1053, "question": "लाल बहादुर शास्त्री जी के निजी डॉक्टर का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1062, "text": "ललिता के आँसू " } ], "category": "SHORT", "id": 1054, "question": "लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की कहानी सबसे पहले किस पुस्तक में प्रकाशित हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1148, "text": "ललिता शास्त्री" } ], "category": "SHORT", "id": 1055, "question": "लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1056, "question": "शास्त्रीजी के तीसरे पुत्र का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1057, "question": "पत्रकार कुलदीप नैयर शास्त्री जी के साथ कहाँ गए थे ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मध्य प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वर्ष 2014-15 के लिए 84.27 बिलियन डॉलर था। प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2013-14 में $871,45 था, और देश के अंतिम से छठे स्थान पर हैं। 1999 और 2008 के बीच राज्य की सालाना वृद्धि दर बहुत कम (3.5%) थी। इसके बाद राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में काफी सुधार हुआ है, और 2010-11 और 2011-12 के दौरान 8% एवं 12% क्रमशः बढ़ गया। राज्य में कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था है। मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलों में गेहूं, सोयाबीन, चना, गन्ना, चावल, मक्का, कपास, राइ, सरसों और अरहर शामिल हैं। प्रदेश में इंदौर, सोयबीन की मंडी के लिए और सीहोर गेहूं की मंडी के लिए देश भर का केंद्र हैं। लघु वनोपज (एमएफपी) जैसे की तेंदू, जिसके पत्ते का बीड़ी बनाने में इस्तेमाल किया जाता हैं, साल बीज, सागौन बीज, और लाख आदि भी राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए योगदान देते हैं। मध्य प्रदेश में 5 विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) है: जिनमे 3 आईटी/आईटीईएस (इंदौर, ग्वालियर), 1 खनिज आधारित (जबलपुर) और 1 कृषि आधारित (जबलपुर) शामिल हैं। अक्टूबर 2011 में, 14 सेज प्रस्तावित किया गए, जिनमे से 10 आईटी/ आईटीईएस आधारित थे। इंदौर, राज्य का प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र है। इसके राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण, यहाँ कई उपभोक्ता वस्तु कंपनियों ने अपनी विनिर्माण केंद्रों की स्थापना की है। .राज्य में भारत का हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अन्य प्रमुख खनिज भंडार में कोयला, कालबेड मीथेन, मैंगनीज और डोलोमाइट शामिल हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1058, "question": "मध्य प्रदेश में कितने आर्डिनेंस फैक्ट्री है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 527, "text": "सोयबीन की मंडी" } ], "category": "SHORT", "id": 1059, "question": "इंदौर कौन सी फसल का प्रमुख बाज़ार है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1060, "question": "आर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया मध्य प्रदेश के किस क्षेत्र में स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 69, "text": "84.27 बिलियन डॉलर" } ], "category": "SHORT", "id": 1061, "question": "वर्ष 2014-15 में मध्य प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद कितना था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 124, "text": "$871,45" } ], "category": "SHORT", "id": 1062, "question": "वर्ष 2013-14 में मध्य प्रदेश राज्य की प्रति व्यक्ति आय कितनी थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मध्य-16 वीं शताब्दी और 17-वीं शताब्दी के अंत के बीच मुग़ल साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में प्रमुख शक्ति थी। 1526 में स्थापित, यह नाममात्र 1857 तक बचा रहा, जब वह ब्रिटिश राज द्वारा हटाया गया। यह राजवंश कभी कभी तिमुरिड राजवंश के नाम से जाना जाता है क्योंकि बाबर तैमूर का वंशज था। फ़रग़ना वादी से आए एक तुर्की मुस्लिम तिमुरिड सिपहसालार बाबर ने मुग़ल राजवंश को स्थापित किया। उन्होंने उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर हमला किया और दिल्ली के शासक इब्राहिम शाह लोधी को 1526 में पानीपत के पहले युद्ध में हराया। मुग़ल साम्राज्य ने उत्तरी भारत के शासकों के रूप में दिल्ली के सुल्तान का स्थान लिया। समय के साथ, उमेर द्वारा स्थापित राज्य ने दिल्ली के सुल्तान की सीमा को पार किया, अंततः भारत का एक बड़ा हिस्सा घेरा और साम्राज्य की पदवी कमाई। बाबर के बेटे हुमायूँ के शासनकाल के दौरान एक संक्षिप्त राजाए के भीतर (1540-1555), एक सक्षम और अपने ही अधिकार में कुशल शासक शेर शाह सूरी के अंतर्गत अफगान सूरी राजवंश का उदय देखा। हालाँकि, शेर शाह की असामयिक मृत्यु और उनके उत्तराधिकारियों की सैन्य अक्षमता ने 1555 में हुमायूँ को अपनी गद्दी हासिल करने के लिए सक्षम किया। हालाँकि, कुछ महीनों बाद हुमायूं का निधन हुआ और उनके 13 वर्षीय बेटे अकबर ने गद्दी हासिल करी। मुग़ल विस्तार का सबसे बड़ा भाग अकबर के शासनकाल (1556-1605) के दौरान निपुण हुआ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 257, "text": "तैमूर" } ], "category": "SHORT", "id": 1063, "question": "बाबर किसका वंशज था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 106, "text": "1526 " } ], "category": "SHORT", "id": 1064, "question": "पानीपत की पहली लड़ाई कब हुई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 252, "text": "बाबर " } ], "category": "SHORT", "id": 1065, "question": "मुगल वंश की स्थापना किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1172, "text": "1556-1605" } ], "category": "SHORT", "id": 1066, "question": "अकबर का शासनकाल कब से कब तक रहा था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1067, "question": "कितने सम्राटो ने क़ानूनी और रेल दोनों शक्तियों का आनंद लिया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 52, "text": "मुग़ल साम्राज्य" } ], "category": "SHORT", "id": 1068, "question": "भारतीय उपमहाद्वीप को किस सम्राज्य ने सौ वर्षों तक एक प्रमुख शक्ति के रूप में बनाए रखा था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मन चित एक है। जीव सिर्फ़ नाम की आराधना करता है। इसको जीवित मुक्त कहते हैं। (३) नाम पदार्थ: नाम आराधना से प्राप्त किया हुआ निराकारी ज्ञान है। इसको धुर की बनी भी कहते हैं। ये बगैर कानो के सुनी जाती है और हृदय में प्रगत होती है। यह नाम ही जीवित करता है। आँखें खोल देता है। ३ लोक का ज्ञान मिल जाता है। (३)जन्म पदार्थ: \"\"नानक नाम मिले तां जीवां\"\", यह निराकारी जन्म है। बस शरीर में है लेकिन सुरत शब्द के साथ जुड़ गयी है। शरीर से प्रेम नहीं है। दुःख सुख कुछ भी नहीं मानता, पाप पुण्य कुछ भी नहीं। बस जो हुकम होता है वो करता हैधर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को चार पदार्थों में नहीं लिया गया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं: ज्ञान के विहीन लोभ मोह में परवीन, कामना अधीन कैसे पांवे भगवंत कोसिखमत में भक्तों एवम सत्गुरों ने निरंकार को अकार रहित कहा है। क्योंकि सांसारिक पदार्थ तो एक दिन खत्म हो जाते हैं लेकिन परब्रह्म कभी नहीं मरता। इसी लिए उसे अकाल कहा गया है। यही नहीं जीव आत्मा भी आकर रहित है और इस शरीर के साथ कुछ समय के लिए बंधी है। इसका वजूद शरीर के बगैर भी है, जो आम मनुष्य की बुधि से दूर है। यही कारण है की सिखमत मूर्ति पूजा के सख्त खिलाफ़ है। सत्गुरुओं एवं भक्तों ने मूर्ती पूजकों को अँधा, जानवर इतियादी शब्दों से निवाजा है। उस की तस्वीर बने नहीं जा सकती। यही नहीं कोई भी संसारी पदार्थ जैसे की कबर, भक्तो एवं सत्गुरुओं के इतिहासक पदार्थ, प्रतिमाएं आदिक को पूजना सिखों के बुनयादी उसूलों के खिलाफ़ है। धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान एक विधि जो निरंकार के देश की तरफ लेकर जाती है, जिसके समक्ष सिख नतमस्तक होते हैं, लेकिन धार्मिक ग्रंथों की पूजा भी सिखों के बुनयादी उसूलों के खिलाफ है। सिखमत में हर जीव को अवतार कहा गया है। हर जीव उस निरंकार की अंश है। संसार में कोई भी पंची, पशु, पेड़, इतियादी अवतार हैं। मानुष की योनी में जीव अपना ज्ञान पूरा करने के लिए अवतरित हुआ है। व्यक्ति की पूजा सिख धर्म में नहीं है \"मानुख कि टेक बिरथी सब जानत, देने, को एके भगवान\"। तमाम अवतार एक निरंकार की शर्त पर पूरे नहीं उतरते कोई भी अजूनी नहीं है। यही कारण है की सिख किसी को परमेशर के रूप में नहीं मानते। हाँ अगर कोई अवतार गुरमत का उपदेस करता है तो सिख उस उपदेश के साथ ज़रूर जुड़े रहते हैं। जैसा की कृष्ण ने गीता में कहा है की आत्मा मरती नहीं और जीव हत्या कुछ नहीं होती, इस बात से तो सिखमत सहमत है लेकिन आगे कृष्ण ने कहा है की कर्म ही धर्म है जिस से सिख धर्म सहमत नहीं। पैग़म्बर वो है जो निरंकार का सन्देश अथवा ज्ञान आम लोकई में बांटे। जैसा की इस्लाम में कहा है की मुहम्मद आखरी पैगम्बर है सिखों में कहा गया है कि \"हर जुग जुग भक्त उपाया\"।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1069, "question": "\"धुर की बनी आई, तिन सगली चिंटू मैतेई\" यह बात किसने कही थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 661, "text": "सिखमत" } ], "category": "SHORT", "id": 1070, "question": "मूर्ति पूजा का विरोध कौन सा धर्म करता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1464, "text": "अवतार" } ], "category": "SHORT", "id": 1071, "question": "सिख धर्म में जीवित प्राणी को क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1072, "question": "मुहम्मद, अल्लाह के दूत नही है ये किस धर्म का मानना था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1931, "text": "कृष्ण " } ], "category": "SHORT", "id": 1073, "question": "\"आत्मा मरती नहीं है और आत्मा की हत्या होती है\" यह बात किसने कही है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "महाभारत ग्रंथ का आरम्भ निम्न श्लोक के साथ होता है:परन्तु महाभारत के आदिपर्व में दिये वर्णन के अनुसार कई विद्वान इस ग्रंथ का आरम्भ \"नारायणं नमस्कृत्य\" से, तो कोई आस्तिक पर्व से और दूसरे विद्वान ब्राह्मण उपचिर वसु की कथा से इसका आरम्भ मानते हैं। यह महाकाव्य 'जय संहिता', 'भारत' और 'महभारत' इन तीन नामों से प्रसिद्ध हैं। वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले १,००,००० श्लोकों के परिमाण के 'भारत' नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य धार्मिक उपाख्यान भी डाले। इसके बाद व्यास जी ने २४,००० श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके 'भारत' काव्य बनाया। इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हें 'जय' भी कहा जाने लगा। महाभारत में एक कथा आती है कि जब देवताओं ने तराजू के एक पासे में चारों \"वेदों\" को रखा और दूसरे पर 'भारत ग्रंथ' को रखा, तो 'भारत ग्रंथ' सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ। अतः 'भारत' ग्रंथ की इस महत्ता (महानता) को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे 'महाभारत' नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य 'महाभारत' के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ। महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली। परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस काव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुँचाया जाये क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था कि कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाएँ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1202, "text": "वेदव्यास जी " } ], "category": "SHORT", "id": 1074, "question": "महाभारत की रचना किसने की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 327, "text": "वेद व्यास जी" } ], "category": "SHORT", "id": 1075, "question": "व्यास जी द्वारा लिखे गए पुस्तक \"भारत\" में कितने छंद है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1076, "question": " व्यास गणेश जी के पास किसके निर्देश पर पहुंचे थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 3, "text": "भारत" } ], "category": "SHORT", "id": 1077, "question": "वेद व्यास द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक का क्या नाम है ? ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "महाराजा शरवन्थ के ५वीं शताब्दी के तांबे की स्लेट पर पाये गये अभिलेख में महाभारत को एक लाख श्लोकों की संहिता बताया गया है। वह अभिलेख निम्नलिखित है:सरस्वती नदीप्राचीन वैदिक सरस्वती नदी का महाभारत में कई बार वर्णन आता हैं, बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ (प्लक्षप्रस्त्रवण, यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण) तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है। कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि वर्तमान सूखी हुई घग्गर-हकरा नदी ही प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी थी, जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी और लगभग १९०० ईसा पूर्व में भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सूख गयी थी। ऋग्वेद में वर्णित प्राचीन वैदिक काल में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गई थी। उनकी सभ्यता में सरस्वती नदी ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं। भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी का पानी यमुना में चला गया, गंगा-यमुना संगम स्थान को 'त्रिवेणी' (गंगा-यमुना-सरस्वती) संगम मानते है। इस घटना को बाद के वैदिक साहित्यों में वर्णित हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहाकर ले जाने से भी जोड़ा जाता है क्योंकि पुराणों में आता है कि परीक्षित की २८ पीढियों के बाद गंगा में बाढ़ आ जाने के कारण सम्पूर्ण हस्तिनापुर पानी में बह गया और बाद की पीढियों ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया। महाभारत में सरस्वती नदी के विनाश्न नामक तीर्थ पर सूखने का सन्दर्भ आता है जिसके अनुसार मलेच्छों से द्वेष होने के कारण सरस्वती नदी ने मलेच्छ (सिंध के पास के) प्रदेशो में जाना बंद कर दिया। द्वारकाभारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ४०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोज निकाले हैं। इनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया है। प्रो॰एस.आर राव ने कई तर्क देकर इस नगरी को द्वारका सिद्ध किया है। यद्यपि अभी मतभेद जारी है क्योंकि गुजरात के पश्चिमी तट पर कई अन्य ७५०० वर्ष पुराने शहर भी मिल चुके हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 83, "text": "एक लाख श्लोकों" } ], "category": "SHORT", "id": 1078, "question": "महाराजा शरवंत के ताम्रपत्र पर मिले शिलालेख में महाभारत को कितने श्लोकों की संहिता के रूप में वर्णित किया गया है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 484, "text": "५०००-३००० ईसा पूर्व" } ], "category": "SHORT", "id": 1079, "question": "भूवैज्ञानिकों के अनुसार सरस्वती नदी पूर्ण प्रवाह में कब बहती थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1080, "question": "महाभारत के आधुनिक संस्करण की रचना कब हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 647, "text": "नदीतमा " } ], "category": "SHORT", "id": 1081, "question": "ऋग्वेद में वर्णित प्राचीन वैदिक काल में, सरस्वती नदी को किसकी उपाधि दी गई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1428, "text": "४०००-३५०० वर्ष " } ], "category": "SHORT", "id": 1082, "question": "भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने गुजरात के पश्चिमी तट पर कितने साल पुराने जलमग्न शहरो की ख़ोज की है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 832, "text": "त्रिवेणी" } ], "category": "SHORT", "id": 1083, "question": "गंगा-यमुना संगम को किस नाम से जाना जाता हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1084, "question": "महाभारत की रचना कब हुई थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मुंबई की संस्कृति परंपरागत उत्सवों, खानपान, संगीत, नृत्य और रंगमंच का सम्मिश्रण है। इस शहर में विश्व की अन्य राजधानियों की अपेक्षा बहुभाषी और बहुआयामी जीवनशैली देखने को मिलती है, जिसमें विस्तृत खानपान, मनोरंजन और रात्रि की रौनक भी शामिल है। मुंबई के इतिहास में यह मुख्यतः एक प्रधान व्यापारिक केन्द्र रहा है। इस खारण विभिन्न क्षेत्रों के लोग यहां आते रहे, जिससे बहुत सी संस्कृतियां, धर्म, आदि यहां एकसाथ मिलजुलकर रहते हैं। मुंबई भारतीय चलचित्र का जन्मस्थान है। —दादा साहेब फाल्के ने यहां मूक चलचित्र के द्वारा इस उद्योग की स्थापना की थी। इसके बाद ही यहां मराठी चलचित्र का भी श्रीगणेश हुआ था। तब आरंभिक बीसवीं शताब्दी में यहां सबसे पुरानी फिल्म प्रसारित हुयी थी। मुंबई में बड़ी संख्या में सिनेमा हॉल भी हैं, जो हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी फिल्में दिखाते हैं। विश्व में सबसे बड़ा IMAX डोम रंगमंच भी मुंबई में वडाला में ही स्थित है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव और फिल्मफेयर पुरस्कार की वितरण कार्यक्रम सभा मुंबाई में ही आयोजित होती हैं। हालांकि मुंबई के ब्रिटिश राज में स्थापित अधिकांश रंगमंच समूह १९५० के बाद भंग हो चुके हैं, फिर भी मुंबई में एक समृद्ध रंगमंच संस्कृति विकसित हुयी हुई है। ये मराठी और अंग्रेज़ी, तीनों भाषाओं के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी विकसित है। यहां कला-प्रेमियों की कमी भी नहीं है। अनेक निजी व्यावसायिक एवं सरकारी कला-दीर्घाएं खुली हुई हैं। इनमें जहांगीर कला दीर्घा और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय प्रमुख हैं। १८३३ में बनी बंबई एशियाटिक सोसाइटी में शहर का पुरातनतम पुस्तकालय स्थित है। छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय (पूर्व प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूज़ियम) दक्षिण मुंबई का प्रसिद्ध संग्रहालय है, जहां भारतीय इतिहास के अनेक संग्रह सुरक्षित हैं। मुंबई के चिड़ियाघर का नाम जीजामाता उद्यान है (पूर्व नाम: विक्टोरिया गार्डन्स), जिसमें एक हरा भरा उद्यान भी है। नगर की साहित्य में संपन्नता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति तब मिली जब सलमान रुश्दी और अरविंद अडिग को मैन बुकर पुरस्कार मिले थे। यही के निवासी रुडयार्ड किपलिंग को १९०७ में नोबल पुरस्कार भी मिला था। मराठी साहित्य भी समय की गति क साथ साथ आधुनिक हो चुका है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 796, "text": "वडाला" } ], "category": "SHORT", "id": 1085, "question": "दुनिया का सबसे बड़ा आईमैक्स डोम थिएटर मुंबई में कहां स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1327, "text": "१८३३ में" } ], "category": "SHORT", "id": 1086, "question": "बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी कब बनाया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 456, "text": "दादा साहेब फाल्के" } ], "category": "SHORT", "id": 1087, "question": "भारतीय सिनेमा की स्थापना किसने की थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "मुंबई" } ], "category": "SHORT", "id": 1088, "question": "भारतीय सिनेमा का जन्मस्थान कहाँ है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1089, "question": "मोहन आप्टे किस प्रदेश के लेखक थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1090, "question": "बॉम्बे का सबसे पुराना पुस्तकालय कहां स्थित है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मुंबई के अधिकांश निवासी अपने आवास व कार्याक्षेत्र के बीच आवागमन के लिए कोल यातायात पर निर्भर हैं। मुंबई के यातायात में मुंबई उपनगरीय रेलवे, बृहन्मुंबई विद्युत आपूर्ति एवं यातायात की बसें, टैक्सी ऑटोरिक्शा, फेरी सेवा आतीं हैं। यह शहर भारतीय रेल के दो मंडलों का मुख्यालय है: मध्य रेलवे (सेंट्रल रेलवे), जिसका मुख्यालय छत्रपति शिवाजी टर्मिनस है, एवं पश्चिम रेलवे, जिसका मुख्यालय चर्चगेट के निकट स्थित है। नगर यातायात की रीढ़ है मुंबई उपनगरीय रेल, जो तीन भिन्न नेटव्र्कों से बनी है, जिनके रूट शहर की लम्बाई में उत्तर-दक्षिण दिशा में दौड़ते हैं। मुंबई मैट्रो, एक भूमिगत एवं उत्थित स्तरीय रेलवे प्रणाली, जो फिल्हाल निर्माणाधीन है, वर्सोवा से अंधेरी होकर घाटकोपर तक प्रथम चरण में मेट्रो रेल सेवा में हैमुंबई भारत के अन्य भागों से भारतीय रेल द्वारा व्यवस्थित ढंग से जुड़ा है। रेलगाड़ियां छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, दादर, लोकमान्य तिलक टर्मिनस, मुंबई सेंट्रल, बांद्रा टर्मिनस एवं अंधेरी से आरंभ या समाप्त होती हैं। मुंबई उपनगरीय रेल प्रणाली 6.3 मिलियन यात्रियों को प्रतिदिन लाती ले जाती है। बी ई एस टी द्वारा चालित बसें, लगभग नगर के हरेक भाग को यातायात उपलब्ध करातीं हैं। साथ ही नवी मुंबई एवं ठाणे के भी भाग तक जातीं हैं। बसें छोटी से मध्यम दूरी तक के सफर के लिए प्रयोगनीय हैं, जबकि ट्रेनें लम्बी दूरियों के लिए सस्ता यातायात उपलब्ध करातीं हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 621, "text": "वर्सोवा से अंधेरी होकर घाटकोपर" } ], "category": "SHORT", "id": 1091, "question": "पहले चरण की मुंबई मेट्रो सेवा की शुरुआत किन क्षेत्रों के बीच की गई थी ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 314, "text": "छत्रपति शिवाजी टर्मिनस" } ], "category": "SHORT", "id": 1092, "question": "मुंबई शहर के मध्य रेलवे का मुख्यालय का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1093, "question": "महाराष्ट्र में बेस्ट की कुल कितनी बसें है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1094, "question": "बेस्ट की बसों से प्रतिदिन कितने यात्री सफ़र करते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 923, "text": "6.3 मिलियन" } ], "category": "SHORT", "id": 1095, "question": "मुंबई उपनगरीय रेल प्रणाली प्रतिदिन कितने यात्रियों को सेवा प्रदान करती है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मुख्य उल्लेख :महाभारत के पात्रअभिमन्यु : अर्जुन के वीर पुत्र जो कुरुक्षेत्र युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुये। अम्बा : शिखन्डी पूर्व जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी था। अम्बिका : विचित्रवीर्य की पत्नी, अम्बा और अम्बालिका की बहिन। अम्बालिका: विचित्रवीर्य की पत्नी, अम्बा और अम्बिका की बहिन। अर्जुन : देवराज इन्द्र द्वारा कुन्ती एवं पान्डु का पुत्र। एक अतुल्निय धनुर्धर जिसको श्री कृष्ण ने श्रीमद् भगवद् गीता का उपदेश दिया था। बभ्रुवाहन : अर्जुन एवं चित्रांग्दा का पुत्र। बकासुर : महाभारत काव्य में एक असुर जिसको भीम ने मार कर एक गांव के वासियों की रक्षा की थी। भीष्म : भीष्म का नामकरण देवव्रत के नाम से हुआ था। वे शान्तनु एवं गंगा के पुत्र थे। जब देवव्रत ने अपने पिता की प्रसन्नता के लिये आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्रण लिया, तब से उनका नाम भीष्म हो गया। द्रौपदी : द्रुपद की पुत्री जो अग्नि से प्रकट हुई थी। द्रौपदी पांचों पांड्वों की अर्धांगिनी थी और उसे आज प्राचीनतम् नारीवादिनियों में एक माना जाता है। द्रोण : हस्तिनापुर के राजकुमारों को शस्त्र विद्या देने वाले ब्राह्मण गुरु। अश्व्थामा के पिता। यह विश्व के प्रथम \"टेस्ट-टयूब बेबी\" थे। द्रोण एक प्रकार का पात्र होता है। द्रुपद : पांचाल के राजा और द्रौपदी एवमं धृष्टद्युम्न के पिता। द्रुपद और द्रोण बाल्यकाल के मित्र थे! दुर्योधन : कौरवों में ज्येष्ठ। धृतराष्ट्र एवं गांधारी के १०० पुत्रों में सबसे बड़े। दुःशासन : दुर्योधन से छोटा भाई जो द्रौपदी को हस्तिनपुर राज्यसभा में बालों से पकड़ कर लाया था। कुरुक्षेत्र युद्ध में भीम ने दुःशासन की छाती का रक्त पिया था। एकलव्य : द्रोण का एक महान शिष्य जिससे गुरुदक्षिणा में द्रोण ने उसका अंगूठा मांगा था। ]गांधारी : गंधार के राजा की पुत्री और धृतराष्ट्र की पत्नी।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1096, "question": "अर्जुन को गांडीव किसने दिया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1097, "question": "अर्जुन के धनुष को किस नाम से जाना जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 41, "text": "अर्जुन" } ], "category": "SHORT", "id": 1098, "question": "महाभारत में अभिमन्यु किसका पुत्र था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 324, "text": "पान्डु " } ], "category": "SHORT", "id": 1099, "question": "अर्जुन के पिता का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 109, "text": "अम्बा" } ], "category": "SHORT", "id": 1100, "question": "शिखंडी के पिछले जन्म का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 573, "text": "देवव्रत" } ], "category": "SHORT", "id": 1101, "question": " भीष्म का नाम किसके नाम पर रखा गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 366, "text": "श्री कृष्ण" } ], "category": "SHORT", "id": 1102, "question": "अर्जुन को श्रीमद् भगवद गीता का उपदेश किसने दिया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मूल रूप में भक्तो अवम सत्गुरुओं की वाणी का संग्रेह जो सतगुरु अर्जुन देव जी ने किया था जिसे आदि ग्रंथ कहा जाता है सिखों के धार्मिक ग्रंथ के रूप में प्रसिद्ध है | यह ग्रंथ ३६ भक्तों का सचा उपदेश है और आश्चर्यजनक बात ये है की ३६ भक्तों ने निरंकार को सम दृष्टि में व्याख्यान किया है | किसी शब्द में कोई भिन्नता नहीं है | सिख आदि ग्रंथ के साथ साथ दसम ग्रंथ, जो की सतगुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी का संग्रेह है को भी मानते हैं | यह ग्रंथ खालसे के अधीन है | पर मूल रूप में आदि ग्रंथ का ज्ञान लेना ही सिखों के लिए सर्वोप्रिया है |यही नहीं सिख हर उस ग्रंथ को सम्मान देते हैं, जिसमे गुरमत का उपदेश है |आदि ग्रंथ या आदि गुरु ग्रंथ या गुरु ग्रंथ साहिब या आदि गुरु दरबार या पोथी साहिब, गुरु अर्जुन देव दवारा संगृहित एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमे ३६ भक्तों के आत्मिक जीवन के अनुभव दर्ज हैं | आदि ग्रंथ इस लिए कहा जाता है क्योंकि इसमें \"आदि\" का ज्ञान भरपूर है | जप बनी के मुताबिक \"सच\" ही आदि है | इसका ज्ञान करवाने वाले ग्रंथ को आदि ग्रंथ कहते हैं | इसके हवाले स्वयम आदि ग्रंथ के भीतर हैं | हलाकि विदवान तबका कहता है क्योंकि ये ग्रंथ में गुरु तेग बहादुर जी की बनी नहीं थी इस लिए यह आदि ग्रंथ है और सतगुरु गोबिंद सिंह जी ने ९वें महले की बनी चढ़ाई इस लिए इस आदि ग्रंथ की जगंह गुरु ग्रंथ कहा जाने लगा |भक्तो एवं सत्गुरुओं की वाणी पोथिओं के रूप में सतगुरु अर्जुन देव जी के समय मोजूद थीं | भाई गुरदास जी ने यह ग्रंथ लिखा और सतगुरु अर्जुन देव जी दिशा निर्धारक बने | उन्हों ने अपनी वाणी भी ग्रंथ में दर्ज की | यह ग्रंथ की कई नकले भी तैयार हुई |आदि ग्रंथ के १४३० पन्ने खालसा दवारा मानकित किए गए |दसम ग्रन्थ, सिखों का धर्मग्रन्थ है जो सतगुर गोबिंद सिंह जी की पवित्र वाणी एवं रचनाओ का संग्रह है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी छोटी छोटी पोथियाँ बना दीं। उन की मौत के बाद उन की धर्म पत्नी माता सुन्दरी की आज्ञा से भाई मनी सिंह खालसा और अन्य खालसा भाइयों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सारी रचनाओ को इकठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया जिसे आज \"दसम ग्रन्थ\" कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने रचना की और खालसे ने सम्पादना की। दसम ग्रन्थ का सत्कार सारी सिख कौम करती है। दसम ग्रंथ की वानियाँ जैसे की जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिखों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह वानियाँ खंडे बाटे की पहोल, जिस को आम भाषा में अमृत छकना कहते हैं, को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं। तखत हजूर साहिब, तखत पटना साहिब और निहंग सिंह के गुरुद्वारों में दसम ग्रन्थ का गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ परकाश होता हैं और रोज़ हुकाम्नामे भी लिया जाता है। सरब्लोह ग्रन्थ ओर भाई गुरदास की वारें शंका ग्रस्त रचनाए हैं | हलाकि खालसा महिमा सर्ब्लोह ग्रन्थ में सुसजित है जो सतगुरु गोबिंद सिंह की प्रमाणित रचना है, बाकी स्र्ब्लोह ग्रन्थ में कर्म कांड, व्यक्ति पूजा इतियादी विशे मोजूद हैं जो सिखों के बुनयादी उसूलों के खिलाफ हैं | भाई गुरदास की वारों में मूर्ती पूजा, कर्म सिधांत आदिक गुरमत विरुद्ध शब्द दर्ज हैंसिख धर्म का इतिहास के लिए कोई भी ऐतिहासिक स्रोत को पूरी तरंह से प्र्पख नहीं मन जाता | श्री गुर सोभा ही ऐसा ग्रन्थ मन गया है जो गोबिंद सिंह के निकटवर्ती सिख द्वारा लिखा गया है लेकिन इसमें तारीखें नहीं दी गई हैं | सिखों के और भी इतिहासक ग्रन्थ हैं जैसे की श्री गुर परताप सूरज ग्रन्थ, गुर्बिलास पातशाही १०, श्री गुर सोभा, मन्हीमा परकाश एवं पंथ परकाश, जनमसखियाँ इतियादी | श्री गुर परताप सूरज ग्रन्थ की व्याख्या गुरद्वारों में होती है | कभी गुर्बिलास पातशाही १० की होती थी | १७५० के बाद ज्यादातर इतिहास लिखे गए हैं | इतिहास लिखने वाले विद्वान ज्यादातर सनातनी थे जिस कारण कुछ ऐतिहासिक पुस्तकों में सतगुरु एवं भक्त चमत्कारी दिखाए हैं जो की गुरमत फलसफे के मुताबिक ठीक नहीं है | गुरु नानक का हवा में उड़ना, मगरमच की सवारी करना, माता गंगा का बाबा बुड्ढा द्वारा गर्ब्वती करना इतियादी घटनाए जम्सखिओं और गुर्बिलास में सुसजित हैं और बाद वाले इतिहासकारों ने इन्ही बातों के ऊपर श्र्धवास मसाला लगा कर लिखा हुआ है | किसी सतगुर एवं भक्त ने अपना संसारी इतिहास नहीं लिखा | सतगुरु गोबिंद सिंह ने भी जितना लिखा है वह संक्षेप और टूक परमाण जितना लिखा है | सिख धर्म इतिहास को इतना महत्त्व नहीं देता, जो इतिहास गुरबानी समझने के काम आए उतना ही सिख के लिए ज़रूरी है |आज सिख इतिहास का शुद्धीकरण करने में लगे हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 2508, "text": "स्र्ब्लोह ग्रन्थ " } ], "category": "SHORT", "id": 1103, "question": "कर्मकांड, व्यक्ति पूजा किस ग्रंथ में शामिल हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 113, "text": "सिखों" } ], "category": "SHORT", "id": 1104, "question": "दशम ग्रंथ को किस समुदाय द्वारा अपनाया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 112, "text": " सिखों " } ], "category": "SHORT", "id": 1105, "question": "कर्मकांड, व्यक्ति पूजा का विरोध किस धर्म के द्वारा किया जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1685, "text": "माता सुन्दरी" } ], "category": "SHORT", "id": 1106, "question": "गुरु गोबिंद सिंह की पत्नी का क्या नाम था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1467, "text": "दसम ग्रन्थ" } ], "category": "SHORT", "id": 1107, "question": "गुरु गोबिंद सिंह की सभी रचनाओं क्या कहा जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1108, "question": "गुरु गोबिंद सिंह के भाई का क्या नाम था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम में अब यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश वासियों तक ही सीमित रह गया है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है। नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं। अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा अर्थात् नवरात्रोत्सव मनाया जाता है। श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस तिथि में दिन भर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालने में बालक श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं, अथवा अगले दिन प्रात: दही-कलाकन्द का प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे के पहले नौ दिनों (नवरात्रि) में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभासित होती हैं, व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक नहीं है हालांकि शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 70% हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे गोमांस भी कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है। प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति का विशेष महत्व था। चार प्रमुख वर्ण थे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय हो जाता था चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। लेकिन मध्य काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरुप विदेशी आचार - व्यवहार एवं राज्य नियमों के तहत जाति व्यवस्था में बदल गया। विदेशी आक्रमणकारियों का शासन स्थापित होने से भारतीय जनमानस में भी उन्हीं प्रभाव हुआ। इन विदेशियों नें कुछ निर्बल भारतीयों को अपनी विस्ठा और मैला ढोने मे लगाया तथा इन्हें स्वरोजगार करने वाले लोगों (चर्मकार, धोबी, डोम {बांस से दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माता} इत्यादि) से जोड़ दिया। अंग्रेजो नें इस व्यवस्था को और अधिक विकृत किया एवं जनजातियों को भी शामिल कर दिया। ।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 119, "text": "बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश" } ], "category": "SHORT", "id": 1109, "question": "छट का पर्व मुख्यतः भारत के किस प्रांत में मनाया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1110, "question": "हनुमान जी किस भगवान के अवतार हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 176, "text": "आश्विन शुक्ल प्रतिपदा" } ], "category": "SHORT", "id": 1111, "question": "नवरात्रि का त्योहार कब शुरू होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 71, "text": "दो बार" } ], "category": "SHORT", "id": 1112, "question": "छट का पर्व साल में कितनी बार मनाया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1113, "question": "भगवान विष्णु के कितने अवतार हैं?" }, { "answers": [ { "answer_start": 374, "text": "जन्माष्टमी" } ], "category": "SHORT", "id": 1114, "question": "कृष्ण पक्ष के आठवें दिन कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1337, "text": "गाय " } ], "category": "SHORT", "id": 1115, "question": "हिन्दू धर्म के अनुसार किस पशु को माँ का दर्जा दिया गया है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मोर अपने नर के असाधारण पंख प्रदर्शन पंख के कारण सर्वश्रेष्ठ तरीके से जाने जाते हैं, जो वास्तव में उनके पीछे की तरफ बढ़ते हैं और जिसे पूंछ समझ लिया जाता है। अत्यधिक लम्बी पूंछ की \"रेल\" वास्तविकता में ऊपरी अप्रकट भाग है। पूंछ भूरे रंग की और मोरनी की पूंछ छोटी होती है। पंखों की सूक्ष्म संरचना के परिणामस्वरूप रंगों की अद्भुत घटना परिलक्षित होती है। नर की लंबी रेल पंख (और टार्सल स्पर) जीवन के दूसरे वर्ष के बाद ही विकसित होती हैं। पूरी तरह से विकसित पंख चार साल से अधिक उम्र के पक्षियों में पाए जाते हैं। उत्तरी भारत में, प्रत्येक के लिए यह फ़रवरी महीने के शुरू में विकसित होता है और अगस्त के अंत में गिर जाता है। उड़ान भरने वाले पंख साल भर में रहते हैं। माना जाता है कि अलंकृत पंखों का प्रदर्शन यह मादाओं से प्रेमालाप और यौन चयन के लिए अपने पंखों को उठा कर उन्हें आकर्षित करने के लिए करते हैं कई अध्ययनों से पता चला है कि पंखों की गुणवत्ता पर ही मादा नर की हालत का ईमानदार संकेत देखकर नर का चुनाव करती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि मादा द्वारा नर के चुनाव में अन्य संकेत भी शामिल हो सकते हैं। छोटे समूहों में मादाएं चारा चुगती हैं, जिसे मस्टर के रूप में जाना जाता है, आम तौर पर इनमें एक नर और 3-5 मादाएं होती हैं। प्रजनन के मौसम के बाद, झुंड में केवल मादा और युवा ही रहते हैं। यह सुबह खुले में पाए जाते हैं और दिन की गर्मी के दौरान छायादार स्थान में रहते हैं। गोधूलि बेला में वे धूल से स्नान के शौकीन होते हैं, पूरी झुंड एक पंक्ति में एक पसंदीदा जलस्थल पर पानी पीने जाते हैं। आमतौर पर जब वे परेशान होते हैं, भागते हैं और बहुत कम उड़ान भरते हैं। मोर प्रजनन के मौसम में विशेष रूप से जोर से आवाज निकालते हैं। रात को जब वे पड़ोसी पक्षियों को आवाज निकालते हुए सुनते हैं तो चिंतित होकर उसी श्रृंखला में आवाज निकालने लगते हैं। मोर की सामान्यतः छह प्रकार के अलार्म की आवाज के अलावा करीब सात किस्म की आवाज अलग अलग लिंगों द्वारा निकाली गई आवाज को पहचाना जा चुका है। मोर ऊँचे पेड़ों पर अपने बसेरे से समूहों में बांग भरते हैं लेकिन कभी कभी चट्टानों, भवनों या खंभों का उपयोग करते हैं। गिर के जंगल में, यह नदी के किनारे किसी ऊंची पेड़ को चुनते हैं। गोधूलि बेला में अक्सर पक्षी अपने पेड़ों पर बने बसेरे पर से आवाज निकालते हैं। बसेरे पर एकत्रित बांग भरने के कारण, कई जनसंख्या इन स्थलों पर अध्ययन करते हैं। जनसंख्या की संरचना की जानकारी ठीक प्रकार से नहीं है, उत्तरी भारत (जोधपुर) के एक अध्ययन के अनुसार, नरों की संख्या 170-210 प्रति 100 मादा है लेकिन दक्षिणी भारत (इंजर) में बसेरा स्थल पर शाम की गिनती के अनुसार 47 नरों के अनुपात में 100 मादाएं पाई गईं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 0, "text": "मोर " } ], "category": "SHORT", "id": 1116, "question": "कौन सा पक्षी अपने पंख प्रदर्शन के लिए जाना जाता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1117, "question": "कौन सा पक्षी बहुसहचर होते है? " }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1118, "question": "उत्तरी भारत में पुरुष और महिला का जनसँख्या अनुपात कितना है ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 1441, "text": "प्रजनन के मौसम में" } ], "category": "SHORT", "id": 1119, "question": "मोर किस अवस्था में जोर से आवाज़ निकालते है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 2280, "text": " 47 नरों के अनुपात में 100 मादाएं" } ], "category": "SHORT", "id": 1120, "question": "दक्षिणी भारत में पुरुष और महिला का जनसँख्या अनुपात कितना है ? " }, { "answers": [ { "answer_start": 813, "text": "पंखों की गुणवत्ता " } ], "category": "SHORT", "id": 1121, "question": "मोर का प्रजनन किस पर निर्भर होता है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1122, "question": "चारे का भोजन करने वाली पक्षियों को क्या कहा जाता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफ़ी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। मोरारजी देसाई ने मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतु आवेदन करने का मन बनाया जहाँ सरकार द्वारा सीधी भर्ती की जाती थी। जुलाई 1917 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि पाई। यहाँ इन्हें ब्रिटिश व्यक्तियों की भाँति समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त होती रहीं। यहाँ रहते हुए मोरारजी अफ़सर बन गए। मई 1918 में वह परिवीक्षा पर बतौर उप ज़िलाधीश अहमदाबाद पहुंचे। उन्होंने चेटफ़ील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर (ज़िलाधीश) के अंतर्गत कार्य किया। मोरारजी 11 वर्षों तक अपने रूखे स्वभाव के कारण विशेष उन्नति नहीं प्राप्त कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक पद तह ही पहुँचे। मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए। 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए। उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और सरदार पटेल के निर्देश पर उसके अध्यक्ष बन गए। 1932 में मोरारजी को 2 वर्ष की जेल भुगतनी पड़ी। मोरारजी 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वह बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए। इस दौरान यह माना जाता रहा कि मोरारजी देसाई के व्यक्तितत्त्व में जटिलताएं हैं। वह स्वयं अपनी बात को ऊपर रखते हैं और सही मानते हैं। इस कारण लोग इन्हें व्यंग्य से 'सर्वोच्च नेता' कहा करते थे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1123, "question": "गुजरात के समाचार पत्र किसके व्यक्तित्व पर व्यंग्य करते थे?" }, { "answers": [ { "answer_start": 123, "text": "रणछोड़जी देसाई" } ], "category": "SHORT", "id": 1124, "question": "मोरारजी देसाई के पिता कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 380, "text": " एलफिंस्टन कॉलेज" } ], "category": "SHORT", "id": 1125, "question": "मोरारजी देसाई की शिक्षा कहाँ से हुई थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 21, "text": " 29 फ़रवरी 1896 " } ], "category": "SHORT", "id": 1126, "question": "मोरारजी देसाई का जन्म कब हुआ था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1556, "text": "1931" } ], "category": "SHORT", "id": 1127, "question": "मोरारजी देसाई को किस वर्ष गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1021, "text": "जुलाई 1917 " } ], "category": "SHORT", "id": 1128, "question": "मोरारजी देसाई को विश्वविद्यालय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश कब मिला था ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय नगर पोरबंदर नामक स्थान पर २ अक्टूबर सन् १८६९ को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की पंसारी जाति से सम्बन्ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे। गुजराती भाषा में गान्धी का अर्थ है पंसारी जबकि हिन्दी भाषा में गन्धी का अर्थ है इत्र फुलेल बेचने वाला जिसे अंग्रेजी में परफ्यूमर कहा जाता है। उनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। पुतलीबाई करमचन्द की चौथी पत्नी थी। उनकी पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और उस क्षेत्र की जैन परम्पराओं के कारण युवा मोहनदास पर वे प्रभाव प्रारम्भ में ही पड़ गये थे जिसने आगे चलकर महात्मा गांधी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन प्रभावों में सम्मिलित थे दुर्बलों में उत्साह की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्मशुद्धि के लिये उपवास तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच सहिष्णुता। मई १८८३ में साढे १३ वर्ष की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह १४ वर्ष की कस्तूर बाई मकनजी से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया गया और उसे लोग प्यार से बा कहते थे। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। परन्तु उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। १८८५ में जब गान्धी जी १५ वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। किन्तु वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी वर्ष उनके पिता करमचन्द गांधी भी चल बसे।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1129, "question": "हरिलाल गाँधी का जन्म किस वर्ष हुआ है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 100, "text": "२ अक्टूबर सन् १८६९" } ], "category": "SHORT", "id": 1130, "question": "मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म कब हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 900, "text": "मई १८८३" } ], "category": "SHORT", "id": 1131, "question": "मोहनदास करमचंद गांधी की शादी कब हुई थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 465, "text": "वैश्य समुदाय" } ], "category": "SHORT", "id": 1132, "question": "गाँधी जी की मां पुतलीबाई किस समुदाय से थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1133, "question": "गाँधी जी के कुल कितने बच्चे थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 168, "text": "पंसारी" } ], "category": "SHORT", "id": 1134, "question": "गुजराती में गांधी का अर्थ क्या होता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "यद्यपि सिक्किम के अधिकांश आवासित क्षेत्र में, मौसम समशीतोष्ण (टैंपरेट) रहता है और तापमान कम ही 28 °सै (82 °फै) से ऊपर यां 0 °सै (32 °फै) से नीचे जाता है। सिक्किम में पांच ऋतुएं आती हैं: सर्दी, गर्मी, बसंत और पतझड़ और वर्षा, जो जून और सितंबर के बीच आती है। अधिकतर सिक्किम में औसत तापमान लगभग 18 °सै (64 °फै) रह्ता है। सिक्किम भारत के उन कुछ ही राज्यों में से एक है जिनमे यथाक्रम वर्षा होती है। हिम रेखा लगभग ६००० मीटर (१९६०० फीट) है। मानसून के महीनों में प्रदेश में भारी वर्षा होती है जिससे काफी संख्या में भूस्खलन होता है। प्रदेश में लगातार बारिश होने का कीर्तिमान ११ दिन का है। प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र में शीत ऋतु में तापमान -40 °C से भी कम हो जाता है। शीत ऋतु एवं वर्षा ऋतु में कोहरा भी जन जीवन को प्रभावित करता है जिससे परिवहन काफी कठिन हो जाता है। सिक्किम में चार जनपद हैं। प्रत्येक जनपद (जिले) को केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा नियुक्त जिलाधिकारी देखता है। चीन की सीमा से लगे होने के कारण अधिकतर क्षेत्रों में भारतीय सेना का बाहुल्य दिखाई देता है। कई क्षेत्रों में प्रवेश निषेध है और लोगों को घूमने के लिये परमिट लेना पड़ता है। सिक्किम में कुल आठ कस्बे एवं नौ उप-विभाग हैं। यह चार जिले पूर्व सिक्किम, पश्चिम सिक्किम, उत्तरी सिक्किम एवं दक्षिणी सिक्किम हैं जिनकी राजधानियाँ क्रमश: गंगटोक, गेज़िंग, मंगन एवं नामची हैं। यह चार जिले पुन: विभिन्न उप-विभागों में बाँटे गये हैं। \"पकयोंग\" पूर्वी जिले का, \"सोरेंग\" पश्चिमी जिले का, \"चुंगथांग\" उत्तरी जिले का और \"रावोंगला\" दक्षिणी जिले का उपविभाग है। सिक्किम हिमालय के निचले हिस्से में पारिस्थितिक गर्मस्थान में भारत के तीन पारिस्थितिक क्षेत्रों में से एक बसा हुआ है। यहाँ के जंगलों में विभिन्न प्रकार के जीव जंतु एवं वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। अलग अलग ऊँचाई होने की वज़ह से यहाँ ट्रोपिकल, टेम्पेरेट, एल्पाइन और टुन्ड्रा तरह के पौधे भी पाये जाते हैं। इतने छोटे से इलाके में ऐसी भिन्नता कम ही जगहों पर पाई जाती है। सिक्किम के वनस्पति में उपोष्णकटिबंधीय से अल्पाइन क्षेत्रों से होने वाली प्रजातियों की एक बड़ी शृंखला के साथ रोडोडेंड्रॉन, राज्य पेड़ शामिल है। सिक्किम की निचली ऊँचाई में ऑर्किड, अंजीर, लॉरेल, केला, साल के पेड़ और बांस, जो उप-उष्णकटिबंधीय प्रकार के वातावरण में पनपते हैं। 1,500 मीटर से ऊपर समशीतोष्ण ऊँचाई में, ओक्स, मैपल, बर्च, अल्डर, और मैग्नीओली बड़ी संख्या में बढ़ते हैं। अल्पाइन प्रकार की वनस्पति में जूनिपर, पाइन, एफआईआर, साइप्रस और रोडोडेंड्रॉन शामिल हैं, और आमतौर पर 3,500 मीटर से 5,000 मीटर की ऊँचाई के बीच पाए जाते हैं। सिक्किम में करीब 5,000 फूल पौधे हैं, 515 दुर्लभ ऑर्किड, 60 प्राइम्युलस प्रजातियां, 36 रोडोडेंड्रॉन प्रजातियां, 11 ओक्स किस्मों, 23 बांस की किस्में, 16 शंकुधारी प्रजातियां, 362 प्रकार के फर्न और फर्न सहयोगी, 8 पेड़ के फर्न, और 424 औषधीय पौधों है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1135, "question": "सिक्किम के आधिकारिक फूल का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1136, "question": "सिक्किम के अधिकांश पक्षी कैसे होते है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1137, "question": "सिक्किम में सर्दियों के मौसम में तापमान कितना होता हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 756, "text": "चार " } ], "category": "SHORT", "id": 1138, "question": "सिक्किम में कितने जिले हैं ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": 165, "text": "पांच " } ], "category": "SHORT", "id": 1139, "question": "सिक्किम में कुल कितने मौसम होते हैं ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 459, "text": " भारी वर्षा " } ], "category": "SHORT", "id": 1140, "question": "सिक्किम राज्य में भूस्खलन होने का प्रमुख कारण क्या हैं ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": 289, "text": "18 °सै (64 °फै)" } ], "category": "SHORT", "id": 1141, "question": "सिक्किम राज्य का औसत तापमान कितना होता है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "यह नया मनुष्य जातियों एवं धर्मों में विभक्त न होकर धर्म, मानव एवं देश के संरक्षण के लिए सदैव कटिबद्ध रहने वाला है। सबको साथ लेकर चलने की यह संचरना, निस्संदेह, सिख मानस की थाती है। फिर, सिख धर्म का परम लक्ष्य मानव-कल्याण ही तो है। कदाचित इसी मानव-कल्याण का सबक सिखाने के लिए गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को एक लम्बा पत्र (ज़फ़रनामा) लिखा था, जिसमें ईश्वर की स्तुति के साथ-साथ औरंगजेब के शासन-काल में हो रहे अन्याय तथा अत्याचार का मार्मिक उल्लेख है। इस पत्र में नेक कर्म करने और मासूम प्रजा का खून न बहाने की नसीहतें, धर्म एवं ईश्वर की आड़ में मक्कारी और झूठ के लिए चेतावनी तथा योद्धा की तरह मैदान जंग में आकर युद्ध करने के लिए ललकार है। कहा जाता है कि इस पत्र को पढ़कर औरंगजेब की रूँह काँप उठी थी और इसके बाद वह अधिक समय तक जीवित नहीं रहा। गुरु जी से एक बार भेंट करने की उसकी अन्दरुनी इच्छा भी पूरी न हो सकी। यह कोई श्रेय लेने-देने वाली बात नहीं है कि सिख गुरुओं का सहज, सरल, सादा और स्वाभाविक जीवन जिन मूल्यों पर आधारित था, निश्चय ही उन मूल्यों को उन्होंने परम्परागत भारतीय चेतना से ग्रहण किया था। देश, काल और परिस्थितियों की माँग के अनुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व को ढालकर तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन को गहरे में प्रभावित किया था। सिख गुरुओं ने अपने समय के धर्म और समाज-व्यवस्था को प्रभावित किया था। सिख गुरुओं ने अपने समय के धर्म और समाज-व्यवस्था को एक नई दिशा दी। उन्होंने भक्ति, ज्ञान, उपासना, अध्यात्म एवं दर्शन को एक संकीर्ण दायरे से निकालकर समाज को उस तबके के बीच पहुँचा दिया, जो इससे पूर्णत: वंचित थे। इससे लोगों का आत्मबोध जागा और उनमें एक नई दृष्टि एवं जागृति पनपी, वे स्वानुभूत अनुभव को मान्यता देने लगे। इस प्रकार निर्गुण निराकार परम शक्ति का प्रवाह प्रखर एवं त्वरित रूप से प्राप्त हुआ। सिख धर्म की एक अन्य मार्के की विशिष्टता यह है कि सिख गुरुओं ने मनुष्य को उद्यम करते हुए जीवन जीने, कमाते हुए सुख प्राप्त करने और ध्यान करते हुए प्रभु की प्राप्ति करने की बात कही। उनका मानना था कि परिश्रम करनेवाला व्यक्ति सभी चिन्ताओं से मुक्त रहता है। गुरु नानक ने तो यहाँ तक कहा है कि जो व्यक्ति मेहनत करके कमाता है और उसमें कुछ दान-पुण्य करता है, वही सही मार्ग को पहचानता है। सिख गुरुओं द्वारा प्रारंभ की गई ‘लंगर’ (मुफ्त भोजन) प्रथा विश्वबन्धुत्व, मानव-प्रेम, समानता एवं उदारता की अन्यत्र न पाई जाने वाली मिसाल है। सिख गुरुओं ने कभी न मुरझाने वाले सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों की भी स्थापना की। उन्होंने अपने दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिन्तन से भाँप लिया था कि आने वाला समय कैसा होगा। इसलिए उन्होंने अन्धी नकल के खिलाफ वैकल्पिक चिन्तन पर जोर दिया। शारीरिक-अभ्यास एवं विनोदशीलता को जीवन का आवश्यक अंग माना। पंजाब के लोकगीतों, लोकनृत्यों एवं होला महल्ला पर शास्त्रधारियों के प्रदर्शित करतबों के मूल में सिख गुरुओं के प्रेरणा-बीज ही हैं। इन लोकगीतों एवं लोक नृत्यों की जड़ें पंजाब की धरती से फूटती हैं और लोगों में थिरकन पैदा करती हैं। भांगड़ा और गिद्धा पंजाब की सांस्कृतिक शान हैं, जिसकी धड़कन देश-विदेश में प्राय: सुनी जाती है। पंजाबी संस्कृति राष्ट्रीयता का मेरुदण्ड है। इसके प्राण में एकत्व है, इसके रक्त में सहानुभूति, सहयोग, करुणा और मानव-प्रेम है। पंजाबी संस्कृति आदमी से जोड़ती है और उसकी पहचान बनाती है। विश्व के किसी कोने में घूमता-फिरता पंजाबी स्वयं में से एक लघु पंजाब का प्रतिरूप है। प्रत्येक सिख की अपनी स्वतंत्र चेतना है, जो जीवन-संबंधी समस्याओं को अपने ही प्रकाश में सुलझाने के उद्देश्य से गम्भीर रूप से विचार करती आई है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 292, "text": "औरंगजेब" } ], "category": "SHORT", "id": 1142, "question": "गुरु गोबिंद सिंह ने मानव कल्याण का पाठ पढ़ाने के लिए किसको पत्र लिखा था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 270, "text": " गुरु गोविन्द सिंह" } ], "category": "SHORT", "id": 1143, "question": "औरंगजेब की किस गुरु से मिलने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 318, "text": "ज़फ़रनामा" } ], "category": "SHORT", "id": 1144, "question": "गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखे गए पत्र को क्या जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1145, "question": "होला महल भारत के किस राज्य में स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 844, "text": "सिख गुरुओं" } ], "category": "SHORT", "id": 1146, "question": "लंगर किस धर्म गुरुओ द्वारा शुरू किया गया था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "यह शहर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां सड़कों का जाल बिछा हुआ है। ये सड़के एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इन सड़कों पर घूमते हुए आपको औपनिवेशिक काल की बनी कई इमारतें दिख जाएंगी। ये इमारतें आज भी काफी आकर्षक प्रतीत होती है। इन इमारतों में लगी पुरानी खिड़कियां तथा धुएं निकालने के लिए बनी चिमनी पुराने समय की याद‍ दिलाती हैं। आप यहां कब्रिस्‍तान, पुराने स्‍कूल भवन तथा चर्चें भी देख सकते हैं। पुराने समय की इमारतों के साथ-साथ आपकों यहां वर्तमान काल के कंकरीट के बने भवन भी दिख जाएंगे। पुराने और नए भवनों का मेल इस शहर को एक खास सुंदरता प्रदान करता है। यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सक्या मठ सक्या सम्‍प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्‍वपूर्ण मठ है। इस मठ की स्‍थापना १९१५ ई. में की गई थी। इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ्‍ा ६० बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं। 11वें ग्यल्वाङ ड्रुगछेन तन्जीन ख्येन्-रब गेलेगस् वांगपो की मृत्‍यु १९६० ई. में हो गई थी। इन्‍हीं के याद में इस मठ की स्‍थापना १९७१ ई. में की गई थी। इस मठ की बनावट तिब्‍बतियन शैली में की गई थी। बाद में इस मठ की पुनर्स्‍थापना १९९३ ई. में की गई। इसका अनावरण दलाई लामा ने किया था। यह मठ चौरास्‍ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्‍थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्‍प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्‍प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य १९१४ ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्‍प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्‍‍कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है। विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं। निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य १९७२ ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर १ नवम्बर १९९२ ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है। टाइगर हिल का मुख्‍य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। इसी के पास कंचनजंघा चोटी है। १८३८ से १८४९ ई. तक इसे ही विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन १८५६ ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्‍ट का नाम दिया था, विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्‍यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्‍ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र ८२७ फीट का अंतर है। वर्तमान में कंचनजंघा विश्‍व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है। इसकी सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है। इस चोटी की सुंदरता पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं। इसके अलावा सत्‍यजीत राय की फिल्‍मों में इस चोटी को कई बार दिखाया जा चुका है। शुल्‍ककेवल देखने के लिए नि: शुल्‍कटावर पर चढ़ने का शुल्‍क १० रु.टावर पर बैठने का शुल्‍क ३० रु.यहां तक आप जीप द्वारा जा सकते हैं। डार्जिलिंग से यहां तक जाने और वापस जाने का किराया ६५ से ७० रु. के बीच है। टाइगर हिल के निकट ईगा चोइलिंग तिब्‍बतियन मठ है। यह मठ गेलुगस् संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ को ही घूम मठ के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मठ की स्‍थापना धार्मिक कार्यो के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक बैठकों के लिए की गई थी। इस मठ की स्‍थापना १८५० ई. में एक मंगोलियन भिक्षु लामा शेरपा याल्‍तसू द्वारा की गई थी। याल्‍तसू अपने धार्मिक इच्‍छाओं की पूर्त्ति के लिए १८२० ई. के करीब भारत में आए थे। इस मठ में १९१८ ई. में बुद्ध की १५ फीट ऊंची मूर्त्ति स्‍थापित की गई थी। उस समय इस मूर्त्ति को बनाने पर २५००० रु. का खर्च आया था। यह मूर्त्ति एक कीमती पत्‍थर का बना हुआ है और इसपर सोने की कलई की गई है। इस मठ में बहुमूल्‍य ग्रंथों का संग्रह भी है। ये ग्रंथ संस्‍कृत से तिब्‍बतीयन भाषा में अनुवादित हैं। इन ग्रंथों में कालीदास की मेघदूत भी शामिल है। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्‍थापना संत एंड्रूज चर्च के पास १८६१ ई. की गई।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1421, "text": "१९१४ ई" } ], "category": "SHORT", "id": 1147, "question": "मठ का निर्माण कब पूरा हुआ था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1148, "question": "मखला मंदिर कौन से स्थान पर स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 955, "text": " तिब्‍बतियन शैली" } ], "category": "SHORT", "id": 1149, "question": "मठ का निर्माण किस शैली में किया गया था? 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{ "paragraphs": [ { "context": "यहां के अधिकांश निर्माण उन १४ वर्षों के ही हैं, जिनमें अकबर ने यहां निवास किया। शहर में शाही उद्यान, आरामगाहें, सामंतों व दरबारियों के लिये आवास तथा बच्चों के लिये मदरसे बनवाये गए। ब्लेयर और ब्लूम के अनुसार शहर के अंदर इमारतें दो प्रमुख प्रकार की हैं- सेवा इमारतें, जैसे कारवांसेरी, टकसाल, निर्माणियां, बड़ा बाज़ार (चहर सूक) जहां दक्षिण-पश्चिम/उत्तर पूर्व अक्ष के लम्बवत निर्माण हुए हैं और दूसरा शाही भाग, जिसमें भारत की सबसे बड़ी सामूहिक मस्जिद है, साथ ही आवासीय तथा प्रशासकीय इमारते हैं जिसे दौलतखाना कहते हैं। ये पहाड़ी से कुछ कोण पर स्थित हैं तथा किबला के साथ एक कोण बनाती हैं। किन्तु ये निर्णय सही सिद्ध नहीं हुआ और कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। इसके पीछे पानी की कमी प्रमुख कारण था। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार की रचना की जो पूरे साम्राज्य में घूमता रहता था और इस प्रकार साम्राज्य के सभी स्थानों पर उचित ध्यान देना संभव हुआ। बाद में उसने सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी भाग के लिए लाहौर को राजधानी बनाया। मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में राजधानी वापस आगरा बनायी और अन्त तक यहीं से शासन संभाला। आगरा शहर का नया नाम दिया गया अकबराबाद जो साम्राज्य की सबसे बड़ा शहर बना। शहर का मुख्य भाग यमुना नदी के पश्चिमी तट पर बसा था। यहां बरसात के पानी की निकासी की अच्छी नालियां-नालों से परिपूर्ण व्यवस्था बनायी गई। लोधी साम्राज्य द्वारा बनवायी गई गारे-मिट्टी से बनी नगर की पुरानी चारदीवारी को तोड़कर १५६५ में नयी बलुआ पत्थर की दीवार बनवायी गई। अंग्रेज़ इतिहासकार युगल ब्लेयर एवं ब्लूम के अनुसार इस लाल दीवार के कारण ही इसका नाम लाल किला पड़ा। वे आगे लिखते हैं कि यह किला पिछले किले के नक्शे पर ही कुछ अर्धवृत्ताकार बना था। शहर की ओर से इसे एक दोहरी सुरक्षा दीवार घेरे है, जिसके बाहर गहरी खाई बनी है। इस दोहरी दीवार में उत्तर में दिल्ली गेट व दक्षिण में अमर सिंह द्वार बने हैं।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1065, "text": "अकबराबाद" } ], "category": "SHORT", "id": 1155, "question": "अकबर ने आगरा शहर का नाम बदलकर क्या कर दिया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1675, "text": "अमर सिंह द्वार" } ], "category": "SHORT", "id": 1156, "question": "लाल किले के दोहरी दीवार के दक्षिण दिशा में क्या था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1157, "question": "अकबर के पोते का क्या नाम था ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 748, "text": "चलित दरबार" } ], "category": "SHORT", "id": 1158, "question": "फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने क्या बनाया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": 888, "text": "१५८५" } ], "category": "SHORT", "id": 1159, "question": "अकबर ने लाहौर को किस वर्ष भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग की राजधानी बनाई? " }, { "answers": [ { "answer_start": 492, "text": "दौलतखाना" } ], "category": "SHORT", "id": 1160, "question": "मुग़ल काल में आवासीय और प्रशासनिक भवन को क्या कहा जाता था?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "यहां देखने लायक कई स्‍थान हैं जैसे, गणेश टोक, हनुमान टोक तथा ताशि व्‍यू प्‍वांइट। अगर आप गंगटोक घूमने का पूरा लुफ्त उठाना चाहते हैं तो इस शहर को पैदल घूमें। यहां से कंचनजंघा नजारा बहुत ही आकर्षक प्रतीत होता है। इसे देखने पर ऐसा लगता है मानो यह पर्वत आकाश से सटा हुआ है तथा हर पल अपना रंग बदल रहा है। अगर आपकी बौद्ध धर्म में रुचि है तो आपको इंस्‍टीट्यूट ऑफ तिब्‍बतोलॉजी जरुर घूमना चाहिए। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्‍य प्राचीन अवशेष तथा धर्मग्रन्‍थ रखे हुए हैं। यहां अलग से तिब्‍बती भाषा, संस्‍कृति, दर्शन तथा साहित्‍य की शिक्षा दी जाती है। इन सबके अलावा आप प्राचीन कलाकृतियों के लिए पुराने बाजार, लाल बाजार या नया बाजार भी घूम सकते हैं। गंगटोक से 40 किलोमीटर की दूरी पर यह झील स्थित है। यह झील चारों ओर से बर्फीली पहाडियों से घिरा हुआ है। झील एक किलोमीटर लंबा तथा 50 फीट गहरा है। यह अप्रैल महीने में पूरी तरह बर्फ में तब्‍दील हो जाता है। सुरक्षा कारणों से इस झील को एक घंटे से अधिक देर तक नहीं घूमा जा सकता है। जाड़े के समय में इस झील में प्रवास के लिए बहुत से विदेशी पक्षी आते हैं। इस झील से आगे केवल एक सड़क जाती है। यही सड़क आगे नाथूला दर्रे तक जाती है। यह सड़क आम लोगों के लिए खुला नहीं है। लेकिन सेना की अनु‍मति लेकर यहां तक जाया जा सकता है। लाम्पोखरी, गंगटोक से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक झील है। गंगटोक से यहाँ पाक्योंग अथवा रम्फू होते हुए टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। झील चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1159, "text": "70 किलोमीटर" } ], "category": "SHORT", "id": 1161, "question": "लंपोखरी झील गंगटोक से कितने किमी की दूरी पर स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1162, "question": "रुम्टेक मठ गंगटोक से कितनी दूरी पर स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 643, "text": "40 किलोमीटर" } ], "category": "SHORT", "id": 1163, "question": "पुराना बाजार और लाल बाजार गंगटोक से कितनी दुरी पर स्थित है?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1164, "question": "रुम्टेक मठ कितने साल पुराना है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 471, "text": "तिब्‍बती भाषा, संस्‍कृति, दर्शन तथा साहित्‍य" } ], "category": "SHORT", "id": 1165, "question": "तिब्बत विज्ञान संस्थान में किस विषय से सम्बंधित शिक्षा दी जाती है?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "यहां स्थापित करने के लिए राजा मानसिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय स्तंभों वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दो मंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के प्रांगण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है, जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें। मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है। पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं। जयगढ़ किला मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय तोप - जयबाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते हैं। नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढाती हैं सांगानेर - (१२ किलोमीटर) - यह टोंक जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है। शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है। गोनेर - दूरी -(17 किलोमीटर) जयपुर की छोटी काशी के उपनाम से विख्यात कस्बा। जयपुर एवं दौसा जिले के ग्रामीण अंचल के आराध्य श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर का भव्य एवं प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक प्राचीन किला, बावड़ियाँ एवं जगन्नाथ सागर तालाब स्थित है। राज्य स्तरीय राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा जिला स्तरीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान स्थित है। बगरू - (34 किलोमीटर) - अजमेर मार्ग पर, पुराना किला, अभी भी अच्छी अवस्था में है। यह अपने हाथ की छपाई के हथकरघा उद्योग के लिए उल्लेखनीय है, जहां सरल तकनीको का प्रयोग होता है। इस हथकरघाओं के डिजाइन कम जटिल व मटियाले रंगो के होते है। रामगढ़ झील - (32 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - पेड़ो से आच्छादित पहाड़ियो के बीच एक ऊंचा बांध बांध कर एक विशाल कृत्रिम झील की निर्माण किया गया है। यद्यपि जमवा माता का मंदिर व पुराने किले के खंडहर इसके पुरावशेष है। विशेषकर बारिश के मौसम में इसके आकर्षक प्राकृतिक दृश्य इसको एक बेहतर पिकनिक स्थल बना देते है। सामोद - (40 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - सुन्दर सामोद महल का पुनर्निमाण किया गया है तथा यह राजपूत हवेली वास्तुकला का बेहतर नमूना है व पर्यटन लिए उत्तम स्थल। विराट नगर- (शाहपुरा - अलवर मार्ग 86 किलोमीटर दूर) - खुदाई करने पर निकले एक वृत्ताकार बुद्ध मंदिर के अवशेषों से युक्त एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है जो राजस्थान का असाधारण व भारत का आरंभिक प्रसिद्ध मंदिर है। बैराठ में मौर्य, मुगल व राजपूत समय के स्मृतिचिन्ह भी हैं। अकबर द्वारा निर्मित एक खान (? ), एक रमणीय मुगल बगीचा और जहांगीर द्वारा निर्मित चित्रित छतरियों व दीवारों से युक्त असाधारण इमारत अन्य आकर्षण हैं। सांभर(पश्चिम से 14 किलोमीटर) - नमक की विशाल झील, पवित्र देवयानी कुंड, महल और पास ही स्थित नालियासार के प्रसिद्ध है। जयसिंहपुरा खोर - (अजमेर मार्ग से 12 किलोमीटर) - मीणा कबीले के इस आवास में एक दुर्गम किला, एक जैन मंदिर और हरे भरे वृक्षों के बीच एक बावड़ी है। माधोगढ़ - तुंगा (बस्सी लालसोट आगरा मार्ग से 40 किलोमीटर) - जयपुर व मराठा सेना के बीच हुए एतिहासिक युग का तुंगा गवाह है। सुंदर आम के बागों के बीच यह किला बसा है। चाकसू—चाकसू से 2 किमी पूर्व में शीतला माता का मंदिर है जिसमे प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा अष्टमी को यहां मेला भरता है जिसमे लाखो की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। जयसिंह शहर की स्थापना जयसिंह द्वितीय, आमेर के राजा ने की थी, जो 1688 से 1758 तक शासन कर रही थी। उन्होंने अपनी राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर (7 मील), आमेर से बढ़ती जनसंख्या को समायोजित करने और उनकी कमी को कम करने की योजना बनाई। पानी। [5] जय सिंह ने जयपुर के लेआउट की योजना बनाते समय आर्किटेक्चर और आर्किटेक्ट्स पर कई किताबों से परामर्श किया। विद्याधर भट्टाचार्य के स्थापत्य मार्गदर्शन के तहत, जयपुर वास्तुशास्त्र और शिल्पा शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर योजना बनाई गई थी। [8] शहर का निर्माण 1726 में शुरू हुआ और प्रमुख सड़कों, कार्यालयों और महलों को पूरा करने में चार साल लगे। शहर को 9 ब्लॉकों में विभाजित किया गया था, जिनमें से दो में राज्य की इमारतों और महलों में निहित है, शेष सात लोगों को जनता के लिए आवंटित किया गया था। विशाल गगनचुंबी इमारतों का निर्माण, सात गढ़वाले गेटों से छेड़ा गया। [5]जयपुर भारत के सबसे अधिक सामाजिक समृद्ध विरासत शहरी इलाकों में एक असाधारण है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": 1145, "text": "जयबाण " } ], "category": "SHORT", "id": 1166, "question": "विशाल तोप बर्ज किस किले में स्थित है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 4172, "text": "जय सिंह" } ], "category": "SHORT", "id": 1167, "question": "जयपुर नगर का प्रमुख संगठनकर्ता कौन थे ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 143, "text": "जेसोर" } ], "category": "SHORT", "id": 1168, "question": "संरक्षक देवी की मूर्ति कहाँ से लाई गई थी ?\n" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1169, "question": "वर्ष 1900 में जयपुर की जनसँख्या कितनी थी?" }, { "answers": [ { "answer_start": 1880, "text": "गोनेर" } ], "category": "SHORT", "id": 1170, "question": "जयपुर की छोटी काशी किसे कहा जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1171, "question": "जयपुर शहर में पहला संस्कृत कॉलेज किस वर्ष खोला गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1172, "question": "किस शासक के स्वागत के लिए जयपुर शहर को गुलाबी रंग से पेंट किया गया था?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1173, "question": " गुलाबी शहर का चौकीदार किस किले को कहा जाता है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1174, "question": "जयपुर दुसरे किस नाम से प्रख्यात है?" }, { "answers": [ { "answer_start": 3961, "text": "जयसिंह द्वितीय" } ], "category": "SHORT", "id": 1175, "question": "जयसिंह शहर की स्थापना किसने की थी ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "ये उत्तर भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बाद सबसे अधिक है। परंपरानुसार लखनवी आम (खासकर दशहरी आम), खरबूजा एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाये जा रहे अनाज की मंडी रही है। यहां के मशहूर मलीहाबादी दशहरी आम को भौगोलिक संकेतक का विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त हो चुका है। मलीहाबादी आम को यह विशेष दर्जा भारत सरकार के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई ने एक विशेष क़ानून के अंतर्गत्त दिया गया है। एक अलग स्वाद और सुगंध के कारण दशहरी आम की संसार भर में विशेष पहचान बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मलीहाबादी दशहरी आम लगभग ६,२५३ हैक्टेयर में उगाए जाते हैं और ९५,६५८.३९ टन उत्पादन होता है। गन्ने के खेत एवं चीनी मिलें भी निकट ही स्थित हैं। इनके कारण मोहन मेकिन्स ब्रीवरी जैसे उद्योगकर्ता यहां अपनी मिलें लगाने के लिए आकर्षित हुए हैं। मोहन मेकिन्स की इकाई १८५५ में स्थापित हुई थी। यह एशिया की प्रथम व्यापारिक ब्रीवरी थी। लखनऊ का चिकन का व्यापार भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक लघु-उद्योग है, जो यहां के चौक क्षेत्र के घर घर में फ़ैला हुआ है। चिकन एवं लखनवी ज़रदोज़ी, दोनों ही देश के लिए भरपूर विदेशी मुद्रा कमाते हैं। चिकन ने बॉलीवुड एवं विदेशों के फैशन डिज़ाइनरों को सदा ही आकर्षित किया है। लखनवी चिकन एक विशिष्ट ब्रांड के रूप में जाना जाये और उसे बनाने वाले कारीगरों का आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की टेक्सटाइल कमेटी ने चिकन को भौगोलिक संकेतक के तहत रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेटर के यहां पंजीकृत करा लिया है। इस प्रकार अब विश्व में चिकन की नकल कर बेचना संभव नहीं हो सकेगा। नवाबों के काल में पतंग-उद्योग भी अपने चरमोत्कर्ष पर था। यह आज भी अच्छा लघु-उद्योग है।", "qas": [ { "answers": [ { "answer_start": null, "text": "" } ], "category": "NO", "id": 1176, "question": " भारत का कौन सा क्षेत्र तंबाकू का औद्योगिक उत्पादक है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 92, "text": "दशहरी आम" } ], "category": "SHORT", "id": 1177, "question": "लखनऊ में पाए जाने वाले प्रसिद्ध आम का क्या नाम है ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 749, "text": "१८५५ " } ], "category": "SHORT", "id": 1178, "question": "मोहन मेकिंस ने अपनी पहली शराब की भठ्ठी कब स्थापित की थी ?" }, { "answers": [ { "answer_start": 557, "text": "९५,६५८.३९ टन" } ], "category": "SHORT", "id": 1179, "question": "भारत में दशहरी आम का उत्पादन कितना होता है ?" } ] } ], "title": "" }
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{ "paragraphs": [ { "context": "ये मार्ग तंग घाटियों वाले उबड़-खाबड़ मार्ग के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं। इनके साथ सदियों से आवागमन होने से घोड़ों की टापों के चिन्ह पत्थरों पर अद्यावधि विद्यमान है। मार्गों में पानी की भी कमी नहीं है, जिसके लिये जगह-जगह झरनों के बांध के अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से स्थान-स्थान पर चौकियों के ध्वंसाशेष भी दिखाई देते हैं। जब अकबर ने कुंभलगढ़, देवगढ़, मदारिया आदि स्थानों पर कब्जा कर लिया तो वहां की चौकियों से संबंध बनाए रखने के लिए दिवेर का चयन एक रक्षा स्थल के रूप में किया गया। यहां बड़ी संख्या में घुड़सवारों और हाथियों का दल रखा गया। इंतर चौकियों के लिए रसद भिजवाने का भी यह सुगम स्थान था। ज्यों महाराणा प्रताप छप्पन के पहाड़ी स्थानों में बस्तियां बसाने और मेवाड़ के समतल भागों में खेतों को उजाड़ने में व्यस्त थे त्यों अकबर दिवेर के मार्ग से उत्तरी सैनिक चौकियों का पोषण भेजने की व्यवस्था में संलग्न रहा। प्रताप की नीतियों छप्पन की चौकियों को हटाने में तथा मध्यभागीय मेवाड़ की चौकियों को निर्बल बनाने में अवश्य सफल हो गये, परंतु दिवेर का केंद्र अब भी मुगलों के लिए सुदृढ़ था। इस पृष्ठभूमि में दिवेर का महाराणा प्रताप का व मुगलों का संघर्ष जुड़ा हुआ था। इस युद्ध की तैयारी के लिए प्रताप ने अपनी शक्ति सुदृढ़ करने की नई योजना तैयार की। वैसे छप्पन का क्षेत्र मुगल से युक्त हो चला था और मध्य मेवाड़ में रसद के अभाव में मुगल चौकियां निष्प्राण हो गई थी अब केवल उत्तरी मेवाड़ में मुगल चौकियां व दिवेर के संबंध में कदम उठाने की आवश्यकता थी। इस संबंध में महाराणा ने गुजरात और मालवा की ओर अपने अभियान भेजना आरंभ किया और साथ ही आसपास के मुगल अधिकार क्षेत्र में छापे मारना शुरू कर दिया। इसी क्रम में भामाशाह ने, जो मेवाड़ के प्रधान और सैनिक व्यवस्था के अग्रणी थे, मालवे पर चढ़ाई कर दी और वहां से 2.3 लाख रुपए और 20 हजार अशर्फियां दंड में लेकर एक बड़ी धनराशि इकट्ठी की। इस रकम को लाकर उन्होंने महाराणा को चूलिया ग्राम में समर्पित कर दी। इसी दौरान जब शाहबाज खां निराश होकर लौट गया था, तो महाराणा ने कुंभलगढ़ और मदारिया के मुगली थानों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इन दोनों स्थानों पर महाराणा का अधिकार होना दिवेर पर कब्जा करने की योजना का संकेत था। अतएव इस दिशा में सफलता प्राप्त करने के लिए नई सेना का संगठन किया गया। जगह-जगह रसद और हथियार इकट्ठे किए गए। सैनिकों को धन और सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। सिरोही, ईडर, जालोर के सहयोगियों का उत्साह परिवर्धित कराया गया। ये सभी प्रबंध गुप्त रीति से होते रहे। मुगलों को यह भ्रम हो गया कि प्रताप मेवाड़ छोड़कर अन्यत्र जा रहे हैं। ऐसे भ्रम के वातावरण से बची हुई मुगल चौकियों के सैनिक बेखटके रहने लगे। जब सब प्रकार की तैयारी हो गई तो महाराणा प्रताप, कु. अमरसिंह, भामाशाह, चुंडावत, शक्तावत, सोलंकी, पडिहार, रावत शाखा के राजपूत और अन्य राजपूत सरदार दिवेर की ओर दल बल के साथ चल पड़े। दिवेर जाने के अन्य मार्गों व घाटियों में भीलों की टोलियां बिठा दी गई, जिससे मेवाड़ में अन्यत्र बची हुई सैनिक चौकियों का दिवेर से कोई संबंध स्थापित न हो सके। अचानक महाराणा की फौज दिवेर पहुंची तो मुगल दल में भगदड़ मच गई। मुगल सैनिक घाटी छोड़कर मैदानी भाग की तलाश में उत्तर के दर्रे से भागने लगे। महाराणा ने अपने दल के साथ भागती सेना का पीछा किया। घाटी का मार्ग इतना कंटीला तथा ऊबड़-खाबड़ था कि मैदानी युद्ध में अभ्यस्त मुगल सैनिक विथकित हो गए। अन्ततोगत्वा घाटी के दूसरे छोर पर जहां कुछ चौड़ाई थी और नदी का स्त्रोत भी था, वहां महाराणा ने उन्हें जा दबोचा। दिवेर थाने के मुगल अधिकारी सुल्तानखां को कुं. अमरसिंह ने जा घेरा और उस पर भाले का ऐसा वार किया कि वह सुल्तानखां को चीरता हुआ घोड़े के शरीर को पार कर गया। घोड़े और सवार के प्राण पखेरू उड़ गए। महाराणा ने भी इसी तरह बहलोलखां और उसके घोड़े का काम तमाम कर दिया। एक राजपूत सरदार ने अपनी तलवार से हाथी का पिछला पांव काट दिया। इस युद्ध में विजयश्री महाराणा के हाथ लगी। यह महाराणा की विजय इतनी कारगर सिद्ध हुई कि इससे मुगल थाने जो सक्रिय या निष्क्रिय अवस्था में मेवाड़ में थे जिनकी संख्या 36 बतलाई जाती है, यहां से उठ गए। शाही सेना जो यत्र-तत्र कैदियों की तरह पडी हुई थी, लड़ती, भिड़ती, भूखे मरते उलटे पांव मुगल इलाकों की तरफ भाग खड़ी हुई। यहां तक कि 1585 ई. के आगे अकबर भी उत्तर - 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